भक्ति साहित्य की प्रकृति और भारतीय संस्कृति में इसके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। UPSC NOTES

परिचय: भक्ति साहित्य का आशय विभिन्न संतों, कवियों और फकीरों के भक्तिपूर्ण लेखन से है जिन्होंने विभिन्न भाषाओं और शैलियों...

परिचय:

भक्ति साहित्य का आशय विभिन्न संतों, कवियों और फकीरों के भक्तिपूर्ण लेखन से है जिन्होंने विभिन्न भाषाओं और शैलियों के माध्यम से भगवान के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त किया। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक लोकप्रिय आंदोलन के रूप में उभरा था जिसमें ब्राह्मणवादी रूढ़िवाद और कर्मकांड के प्रभुत्व को चुनौती दी गई थी।

भक्ति साहित्य भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह साहित्य भक्ति के भाव से ओतप्रोत है और इसमें ईश्वर या किसी आराध्य देवता के प्रति भक्ति का वर्णन किया गया है। भक्ति साहित्य की शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई और यह 18वीं शताब्दी तक चला। इस काल में कई भक्त कवियों ने भक्ति साहित्य की रचना की, जिनमें कबीर, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, रविदास, नानक, चैतन्य महाप्रभु, इत्यादि प्रमुख हैं।

भक्ति साहित्य की प्रकृति निम्नलिखित हैं:

  • इसमें लेखन तमिल, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी, मराठी, बंगाली आदि स्थानीय भाषाओं में किया गया जिससे यह आम जनता के लिये भी सुलभ हो गया।
  • यह विभिन्न धार्मिक परंपराओं जैसे वैष्णववाद, शैववाद, सूफीवाद आदि से प्रभावित था, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और समन्वय को दर्शाता है।
  • इसमें सादगी, सहजता, भावनात्मक तीव्रता, व्यक्तिगत अनुभव और काव्य सौंदर्य जैसी विशेषताएँ थी, जिसने लोगों को आकर्षित किया था।
  • इसमें संगीत, नृत्य, नाटक और भजन, कीर्तन, ध्रुपद, राग आदि जैसे कला रूप शामिल होते थे, जो इसके सौंदर्य और आध्यात्मिक आकर्षण को बढ़ाते थे।

भक्ति साहित्य ने भारतीय संस्कृति में निम्नलिखित योगदान दिए हैं:

  • सामाजिक चेतना: भक्ति साहित्य ने सामाजिक चेतना को बढ़ावा दिया है। इसमें जाति, धर्म, और लिंग के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई गई है।
  • आध्यात्मिक विकास: भक्ति साहित्य ने आध्यात्मिक विकास में योगदान दिया है। इसमें ईश्वर या किसी आराध्य देवता के प्रति भक्ति के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के मार्ग को बताया गया है।
  • भाषा और साहित्य का विकास: भक्ति साहित्य ने भाषा और साहित्य के विकास में योगदान दिया है। इसमें विभिन्न भाषाओं में साहित्य रचा गया है, जिससे इन भाषाओं का विकास हुआ है।

भक्ति साहित्य भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। यह साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि 12वीं शताब्दी में था। यह साहित्य लोगों को सामाजिक न्याय, आध्यात्मिक विकास, और भाषा और साहित्य के विकास के लिए प्रेरित करता है।

निष्कर्ष:

भक्ति साहित्य से भारत का सांस्कृतिक आयाम समृद्ध हुआ था। इसके द्वारा लोगों की आकांक्षाओं और भावनाओं के प्रतिबिंबित होने के साथ समग्र सांस्कृतिक विकास में योगदान मिला था।

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