आकाश में सूर्य के अवस्थिति के आधार पर समय के चलने के लेखा जोखा को सौर समय कहते हैं। सौर समय का मुलभुत इकाई दिन होता है। दो तरह के सौर समय आभासी सौर समय (सूर्य को भांपकर समय ज्ञात करना) और सौर समय (घड़ी के अनुसार) हैं।
एक लम्बा स्तम्भ सीधा जमीन पर किसी धुप भरे दिन में क्षेत्रीय समय दोपहर 12:00 बजे खड़ा करने पर; छायाँ उत्तर या दक्षिण में दिखता है (या नहीं दिखता है जब सूर्य सीधा सर पर हो) अगले दिन ठीक 12:00 बजे छायाँ फिर से उसी स्थिति में दिखता है, ऐसा प्रतित होता है जैसे सूरज 360 डिग्री अर्ध-वृत्त में धुरी का चक्कर लगाता है। जब सूरज 15 डिग्री आगे बढ़ता है (वृत्त का 1/24 भाग), तो उस समय ठिक समय 13:00 होगा; और 15 डिग्री आगे बढ़ने पर समय ठिक 14:00 होगा।
परेशानी यह है कि सितम्बर में सूरज कम देर तक रहता है (जैसा कि एक विशुद्ध घड़ी से मापा गया है) और जब सूरज के परिक्रमा को दिसम्बर में मापा जाता है तो 24 घंटे के समय में 21 सेकण्ड की कमी या 29 सेकण्ड कि अधिक्ता हो सकती है। जैसा कि इक्वेशन ऑफ़ टाइम लेख में कहा गया है, कि ऐसा इसलिये होता है क्योंकि पृथ्वी का भ्रमण-पथ विकेन्द्रित है। (उदाहरणार्थ: पृथ्वी का परिक्रमा-पथ पूर्णतः गोल नहीं है, माने कि सूरज से पृथ्वी कि दुरी हर जगह बराबर नहीं है) और पृथ्वी की धुरी अपने परिक्रमा-पथ पर सीधा नहीं है। (ग्रह का तिरछापन)
इस से प्रभाव यह पड़ता है कि लगातार एक समान चलने वाली घड़ी सूरज को अनुसरण नहीं कर सकती है, बल्कि यह सिर्फ एक “मानक सूरज” का अनुसरण कर सकती है जो एक समान बराबर दर से चलती है जो असली सूरज के सालाना औसत दर पर चलती है। यह “मानक सौर समय” है जो एक सदी से अगले सदी तक पूर्णतः बराबर रूप से चलता है पर कई उद्देश्यों के लिए यह बहुत समीप है। वर्तमान में एक मानक सौर दिन लगभ 86,400.002 एसआइ सेकण्ड है।
फतेहपुर सीकरी | इतिहास | मुख्य इमारतें
फतेहपुर सीकरी एक नगर है जो कि आगरा जिला का एक नगरपालिका बोर्ड है। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है,। यह यहाँ के मुगल साम्राज्य में अकबर के राज्य में 1571 से 1585 तक, फिर इसे खाली कर दिया गया, शायद पानी की कमी के कारण। फतेहपुर सीकरी हिंदू और मुस्लिम वास्तुशिल्प के मिश्रण का सबसे अच्छा उदाहरण है।
- फतेहपुर सीकरी मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यह मक्का की मस्जिद की नकल है और इसके डिजाइन हिंदू और पारसी वास्तुशिल्प से लिए गए हैं।
- मस्जिद का प्रवेश द्वार 54 मीटर ऊँचा बुलंद दरवाजा है जिसका निर्माण 1570 ई० में किया गया था। मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है जहाँ नि:संतान महिलाएँ दुआ मांगने आती हैं।
- आंख मिचौली, दीवान-ए-खास, बुलंद दरवाजा, पांच महल, ख्वाबगाह, अनूप तालाब फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्मारक हैं।
इतिहास
मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को सीकरी नमक स्थान पर हराया था, जो कि वर्तमान आगरा से 40 कि०मि० है। फिर अकबर ने इसे मुख्यालय बनाने हेतु यहाँ किला बनवाया, परंतु पानी की कमी के कारण राजधानी को आगरा का किला में स्थानांतरित करना पडा़। आगरा से 37 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने कराया था। एक सफल राजा होने के साथ-साथ वह कलाप्रेमी भी था। 1570-1585 तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रहा। इस शहर का निर्माण अकबर ने स्वयं अपनी निगरानी में करवाया था। अकबर नि:संतान था। संतान प्राप्ति के सभी उपाय असफल होने पर उसने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से प्रार्थना की। इसके बाद पुत्र जन्म से खुश और उत्साहित अकबर ने यहाँ अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया। लेकिन यहाँ पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल १५ साल बाद ही राजधानी को पुन: आगरा ले जाना पड़ा।
मुख्य इमारतें
- फ़तेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाज़ा है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। दरवाजे में पुराने जमाने के विशाल किवाड़ ज्यों के त्यों लगे हुए हैं।
- शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई. में अकबर ने अपनी गुजरात-विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था।
- इसी दरवाजे से होकर शेख की दरगाह में प्रवेश करना होता है। बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार। मज़ार या समाधि के पास उनके संबंधियों की क़ब्रें हैं। मस्जिद और मज़ार के समीप एक घने वृक्ष की छाया में एक छोटा संगमरमर का सरोवर है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है जिसकों थपथपाने से नगाड़े की ध्वनि सी होती है। मस्जिद पर सुंदर नक़्क़ाशी है। शेख सलीम की समाधि संगमरमर की बनी है। इसके चतुर्दिक पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है जो अनेक आकार प्रकार की बड़ी ही मनमोहक दिखाई पड़ती है।
- यह जाली कुछ दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति दिखाई देती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीप, सींग तथा चंदन का अद्भुत शिल्प है जो 400 वर्ष प्राचीन होते हुए भी सर्वथा नया सा जान पड़ता है। श्वेत पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां नक़्क़ाशी की कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पौत्र नवाब इस्लामख़ाँ ने बनवाया था। जहाँगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे श्वेत संगमरमर का बनवा दिया था यद्यपि अकबर के समय में यह लाल पत्थर की थी।
- जहाँगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज़ खंभा विकृत हो जाने पर 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने 12 सहस्त्र रूपए की लागत से पुन: बनवाया था। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने है।
यमुना नदी | उद्गम स्थान | पौराणिक स्रोत | प्रवाह क्षेत्र | सांस्कृतिक महत्व
यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं।
उद्गम स्थान
- यमुना का उद्गम स्थान हिमालय के हिमाच्छादित श्रंग बंदरपुच्छ ऊँचाई 6200 मीटर से 7 से 8 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित कालिंद पर्वत है, जिसके नाम पर यमुना को कालिंदजा अथवा कालिंदी कहा जाता है।
पौराणिक स्रोत
- भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके परि स्वीकार्य किये गये हैं। जहाँ भगवान श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते हैं, वहाँ यमुना इसकी जननी मानी जाती है।
प्रवाह क्षेत्र
- पश्चिमी हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुँचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद में गंगा नदी में मिल जाती है।
आधुनिक प्रवाह
- वर्तमान समय में सहारनपुर जिले के फैजाबाद गाँव के निकट मैदान में आने पर यह आगे 65मील तक बढ़ती हुई हरियाणा के अम्बाला और करनाल जिलों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जिलों से अलग करती है। इस भू-भाग में इसमें मस्कर्रा, कठ, हिंडन और सबी नामक नदियाँ मिलती हैं, जिनके कारण इसका आकार बहुत बढ़ जाता है। मैदान में आते ही इससे पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी नहर निकाली जाती हैं।
सांस्कृतिक महत्व
भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रूप बन सका था। ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहाँ तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है।