सोने का उपयोग अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुद्रा-विनियम के रूप में होता है। इससे विविध प्रकार के आभूषण बनाये जाते हैं। इसका अधिकांश प्रयोग कृत्रिम दन्त-निर्माण, रासायनिक उद्योग, घड़ी निर्माण, एक्स-रे संयंत्र, फोटोग्राफी, औषधि-निर्माण, ऊष्मा संयोजन आदि में होता है।
सोना Gold
सोना कभी भी शुद्ध रूप में प्राप्त नहीं होता बल्कि इसमें चांदी या अन्य धातुओं के अंश मिले रहते हैं। यह आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों, शिरा प्रस्तरों में पाया जाता है तथा नदियों की बालू से निकाला जाता है। आर्थिक स्वर्ण खनिज, मूलभूत स्वर्ण (धात्विक स्वर्ण), स्वर्ण मिश्रण (चांदी के साथ स्वर्ण अयस्क) तथा टेल्लुराइड्स-सिल्वेनाइट, केल्वेराइट, पेट्जाइट और नाग्याजाइट में प्राप्त होता है।
क्वार्टज की धारियां कायांतरित शैलों को बेधती हुई उत्तर-दक्षिण दिशा में चली गयी है। इनकी धारियों की मोटाई सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। यह कहीं मोटी और कहीं पतली होती हुई चली गई है।
वितरण: भारत में शिरा सोना मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, असम, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में मिलता है। कछारी सोना मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, पंजाब और मेघालय में मिलता है। परंतु, सोने का अधिकारिक उत्पादन कर्नाटक के कोलार और हट्टी तथा आंध्र प्रदेश के रामगिरि स्वर्ण क्षेत्र में होता है।
कोलार सोना क्षेत्र (चैम्पियन रीफ प्रमुख खानें विश्व की सबसे गहरी खानें) भारत में 1871 से स्वर्ण उत्पादन का मुख्य स्रोत है। कोलार की सोने की खानों का नियंत्रण भारत सरकार की भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड के हाथ में है। लेकिन 2009 से भारत गोल्ड माइन्स ने उत्खनन करना बंद कर दिया है क्योंकि यहां पर उत्खनन करना लाभदायक नहीं है।
रायचूर जिले में, धारवाड़ अवस्था की चट्टानों के साथ स्वर्णमय नसों में पाया जाता है। यहां छह स्वर्णमय क्वार्टज शैल भितियां हैं जिसमें ओकले शैलभिति मुख्य उत्पादक है। कर्नाटक राज्य सरकार की हट्टी गोल्ड माइन्स लिमिटेड कम्पनी के द्वारा यहां काम किया जाता है। नये क्षेत्र हैं- केम्पियनकोट (हासन जिला), होन्नली (शिमोगा जिला), सिद्दारहल्ली (चिंकमगलूर), बेल्लार (चित्रदुर्ग जिला), और मुंगलूर (गुलबर्ग जिला)।
आंध्र प्रदेश में, अनंतपुर जिले का रामगिरि क्षेत्र स्वर्ण का मुख्य स्रोत है। अन्य क्षेत्र हैं- चित्तूर, पूर्वी गोदावरी, कुर्नूल और वारंगल जिला। रामगिरि क्षेत्र में, 19 किलोमीटर लम्बी पट्टी उत्तर से दक्षिण दिशा में कनकपुरम से जिबूतल तक सोना मिलता है। सोना अन्य राज्यों में भी प्राप्त होता है: महाराष्ट्र (बांद्रा जिला); तमिलनाडु (नीलगिरि जिले में गुड्लुर के पास पंडलुर क्षेत्र में) नीलगिरि जिले में वायनाद क्षेत्र तथा कोयम्बटूर जिले में बेट्टा क्षेत्र); झारखण्ड (सिंहभूम जिले में लोवा, म्यासरा और कुन्डर-कोच) कछारी सोना निम्न क्षेत्रों में पाया जाता है-
- केरल में, सोना तेनकारा के निकट अम्बनकदावा पुझा, नीलाम्बर के निकट चलियुर पुझा और मन्नारकई के निकट नदियों और सहायक नदियों में पाया जाता है।
