यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएएस-आईपीएस बनने वाले कई लोगों के संघर्ष की दास्तान लाखों युवाओं को मेहनत करने और डटे रहने की प्रेरणा देती हैं. आज हम एक ऐसे आईएएस की कहानी लेकर हैं जिसने स्कूल जाने-आने के लिए हर दिन 70 किमी का सफर किया. पिता के साथ दुकान पर चाय भी बेंची. लेकिन कभी हार नहीं मानी. हम बात कर रहे हैं आईएएस अधिकारी हिमांशु गुप्ता की.
उत्तराखंड के हिमांशु गुप्ता साल 2020 में आईएएस बने थे. यूपीएससी में उनकी ऑल इंडिया 139 रैंक थी. वह मूल रूप से सितारगंज के रहने वाले हैं. उनके पिता चाय का एक ठेला लगाते थे. जिस पर अक्सर हिमांशु भी बैठा करते थे. यहां वह अखबार भी पढ़ा करते थे. धीरे-धीरे उनका रुझान भी आईएएस-आईपीएस बनने का हुआ. वह घर से 35 किलोमीटर दूर पढ़ने जाते थे. इस तरह उन्हें हर दिन 70 किमी का सफर तय करना पड़ता था.
अगर मन में कुछ कर गुजरने की लगन हो तो आप किसी भी मुकाम तक पहुंच सकते हैं. अक्सर लोग कहते हैं कि जिसके पास कोचिंग में खर्च करने के लिए अच्छे-खासे पैसे हैं वही, आईएएस बन पाते हैं. गरीबी से जूझ रहे या कम पैसों में चल रहे घर के बेटे के लिए यह करना मुश्किल है. असल में ऐसा नहीं है और यह साबित किया है मजदूर के बेटे हिमांशु गुप्ता ने, जो खुद एक चायवाले थे लेकिन आज एक आईएएस ऑफिसर है. हिमांशु गुप्ता की कहानी हर उस उम्मीदवार को प्रेरित करती है जो परेशानियों और कठनाइयों के बीच पढ़ाई छोड़ने का सोचते हैं.
IPS हैं हिमांशु गुप्त
हिमांशु गुप्ता ने साल 2018 में पहली बार UPSC Exam क्लियर किया, तब उनका चयन भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) के लिए हुआ. उन्होंने 2019 में फिर से परीक्षा दी और दूसरे प्रयास में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए चयन हुआ. और फिर 2020 में अपने तीसरे प्रयास में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में सेलेक्ट हो गए.
सहपाठियों ने उड़ाया मजाक
हिमांशु गुप्ता बताते हैं कि जब भी मेरे सहपाठी चाय की दुकान के पास से गुजरते तो मैं छिप जाया करता. लेकिन एक दिन किसी ने देख लिया और चायवाला कहकर मजाक उड़ाया जाने लगा. लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. इसकी बजाए पढ़ाइ पर फोकस किया. जब भी समय मिलता काम में पिता की मदद करते.
हिमांशु ने कही ये बात
‘Humans of Bombay’ फ़ेसबुक पेज पर हिमांशु गुप्ता अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं- ‘मैं स्कूल जाने से पहले और बाद में पिता के साथ काम करता था. स्कूल 35 किमी दूर था, आना-जाना 70 किमी होता था. मैं अपने सहपाठियों के साथ एक वैन में जाता था. जब भी मेरे सहपाठी हमारे चाय के ठेले के पास से गुजरते, मैं छिप जाता. लेकिन एक बार किसी ने मुझे देख लिया और मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. मुझे ‘चायवाला’ कहा जाने लगा. लेकिन उस ओर ध्यान देने के बजाय पढ़ाई पर ध्यान लगाया और जब भी समय मिला पापा की मदद की. हम सब मिलकर अपना घर चलाने के लिए रोजाना 400 रुपये कमा लेते थे.’
हिमांशु गुप्ता आगे कहते हैं- ‘लेकिन मेरे सपने बड़े थे. मैं एक शहर में रहने और अपने और अपने परिवार के लिए एक बेहतर जीवन बनाने का सपना देखता था. पापा अक्सर कहते थे, ‘सपने सच करने है तो पढाई करो!’ तो मैंने यही किया. मुझे पता था कि अगर मैं कड़ी मेहनत से पढ़ूंगा, तो मुझे एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल जाएगा. लेकिन मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए मैं अंग्रेजी मूवी डीवीडी खरीदता था और उन्हें सीखने के लिए देखता था.