प्रस्ताव
- किसी विषय पर सदन की राय जानने वाले मसौदे को प्रस्ताव कहते हैं |
- प्रस्ताव सरकारी व गैर सरकारी दोनों सदस्यों द्वारा रखे जा सकते है |
- सामान्यतः प्रस्ताव सरकार ही रखती है प्रस्ताव तीन प्रकार के होते हैं –
1. मूल प्रस्ताव
- नियम 352 के तहत मूल प्रस्ताव स्वयं में पूर्ण स्वतंत्र होते हैं तथा किसी दूसरे पर निर्भर नहीं करते, जैसे-स्थगन प्रस्ताव, धन्यवाद प्रस्ताव राष्ट्रपति पर महाभियोग लाने का प्रस्ताव आदि |
2. स्थानापन्न प्रस्ताव
- नियम 342 के तहत मूल प्रस्ताव के विकल्प के रुप में जो प्रस्ताव लाए जाते हैं, स्थानापन्न प्रस्ताव कहलाते हैं | मूल प्रस्तावों की भांति इन पर भी मतदान होता है |
3. सहायक प्रस्ताव
- प्रस्ताव अन्य प्रस्तावों पर निर्भर करते हैं, इन पर सामान्यतः मतदान नहीं होता है जैसे-कटौती प्रस्ताव |
कुछ प्रमुख प्रस्ताव निम्नलिखित है
स्थगन प्रस्ताव
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- स्थगन प्रस्ताव सरकार के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव होता है, यह प्रस्ताव किसी सदस्य द्वारा गंभीर सार्वजनिक महत्व के विषयों की ओर मंत्री का ध्यान दिलाता है अथवा उससे संबंधित प्रश्न करता है तो इसे स्थगन प्रस्ताव कहते हैं |
- जो सदस्य स्थगन प्रस्ताव पेश करता है उसे निर्धारित दिन प्रातः 10:00 बजे तक अध्यक्ष संबंधी मंत्री व महासचिव को सूचित करना पड़ता है स्थगन प्रस्ताव प्रश्नकाल के बाद लाया जाता है |
- सर्वप्रथम अध्यक्ष स्थगन प्रस्ताव लाने वाले व्यक्ति से सदन की अनुमति लेने के लिए कहता है, यदि सदन के 50 सदस्य अनुमति दे देते हैं तो चर्चा प्रारंभ हो जाती है |
- सामान्यतः अनुमति तो प्रश्नकाल के बाद ली जाती है परंतु चर्चा शाम 4:00 बजे से 6:30 बजे के मध्य होती है, चर्चा प्रारंभ होने के बाद सदन को स्थगित करने की शक्ति अध्यक्ष में नहीं होती बल्कि संपूर्ण सदन का बहुमत आवश्यक होता है |
- इस तरह के स्थगन प्रस्ताव पर कई बार चर्चा काफी लंबी हो जाती है और इसमें दो-तीन दिन का समय भी लग सकता है
विश्वास प्रस्ताव
- यह प्रस्ताव सत्ता पक्ष द्वारा लाया जाता है वस्तुतः ऐसा प्रस्ताव सरकार/सत्तापक्ष राष्ट्रपति के निर्देश पर प्रस्तुत करता है |
- आम चुनावों के पश्चात प्रत्येक सरकार को राष्ट्रपति द्वारा दी गई अवधि के अंतर्गत लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए विश्वास प्रस्ताव लाना पड़ता है |
- आम चुनावों के अलावा विशेष परिस्थितियों जैसे-सरकार के किसी दल का समर्थन वापस लेने पर भी राष्ट्रपति सरकार से विश्वास प्राप्त निश्चित अवधि के अंतर्गत लाने के लिए कह सकता हैं |
निंदा प्रस्ताव
- यह प्रस्ताव नियम 184, 185 के तहत लाया जाता है यह एक सामान्य प्रक्रिया है |
- अर्थात इसमें सदन की अनुमति लेना आवश्यक नहीं लेकिन प्रस्ताव के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक है |
- यह एक मंत्री के विरुद्ध या संपूर्ण मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है, इसमें सरकार को त्यागपत्र नहीं देना पड़ता है |
अविश्वास प्रस्ताव
- संसदीय शासन प्रणाली में आवश्यक होता है कि कार्यपालिका संसद (लोकसभा) के प्रति निरंतर उत्तरदाई रहे |
- अतः सरकार या मंत्री परिषद के सत्ता में बने रहने के लिए आवश्यक है कि उसे लोकसभा में बहुमत मिले |
- लोकसभा में बहुमत जानने का एक प्रमुख उपकरण अविश्वास प्रस्ताव है, इससे संबंधित प्रमुख तथ्य हैं-
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- लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव किसी एक मंत्री या संपूर्ण मंत्री परिषद के प्रति लाया जा सकता है परंतु उसे सामूहिक मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव माना जाता है |
- इसके कारण बताना आवश्यक नहीं है इसकी पूर्व सूचना ही आवश्यक है |