- झारखण्ड में, सिंहभूम जिले में सोननदी और स्वर्ण रेखा तथा रांची जिले में नदी अपक्षय से सोनेपत घाटी में सोना प्राप्त होता है।
- असम में, लखीमपुर, धरांग और शिवसागर जिलों में सुबनसीरी, लोहित, ब्रह्मपुत्र नदियों से सोना प्राप्त होता है।
- पंजाब में, ब्यास नदी के मध्य राय और मिरथल में सोना प्राप्त होता है।
- हिमाचल प्रदेश में, सतलज, गोमती नदियों तथा बिलासपुर, कांगड़ा, मंडी, किन्नौर और सिरमौर जिले की अन्य नदियों में प्रक्षालित सोना सम्पादित होता है।
- उत्तर प्रदेश में, सोन, रामगंगा और शारदा नदियों की बालू मिट्टी से सोना प्राप्त होता है।
- ओडीशा में, क्योंझर, सुंदरगढ़ मयूरभंज, सम्बलपुर और कोरापुट जिलों की नदियों से सोना प्राप्त होता है।
चांदी Silver
चांदी एक सफेद चमकीली बहुमूल्य धातु है, जिसका सोने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण स्थान है। चांदी जिन अयस्कों से मिलती है उनके नाम हैं- स्टेफेनाइट, अर्जेंटाइट, प्रॉसटाइट और पायरेजाइट। चांदी गैलना अयस्क में पायी जाती है जो संभवतः इस धात्विक खनिज का एक प्रतिशत होती है।
वितरण: भारत में, चांदी राजस्थान में स्थित जावर की खानों में सीसा और जस्ता अयस्कों में से प्राप्त होती है।
कर्नाटक के स्वर्ण क्षेत्रों में यह पायी जाती है। चांदी के अयस्क मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के गुंटूर, कुडप्पा व कुर्नूल जिले, झारखंड के संथाल परगना, सिंहभूम, भागलपुर जिले, गुजरात के वड़ोदरा जिले, कर्नाटक के बेल्लारी जिले, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले तथा जम्मू एवं कश्मीर के बारामूला जिले से प्राप्त होते हैं।
तांबा Copper
एक गैर-लौहिक वर्ग का धात्विक खनिज है, इसकी प्राप्ति अग्नेय, रुपन्न्तरित तथा अवसादी प्रकार की चट्टानों से होती है। यह सल्फाइड, ऑक्साइड, क्लोराइड या कार्बोनेट आदि रासायनिक वस्तुओं की चट्टानों में मिश्रित रूप में मिलता है। सोना, चांदी, टिन, जैसी धातुओं के साथ भी तांबा पाया जाता है। तांबा प्रस्तर में तांबे का अंश 2.5 तक होता है। शुद्ध अवस्था में तांबा बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। विद्युत सुचालकता, नम्यता, गलनशीलता आदि गुणों के कारण प्राचीनकाल से ही मानव विविध रूपों में तांबे का उपयोग करता आ रहा है। यह लाल-भूरे रंग का होता है, बिजली का उत्तम सुचालक होता है और रासायनिक क्षरण का अवरोधक भी है। इसे सरलता से जोड़ा जा सकता है। यह दूसरी धातुओं के साथ मिलकर अनेक उपयोगी धातुएं तैयार करने में काम आता है, यथा- तांबा और रांगा मिलाकर कांसा, जस्ता मिलाकर पीतल, सीसा मिलाकर इस्पात और सोना मिलाकर वलित सोना निर्मित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बर्तन-निर्माण में, सिक्का निर्माण में, सुचालक होने के कारण विद्युत तार और विद्युत उपकरणों के निर्माण में, टेलीफोन-उपकरण तथा टेलीग्राफ के तारों के निर्माण में, रेल-निर्माण तथा जलयान के निर्माण में, रासायनिक उद्योग में तथा आयुध-निर्माण में इसका महत्वपूर्ण उपयोग होता है।
यूनाइटेड नेशनल फ्रेमवर्क क्लासिफिकेशन के अनुसार, 1 अप्रैल, 2005 तक ताबा अयस्क का कुल संसाधन 1.39 बिलियन टन जिसमें धातु का 11418 हजार टन धातु घटक शामिल हैं।
