आर्थिक आयोजन
आर्थिक आयोजन वह प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सीमित प्राकृतिक संसाधनों का कुशल तम उपयोग किया जाता है। भारत में आर्थिक आयोजन के निर्धारित उद्देश्य है–
आर्थिक संवृद्धि, आर्थिक व सामाजिक असमानता को दूर करना, गरीबी का निवारण तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि।
नोट : आर्थिक और सामाजिक योजना को भारत के संविधान की समवर्ती सूची (सातवीं अनु सूची) में रखा गया है। भारत का संविधान यह विहित करता है कि पंचायतों को आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय की योजना बनाने का कार्यभार दिया जाना चाहिए।
भारत में आर्थिक आयोजन सम्बन्धी प्रस्ताव सर्वप्रथम सन् 1934 में ‘विश्वेश्वरैया’ की पुस्तक ‘प्लांड इकोनोमी फॉर इंडिया’ में आयी थी। इस पुस्तक में भारत के विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था।
1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसी ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय नियोजन समिति’ का गठन किया।
1944 में बम्बई के आठ उद्योगपतियों द्वारा बाम्बे प्लान प्रस्तुत किया गया जिसमें 15 वर्षीय सूत्रबद्ध योजना थी। बाम्बे प्लान के सूत्रधार सर आर्देशिर दलाल थे।
1944 में भारत सरकार ने ‘नियोजन एवं विकास विभाग’ नामक नया विभाग खोला। इसी वर्ष श्री मन्नानारायण ने ‘गॉंधीवादी योजना’ बनाई।
1945 में श्री एम.एन. राय ने ‘जन योजना’ बनाई।
1950 ई में जय प्रकाश नारायण ने ‘सर्वोदय योजना’ प्रकाशित की
स्वतंत्रता पश्चात सन् 1947 में पंडित नेहरू की अध्यक्षता में आर्थिक नियोजन समिति गठित हुई। बाद मं इसी समिति की सिफारिश पर 15 मार्च, 1950 में योजना आयोग का गठन एक गैर सांविधिक तथा परामर्शदात्री निकाय के रूपर में किया गया। भारत के प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होते है।
भारत की पहली पंचवर्षीय 1 अप्रैल, 1951 ई से प्रारंभ हुई।
प्रथम योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू एवं उपाध्यक्ष गुलजारी लाल नन्दा थे। 15 अगस्त, 2014 को योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया है।
भारत में अब तक ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएं लागू की जा चुकी है। और 1 अप्रैल, 2012 से 12वीं पंचवर्षीय योजना प्रारंभ की गई है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56 ई.)
यह योजना ‘हैरॉड-डोमर मॉडल’ पर आधारित थी।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास की प्रक्रिया आरंभ करना था।
इस योजना में कृषि को उच्च प्राथमिकता दी गई।
यह सफल योजना रही तथा इसने लक्ष्य 2.1प्रतिशत से आगे 3.6प्रतिशत विकास-दर को हासिल किया।
इस योजना के दौरान राष्ट्रीय आय में 18 प्रतिशत तथा प्रति व्यक्ति आय में 11प्रतिशत की कुल वृद्धि हुई।
इस योजना के दौरान कई बडी सिंचाई परियोजनाएं शुरू की गयी जैसे भाखडा नांगल परियोजना, व्यास परियोजना, दामोदर नदी घाटी परियोजना आदि।
इस योजना काल में सार्वजनिक उद्योग के विकास की उपेक्षा की गई तथा इस मद में मात्र 6प्रतिशत राशि खर्च की गई।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61 ई)
यह योजना पी. सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी।
इसके मुख्य उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना था।
इस योजना में देश के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए 5 वर्षो में राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत की वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
इस योजना का लक्ष्य 4.5प्रतिशत से कम 4.1प्रतिशत विकास दर को हासिल किया।
इसमें भारी उद्योगों व खनिजों को उच्च प्राथमिकता दी गई तथ इस मद में सार्वजनिक क्षेत्र के व्यय की 24प्रतिशत राशि व्यय की गई।
द्वितीय प्राथमिकता यातायात व संचार को दी गई जिस पर 28 प्रतिशत राशि व्यय किया गया।
अनेक महत्वपूर्ण वृहत उद्योग जैसे – दुर्गापूर, भिलाई, राउरकेला के इस्पात कारखाने इसी योजना के दौरान स्थापित किये गये।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66 ई)
इस योजना का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना तथा स्वतः: स्फूर्त अवस्था में पहुँचाना था।
यह योजना अपने लक्ष्य 5.6प्रतिशत की वृद्धि-दर को प्राप्त करने में असफल रही तथ 2.8प्रतिशत की वृद्धि-दर ही प्राप्त कर सकी।
इस योजना में कृषि व उद्योग दोनों को प्राथमिकता दी गई।
इस योजना की असफलता का मुख्य कारण भारत-चीन युद्ध, भरत-पाक युद्ध तथा अभूतपूर्व सूखा था।
योजना अवकाश (1966-67 से 1968-69 ई)
इस अवधि में तीन वार्षिक योजनाएं तैयार की गई।
इस अवकाश-अवधि में कृषि तथ सम्बद्ध क्षेत्र और उद्योग क्षेत्रों को समान प्राथमिकता दी गयी।
योजना अवकाश असफलता का प्रमुख कारण भारत-पाक संघर्ष तथा सूखा के कारण संसाधनों की कमी, मूल्य-स्तर में वृद्धि रही।
इस दौरान 3.8प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त हो सकी।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74 ई)
इस योजना के मुख्य उद्देश्य स्थायित्व के साथ विकास तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति थी।
इस योजना में ‘समाजवादी
की स्थापना’ को भी विशेष रूप से लक्षित किया गया।
इस योजना में क्षेत्रीय विषमता दूर करने के उद्देश्य के साथ विकास केन्द्र उपागम की शुरुआत की गई। संसाधन आधारित कार्यक्रम, लक्षित समूह उपागम, प्रोत्साहन दृष्टिकोण और व्यापक क्षेत्र उपागम आदि विकास केन्द्र उपागम के घटक थे।
यह योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रही तथा 5.7प्रतिशत की वृद्धि दर लक्ष्य के विरुद्ध मात्र 3.3प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की जा सकी।
योजना की विफलता का कारण मौसम की प्रतिकूलता तथा बांग्लादेशी शरणार्थियों का आगमन था।
नोट : विकास केन्द्र उपागम पर विशेष बल पाँचवीं योजना में दिया गया ।
पॉंचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78 ई)
इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी-उन्मूलन तथा आत्मनिर्भरता की प्राप्ति थी।
योजना में आर्थिक स्थायित्व लाने को उच्च प्राथमिकता दी गई।
योजना के दौरान विकास लक्ष्य, प्रारंभ में 5.5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि रखी गई, परन्तु बाद मं इसे संशोधित कर 4.4प्रतिशत वार्षिक कर दी गई और 4.8प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की गई।
इस योजना में पहली बार गरीबी एवं बेरोजगारी पर ध्यान दिया गया।
योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि को दी गई एवं तत्पश्चात उद्योग व खनिज क्षेत्र को।
यह योजना सामान्यतः: सफल रही, परन्तु गरीबी तथा बेरोजगारी में विशेष कमी नहीं हो सकी।
जनता पार्टी शासन द्वारा इस योजना को सन् 1978 में ही समाप्त करने का निर्णय किया गया।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85 ई)
इस योजना का प्रारंभ रोलिंग प्लान(1978-83) जो जनता पार्टी सरकार द्वारा बनायी गयी थी, को समाप्त करके की गई।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी-उन्मूलन और रोजगार में वृद्धि था। पहली बार गरीबी-उन्मूलन पर विशेष जोर दिया गया।
योजना में विकास का लक्ष्य 5.2प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर रखा गया तथा सफलतापूर्वक 5.54प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गई।
इस योजना के दौरान समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किये गये।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90 ई)
प्रमुख उद्देश्य :
1 – समग्र रूप से उत्पादकता को बढाना तथा रोजगार के अधिक अवसर जुटाना
2- साम्य एवं न्याय पर आधारित सामजिक प्रणाली की स्थापना
4-देशी तकनीकी विकास के लिए सुदृढ़ आधार तैयार करना था।
भोजन , काम और उत्पादन को नारा इसी योजना में दिया गया था।
योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 5प्रतिशत वृद्धि दर को लक्ष्य रख गया जबकि वास्तविक वृद्धि दर 6.02प्रतिशत त वार्षिक रही। अतः: यह सफल योजना थी।
योजना में प्रति व्यक्ति आय में 3.6प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई।
इस योजना में जवाहर रोजगार योजना जैसी महत्वपूर्ण रोजगारपरक कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97 ई)