- अध्यक्ष प्रश्नकाल समाप्त होने पर संबंधित सदस्य से सदन की अनुमति मांगने के लिए कहता है यदि 50 सदस्य अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन दे दें तो 10 दिन के अंदर अध्यक्ष पर चर्चा सुनिश्चित करता है चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री स्वयं उत्तर देता है जब वाद विवाद समाप्त हो जाता है तो अध्यक्ष प्रस्ताव को मतदान के लिए रखता है |
- इस प्रस्ताव की सूचना वापस भी नहीं जा सकती है यदि प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले सदस्य इस बात पर सहमत हो परंतु इसके लिए सदन की अनुमति आवश्यक है |
वैकल्पिक विश्वास मत प्रणाली
- जर्मनी के अनुरूप भारत में भी इसकी मांग की जा रही है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के समय संबंधित पत्र वैकल्पिक विश्वासमत को स्पष्ट करें कि उसे निम्न सदन में पर्याप्त बहुमत प्राप्त हैं व सरकार गिरने की स्थिति में नई सरकार का गठन करने में समर्थ है |
- गिलोटिन सभी अनुदानों पर विचार विमर्श निर्धारित समय में समाप्त हो जाना चाहिए, यदि स्पीकर यह महसूस करता है कि मांग तथा अनुदान संबंधी सभी मामले निर्धारित समय में समाप्त नहीं हो पाएंगे तो अंतिम दिन वह सभी मामलों पर वह समाप्त किए बिना मतदान करा सकता है इस व्यवस्था को संसदीय भाषा में गिलोटिन कहा जाता है |
- संसदीय नियम संसद में दो प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं तारांकित और अतारांकित | तारांकित प्रश्न मौखिक रहते हैं और अतारांकित प्रश्न लिखित रहते हैं |
- संसदीय नियम 51 (A) तारांकित मौखिक प्रश्न से संबंधित है, 51 (A) प्रावधान किया गया है कि सदस्य के अनुपस्थिति होने पर भी कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता है|
संसद में प्रश्न के प्रकार व उनकी संख्या
तारांकित प्रश्न
- लोकसभा – एक सदस्य केवल एक ही प्रश्न पूछ सकता है 1 दिन में कुल 20 प्रश्न हो सकते हैं |
- राज्यसभा – एक सदस्य तीन प्रश्न पूछ सकता है कुल प्रश्न कोई सीमा नहीं |
अतारांकित प्रश्न
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- लोकसभा – एक सदस्य चार प्रश्न पूछ सकता है कुल प्रश्न 230 हो सकते हैं |
- राज्यसभा – एक सदस्य कोई सीमा नहीं कुल प्रश्न कोई सीमा नहीं |
अल्प सूचना प्रश्न
- गैर सरकारी सदस्यों के प्रश्न संसदीय नियम 40 के तहत पूछे जाते हैं |
संसद में बजट और अन्य वित्तीय प्रक्रिया
संसद में बजट और अन्य वित्तीय प्रक्रिया
- कल्याणकारी संसदीय शासन प्रणाली में ‘जनता के धन’ पर संसद के नियंत्रण की पर्याप्त व्यवस्था की गई है |
- अनुच्छेद 265 के अंतर्गत कोई भी कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित किया जाएगा अन्यथा नहीं |
- अनुच्छेद 266 के अनुसार भारत की संचित निधि से धन संसद की अनुमति से ही निकाला जाएगा अर्थात विनियोग विधेयक माध्यम से ही धन निकाला जाएगा अन्यथा नहीं |
- संसद में राष्ट्रपति वित्त मंत्री के माध्यम से प्रतिवर्ष बजट प्रस्तुत करता है सामान्यतः बजट फरवरी माह के अंतिम कार्य दिवस को रखा जाता है |
भारत में बजट के पारित होने की प्रक्रिया निम्न प्रकार है
- बजट पेश किया जाना वित्त मंत्री द्वारा बजट लोकसभा में फरवरी माह में प्रस्तुत किया जाता है |
- बजट पर चर्चा बजट के दूसरे चरण में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं |
- प्रथम बजट पर सामान्य चर्चा की जाती है
द्वितीय अनुदानों की मांगों पर चर्चा
- इस दौरान कटौती प्रस्ताव यथा सांकेतिक(₹100 की कमी की जाए) नीति निर्मोदन (राशि घटाकर ₹1 कर दी जाए) मितव्यई (निश्चित राशि घटाई जाए) पेश किए जाते हैं कटौती प्रस्ताव एक प्रकार के सहायक प्रस्ताव हैं
- तृतीय विभागों से संबंधित स्थाई समितियों द्वारा छानबीन की जाती है, 1994 से 1995 के बाद प्रत्येक वर्ष मांगे संसद के समक्ष पेश किए जाने के बाद दोनों सदनों को लगभग 1 माह के लिए स्थगित कर दिया जाता है, ताकि संबंधित स्थाई समितियां उनका निरीक्षण कर सके वर्तमान में 24 विभागीय समितियां हैं |