वितरण: भारत में तांबा अनेक प्रकार की शैलों में नसों के रूप में मिलता है। दक्षिणी प्रायद्वीप में कुडप्पा, बिजावर तथा अरावली युग की प्राचीन रवेदार शैलों और उत्तरी भारत में कायान्तरित शैलों में बहुधा सल्फॉइड के रूप में पाया जाता है। भूगर्भिक दृष्टि से भारत में तांबे के तीन मुख्य क्षेत्र हैं- एक बिहार में, दूसरा आंध्र प्रदेश में, तीसरा राजस्थान में। कर्नाटक और तमिलनाडु अन्य क्षेत्र हैं। तांबे की नवीन खोजें उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में की गयी हैं। हिमालय की बाहरी श्रेणी में कुल्लू, कांगड़ा, नेपाल और सिक्किम क्षेत्रों में भी तांबे के विस्तृत भण्डार मिले हैं किन्तु यातायात की असुविधा के कारण तथा खपत के केंद्रों से दूर होने से इनके उत्खनन ने विशेष प्रगति नहीं की है।
झारखंड की महत्वपूर्ण खानें सिंहभूम जिले में हैं। यहां तांबे का मुख्य क्षेत्र झारखंड-ओडीशा में लगभग 140 किलोमीटर लम्बी पट्टी में है जो दुआपुरम से आरंभ होकर डालभूम के सरायकेला, खरसांवा आदि को पार करती हुई राखा और मोसाबानी होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहरगोड़ा में समाप्त होती है। यहां का मुख्य खनिज सोनामाखी है।
राज्य में सिंहभूम के अतिरिक्त हजारीबाग (बारागुंडा, जरादीह, पारसनाथ-हसातू क्षेत्र), संथाल परगना (शेरबिल और बैराखी क्षेत्र) और मानभूम (कल्याणपुर क्षेत्र) में कुछ तांबा मिलता है।
सिक्किम की सबसे अच्छी खान रांगपो के निकट भोटांग में है। इसके अतिरिक्त रोटोक, सिरबोंग, मिसनो, जुगुङ्म, इत्यादि स्थानों पर तांबा निकलने की आशा है।
राजस्थान में खेतड़ी नामक क्षेत्र से लगभग दशाब्दियों से तांबा निकाला जाता है। खेतड़ी में तांबे की मेखला सिंघाना (झुंझनू जिले में) से लेकर रघुनाथगढ़ (सीकर जिले में) तक 80 कि.मी. लम्बाई तक फैली है। इस मेखला में कोलीहान और खेतड़ी खाने हैं।
आंध्र प्रदेश में गुंटूर जिले में अग्नीगुण्ठल और नैल्लोर जिले में गनी-कालवा में तांबा मिला है।
मध्य प्रदेश में जबलपुर (सलीमाबाद), बालाघाट, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और सागर जिलों में भी तांबा पाया जाता है।
छत्तीसगढ़ में बस्तर जिले में तांबा पाया जाता है।
जम्मू-कश्मीर में कश्मीर की घाटी में हपतनगर के निकट बनिहाल-रामसूस और डोड़ा-किश्तवाड़ के कुछ भागों में और रियासी जिले में गेंती में, हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले और कुल्लू की घाटी में, पंजाब में पटियाला जिले में, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग और जलपाईगुडी जिलों में, कर्नाटक में चित्रदुर्ग (इंगलधल क्षेत्र में) और हासन जिलों में (कलयाड़ी क्षेत्र में) तांबा पाया जाता है।
लाभकारी संयंत्र: झारखंड में घाटशिला के पास मऊभंडार में भारतीय तांबा निगम लिमिटेड द्वारा 1942 में लाभग्राही संयंत्र प्रारंभ किया गया। इस संयंत्र में सिंहभूम अयस्क का उपचार किया जाता है। 