इस योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता ‘मानव संसाधन का विकास’ अर्थात रोजगार, शिक्षा व जनस्वास्थ्य को दिया गया अर्थात मानव विकास को सारे विकास प्रयासों का सार तत्व माना गया है।
इसके अतिरिक्त आधारभूत ढॉचे का सशक्तिकरण तथा शताब्दी के अंत तक लगभग पूर्ण रोजगार की प्राप्ति को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया। औद्योगीकरण के ढॉचे मं परिवर्तन के अंतर्गत भारी उद्योग का महत्व कम करते हुए आधारिक संरचनाओं पर बल देने की शुरूआत इस योजना से की गई।
यह योजना सफल योजना रही तथा 5.6प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर के लक्ष्य से ज्यादा 6.8प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गई।
इस काल में प्रधानमंत्री रोजगार योजना (1993) की शुरूआत हुई।
8वी योजना में ही राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना मार्च 1993 में भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के तहत महिला तथ बाल विकास विभाग द्वारा एक स्वतंत्र पंजीकृत सोसाइटी के रूप में की गई।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002 ई) :
नौवीं पंचवर्षीय योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता न्यायपूर्ण वितरण एवं समानता के साथ विकास को दिया गया।
इस योजना की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य 6.5प्रतिशत रखा गया जबकि उपलब्धि मात्र 5.4प्रतिशत वृद्धि दर रही। इस प्रकार यह योजना असफल रही।
इस योजना की असफलता के पीछे अन्तर्राष्ट्रीय मंदी को जिम्मेदार माना गया।
क्षेत्रीय संतुलन जैसे मुद्दे को भी इस योजना में विशेष स्थान दिया गया।
नौवीं योजना में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्राथमिकता क्रम में निम्नलिखित क्षेत्रों को चुना गया –
1- भुगतान संतुलन सुनिश्चित करना।
2-विदेशी ऋण भार को न केवल बढने से रोकना वरन् उसमें कमी भी करना।
3-खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
4-प्रोद्योगिकीय आत्मनिर्भरता प्राप्त करना
5-जडी-बुढियों और औषधीय मूल के पेड़-पौधों सहित प्राकृतिक संसाधनों को समुचित उपयोग तथ संरक्षण।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007 ई)
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दसवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य देश में
ी और बेरोजगारी समाप्त करना तथा अगले 10 वर्षो में प्रति व्यक्ति आय दुगनी करना प्रस्तावित किया गया।
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योजना अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में वार्षिक 8प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया जबकि उपलब्धि 7.5प्रतिशत रही।
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योजना के दौरान प्रतिवर्ष 7.5 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लक्ष्य रखा गया।
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योजना अवधि में 5 करोड रोजगार के अवसरों का सृजन करना लक्षित था।
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इसके अतिरिक्त सन् 2007 तक अर्थात योजना के अन्त तक साक्षरता 75प्रतिशत, शिशु मृत्यु दर 45प्रति हजार या इससे कम तथा वनाच्छादन 25प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया।
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भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 2007 को समाप्त हो गयी। 10वी योजना के उपलब्ध अंतिम ऑंकडों के अनुसार यह योजना यह अब तक की सफलता योजना रही है। इस योजना में 7.7प्रतिशत की औसत सालाना वृद्धि दर प्राप्त की गई। अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख क्षेत्रों – कृषि, उद्योग व सेवा में दसवीं योजना के दौरान प्राप्त की गई वृद्धि दरें इनके लिए निर्धारित किये लक्ष्यों के काफी निकट रही है।
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सकल घरेलू बचते जीडीपी के 23.31प्रतिशत रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तविक उपलब्धि लक्ष्य से कही अधिक जीडीपी का 26.62प्रतिशत रही है।
