नागरिकता | Citizenship | ( भाग – 2, अनु – 5 से 11)
- अनुच्छेद 5 26 जनवरी 1950 को वह व्यक्ति भारतीय नागरिक माने गए जो भारत में जन्मे हो जो भारत में रहते हो
- जो संविधान लागू होने से 5 वर्ष पूर्व से भारत में रहते हो
- अनुच्छेद 6 (i) उन व्यक्तियों को भी नागरिकता प्रदान की गई जो 19 जुलाई 1948 को पाकिस्तान से भारत आ गए तथा निम्न शब्दों का पालन करते थे
- उनका जन्म अखंड भारत में हुआ हो या माता पिता, पितामह, पितामही, मातामह, मातामही में से किसी एक का जन्म हुआ हो
- 1 व्यक्तियों को भारत में 6 महीने निवास करने के उपरांत नागरिकता प्रदान की गई
- अनुच्छेद 9 – यदि किसी भारतीय पुरुष का विवाह किसी विदेशी महिला से होता है तो उनसे उत्पन्न संतान को भी नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है पी वी नरसिंह राव की सरकार ने 1992 ईस्वी में यह अधिकार भारतीय महिलाओं को भी प्रदान किया
- अनुच्छेद 11 – नागरिकता के संबंध में किसी भी तरह का अधिनियम बनाने का अधिकार भारतीय संसद को है
- भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है अमेरिका में प्रत्येक नागरिक अमेरिका का नागरिक होने के साथ-साथ अपने राज्य का भी नागरिक होता है जबकि भारत में सिर्फ भारत का नागरिक होता है
- भारत के नागरिकों को संविधान के अधीन निम्न अधिकार प्राप्त है जो अन्य देशीयो को प्राप्त नहीं है
- कुछ मूल अधिकार जैसे अनुच्छेद 15, 16 एवं 19 सिर्फ नागरिकों को प्राप्त हैं
- केवल नागरिक ही उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश, महान्यायवादी, महाअधिवक्ता एवं राज्यपाल आदि के पदों पर नियुक्त हो सकता है
- अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है
- अनुच्छेद 16 के अनुसार देश के समस्त नागरिकों को शासकीय सेवाओं में अवसर की समानता होगी ।
- अनुच्छेद 19 के अनुसार नागरिक को 6 प्रकार की स्वतंत्रतायें दी गई है –
- अनुच्छेद 19(A) – भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 19(1) के अन्तर्गत प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है । इसी के तहत देश के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की स्वतंत्रता दी गई है ! संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम 1951 के द्वारा विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। सरकार राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक कानून व्यवस्था, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, विदेशी राज्यों से संबंध तथा अपराध के लिए उत्तेजित करना आदि के आधार पर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है।
- अनुच्छेद 19(B) के तहत शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के नागरिकों को सम्मेलन करने और जुलूस निकालने का अधिकार होगा । राज्यों की सार्वजनिक सुरक्षा एवं शान्ति व्यवस्था के हित में इस। स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 19(C) भारतीय नागरिकों को संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता दी गई हैं ! लेकिन सैनिकों को ऐसी स्वतंत्रता नहीं दी गई है
- अनुच्छेद 19(D) देश के किसी भी क्षेत्र मे स्वतंत्रता पूर्वक भ्रमण करने की स्वतंत्रता ।
- अनुच्छेद 19(E) देश के किसी क्षेत्र में स्थाई निवास की स्वतंत्रता। (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)
- अनुच्छेद 19(G) कोई भी व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता ।
दोहरी नागरिकता
प्रवासी भारतीय एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के लिए दिसंबर 2003 में लक्ष्मी मल सिंधवी समितिकिधर बारिश होगी आधार पर संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 पारित किया गया नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 द्वारा सिटीजनशिप एक्ट 1955 में मौजूद चार अनुसूचियों हटाकर 16 देशों स्विजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजराइल, पुर्तगाल, फ्रांस, स्वीडन, न्यूजीलैंड, यूनान, साइप्रस, इटली, फिनलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, ब्रिटेन एवं अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान किया गया
- प्रवासियों को दिए गए अधिकार – प्रभातियां को उनके अपने देश की नागरिकता की साथ-साथ भारत की नागरिकता भी उपलब्ध होगी जिसके तहत उनको निम्न अधिकार प्राप्त हैं
- ऐसी दोहरी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत में आने जाने की स्वतंत्रता होगी
- इसके तहत इन्हें भारत में रहने, संपत्ति अर्जित करने एवं पूंजी निवेश करने का अधिकार होगा
- वर्ष 2006 में प्रवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है
- प्रवासियों पर आरोपित प्रतिबंध – प्रवासी भारतीयों को निम्न अधिकारों से वंचित किया गया है
- भारत में कोई संवैधानिक पद इन्हें प्राप्त नहीं होगा
- सार्वजनिक नौकरियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रदत अवसर की समानता का अधिकार भी प्रवासी भारतीयों को नहीं प्रदान किया गया है