1974 में मुसोबनी में एक अन्य संयंत्र प्रारंभ किया गया तथा 1975 में रेखा में एक अन्य संयंत्र शुरू किया गया। खेतड़ी एवं कोलिहान खानों से प्राप्त अयस्क के उपचार के लिए हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड द्वारा एक संयंत्र स्थापित किया गया, तथा चित्रदुर्ग में एक अन्य संयंत्र स्थापित किया गया। हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) देश में तांबे का उत्पादन करने वाली एकमात्र कम्पनी है। इसका तांबे का उत्पादन बढ़ाने में विशेष योगदान है। इस समय कम्पनी की कार्यरत इकाइयां हैं- खेतड़ी कॉपर काम्पलैक्स, झुंझुनू (राजस्थान), इण्डियन कॉपर प्रोजेक्ट, सिंहभूम (झारखण्ड); दरीबा कॉपर प्रोजेक्ट, अलवर (राजस्थान); मलंजखण्ड कॉपर प्रोजेक्ट, बालाघाट (मध्य प्रदेश); चांदमारी कॉपर प्रोजेक्ट, झुंझुनी (राजस्थान); लेप्सो व्योनाइट माइन्स, सिंहभूम (झारखण्ड); तलोजा कॉपर प्रोजेक्ट, रायगढ़ (महाराष्ट्र) तथा अग्निगुन्ठल कॉपर लेड प्रोजेक्ट, गुन्टूर (आंध्र प्रदेश)।
सीसा और जस्ता Lead and Zinc
सीसे का उपयोग बर्तन-निर्माण, पाइप व तार के आवरण निर्माण, गिलास के निर्माण एवं औषधि निर्माण में होता है। जस्ता का उपयोग लौह एवं इस्पात-उत्पादों पर आवरण चढ़ाने के लिए होता है। इसका उपयोग पीतल, कांसा, जर्मन चांदी के निर्माण में मिश्रण के रूप में, बैटरियों, विद्युत-उपकरण, वस्त्र-निर्माण, उद्योग और लकड़ी के परिरक्षण में भी होता है।
भारत के समस्त सीसा एवं जिंक (जस्ता) अयस्क उत्पादन को क्रमशः गैलेना व स्फैलेराइट जैसे सल्फाइड अयस्कों से प्राप्त किया जाता है। ये क्रिस्टलीय शिस्ट अथवा पूर्व कैम्ब्रियन शैलों में पाये जाते हैं। इन अयस्कों में तांबा, सोना, चांदी एवं वैनेडियम की थोड़ी-सी मात्रा भी शामिल रहती है।
भारत में सीसा एवं जस्ता की आर्थिक मूल्य वाली महत्वपूर्ण एकमात्र खान राजस्थान में उदयपुर के नजदीक जावर में है। जावर क्षेत्र में, मोछिया मगरा, बरोड़ मगरा एवं जावर-माला पहाड़ियों में सर्वाधिक व्यापक निक्षेप जमा होते हैं। जावर खान मोछिया मगरा पहाड़ी में स्थित है। इन स्थानों पर सीसा एवं जस्ता प्राप्त होता है। सीसा एवं जस्ता की प्राप्ति जिंक सल्फाइट तथा कैलेमीन, जिंकाइट, विलेमाट एवं हैमी मोरफाइट से होती है। सीसा-तांबा अयस्क आन्ध्र प्रदेश के गुन्टूर जिले के अग्निगुन्ठल क्षेत्र में पाया जाता है। सीसा, जस्ता एवं तांबे की 3 किलोमीटर लंबी पट्टी गुजरात के अम्बामाता देवी क्षेत्र में, राजस्थान तथा ओडीशा के सुन्दरगढ़ जिले से भी प्राप्त होते हैं| इसके आलावा पश्चिम बंगाल, मेघालय, सिक्किम, तमिलनाडु और उत्तराखंड में भी सीसा एवं जस्ता पाया जाता है।
बॉक्साइट Bauxite
बॉक्साइट का सर्वाधिक आर्थिक महत्व यह है कि इससे एल्यूमिनियम की प्राप्ति होती है। एल्युमिनियम का उपयोग वायुयान-निर्माण, विद्युत तार निर्माण तथा कई छोटी-बड़ी मशीनों एवं औजारों के निर्माण तथा सीमेंट निर्माण में भी होता है।
एक गैर-लौहिक धात्विक खनिज है, जो एल्युमिनियम के निर्माण में सहायक होता है। बॉक्साइट से एल्युमिनियम, ऑक्साइड के रूप में प्राप्त की जाती है। उत्तम किस्म के बॉक्साइट में 50 से 60 प्रतिशत तक एल्युमिनियम ऑक्साइड रहता है। एल्युमिनियम का उपयोग वायुयान-निर्माण में, विद्युत्-तार के निर्माण में तथा विभिन्न प्रकार की छोटी-बड़ी मशीनों और औजारों के निर्माण में होता है। बॉक्साइट का उपयोग सीमेंट निर्माण में भी होता है। एल्युमिनियम बॉक्साइट के अतिरिक्त कायेलाइट, कोरंडम और केआलिन आदि धातुओं से भी निकाला जाता है। बॉक्साइट सर्वाधिक उष्ण कटिबंध और उपोष्ण कटिबंधीय अक्षांश में पाया जाता है।