- चतुर्थ गिलोटिन (समापन की प्रक्रिया) कार्यमंत्रणा समिति किसी मांग विशेष को और बजट सहित अनुदानों की सब मांगो को स्वीकृत करने के लिए समय सीमा निर्धारित करती है जैसे ही किसी मांग की समय सीमा समाप्त होती है, उस पर चर्चा के समापन/गिलोटिन की प्रक्रिया लागू हो जाती है, और मांग को मतदान के लिए रख दिया जाता है | (नियम 362) इस प्रक्रिया को गिलोटिन कहा जाता है इसके साथ ही अनुदान की मांगों पर चर्चा समाप्त हो जाती है |
अनुपूरक अतिरिक्त या अधिक अनुदान
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- अतिरिक्त या अनुपूरक अनुदान का प्रावधान अनुच्छेद 115 के अधीन है |
- वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व अनुपूरक अनुदानों की मांग सदन में पेश की जाती है और पास की जाती है |
- अनुपूरक अनुदान की मांगों पर चर्चा प्रस्तुत मांगो तक ही सीमित रहती है |
- अनुपूरक अनुदान पर चर्चा के दौरान सामान्य शिकायतें व्यक्ति नहीं की जाती हैं |
- अतिरिक्त या अधिक अनुदान किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष के लिए पेश की गई राशि से अधिक राशि खर्च हो तो राष्ट्रपति ऐसी अतिरिक्त राशि के लिए मांग लोकसभा में पेश करवाता है |
- अतिरिक्त अनुदान की मांगे वास्तव में राशियां खर्च करने के बाद और उस वित्तीय वर्ष के बीत जाने के बाद पेश की जाती है जिससे वे संबंधित हैं |
लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
- अनुच्छेद 116 में लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान का उल्लेख है
- लेखानुदान जब सरकार को संसद में बजट पारित करवाने में समय लगता है तो लेखानुदान के अंतर्गत लोकसभा को शक्ति दी गई है कि वह बजट की प्रक्रिया पूरी होने तक वित्त वर्ष के एक भाग के लिए पेशगी अनुदान दे सकती है |
- सामान्यतः समूचे वार्षिक के लिए अनुमानित व्यय के ⅙ भाग के बराबर 2 माह के लिए राशि का लेखानुदान दिया जाता है |
प्रत्ययानुदान
- किसी राष्ट्रीय आपात के कारण सरकार को धन की अप्रत्याशित मांग को पूरा करने के लिए निधियों की आवश्यकता हो सकती है |
- जिसके विस्तृत अनुमान देना शायद संभव ना हो ऐसी स्थिति में सदन बिना द्वारा दिए प्रत्ययानुदान के माध्यम से एकमुश्त धनराशि दे सकता है |
अपवादानुदान
- अपवादानुदान किसी विशेष प्रयोजन के लिए दिया जाता है जो वित्तीय वर्ष के साधारण खर्च का भाग नहीं होता है |
- ऐसी स्थिति में सदन उस विशेष प्रयोजन के लिए अलग धनराशि दे सकता है तथापि ऐसी कोई मांग संसद में पेश नहीं की गई है |
संसदीय समितियां
- संसद एक वृहद निकाय है जो अपने समक्ष आने वाले मुद्दों पर प्रभावी रूप से विचार करती है तथा उसके कार्य भी अत्यंत जटिल हैं |
- अतः पर्याप्त समय और विशेषज्ञता के अभाव में संसद अपने वैधानिक उपाय और अन्य मामलों को गहन जांच विभिन्न संसदीय समितियों के सहयोग से करती है |
- भारत में संसदीय समितियां दो प्रकार की होती हैं –
- तदर्थ समिति जो अस्थाई होती है विशेष कार्यों को संपन्न कराने के लिए बनाई जाती है |
- स्थाई समिति भारत में अनेक स्थाई समितियां हैं, जो सदैव कार्य करती हैं |
बजट के प्रकार
- जेंडर आधारित बजट 2005 -06 में शुरू हुआ था जिसके अंतर्गत 18 केंद्रीय मंत्रालय ने अपने प्रस्तावित बजट के अधीन बजट प्रावधान और योजना में महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए इन प्रावधानों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होगा |
- शून्य आधारित बजट इस बजट में पुराने कार्यक्रम मद को शून्य मानते हुए योजनाओं पर नए सिरे से विचार किया जाता है |
- आउटकम बजट 2005-06 में भारत में 44 मंत्रालयों और उनसे संबंधित विभागों ने अपनाया इस में विभिन्न योजनाओं का परिणाम देखा जाता है इसमें प्राप्त हुए लक्ष्य और उद्देश्यों की प्राप्ति को देखा जाता है |