ज्वार शुष्क क्षेत्र की महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। इसे सोर्घुम भी कहा जाता है। मीठा सोर्घुम औद्योगिक अल्कोहल का निर्माण करता है। शुष्क भागों में जहां धान और गेहूं की खेती नहीं होती है, वहां इस फसल का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है।
सामान्यतः, ज्वार की खेती मैदानी क्षेत्र में होती है, परन्तु 1200 मीटर तक की ऊंचाई वाले ढलान पर भी इसका उत्पादन सफलतापूर्वक हो रहा है। ज्वार क्षेत्र में सामान्यतः वार्षिक वर्षा 40 सेंटीमीटर से लेकर 100 सेंटीमीटर तक होती है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में ज्चार की फसल जून (प्रथम सप्ताह) से अक्टूबर (प्रथम सप्ताह) के बीच उपजायी जाती है। सोर्घुम के उत्पादन के लिए मध्यम एवं गहरी काली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। रबी ज्वार का उत्पादन काली कपास मिट्टी में होता है, जबकि खरीफ ज्वार का उत्पादन चिकनी मिट्टी में भी होता है (सीमित मात्र में)।
रबी ज्वार के लिए मुख्यतया दक्कन के पठार के क्षेत्र को जाना जाता है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कुल ज्वार उत्पादन का 55 से 60 प्रतिशत तक रबी ज्वार होता है जबकि आंध्र प्रदेश में 50 प्रतिशत रबी ज्वार और 50 प्रतिशत खरीफ ज्वार का उत्पादन होता है। अन्य राज्यों में ज्चार उत्पादन के लिए खरीफ का मौसम ज्यादा महत्वपूर्ण है।
फसल के लिए खेत में अधिक तैयारी की आवश्यकता नहीं है। आजकल खेत में खाद के न्यूनतम अनुप्रयोग के साथ हल या ब्लेड हेरो के साथ खेत तैयार किया जाता है, पंक्ति में बीज बेधनी (सीड ड्रिल) से कतारबद्ध बुआई की जाती है, जुताई और श्रेसिंग या तो व्यक्ति द्वारा या बैलों द्वारा कराई जाती है।
ज्वार की खेती के लिए खेत में अत्यधिक तैयारी की आवश्यकता होती है। ज्वार का उत्पादन करने में जो राज्य प्रमुखता रखते हैं, वे हैं- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश। देश के कुल ज्वार उत्पादन का 75 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक इन्हीं राज्यों से प्राप्त होता है। इसका उत्पादन तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी होता है। ज्वार की महत्वपूर्ण किस्में हैं- सी.एस.एच. 1, सी.एस.एच. 4, सी.एस.एच. 6, सी.एस.वी. 2, सी.एस.वी. 6, एम. 35-1 आदि।