7-8 दिसंबर, 2009 तक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन के बेला सेंटर में हुआ। क्योटो प्रोटोकॉल के बाद जलवायु परिवर्तन पर होने वाला ये पांचवां सम्मेलन था । बेला सेंटर में ही उसी साल मई में इस सम्मेलन के विषय की भूमिका तैयार हो गई थी, जिसमें जलवायु परिवर्तन के बारे में वैश्विक जोखिम और चुनौतियों पर चर्चा होनी थी। इस सम्मेलन में इन चुनौतियों से निपटने के लिए बाली और पोंजन में तैयार की गई रणनीति के आधार पर काम करना तय किया गया और क्योटो प्रोटोकॉल के सहमति-पत्र की नया रूप दिया गया।
सहमति: कोपेनहेगेन में अमरीका, भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका द्वारा तैयार किए गये सहमति-पत्र में सभी देशों से अपील की गई कि, जनवरी 2010 के अंत तक अपने कार्बन कटौती में लक्ष्य की घोषणा करें। हालांकि इस सहमति-पत्र को 19 दिसंबर को सभी प्रतिनिधि देशों के सामने रखा गया लेकिन इसे सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया जा सका। सहमति-पत्र में इस बात की जरूरत पर बल दिया गया कि, तापमान में बढ़ोत्तरी को 2°C से नीचे रखा जाय, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता तय नहीं की गई। सहमति-पत्र के एक हिस्से में विकासशील देशों को अगले तीन सालों में तीन करोड़ अमरीकी डॉलर की आर्थिक सहायता देने की बात की गई थी, ताकि ये देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तकनीकी रणनीति बना सकें।