पुष्यमित्र शुंग
पुष्यमित्र शुंग यह एक ब्राम्हण था । उत्तर भारत के शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा था । इससे पहले वो मौर्य साम्राज्य में सेनापति था। 185 ई॰पूर्व में इसने अन्तिम मौर्य सम्राट (बृहद्रथ) की रात में दरवार में अकेला बुलाया और उनकी पीठ पर छुरा घोपकर सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर दी और अपने आपको राजा उद्घोषित किया। उसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और उत्तर भारत का अधिकतर हिस्सा अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। शुंग राज्य के शिलालेख पंजाब के जालन्धर में पुष्यमित्र का एक शिलालेख मिले हैं और दिव्यावदान के अनुसार यह राज्य सांग्ला (वर्तमान सियालकोट) तक विस्तृत था।
शुंग वंश की स्थापना :
मौर्य वंश का अन्तिम राजा बृहद्रथ था, जिसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग था। एक दिन उसने अपनी सब सेना को एकत्र कर उसके प्रदर्शन की व्यवस्था की। सम्राट बृहद्रथ को भी इस प्रदर्शन के अवसर पर निमंत्रित किया गया। सेना पुष्यमित्र के प्रति अनुरक्त थी। सेना के सम्मुख ही पुष्यमित्र द्वारा बृहद्रथ की हत्या कर दी गई, और वह विशाल मगध साम्राज्य का अधिपति बन गया। इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग ने ‘शुंग वंश’ की नींव रखी। हर्षचरित में बृहद्रथ को ‘प्रतिज्ञादुर्बल’ कहा गया है। इसका अभिप्राय यह है कि, राज्याभिषेक के समय प्राचीन आर्य परम्परा के अनुसार राजा को जो प्रतिज्ञा करनी होती थी, बृहद्रथ उसके पालन में दुर्बल था। सेना उसके प्रति अनुरक्त नहीं थी। इसीलिए सेनानी पुष्यमित्र का षड़यंत्र सफल हो गया।
बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र का राजा बन जाना ठीक उस प्रकार की घटना है, जैसी की राजा बालक को मारकर श्रेणिय भट्टिय का और राजा रिपुञ्जय को मारकर अमात्य पालक का राजा बनना था। महापद्म नन्द भी इसी ढंग से मगध के राजसिंहासन का स्वामी बना था। मगध साम्राज्य की शक्ति उसकी सुसंगठित सेना पर ही आश्रित थी। वहाँ जिस किसी के हाथ में सेना हो, वह राजगद्दी को अपने अधिकार में कर सकता था। जिस षड़यंत्र या क्रान्ति द्वारा मौर्य वंश का अन्त हुआ, वह 185 ई. पू. में हुई थी।
बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र बने सम्राट
बृहद्रथ को सेनापति पुष्यमित्र का यह बर्ताव अच्छा नहीं लगा. एक सैनिक परेड के दौरान ही राजा और सेनापति के बीच बहस छिड़ गई. बहस इतनी बढ़ गई कि राजा ने पुष्यमित्र पर हमला कर दिया, जिसके पलटवार में सेनापति ने बृहद्रथ की हत्या कर दी.
वहीं माना ये भी जाता है कि एक रात पुष्यमित्र ने राजा बृहद्रथ को अकेले दरबार में बुलाकर धोखे से मारा था.बहरहाल, बृहद्रथ की हत्या हो चुकी थी. हत्या के बाद सेना ने पुष्यमित्र का साथ दिया और उसे ही अपना राजा घोषित कर दिया.राजा का पद संभालते ही पुष्यमित्र ने सबसे पहले राज्य प्रबंध में सुधार किया. पुष्यमित्र शुंग अपंग हो चुके साम्राज्य को दोबारा से खड़ा करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक सुगठित सेना का निर्माण शुरू कर दिया.पुष्यमित्र ने धीरे-धीरे उन सभी राज्यों को दोबारा से अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया, जो मौर्य वंश की कमजोरी के चलते इस साम्राज्य से अलग हो गए थे.ऐसे सभी राज्यों को फिर से मगध के अधीन किया गया और मगध साम्राज्य का विस्तार किया.
इसके बाद पुष्यमित्र ने भारत में पैर पसार रहे ग्रीक शासकों को भारत से खदेड़ा. राजा ने ग्रीक सेना को सिंधु पार तक धकेल दिया. जिसके बाद वह दोबारा कभी भारत पर आक्रमण करने नहीं आए.इस तरह राजा पुष्यमित्र ने भारत से ग्रीक सेना का पूरी तरह से सफाया कर दिया थाहाभाष्य में पतंजलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे। महाभारत के हरिवंश पर्व के अनुसार वो कश्यप गोत्र के ब्राह्मण थे।
पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्रमादित्य व आगे चलकर गुप्त साम्राज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया। पुष्य मित्र सुंग ने समूचा बौद्ध धर्म का विनाश कर दियाउसके बाद जितने बौद्ध धर्म के अनुवाई थे सबको मौत के घाट उतार दिया जितने बचे बौद्धिस्ट थे सबका धर्म परिवर्तन करवाया
पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध
साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फ़ैला हुआ था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। और उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केन्द्रीय नियन्त्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्ति सक्रिय होने लगी थीं।