UPSC NOTES:छोटा नागपुर पठार के खनिज संसाधन और इस क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भू-वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक कारकों का विश्लेषण कीजिये।

UPSC NOTES:परिचय छोटा नागपुर पठार, जिसे प्रायः ‘भारत का खनिज हृदय स्थल’ कहा जाता है, लौह अयस्क, कोयला, अभ्रक और बॉक्साइट जैसे विविध...
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UPSC NOTES:परिचय

छोटा नागपुर पठार, जिसे प्रायः ‘भारत का खनिज हृदय स्थल’ कहा जाता है, लौह अयस्क, कोयला, अभ्रक और बॉक्साइट जैसे विविध खनिज संसाधनों से समृद्ध है। इस संसाधन आधार ने भारत के धातुकर्म और विनिर्माण क्षेत्रों को आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे यह क्षेत्र एक औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित हुआ है।

UPSC NOTES:छोटा नागपुर पठार के खनिज संसाधन और विकास में भू-वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक कारक

छोटा नागपुर पठार भारत के झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा राज्यों के कुछ हिस्सों में स्थित एक महत्वपूर्ण भू-भाग है। यह क्षेत्र खनिज संसाधनों से भरपूर है, जिसमें कोयला, लौह अयस्क, मैंगनीज, बोक्साइट, चूना पत्थर, तांबा, और अन्य खनिज शामिल हैं। कोयला इस क्षेत्र का प्रमुख खनिज संसाधन है, और यह भारत के कोयला उत्पादन का लगभग 40% हिस्सा उत्पन्न करता है। लौह अयस्क और मैंगनीज भी उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल प्रदान करते हैं। इन खनिजों के कारण क्षेत्र में कई औद्योगिक केंद्र स्थापित हुए हैं, जैसे रांची, जमशेदपुर, और धनबाद।

भू-वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, छोटा नागपुर पठार संरचनात्मक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ की स्थलाकृति में विभिन्न प्रकार की संरचनाएँ देखने को मिलती हैं, जैसे प्राचीन शैल और पठारी क्षेत्रों के रूप में। यह क्षेत्र बंगाल-गंगा के मध्य स्थित है, जहाँ विभिन्न खनिजों का संकलन हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से, ब्रिटिश काल में इस क्षेत्र की खनिज संपदा का उपयोग करने के लिए खनन उद्योगों का विकास हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इस क्षेत्र ने भारतीय औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस प्रकार, छोटा नागपुर पठार के खनिज संसाधन न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं, और भू-वैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारक इस क्षेत्र के विकास की नींव हैं।

  • ऐतिहासिक कारक
    • औपनिवेशिक विकास: औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयले और लौह अयस्क के ब्रिटिश दोहन ने औद्योगीकरण की आधारशिला रखी।
    • स्वतंत्रता के बाद का औद्योगिकीकरण: पंचवर्षीय योजनाओं में पठार के संसाधनों का लाभ उठाते हुए भारी उद्योगों पर ज़ोर दिया गया।
    • बुनियादी अवसंरचना का विकास: रेलवे और विद्युत संयंत्रों ने संसाधनों के उपयोग को सुगम बनाया।

  • भू-वैज्ञानिक कारक
    • मज़बूत आधार: इसकी नींव प्राचीन क्रिस्टलीय शैल से बनी है, जिसमें आर्कियन कायांतरित संरचनाएँ, ग्रेनाइट का निर्माण और क्रिस्टलीय संस्तर शामिल हैं, जो इसकी खनिज संपदा के लिये संरचनात्मक ढाँचा प्रदान करते हैं।
    • संरचनात्मक विशेषताएँ: पठार की भू-वैज्ञानिक संरचना, जो फ्रैक्चर ज़ोन, फॉल्ट लाइनों, वलन और कायांतरण प्रक्रियाओं द्वारा चिह्नित है, खनिज भंडार को सांद्रित करने तथा संरक्षित करने में सहायक रही है।
      • ये संरचनात्मक विशेषताएँ शैल संरचनाओं के भीतर विविध खनिजों के समाविष्ट होने के लिये आदर्श स्थितियाँ प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष

अपने विशाल खनिज संसाधनों के साथ छोटानागपुर पठार भारत के धातुकर्म और विनिर्माण विकास की आधारशिला रहा है। गोंडवाना कोयला क्षेत्र जैसी भू-वैज्ञानिक विशेषताओं और टाटा स्टील की स्थापना जैसी ऐतिहासिक पहलों ने इस क्षेत्र को औद्योगिक केंद्र में बदल दिया है। हालाँकि दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करने के लिये संधारणीय दोहन और समान संसाधन साझाकरण आवश्यक है।

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