देश के आर्थिक जीवन में परिवहन का अत्यधिक महत्व होता है। वर्तमान प्रणाली में यातायात के अनेक साधन, जैसे-रेल, सड़क, तटवर्ती नौ-संचालन, वायु परिवहन इत्यादि शामिल हैं। पिछले वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास के साथ-साथ विस्तार भी हुआ है और क्षमता भी बढ़ी है। रेल व नागर विमानन को छोड़कर परिवहन के विभिन्न साघनों के विकास के लिए नीतिगत कार्यक्रम बनाने और उन्हें लागू करने का दायित्व भूतल परिवहन मंत्रालय निभाता है।
यातायात के विभिन्न प्रकार के आधुनिक साधनों का विकास तथा इसके संचालन में आपसी समन्वय,देश की राजनीतिक तथा आर्थिक एकता व विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसी प्रकारसंचार के साधन संदेशों या विचारों को प्रसारित करते हैं। प्राचीन समय में परिवहन एवं संचार के साधन प्रायः एक ही हुआ करते थे। परन्तु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप अब दोनों प्रकार के साधनों का विशिष्टीकरण हो गया है।
परिवहन में सुधारों के साथ-साथ संचार के साधनों का भी महत्वपूर्ण विकास होता रहा है। टेलीग्राफ, टेलीफोन, बेतार संचार (वायरलैस), रडार और स्वचालित कम्प्यूटरों की सहायता से व्यापारिक संदेशों के आने-जाने में तथा रेलगाड़ियों, जलपोतों और वायुयानों को अपनी यात्राएं पूरी करने में भारी सहायता मिल रही है।
सड़क परिवहन
भारतीय सड़कों का जाल विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। सड़क परिवहन छोटी एवं मध्यम दूरी तय करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह विश्वसनीय, तेज, लचीला तया मांगपूरित तरीका है, जो घर-घर जाकर सेवाएं उपलब्ध करा सकता है। यह गांवों को बाजारों, कस्बों, प्रशासनिक व सांस्कृतिक केन्द्रों से जोड़ता है और इस प्रकार उन्हें देश की मुख्य धारा में शामिल करता है। सड़क परिवहन सुदूरवर्ती पहाड़ी, मरुस्थलीय, जनजातीय तथा पिछड़े क्षेत्रों को जोड़ता है।
मानव एवं यंत्रों के संचलन में तेजी लाकर सड़क परिवहन देश की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सड़क यातायात कच्चे माल, तैयार माल एवं श्रम के संचलन द्वारा कृषि और उद्योगों की मदद करता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार निर्माण में सहायता करता है।
सड़कों की विभिन्न श्रेणियां
सड़क विकास हेतु बनायी गयी नागपुर योजना (1944-54) के अंतर्गत पहली बार सड़कों को चार वगों में विभाजित किया गया। ये वर्ग हैं- राष्ट्रीय राजमार्ग, प्रांतीय राजमार्ग, जिला सड़कें और ग्रामीण सड़कें।
राष्ट्रीय राजमार्ग: ये राजमार्ग देश की चौड़ाई एवं लंबाई के अनुसार बिछाये गये हैं। ये राज्यों की राजधानियों, बंदरगाहों, औद्योगिक व खनन क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्व के शहरों एवं कस्बों को जोड़ते हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई लगभग 82,621 किलोमीटर है। देश की कुल सड़क लम्बाई में राष्ट्रीय राजमार्ग मात्र 1.7 प्रतिशत में विस्तृत हैं, परंतु इन मागों के द्वारा 40 प्रतिशत सड़क यातायात की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। इन राजमार्गों की देखभाल केंद्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा की जाती है।
प्रांतीय राजमार्ग: ये एक राज्य के भीतर व्यापारिक एवं सवारी यातायात के मुख्य आधार होते हैं। ये राज्य के प्रत्येक कस्बे को राज्य की राजधानी, सभी जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्वपूर्ण स्थलों तथा राष्ट्रीय राजमार्ग से संलग्न क्षेत्रों के साथ जोड़ते हैं। इन राजमागों का निर्माण व रख-रखाव करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होती है।
जिला सड़कें: ये सड़कें बड़े गांवों एवं कस्बों को एक-दूसरे से तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। ये अधिकांशतया कच्ची होती हैं। इनका निर्माण एवं रख-रखाव जिला परिषदों या सम्बंधित सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है।
