दक्षिण-पश्चिम मानसून भोजपुर क्षेत्र में ‘पुरवैया’ (पूर्वी) इसलिए कहलाता है क्योंकि यह मानसून पश्चिम से पूर्व की ओर बहता है। भोजपुर क्षेत्र उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है, इसलिए यह मानसून क्षेत्र के पश्चिमी भाग से आता है। इस कारण से, स्थानीय लोग इसे ‘पुरवैया’ मानसून कहते हैं।
इस दिशापरक मौसमी पवन प्रणाली ने भोजपुर क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार को कई तरह से प्रभावित किया है। सबसे पहले, यह मानसून क्षेत्र की कृषि पर निर्भर करता है। भोजपुर क्षेत्र मुख्य रूप से एक कृषि क्षेत्र है, और ‘पुरवैया’ मानसून क्षेत्र में धान की खेती के लिए आवश्यक वर्षा प्रदान करता है। इस कारण से, क्षेत्र के लोग मानसून के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं और इसके आगमन के बाद कृषि कार्यों को शुरू करते हैं।
दूसरे, ‘पुरवैया’ मानसून क्षेत्र के जलवायु को प्रभावित करता है। यह मानसून क्षेत्र में भारी वर्षा लाता है, जिससे क्षेत्र में हरियाली आ जाती है। इस कारण से, क्षेत्र के लोग मानसून के आगमन को एक खुशी का अवसर मानते हैं।
तीसरे, ‘पुरवैया’ मानसून क्षेत्र की संस्कृति को प्रभावित करता है। क्षेत्र में कई लोकगीत और लोककथाएँ हैं जो मानसून के आगमन का वर्णन करती हैं। इन लोकगीतों और लोककथाओं में मानसून को एक देवता के रूप में चित्रित किया गया है जो क्षेत्र में वर्षा और समृद्धि लाता है।
कुछ विशिष्ट उदाहरणों में, भोजपुरी लोकगीत “पुरवैया चलल हाय” मानसून के आगमन का स्वागत करता है, और लोककथा “पुरवैया बरस रहा” मानसून के देवता की कहानी कहती है।
कुल मिलाकर, ‘पुरवैया’ मानसून भोजपुर क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मौसमी घटना है। यह क्षेत्र की कृषि, जलवायु और संस्कृति को प्रभावित करता है।
जून से सितंबर तक सक्रिय रहने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत में पर्याप्त वर्षा करता है। जब ये मानसूनी पवन विभिन्न पर्वतों से टकराती हैं, तो वे अपना पथ परिवर्तित कर लेती हैं, जिससे भोजपुर क्षेत्र में पूर्वी ‘पुरवैया’ पवन का निर्माण होता है। यह विशिष्ट पवन प्रतिरूप भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों तक फैले भोजपुर की सांस्कृतिक पहचान को महत्त्वपूर्ण आकार देता है।
भोजपुर की सांस्कृतिक प्रकृति पर पुरवैया का प्रभाव
- कृषि और त्योहार: पुरवैया से रोपण का मौसम शुरू होता है और इसे तीज़ जैसे त्योहारों के साथ मनाया जाता है।
- अनुष्ठान और मान्यताएँ: यहाँ लोग अच्छी फसल के लिये इंद्र और पर्जन्य (वर्षा के देवता)जैसे वर्षा देवताओं की पूजा करते हैं। मधुश्रावणी में विषहरा एवं गोसौन की पूजा शामिल है।
- पारंपरिक व्यंजन: पुरवैया चावल, सब्जियों और फलों के विकास को सक्षम बनाती है, जिससे क्षेत्र के व्यंजन प्रभावित होते हैं। साथ ही इस मौसम में पुआ जैसे विशेष व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
- लोककथाएँ: ये ‘पुरवैया’ कहावतों, गीतों और कविताओं में प्रकट होती है जो वायु के महत्त्व तथा भावनाओं को व्यक्त करती हैं। ‘पुरवैया चले तो खेत खिले’ जैसी कहावतें और ‘बिरहा’ जैसे लोकगीत इसके उदाहरण हैं।