भारत ने सितंबर 2015 में कुछ इस्पात उत्पादों के आयात पर 20% शुल्क (Provisional Safeguard duty) लगाया और फरवरी 2016 में उसने इस्पात के आयात के लिये एक न्यूनतम मूल्य (floor price) निश्चित कर दिया था। इस संबंध में जापान ने भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज की है एवं जापान का कहना है कि भारत का कदम विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ है एवं इस कारण से भारत में उसका निर्यात गिरा है। जापान जहाँ 2015 में भारत को लौह-इस्पात निर्यात करने वाला छठा सबसे बड़ा देश था वहीं नवंबर 2016 में यह 10वें स्थान पर आ गया।
जापान विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है एवं यह उद्योग जापान की अर्थव्यवस्था का आधार है। जाापान जो सामान्यतः ऐसे विवादों को वार्ता के द्वारा निपटाना पसंद करता है, उसने इस मामले में काफी आक्रामक प्रतिक्रिया दी है क्योंकि भारत के इस कदम से उसे काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। जापान के निवेदन पर WTO ने इस मुद्दे पर एक ‘विवाद निवारण पेनल’ गठित किया है।
UPSC HINDI NOTES न्यूनतम आयात शुल्क के पक्ष में तर्क:
- अनुचित व्यापार प्रथाओं से रक्षा: भारत का दावा है कि एमआईपी सस्ते, सब्सिडी वाले इस्पात के “डंपिंग” से घरेलू उद्योग को बचाने के लिए आवश्यक है।
- रोजगार सृजन: घरेलू इस्पात उद्योग को मजबूत करने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: एक मजबूत घरेलू इस्पात उद्योग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
UPSC HINDI NOTES न्यूनतम आयात शुल्क के विपक्ष में तर्क:
- उच्च कीमतें: एमआईपी से उपभोक्ताओं के लिए इस्पात की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अन्य उद्योगों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
- वैश्विक व्यापार में बाधा: जापान का तर्क है कि एमआईपी व्यापार को बाधित करता है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को नुकसान पहुंचाता है।
- डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन: जापान का दावा है कि एमआईपी डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करता है, जो अनुचित व्यापार प्रथाओं से निपटने के लिए निश्चित तरीकों को निर्धारित करते हैं।
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यद्यपि भारत ने इस्पात पर न्यूनतम आयात शुल्क इसलिये लगाया क्योंकि चीन, जापान और कोरिया जैसे इस्पात अधिशेष वाले देशों से कम मूल्य पर इस्पात के आयात के कारण भारत के घरेलू लौह इस्पात उद्योग का विकास बाधित हो रहा है। विश्व भर में लौह-इस्पात को लेकर व्यापारिक विवाद बढ़ रहे हैं एवं दुनिया के सबसे बड़े लौह इस्पात उत्पादक चीन ने बेहद कम कीमतों पर लौह-इस्पात निर्यात किया जिस कारण अनेक देशों ने एंडी डंपिंग ड्यूटी एवं न्यूनतम आयात शुल्क जैसे अवरोध लगाए है ताकि उनके घरेलू लौह-इस्पात उद्योगों को बचाया जा सके।
अतः अपने घरेलू लौह इस्पात उद्योग को बचाने के लिये भारत द्वारा उठाये गये कदमों को नियम-विरुद्ध तो नहीं कहा जा सकता परन्तु यदि भारत-जापान के मध्य के व्यापारिक-वाणिज्यिक संबंधों पर गौर करें तथा जापान द्वारा भारत के मैट्रो-प्रोजेक्ट, औद्योगिक-कॉरिडोर व अन्य परियोजनाओं में निवेश पर ध्यान दें तो यह ज्यादा तर्कसंगत लगता है कि भारत को जापान के साथ द्विपक्षीय वार्त्ता के जरिये ही इस विवाद को सुलझा लेना चाहिये था। आपसी समझ एवं सहयोग द्वारा व्यापारिक गतिरोध को हल करना ही हमेशा युक्तिसंगत माना जाता है।