ग्रामीण सड़कें: ये सड़कें गांवों को जिला सड़कों से जोड़ती हैं। ये सड़कें प्रायः कच्ची, संकरी तथा भारी वाहन यातायात के अनुपयुक्त होती हैं। इनका निर्माण एवं रख-रखाव ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता है।इन चारों के अतिरिक्त, सड़कों के तीन और अन्य प्रकार हैं- सीमा सड़कें, अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग और द्रुत राजमार्ग।
सीमा सड़कें: 1960 में सीमा सड़क विकास बोर्ड की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य अल्पविकसित जंगली, पर्वतीय एवं मरुस्थलीय सीमा क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देना था। एक अन्य उद्देश्य रक्षा सैनिकों के लिए अनिवार्य आपूर्ति को बनाये रखना भी था। सीमा सड़क संगठन एक कार्यकारी विभाग है, जो हिमालय तथा पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों एवं राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में सड़कों का निर्माण तथा रख-रखाव करता है। वर्तमान में, बीआरओ द्वारा बंदरगाहों एवं हैलीपैडों का निर्माण भी किया जाता है। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं स्थायी पुल निर्माण कार्यों के अतिरिक्त सीमा सड़क संगठन ने बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कई सड़कों से ग्रीष्म एवं शीत दोनों ही मौसम में बर्फ हटाने एवं साफ करने का प्रशंसनीय कार्य भी किया।
अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग: ये राजमार्ग विश्व बैंक की सहायता से, एशिया-प्रशांत आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (इस्केप) के साथ किये गये समझौते के अधीन बनाये गये हैं। इनका उद्देश्य भारत की महत्वपूर्ण सड़कों को पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार तथा बांग्लादेश) के साथ जोड़ना है।
द्रुत राजमार्ग: इन राजमार्गों का निर्माण देश में यातायात के त्वरित संचलन हेतु किया गया है। यह प्रायः कंक्रीट के बने हुए कई लेन वाले राजमार्ग हैं और कुछ मामलों में मानव और जानवरों को सड़क के बीच आने से रोकने के लिए बाड़ लगाते हैं। वर्तमान में 23 एक्सप्रेस-वे हैं तथा 17 निर्माणाधीन हैं।
कुछ एक्सप्रेस-वे हैं: मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे; पश्चिमी एक्सप्रेस-वे, जो मुंबई में है; पूर्वी एक्सप्रेस-वे, जो एन.एच.-3 का एक भाग और मुंबई में है; अहमदाबाद-वड़ोदरा एक्सप्रेस-वे, को राष्ट्रीय एक्सप्रेस-वे 1 (भारत) के नाम से जानते हैं, दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस-वे (आठ लेन सड़क जो स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का एक भाग है); दुर्गापुर एक्सप्रेस-वे (कोलकाता और दुर्गापुर के मध्य है), तथा यमुना एक्सप्रेस-वे।
सघनता प्रतिरूप
अधिकांश सड़क मार्ग प्राचीन समय से ही विद्यमान रहे हैं। स्वतंत्रता के उपरांत सर्वप्रथम एक अंतःस्थलीय सड़कतंत्र विकसित किया गया, उसके बाद बंदरगाहों की ओर बहिर्मुखी सड़क जाल का निर्माण किया गया।
भारत के पांच राज्य क्रमशः- गोआ, पंजाब, तमिलनाडु, केरल तथा हरियाणा सड़कों की सर्वाधिक सघनता वाले राज्य हैं। पूर्ण रूप से, पंजाब-हरियाणा मैदान,गंगा मैदान, कर्नाटक के पठार, तमिलनाडु मैदान और केरल में उच्च स्तर की सघनता पायी जाती है। जबकि दक्कन क्षेत्र में मध्यम स्तर की तथा हिमालय, पूर्वोत्तर भागों तथा राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में निम्न स्तर की सघनता पायी जाती है। इस प्रकार बिखरी हुई अल्प जनसंख्या ऊबड़-खाबड़ भूप्रदेश तथा आर्थिक विकास का निम्न स्तर इत्यादि ऐसे कारक हैं, जो सड़क तंत्र की सघनता को प्रभावित करते हैं।
विभिन्न प्रकार की सड़कों का विकास
