औद्योगिक नीति
- किसी भी देश के औद्योगिक संतुलित विकास के लिए एक स्पष्ट और व्यापक औद्योगिक नीति की आवश्यकता होती है|भारत में भी स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक की औद्योगिक नीतियों की घोषणा की गई है यह निम्नलिखित है –
औद्योगिक नीति
- इस औद्योगिक नीति की घोषणा तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा की गई इस नीति की महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सह अस्तित्व को स्वीकार किया गया |
- यह नीति नियंत्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखती है इस नीति के तहत उद्योगों को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है यह निम्नलिखित हैं –
- प्रथम वर्ग में सैनिक एवं राष्ट्रीय महत्व के उद्योग (अस्त्र-शस्त्र, अणुशक्ति, रेल परिवहन इत्यादि) को रखा गया तथा इस पर सरकार के एकाधिकार की बात कही गई |
- द्वितीय वर्ग के अंतर्गत 6 आधारभूत उद्योग कोयला, लोहा इस्पात, वायुयान निर्माण, जलयान निर्माण, टेलीफोन, टेलीग्राफ तथा खनिज तेल उद्योग को रखा गया यद्यपि इन उद्योगों को निजी क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करते रहने की आज्ञा थी किंतु आवश्यकता पड़ने पर इनके राष्ट्रीयकरण की बात भी कही गई |
- तृतीय वर्ग में 18 उद्योगों को रखा गया जिनमें रासायनिक उद्योग, चीनी, सूती, एवं ऊनी वस्त्र, सीमेंट, कागज, नमक, मशीन टूल्स इत्यादि मुख्य हैं| इन उद्योगों को निजी एवं सरकारी दोनों क्षेत्र द्वारा स्थापित एवं संचालित किया जा सकता था |
- चतुर्थ वर्ग के अंतर्गत कृषि उद्योगों को रखा गया तथा इसे निजी एवं सहकारी क्षेत्र में स्थापित एवं संचालन की आज्ञा दी गई |
औद्योगिक नीति 1956
- भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना वर्ष 1958 में लागू की गई| इस में आधारभूत एवं भारी उद्योगों के विकास पर बल दिया गया| इसी लक्ष्य को व्यवहारिक रूप देने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर वर्ष 1955 की औद्योगिक नीति की घोषणा की गई इस औद्योगिक नीति में उद्योगों को 3 वर्ग में रखा गया है यह निम्नलिखित है –
- प्रथम वर्ग A इसके अंतर्गत आधारभूत क्षेत्र के 17 उद्योगों को रखा गया वर्ष 1956 की औद्योगिक नीति में इन पर सर्वाधिक बल दिया गया |
- द्वितीय वर्ग B इस सूची में 12 उद्योगों को रखा गया |
- तृतीय वर्ग C इसके अंतर्गत शेष सभी उद्योगों को रखा गया निजी उद्यमियों को इसके विकास की इजाजत दी गई |
- नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें उद्योगों का वर्गीकरण अधिकतर कठोर नहीं था तथा आगे आवश्यकतानुसार सूचियों में परिवर्तन संभव था |
- इस नीति में लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा छोटे उद्योगों के विकास में समन्वय पर बल दिया गया इसके अलावा औद्योगिक विकास में क्षेत्रीय विषमता को कम करने पर भी बल दिया गया |
- समाजवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस नीति में श्रमिकों के हितों की रक्षा एवं प्रबंधकीय मामलों में उनकी भागीदारी को स्वीकार किया गया |
औद्योगिक नीति 1977
- दिसंबर 1977 में घोषित औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में बिना बदलाव किए हुए इसमें 1956 की नीति के अनुसार ही बनाए रखा गया |
- इस नीति में लघु एवं कुटीर उद्योग के विकास पर विशेष बल दिया गया तथा लघु क्षेत्र को 3 वर्गों में रखा गया |
- इस नीति में कुटीर तथा घरेलू उद्योग के अधिक मात्रा में रोजगार सृजन क्षमता के महत्व को स्वीकार किया गया इस नीति में कुटीर उद्योग को तीन वर्गों में विभाजित किया गया – कुटीर उद्योग, लघु उद्योग तथा अति लघु उद्योग |
- वर्ष 1977 की नीति के तहत लघु उद्यम कर्ता को एक ही स्थान पर सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जिला उद्योग केंद्र डीआईसी की स्थापना का निर्णय लिया गया |
औद्योगिक नीति
- इस नीति के तीन मौलिक उद्देश्य निर्धारित किए गए थे – आधुनिकरण, विस्तार और पिछड़े क्षेत्रों का विकास |
- वर्ष 1980 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक उद्यमों के कुशल प्रबंधन पर बल दिया गया |
- इस नीति में आर्थिक संघवाद की धारणा पर बल देते हुए प्रत्येक चिन्हित पिछड़े जिलों में लघु एवं कुटीर उद्योग इकाइयों की स्थापना पर बल दिया गया |
- इस नीति में ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना तथा रुग्ण औद्योगिक इकाइयों की समस्याओं के समाधान पर बल देने का निर्णय लिया गया है इनके अलावा अति लघु उद्योग, लघु इकाई एवं अनुषंगी इकाइयों में निवेश सीमा में वृद्धि की गई |
औद्योगिक नीतियों का मूल्यांकन
- वर्ष 1990 तक की औद्योगिक नीति विदेशी व्यापार नीति से भी जुड़ी हुई थी जिसके तहत घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के लिए आयात प्रतिस्थापन एवं निर्यात प्रोत्साहन की नीति अपनाई गई |
- इससे उत्पादों की गुणवत्ता और उद्योगों के आधुनिकरण तथा इनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा |वर्ष 1990 तक की औद्योगिक नीति में सबसे नकारात्मक पहलू था लाइसेंस प्रणाली इसके तहत नए उद्योगों की स्थापना तथा स्थापित उद्योगों में विस्तार हेतु सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता था | इस के व्यापक दुरुपयोग से भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता में वृद्धि नहीं हो सकी |