- उद्देश्य – भारत चीन के बाद दूसरा ऐसा देश है जिसके करोड़ों लोग विश्व के 110 देशों में बसे हुए हैं भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका सहित तमाम देशों में शानदार आर्थिक तरक्की की है उनसे भारत में पूंजी निवेश करवाकर भारत के विदेशी मुद्रा कोष को समृद्ध बनाना एवं आर्थिक विकास को गति प्रदान करना ही का मूल उद्देश्य है
नागरिकता संशोधन अध्यादेश 2005
- केंद्र सरकार ने 28 जून 2005 को नागरिकता संशोधन अध्यादेश 2005 जारी किया गया जिसके प्रावधान निम्नलिखित है
- भारतीय मूल के वह लोग जो स्वयं या उनके माता-पिता, दादा दादी 20 जनवरी 1950 के बाद भारत से चले गए थे या 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिक बनने के योग्य थे या
- उस जमीन से ताल्लुक रखते थे जो 15 अगस्त 1947 का हिस्सा बनी उनके नाबालिग बच्चे जिनकी राष्ट्रीयता ऐसे देश की है जो दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं भारतीय नागरिकता के लिए पंजीकरण के योग्य है
- किसी भी राज्य की जनसंख्या को दो वर्गों में बांटा गया है वह है नागरिक एवं अन्य देशीय नागरिकों को सभी प्रकार के सिविल एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं जबकि अन्य देशीयों को नहीं
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 6 जनवरी, 2015 से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया था, जिसके तहत भारतीय नागरिक अधिनियम-1955 में निम्न संशोधन किए गए हैं।
- वर्तमान में भारतीय नागरिकता के लिए भारत में लगातार एक वर्ष तक रहना अनिवार्य है, लेकिन, अगर केन्द्र सरकार संतुष्ट है तो विशेष परिस्थितियों में इसमें छूट दी जा सकती है। इस प्रकार की विशेष परिस्थितियों के बारे में लिखित रिकॉर्ड दर्ज करने के बाद विशेष 12 माह के लिए छूट दी जा सकती है, जो अधिकतम 30 दिन के लिए अलग-अलग अंतराल के बाद दी जा सकती है।
- भारतीय नागरिकों के ओ सी आई नाबालिग बच्चों का प्रवासी भारतीय नागरिक (ओ सी आई) के तौर पर पंजीकरण की शर्तों को उदार बनाया जाएगा।
- ऐसे नागरिकों के बच्चों या पोता-पोतियों अथवा पड़ पोता-पोतियों के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा।
- धारा 7ए के तहत पंजीकृत प्रवासी भारतीय के पति या पत्नी या भारतीय नागरिक के पति या पत्नी के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा और जिनकी शादी दो वर्ष की अवधि के लिए पंजीकृत या कायम रही हो, वे तुरंत ही इस धारा के तहत आवेदन कर सकते हैं।
- वर्तमान पी आई ओ कार्डधारकों के संबंध में केन्द्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर यह स्पष्ट कर सकती है कि किस दिनांक से सभी मौजूदा पी आई ओ कार्डधारकों को ओ सी आई कार्डधारकों के रूप में बदलने का निर्णय किया जाए।
- भूमि अधिग्रहण, कार्यमुक्ति, संकट, भारतीय नागरिकता की पहचान और अन्य संबंधित मुद्दों के लिए भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 है। इस अधिनियम के तहत जन्म, पीढ़ी, पंजीकरण, विशेष परिस्थितियों में स्थान का विलय या किसी स्थान में शामिल किये जाने के साथ ही नागरिकता समाप्त होने और संकट के समय में भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है।
संघ एवं राज्य क्षेत्र
- भारतीय संविधान का भाग 1 भारत को राज्यों का संघ घोषित करता है
- भारतीय संविधान के भाग 1 में वर्णित राज्यों की कुल संख्या 28 एवं केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या 7 है
- अनुच्छेद 1 – भारत के राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों का संघ घोषित करता है
- अनुच्छेद 1 (1) – इसके द्वारा संविधान में हमारे देश को भारत अथवा इंडिया कह कर संबोधित किया गया है( संयुक्त राष्ट्र संघ में भी हमारे देश का नाम इंडिया ही है)
- अनुच्छेद 2 – यह धारा भारतीय संसद को नए राज्य का गठन करने की शक्ति प्रदान करती है
- अनुच्छेद 3 – यह धारा संसद को निम्नवत अधिकार प्रदान करती है –
- वह संसद दो या उससे अधिक राज्यों को मिलाकर एक राज्य बना सकती है वह किसी राज्य की सीमा को बढ़ाया घटा सकती है
- वह किसी राज्य के नाम को परिवर्तित कर सकती है पूर्व में नेफा का नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश संसद द्वारा ही किया गया
- उल्लेखनीय है कि शहरों के नाम में परिवर्तन का अधिकार संबंधित राज्य विधानमंडल को है मद्रास का चेन्नई कोलकाता का कोलकाता मुंबई का मुंबई नाम इन शहरों को संबंधित राज्यों के विधान मंडलो द्वारा ही दिया गया है
- स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत ब्रिटिश प्रांत एवं देशी रियासतों को मिलाकर भारत में राज्यों की चार श्रेणियां निश्चित की गई
- श्रेणी A ब्रिटिश भारत के प्रांतों के साथ 216 देशी रियासतों को मिलाकर यह A श्रेणी के राज्यों का गठन किया गया – असम, बिहार, मुंबई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, संयुक्त प्रांत, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र श्रेणी के राज्यों को पूर्ण स्वायत्ता प्रदान थी