राष्ट्रीय राजमार्ग: विभिन्न योजनाकालों के दौरान, लिंक मार्गों, पुलों एवं पुलियाओं का निर्माण किया गया, जबकि कमजोर विस्तारों, पुलों एवं पुलियाओं की मरम्मत एवं उन्नत किया गया। भारी भीड़-भाड़ वाले मागों को दो और चार लेन का किया गया। सघन कस्बों के साथ-साथ बाई-पास का निर्माण किया गया। राजमार्गों पर कई स्थानों में पैदलपथ की व्यवस्था प्रदान की गई।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी), देश की अब तक सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है। इस परियोजना का क्रियान्वयन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) द्वारा किया जा रहा है। लगभग 14000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों को 4/6 लेन बनाने की परिकल्पना की गई है। इस परियोजना के विभिन्न चरणों की गतिविधियां निम्नलिखित हैं:
- चरण I: चार महानगरों-दिल्ली, मुंम्बई, चेन्नई और कोलकाता को 5846 किलोमीटर लंबे राजमार्ग से जोड़ने वाली योजना स्वर्णिम चतुर्भुज 1 फरवरी, 2011 तक 4 लेन वाली परियोजना का कार्य लगभग पूरा हो गया था।
स्वर्णिम चतुर्भुज में केवल राष्ट्रीय राजमार्गों का प्रयोग किया गया है। निम्नलिखित राष्ट्रीय राजमार्गों में 4 लेन का प्रयोग किया गया है. दिल्ली-कोलकाताः एन.एच 2; दिल्ली-मुम्बईः एन.एच. 8, एनएच 79A (अजेमर बाइपास), एनएच 79 (नसीराबाद-चित्तौड़गढ़), एनएच 76 (चित्तौड़गढ़-उदयपुर), एनएच 8 (उदयपुर-मुंबई); मुंबई-चेन्नईः एनएच 4 (मुंबई-बंगलुरु), एनएच 7 (बंगलुरू-कृष्णागिरी), एनएच 46 (कृष्णागिरी-रानीपेट), एनएच 4 (रानीपेट-चेन्नई); कोलकाता-चेन्नईः एनएच 60 (कोलकाता-खड़गपुर), एनएच 60 (खड़गपुर-बालासोर), एनएच5 (बालासोर-चेन्नई)।
सम्पूर्ण स्वर्णिम चतुर्भुज भारत के 13 राज्यों से होकर गुजरेगी: आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार, झारखण्ड, हरियाणा और दिल्ली।
- चरण II: उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (NS-EW 7,142 किलोमीटर) जो क्रमशः उत्तर में श्रीनगर को दक्षिण में कन्याकुमारी से, जिसमें सालेम से कन्याकुमारी तक का पर्वत प्रक्षिप्त प्रदेश भी शामिल है, को जोड़ता है (वाया कोयम्बटूर और कोच्चि) तथा पूर्व में सिल्चर को पश्चिम में पोरबंदर से जोड़ता है।
- चरण III: महापत्तनों, राज्यों की राजधानियों, प्रमुख पर्यटन स्थलों को जोड़ने वाले अत्यधिक यातायात वाले 1,342 किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्गों को 4/6 लेन वाला बनाना।
- चरण IV: इसमें बीओटी टोल और बीओटी टोल फ्री के विस्तार के साथ-साथ 20,000 किलोमीटर लम्बी एकल/मध्यम/दो लेन वाली राष्ट्रीय राजमार्गों का आधुनिकीकरण/मजबूतीकरण शामिल है।
- चरण V: इसमें 6500 किमी. के राष्ट्रीय राजमार्ग को 6 लेन वाला बनाने की परियोजना शामिल है। इसमें स्वर्णिमचतुर्भुज का 5700 किमी. और अन्य राजमार्गों का 800 किलोमीटर हिस्सा शामिल है।
- चरण VI: इसमें 1000 किलोमीटर लम्बे एक्सप्रेस-वे की संरचना की परियोजना शामिल है।
- चरण VII: इस चरण में 700 किलोमीटर लंबे रिंग रोड और बाइपास के अतिरिक्त पुल, एलीवेटेड रोड, सुरंग, पारपथ इत्यादि का निर्माण शामिल है।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के समयबद्ध पूरा करने में आने वाली बाधाओं में शामिल हैं:
- भूमि अधिग्रहण और ढांचे को हटाने मे होने वाला विलम्ब
- कुछ राज्यों में कानून व्यवस्था संबंधी परेशानियां
- कुछ ठेकेदारों का कमजोर निष्पादन।
राज्य राजमार्ग: इस क्षेत्र में, मेट्रोपॉलिटन शहरों, पिछड़े एवं पहाड़ी क्षेत्रों, और औद्योगिक एवं खनन केंद्रों पर बल दिया गया। हालांकि राज्य सड़कें जिसमें जिला और ग्रामीण सड़कें भी शामिल हैं, राज्य की जिम्मेदारी हैं, लेकिन केंद्र सरकार अपने केंद्रीय सड़क कोष से इन्हें घन मुहैया कराती है।