वितरण: ओडीशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात में प्रमुख रूप से बॉक्साइट निक्षेप है। बॉक्साइट निक्षेप पठार से घिरे झारखंड एवं छत्तीसगढ़, गुजरात के तटीय क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी घाट, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पाये गये हैं।
झारखंड में बॉक्साइट की सबसे महत्वपूर्ण खानें रांची और पलामू जिले में (अपरघाट और खुरिया क्षेत्रों में) हैं। बगरूपहाड़, सेरडंग, पभ्रापात, जरदा पहाड़, मैदानपट और मन्दोपट में महत्वपूर्ण निक्षेप स्थित हैं। पलामू जिले में, नेत्रहाट पठार महत्वपूर्ण है। यहां महत्वपूर्ण निक्षेप जमीरोपट, रांचोनघाट, ओरसाबट और जोरादुमर में स्थित हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में, यहां तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं-
- अमरकंटक पठारी क्षेत्र के अंतर्गत सरगुजा, रायगढ़ और बिलासपुर जिले
- मैकाल श्रेणी की पहाड़ियों में बिलासपुर, शहडोल, दुर्ग, मंडला और बालाघाट जिले
- कटनी क्षेत्र का जबलपुर जिला
बिलासपुर जिले में बॉक्साइट की खानें फुटका पहाड़, लट्टी पहाड़, महादेव पहाड़ और कई अन्य पहाड़ियों में स्थित हैं। शहडोल और मंडला जिले में बॉक्साइट उमेरगांव, जमुनादादर, दादर, रुक्ती दादर और नान्कू दादर क्षेत्रों में मिलता है।
गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर खम्भात की खाड़ी के बीच फैले 48 किमी. भू-भाग पर बॉक्साइट बहुत अधिक मिलता है। इसमें भावनगर, जूनागढ़ जिले और नंदाना, रण, मेवासा, हाबडीं, लाम्बा और वीरपुर शामिल हैं। खेड़ा जिले में कपाड़वंज व कच्छ जिलों में मांडवी, लाखपत, भुज, अंजर व नखराना तालुकों से अधिकांश उत्पादन प्राप्त होता है।
महाराष्ट्र में बॉक्साइट के कुछ निक्षेप पठारों में पाये जाते हैं जैसे- उदगिरि, धांगरवाड़ी, राधानगरी, और कोल्हापुर जिले में इंदरगंज।
तमिलनाडु में बॉक्साइट चार क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है-
- नीलगिरि पहाड़ियों के पूर्वी भागों में उटकमंड के निकट तथा कोटागिरि और कर्णन नदी की घाटियों में
- मदुरई जिले में पालनी की पहाड़ियों पर
- सलेम जिले में शिवराय की पहाड़ियों में यरकुड़ के निकट, और
- कोलामताई पहाड़ियों पर।
कर्नाटक में बॉक्साइट की प्राप्ति मुख्यतः बेलगाम जिले में सिद्ध पहाड़, जम्बोती बेटने क्षेत्रों से तथा कसारसादा पहाड़ियों, कालानन्दीगढ़ क्षेत्र और बोकनूर नैवगे पहाड़ियों से होती है।
ओडीशा में पंचपतमाली पहाड़ियों में कोरापुट में बॉक्साइट के निक्षेप पाये जाते हैं। बाहली माली पर्वत, काल्काहाल, कुत्रुमाली, इत्यादि अन्य निक्षेप हैं। कोरापुट जिले में पूर्वी घाट में बड़े निक्षेप भी पाये जाते हें। सम्बलपुर के गांधमरधान पठार और बोलनगीर जिले में बॉक्साइट की कुछ खानें हैं।
आंध्र प्रदेश में अनन्तगिरि पठार पर बॉक्साइट पाया गया है। विशाखापट्टनम जिले के गल्लीकोंडा क्षेत्र में भी बॉक्साइट के जमाव क्षेत्र हैं।
इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश आदि में भी बॉक्साइट प्राप्त होता है।