- श्रेणी B – 275 देशी रियासतों को नहीं प्रशासनिक इकाई में गठित करके B राज्य की श्रेणी प्रदान की गई है राज्य से हैदराबाद, जम्मू कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पेप्सू, राजस्थान, सौराष्ट्र तथा त्रावणकोर – कोचीन इनकी संख्या ‘8’ थी इस श्रेणी ऐसे राज्य थे जिन्हें कुछ दिनों तक संघ के अधीन रहकर स्वतंत्र होना था
- श्रेणी C – 61 देसी रियासतें को एकीकृत करके c राज्य की श्रेणी में रखा गया यह राज्य अजमेर, बिलासपुर, भोपाल, दुर्ग ,दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा, एवं विंध्य प्रदेश के राज्य थे इनकी संख्या 10 थी तथा यह संघ शासित प्रदेश थे
- श्रेणी D – अंडमान तथा निकोबार दीप समूह को ‘डी’ श्रेणी में रखा गया यह भी एक संघ शासित राज्य है
- भारत के आधार पर सबसे पहले 1 अक्टूबर 1953 ईसवीं को आंध्र प्रदेश का गठन किया गया
- 1953 ईस्वी में फजल अली की अध्यक्षता में एक राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया
- राज्य पुनर्गठन आयोग में अध्यक्ष के अलावा दो सदस्य हृदयनाथ कुंजरू एवं के एम पणिक्कर भी थे
- 22 दिसंबर 1953 को गठित फजल अली आयोग ने 30 सितंबर 1955 को केंद्र सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में सिफारिशें की
- राज्यों का पुनर्गठन भाषा एवं संस्कृति के आधार पर करना अनुचित है
- राज्यों का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा वित्तीय एवं प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए
- A, B, C वर्गों में विभाजित राज्यों को समाप्त कर दिया जाए तथा इनकी जगह 16 राज्यों एवं 3 केंद्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया जाए
- 31 अगस्त 1956 को संसद ने आयोग की अनुशंसाएं मानते हुए 7 वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया
- राज्यों की संख्या अब 14 थी एवं 5 केंद्र शासित प्रदेश थे
- हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा 1970 ईस्वी में मिला
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा एक नया राज्य केरल गठित हुआ
- 1960 ईस्वी में मुंबई प्रांत को विभाजित कर दो नए राज्य गुजरात एवं महाराष्ट्र बनाए गए
- 1962 ईस्वी में नागालैंड का राज्य के रूप में गठन किया गया
- 1966 में पंजाब को पुनर्गठित कर पंजाब हरियाणा एवं चंडीगढ़( केंद्र शासित प्रदेश) बनाया गया
- 1972 ईस्वी में मणिपुर त्रिपुरा एवं मेघालय को राज्य का दर्जा दिया गया
- 1986 ईस्वी में मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ
- 1987 ईस्वी में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ
- वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश एवम बिहार को पुनर्गठित कर क्रमशः उत्तरांचल, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड का निर्माण हुआ
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- देशी रियासतों का एकीकरण
- आजादी से पूर्व भारत राज्य क्षेत्र दो वर्गों बिट्रिश भारत एवं देशी रियासत में बटा हुआ था इन देशी राज्यों की कुल संख्या 600 थी इनमे से कोई 552 रियासतों का भारत संघ में विलय हुआ
- उपरोक्त में से तीन रियासतें हैदराबाद, जूनागढ़ एवं जम्मू कश्मीर को भारत में विलय करने में काफी मशक्कत हुई
- जूनागढ़ रियासत को भारत में जनमत संग्रह द्वारा मिलाया गया उसका नवाब पाकिस्तान में मिलने के पक्ष में था
- हैदराबाद रियासत को सैन्य कार्यवाही के द्वारा भारत में मिलाया गया
- जम्मू कश्मीर का विलय पाकिस्तान कबायली आक्रमण के बाद वहां के राजा द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद हुआ
- इन तमाम विलयों में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल का सबसे बड़ा योगदान रहा
- एस के दर समिति
- संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 27 नवंबर 1947 को एस के दर( इलाहाबाद उच्चन्यायालय के सेनानिर्वत्त न्यायाधीश) की अध्यक्षता में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का मूल्यांकन करने हेतु गठित की
- समिती ने दिसंबर 1948 में सौंपी रिपोर्ट में राज्यों का पुनर्गठन प्रशासनिक आधार पर करने की अनुसंशा की
- धारा 370 अपडेट –भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा लेख था जो जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता का दर्जा देता था। संविधान के भाग XXI में लेख का मसौदा तैयार किया गया है: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान। जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए। बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया।
मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक संकल्प पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया । जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायी वाली केंद्रशासित क्षेत्र होगा
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