ग्रामीण सड़कें: ग्रामीण सड़कों द्वारा गांव को जोड़ने का उद्देश्यन केवल देश के ग्रामीण विकास में सहायक है, अपितु इसे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में एक प्रभावी घटक स्वीकार किया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु 25 दिसम्बर, 2000 को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना प्रारंभ की गई। इस योजना का वित्तीयन केंद्रीय सड़क निधि से अप्रैल 2000 से डीजल पर लगाए गए उपकर की धनराशि के 50 प्रतिशत भाग द्वारा किया जाता है। इस राशि को ग्रामीण सड़क मंत्रालय को प्रदान किया जाता है।
योजना के प्रथम चरण में 1000 से अधिक आबादी वाले गांवों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ने की योजना है। दूसरे चरण में 500 से अधिक आबादी वाले गांवों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ने की योजना है। पहाड़ी राज्यों (पूर्वोत्तर, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखण्ड) तथा रेगिस्तानी एवं जनजातीय क्षेत्रों (अनुसूची-v) में 250 या इससे अधिक आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ा जाएगा।
राष्ट्रीय ग्राम सड़क विकास अभिकरण (एनआरआरडीए),जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत् पंजीकृत ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक एजेंसी है, कार्यक्रम के लिए संचालनात्मक और तकनीकी सहायता मुहैया कराता है। विश्व बैंक आईबीआरडी ऋण/आईडीए क्रेडिट की शाखाओं की एक श्रृंखला द्वारा ग्रामीण सम्पर्क कार्यक्रम की सहायता करता है। ग्रामीण सड़कों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगारगारंटी कार्यक्रम के तहत् किए गए निर्माण कार्य भी शामिल हैं। इसका उद्देश्य गांवों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ना है।
नयी आर्थिक नीति में आधारभूत संरचना के विकास पर अत्यधिक जोर दिया गया है। सड़क क्षेत्र को एक उद्योग घोषित किया गया है, जिसे आसान शतों पर कर्ज दिया जायेगा तथा कपनियों को बॉण्ड जारी करके धन जुटाने की भी अनुमति दी जा चुकी है। अब सड़कों के निर्माण, रख-रखाव तथा संचालन में भागीदारी निभाने के लिए निजी क्षेत्र को आमत्रित किया गया है। इस नीति का आधार निर्माण, संचालन एवं स्थानांतरण (बीओटी) है।
बड़ी कंपनियों को राजमार्ग क्षेत्र में प्रवेश देने के लिए एमआरटीपी प्रावधानों को शिथिल किया गया है।
सभी राज्य सरकारों द्वारा पथकर को समाप्त कर दिया गया है तथा चुंगियों की संख्या घटायी जा रही है ताकि सड़कों पर यातायात का मुक्त प्रवाह संभव हो सके।
सड़क यातायात की समस्याएं (विशेषतः राष्ट्रीय राजमार्गों के संबंध में)
- सड़कों की आरोही गुणवत्ता अत्यंत निम्नस्तरीय है। पुलों/पुलियों की हालत भी कमजोर है।
- अधिकांश राजमार्गों की कुट्टिक मोटाई अपर्याप्त है।
- चेक पोस्टों, चुंगियों तथा रेलवे फाटकों की बड़ी संख्या यातायात के प्रवाह को बाधित करती है।
- राजमार्ग प्रायः शहरों के सघन भीड़-भाड़ वाले भागों से होकर गुजरते हैं।
- मार्ग के दौरान मनोरंजन व अन्य जरूरी सुविधाओं का अभाव रहता है तथा सड़क सुरक्षा उपाय भी पर्याप्त होते हैं।
- राष्ट्रीय राजमार्गों के लगभग 20 प्रतिशत भाग को दो लेन वाले मार्ग में बदलने तथा दो लेने वाले राजमार्गों के 70 प्रतिशत भाग को द्रुत राजमार्ग में बदलने की जरूरत है।
- उत्तरी मैदानों में आड़ी-तिरछी बहने वाली अनेक नदियों तथा उनमें आने वाली बाढ़ों (प्रायः वार्षिक) के कारण सड़कों का निर्माण तया रख-रखाव कठिन हो जाता है।
- शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या एवं उसके परिणामस्वरूप आवागमन में तेजी से वृद्धि हो रही है। अनेक शहरों में वाहन जनित प्रदूषण चेतावनी के स्तर को पार कर चुका है। बड़े शहरों में सड़क क्षमता को बढ़ाना भी लगभग असंभव हो गया है, जबकि वाहनों की संख्या एवं यातायात सुविधाओं की मांग बढ़ती जा रही है।