परिचय:
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान, वर्षा एवं पवन प्रतिरूप तथा पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के अन्य पहलुओं में दीर्घकालिक बदलाव से है। इससे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज दोनों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
जलवायु परिवर्तन की अवधारणा
जलवायु परिवर्तन का अर्थ है पृथ्वी के जलवायु में होने वाला कोई भी परिवर्तन। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक कारणों से भी हो सकता है, जैसे कि सूर्य की गतिविधि में परिवर्तन या ज्वालामुखी विस्फोट। हालांकि, वर्तमान जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहा है, जैसे कि जीवाश्म ईंधन का जलना और वनों की कटाई।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज पर कई तरह के प्रभाव डाल रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:
- मौसम की चरम घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम घटनाओं, जैसे कि तूफान, बाढ़, सूखा और गर्मी की लहरों में वृद्धि हो रही है। इन घटनाओं से लोगों की जान और संपत्ति को नुकसान होता है।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और अन्य आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
- पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा: जलवायु परिवर्तन के कारण पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है। क्योंकि वे अपने परिवेश के बदलते तापमान और जलवायु में अनुकूलित नहीं हो पा रही हैं।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर भी कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। जैसे कि गर्मी से संबंधित बीमारियों का बढ़ना, खाद्य असुरक्षा और जल आपूर्ति में कमी।
जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले कारक
जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
- जीवाश्म ईंधन का जलना: जीवाश्म ईंधन, जैसे कि कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस, जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण हैं। इन ईंधनों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो वायुमंडल में गर्मी को फँसाती हैं।
- वनों की कटाई: वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रही है। क्योंकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वनों की कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है।
- पशुपालन: पशुपालन भी जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रहा है। क्योंकि पशुधन के गोबर से मीथेन गैस निकलती है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करना: जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों, जैसे कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
- वनों की कटाई को रोकना: वनों की कटाई को रोकने के लिए वनों की रक्षा और संरक्षण किया जाना चाहिए।
- पशुपालन को कम करना: पशुपालन को कम करने के लिए मांस और दूध के सेवन को कम किया जाना चाहिए।
इन उपायों के अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए भी तैयारी करनी चाहिए। जैसे कि बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं के लिए राहत और पुनर्वास योजनाओं को तैयार करना।