यह पूर्वी भारत में मुख्य रूप से उत्पादित होने वाली एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। इस फसल का उत्पादन पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडीशा, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय में भी होता है। प्रमुख रूप से जूट उत्पादित करने वाले जिले पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडीशा में हैं। ये चारों राज्य देश के कुल जूट का 80 प्रतिशत से ज्यादा उत्पादित करते हैं। पश्चिम बंगाल अकेले 50 प्रतिशत जूट का उत्पादन करता है। जूट की दो प्रमुख प्रजातियों से रेशे प्राप्त किए जाते हैं-सफेद और टोसा जूट। टोसा रेशा सफेद रेशे की अपेक्षा अधिक मजबूत, मुलायम और चिकनाईयुक्त होता है। मेस्टा जूट का अच्छा विकल्प है।
वृद्धि की शर्तें: उष्णार्द्र जलवायु में जूट की खेती उपयुक्ततम होती है। जूट की खेती के लिए दोमट जलोढ़ मिट्टी चाहिए, सापेक्ष आर्द्रता 70 से 90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए, 115 सेंटीमीटर से 240 सेंटीमीटर के बीच वार्षिक वर्षा होनी चाहिए और तापमान 27° सेंटीग्रेड से 30° सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए।
मेस्टा का उत्पादन किसी भी प्रकार की मिट्टी में संभव है। इसकी खेती उन क्षेत्रों में अच्छी होती है, जहां औसतन 78 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर के बीच वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। जिस मिट्टी में जूट का उत्पादन संभव नहीं है, वहां भी मेस्टा का उत्पादन संभव है। मेस्टा के उत्पादन के लिए जूट की अपेक्षा बहुत ही कम निवेश करना पड़ता है।
जूट उत्पादन के लिए बिलकुल साफ-सुथरा और सपाट खेत चाहिए, जिसमें सीधा और तिरछा हल चलाया गया हो। घासों एवं पत्तों का खेत से पूर्ण रूप से सफाया हो जाना चाहिए। निचले क्षेत्रों में कैप्सुलरी प्रजाति के जूट की खेती मानसून से पहले ही फरवरी में शुरू कर दी जाती है। ऊपरी और मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च या अप्रैल में बुआई की जाती है। पश्चिमी भाग के जूट क्षेत्र में उत्पादन-कार्य जून के आरंभिक सप्ताह में शुरू किया जाता है।
उत्पादन: भारत जूट उत्पादन और इसकी खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र दोनों में ही विश्व में प्रथम स्थान पर है। हालांकि, जूट फाइबर और उत्पाद का सर्वाधिक विशुद्ध निर्यात बांग्लादेश द्वारा किया जाता है।
राज्यवार उत्पादन के दृष्टिगत, पश्चिम बंगाल पूरे देश के कुल जूट उत्पादन का 60 प्रतिशत से अधिक पैदा करता है। शेष उत्पादन में असम, बिहार, ओडीशा, उत्तर प्रदेश तथा त्रिपुरा प्रमुख स्थान रखते हैं। पश्चिम बंगाल में दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद, नादिया, हुगली और 24 परगना जूट नौगांव जिलों में जूट उत्पादन किया जाता है। काचर भी जूट उत्पादन हेतु महत्वपूर्ण जिला है। बिहार में पूर्णिया तथा उत्तर प्रदेश में खीरी और बहराइच जिले जूट उत्पादन में योगदान करते हैं।
किस्में: अंतरराष्ट्रीय जूट संगठन कार्यक्रम के अंतर्गत जूट के विश्वस्त जीनोटाइप की खोज की गई है। जूट की प्रमुख किस्में हैं-नॉनसूंग, बी.जेड. 2, बी.जेड. 22, श्यामली, सोनाली आदि।
महत्व: रस्सियां, बोरे, कपड़ा, गलीचा आदि वस्तुओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण भारत में जूट की कृषि अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्त्र एवं गैर-वस्त्र उत्पादों, यथा- कागज एवं लुगदी के लिए भी जूट का उपयोग होता है। उपयुक्त वातावरण होने के कारण यहां जूट का अधिकाधिक उत्पादन संभव है।
तिलहन: भारत में तिलहन की कृषि का विशेष महत्व है, क्योंकि इसका प्रयोग औषधियों, इत्रों, रोगन (वार्निश), स्नेहक (ल्यूब्रिकेंट), मोमबत्तियों, साबुनों आदि के निर्माण में होता है। तिलहन की प्रमुख फसलें हैं- मूंगफली, सरसों, अरण्डी, तिल, तिसी आदि। आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश महाराष्ट्र, ओडीशा, पंजाब, राजस्थान उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में इसका उत्पादन होता है।