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योजना काल में मुद्रास्फीति की दर औसतन 5प्रतिशत रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तव में यह 5.02प्रतिशत रही है।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012 ई)
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11वी योजना 1 अप्रैल, 2007 से प्रारंभ हो गयी है इस पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य तीव्र तम एवं समावेश विकास था।
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11वी योजना सकल घरेलू उत्पाद की औसत संवृद्धि वृद्धि दर 8.3प्रतिशत रही। इस प्रकार सर्वाधिक वृद्धि दर 11वी योजना में रही ऊँची वृद्धि दर की दृष्टि से इसके बाद 10वीं योजना रही।
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11वी पंचवर्षीय योजना में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र की विकास दर के लिए क्रमश: 4.1प्रतिशत, 10.5प्रतिशत और 9.9प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जबकि उपलब्धि क्रमश: 3.3प्रतिशत, 6.6प्रतिशत, 9.8प्रतिशत रही।
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11वी योजना में शिक्षा के लिए विषय वस्तु थीम अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा था।
12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017 ई)
12वी योजना को राष्ट्रीय विकास परिषद की दिसम्बर, 2012 में मंजूरी मिली। इसका मुख्य उद्देश्य तीव्र, अधिक समावेश, और धारणी विकास है। भारत की 12वी पंचवर्षीय का प्रारंभ 1 अप्रैल 2012 से हो गया है। 12वी योजना के लक्ष्य निम्न है।-
1-वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 8प्रतिशत (पहले 9प्रतिशत था बाद में संशोधित किया )
2-कृषि, वानिकी, मत्स्यपालन क्षेत्र में 4प्रतिशत व विनिर्माण क्षेत्र में 10प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य ।
3-योजनावधि में गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के 5करोड नये अवसरों के सृजन का लक्ष्य।
4-योजना के अंत तक निर्धनता अनुपात में नीचे की जनसंख्या के प्रतिशत में पूर्व आकलन की तुलना में 10प्रतिशत बिन्दु की कमी लाने का लक्ष्य।
5- योजना के अंत तक देश में शिशु मृत्यु दर को 25 तथा मातृत्व मृत्यु दर को 1प्रति हजार जीवित जन्म तक लाने तथा 0-6वर्ष की आयु वर्ग में बाल लिंगानुपात को 950 करने का लक्ष्य।
6- योजना के अन्त तक कुल प्रजनन दर को घटाकर 2.1प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य।
7- योजना के अन्त तक आधारिक संरचना क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर जीडीपी के 9प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य।
8- 12वी योजना में सर्वाधिक धनराशि सामाजिक सेवाओं की मद में विनिहित की गई है। इसमें कुल 26,64,843 करोड रुपए विनिहित की गई है जो कुल परिव्यय का 34.7प्रतिशत है।
योजना आयोग योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को भूतपूर्व सोवियत संघ के तर्ज पर हुआ था। योजना आयोग देश के विकास से संबंधित योजनाएं बनाने का काम करता था। योजना आयोग ने 12 पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं। आयोग ने 2000 करोड़ रुपए से पहली पंचवर्षीय योजना 1951 में शुरू की थी। योजना आयेग के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री ही होते थे
नीति आयोग :- योजना आयोग की जगह अब नीति आयोग है। प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग को खत्म कर उसकी जगह नीति आयोग का गठन किया था। योजना आयोग के पास कई प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार थे। जिसे तत्काल तौर पर खत्म किया गया। नीति आयोग का मुख्य मकसद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के विभिन्न नीतिगत मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर रणनीतिक और तकनीकी सलाह देना है। 1 जनवरी 2015 को इस नए संस्थान के संबंध में जानकारी देने वाला मंत्रिमंडल का प्रस्ताव जारी किया गया।[2] यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा और उसे निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा।