भारतीय अर्थव्यवस्था पर विनिमय दर की अस्थिरता के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनिमय दरों को प्रबंधित करने के लिये क्या उपाय अपनाए जाते हैं?

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था पर विनिमय दर की अस्थिरता का प्रभाव और RBI द्वारा किए जाने वाले उपाय

  • निर्यात और आयात की अलग-अलग लागत:
    • रुपए में गिरावट वैश्विक बाज़ार में भारतीय निर्यात को सस्ता बना सकती है, जिससे निर्यात की मात्रा में वृद्धि हो सकती है। हालाँकि यह एक साथ आयात की लागत को बढ़ाता है, जिससे घरेलू स्तर पर उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ता है।
    • इसके विपरीत, रुपए में वृद्धि का विपरीत प्रभाव हो सकता है, जिससे निर्यात में कमी आती है जबकि आयात सस्ता होता है।

विनिमय दर की अस्थिरता का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

विनिमय दर में उतार-चढ़ाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ प्रमुख प्रभाव निम्न हैं:

  • व्यापार पर प्रभाव: जब रुपये का मूल्य गिरता है तो निर्यात सस्ता हो जाता है और आयात महंगा, जिससे निर्यात बढ़ता है और आयात घटता है। इसके विपरीत, जब रुपये का मूल्य बढ़ता है तो निर्यात महंगा और आयात सस्ता हो जाता है। यह व्यापार संतुलन को प्रभावित करता है और देश के भुगतान संतुलन को बिगाड़ सकता है।
  • मुद्रास्फीति: आयातित वस्तुएं महंगी होने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। विशेषकर जब देश तेल जैसे आवश्यक वस्तुओं का आयात करता है।
  • विदेशी निवेश: विनिमय दर की अस्थिरता से विदेशी निवेशक अनिश्चित हो जाते हैं और वे अपनी पूंजी निकाल सकते हैं। इससे भारतीय रुपये का मूल्य और गिर सकता है।
  • ऋण पर प्रभाव: यदि रुपये का मूल्य गिरता है तो विदेशी मुद्रा में लिए गए ऋणों का भार बढ़ जाता है, जिससे कंपनियों और सरकार पर दबाव बढ़ता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI द्वारा विनिमय दरों को प्रबंधित करने के उपाय:

भारतीय रिजर्व बैंक विनिमय दरों को स्थिर रखने के लिए कई उपाय करता है, जिनमें शामिल हैं:

  • विदेशी मुद्रा भंडार: RBI अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करके बाजार में हस्तक्षेप करता है। जब रुपये का मूल्य गिरता है तो RBI डॉलर बेचता है और जब रुपये का मूल्य बढ़ता है तो RBI डॉलर खरीदता है।
  • ब्याज दरें: RBI ब्याज दरों में बदलाव करके विदेशी निवेशकों को आकर्षित या दूर कर सकता है। उच्च ब्याज दरें विदेशी निवेशकों को आकर्षित करती हैं और रुपये की मांग बढ़ाती हैं।
  • पूंजी नियंत्रण: RBI पूंजी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग कर सकता है, जैसे कि विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगाना या कुछ प्रकार के लेनदेन पर कर लगाना।
  • मुद्रा स्वैप: RBI अन्य केंद्रीय बैंकों के साथ मुद्रा स्वैप समझौते करता है, जिससे विदेशी मुद्रा की उपलब्धता में सुधार होता है और विनिमय दर की अस्थिरता को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

विनिमय दर की अस्थिरता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती है। RBI विनिमय दरों को स्थिर रखने के लिए कई उपाय करता है, लेकिन यह एक जटिल कार्य है और कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, कच्चे तेल की कीमतें और राजनीतिक स्थिरता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *