भारतीय संविधान की विशेषताएं
- मूल संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद, तथा 8 अनुसूचियां थी
- वर्तमान में भारतीय संविधान के 25 भाग, 465 अनुच्छेद ( उप अनुच्छेदों सहित) एवं 12 अनुसूचियां हैं भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है
भारतीय संविधान की 12 अनुसूचियां निम्नवत हैं
- अनुसूची 1 – इसमें संघ एवं राज्य क्षेत्र आते हैं
- अनुसूची 2 – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा विभिन्न राज्यों के राज्यपालों के वेतन एवं भत्ते का विवरण किस अनुसूची में उपबंधित है
- अनुसूची 3 – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश( सुप्रीम कोर्ट) महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा राज्यों के राज्यपालों ओके शपथ एवं प्रतिज्ञान के उपबंध इस सूची में दिए गए हैं
- अनुसूची 4 – इस सूची में राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के लिए( जहां विधानसभा है) सीटों के आवंटन से संबंधित उपबंध दिए गए हैं
- अनुसूची 5 – इस सूची में अनुसूचित जाति /जनजाति के प्रशासन से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं
- अनुसूची 6 – इस अनुसूची में त्रिपुरा, मेघालय, असम एवं मिजोरम के अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित उपबंध दिए गए हैं
- अनुसूची 7 – केंद्र-राज्य संबंध से संबंधित उपबंध इसमें दिए गए हैं
- अनुसूची 8 – इसमें संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं का विवरण एवं उससे संबंधित उपबंध दिए गए हैं
- अनुसूची 9 – इस अनुसूची का सर्जन 1951 में हुआ इसमें वैसे विषयों को शामिल किया गया है जो न्यायालय में वाद योग्य नहीं है
- अनुसूची 10 – 1985 ईस्वी में 52 वें संविधान संशोधन द्वारा इस अनुसूची को भारतीय संविधान में शामिल किया गया इसमें दल बदल से संबंधित प्रावधान सम्मिलित हैं
- अनुसूची 11 – इस अनुसूची के तहत’ 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1993’ पारित कर जोड़ा गया जिसमें पंचायती राज से संबंधित विवरण दिए गए हैं
- अनुसूची 12 -1993 ईस्वी में ‘74 वे संविधान संशोधन अधिनियम’ को पारित कर यह अनुसूची भारतीय संविधान में शामिल की गई इसके अंतर्गत नगरीय स्थानीय स्वशासन से संबंधित विवरण दिए गए हैं
संशोधन प्रक्रिया
संशोधन प्रक्रिया भारतीय संविधान को जीवित आलेख कहा गया है समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप संविधान को ढालने के उद्देश्य से इसमें तीन प्रकार के संशोधन बताए गए हैं
- संशोधन प्रक्रिया 1 – इसके तहत संसद के दोनों सदनों की उपस्थिति एवं मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से पारित किए हुए प्रस्ताव पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर हो जाने के बाद संशोधन हो जाता है
- संशोधन प्रक्रिया 2 – इस प्रक्रिया के अनुसार संशोधन का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2 / 3 बहुमत से पारित होना चाहिए
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- संशोधन प्रक्रिया 3 – इसमें संसद के दोनों सदनों में 2 / 3 बहुमत के साथ साथ कुल प्रांतों की कम से कम 50% विधायिकाओं का समर्थन मिलना आवश्यक है
अन्य विशेषतायें
- समाजवादी धर्मनिरपेक्ष राज्य – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान को समाजवादी एवं धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार द्वारा यहां के नागरिकों को राजनीतिक समता प्रदान की गई है
- संघात्मक विशेषताएं – संघात्मक सरकार में दो स्तर होते हैं संघ सरकार तथा राज्यों की सरकार है भारत में यह स्वरूप विद्यमान है
- संसदीय प्रणाली भारत में शासन की संसदीय प्रणाली अपनाई गई है इसके तहत जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था संसद सर्वशक्तिमान होती है
- भारतीय संविधान में कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की गई है यह परिकल्पना प्रजातंत्र के विषय में अब्राहम लिंकन के सिद्धांत से मेल खाती है उन्होंने कहा था प्रजातंत्र जनता का जनता के लिए जनता द्वारा किया गया शासन है
- भारतीय संविधान में वर्णित राजनीति के निर्देशक तत्व का उद्देश्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है
प्रस्तावना
“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता; प्रतिष्ठा के अवसर की समता, प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाला बंधुत्व बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईस्वी को एदत्त द्वारा को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्म समर्पित करते हैं”
- प्रभुत्व संपन्न का अर्थ है भारतीय सीमा के अंदर भारत सरकार सर्वशक्तिमान है
- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है राज्य अपनी ओर से किसी धर्म को प्रोत्साहित यह तो हतोत्साहित नहीं करेगा
- लोकतांत्रिक का अर्थ होता है जनता के प्रतिनिधियों का शासन
- केशवानंद भारतीय बनाम केरल राज्य के मामले के उपरांत 42 वें संविधान संशोधन के तहत समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता जैसे शब्द जोड़े गए
भारतीय संविधान के स्त्रोत
भारतीय संविधान के निर्माण में 60 देशों का संविधान का अध्ययन किया गया परंतु 10 देशों के संविधान से ही कुछ खास तथ्य को अपनाया गया इसके अलावा भारतीय संविधान के मुख्य स्त्रोतों में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 भी अत्यंत महत्वपूर्ण है
- अमेरिकी संविधान– प्रस्तावना, मूल अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय, न्यायायिक पुनरावलोकन, राष्ट्रपति के अधिकार एवं कार्य, उपराष्ट्रपति की स्थिति तथा संशोधन प्रणाली|
- ऑस्ट्रेलियाई संविधान – प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची एवं केंद्र राज्य संबंध |
- ब्रिटिश संविधान- संसदीय शासन प्रणाली, विधि निर्माण प्रक्रिया एवं एकल नागरिकता
- दक्षिण अफ्रीका के संविधान – संशोधन प्रणाली
- कनाडा का संविधान – संघीय व्यवस्था, केंद्रीय सरकार के अधीन अवशिष्ट शक्तियां, राज्यपाल का पद
- जर्मनी का वाइमार – राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार
- जापानी संविधान – कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया तथा शब्दावली
- रूसी – संविधान – मौलिक कर्तव्य
- फ्रांसीसी संविधान – गणतंत्र
- आयरलैंड का संविधान – राज्य के नीति निदेशक तत्व, राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल, राज्यसभा में 12 सदस्यों का मनोनयन
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 – इस अधिनियम के लगभग 200 अनुक्षेद प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों से मिलते जुलते है |
भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
भारत एक संवैधानिक गणराज्य है । भारत के संविधान की’ प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है । भारत में संघीय शासन व्यवस्था लागू है किन्तु संविधान में कहीं भी फेडरेशन (संघात्मक) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है । संविधान में भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा गया है ।
- कें. सी. हेयर के अनुसार- ” भारत मुख्यत: एकात्मक राज्य है, जिसमें संघीय विशेषताएं नाममात्र की है । भारत का संविधान संघीय कम एकात्मक अधिक है । ”
- प्रो. पायली के अनुसार- ” भारत का ढाँचा संघात्मक है किन्तु. उसकी आत्मा एकात्मक है । ”
- प्रो. डी. डी. बसु के अनुसार- ” भारत का संविधान न तो शुद्ध रूप से परिसंघीय है और न शुद्ध रूप से ऐकिक है; यह दोनों का संयोजन है । ”
भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था के लक्षण
- संविधान की सर्वोच्चता ।
- केन्द्र राज्य में पृथक-पृथक सरकारें ।
- केन्द्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन ।
- स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायालय ।
भारतीय संविधान में एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
- एकीकृत न्याय व्यवस्था ।
- इकहरी नागरिकता ।
- शक्तियों का बंटवारा केन्द्र के पक्ष में ।
- संघ तथा राज्य के लिए एक ही संविधान।
- केन्द्र सरकार को राज्यों की सीमा परिवर्तन करने का अधिकार ।
- राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति ।
- राज्य सूची के विषय पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार ।
- संविधान संशोधन सरलता से ।
- संकटकाल में एकात्मक स्वरूप ।
- राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित कानूनों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखने का राज्यपालों को अधिकार ।