गोदावरी नदी
- गोदावरी नदी प्रायद्वीपीय भाग का सबसे बड़ा नदी तंत्र है।
- गोदावरी नदी को दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है।
- यह महाराष्ट्र में नासिक ज़िले के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- गोदावरी अपवाह तंत्र महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा पुद्दुचेरी के मध्य क्षेत्र के छोटे हिस्सों में फैला हुआ है।
- यह 1465 किलोमीटर लंबी नदी है।
- प्रवरा, पूर्णा, मंजरा, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, प्राणहिता (वेनगंगा, पेनगंगा, वर्धा का संयुक्त प्रवाह), इंद्रावती, मनेर और सबरी गोदावरी की सहायक नदियाँ है।
- गोदावरी नदी की सहायक नदियाँ महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से गुज़रती हैं।
- गोदावरी नदी के जलग्रहण क्षेत्र का 49% भाग महाराष्ट्र में 20% भाग मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में और शेष भाग आंध्र प्रदेश में पड़ता है।
- गोदावरी नदी के जल का बंँटवारा आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और कर्नाटक के बीच विवाद का प्रमुख कारण है।
- नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ मेला लगता है।
- गोदावरी बेसिन में स्थित कलसुबाई , महाराष्ट्र की सबसे ऊँची चोटी है।
- कृष्णा-गोदावरी बेसिन संकटग्रस्त ओलिव रिडले समुद्री कछुओं के प्रमुख निवास स्थलों में से एक है।
- गोदावरी मछली की एक संकटग्रस्त प्रजाति फ्रिंज्ड-लिप्पड कार्प अर्थात् लाबियो फिम्ब्रिएटस का निवास स्थल भी है।
- गोदावरी डेल्टा में अवस्थित कोरिंगा मैंग्रोव वन क्षेत्र के एक हिस्से कोकोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया है।
गोदावरी बेसिन में अवस्थित प्रमुख अभयारण्य/राष्ट्रीय पार्क/टाइगर रिज़र्व
- इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
- कवाल वन्यजीव अभयारण्य
- कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
- किन्नेरसानी वन्यजीव अभयारण्य
- बोर वन्यजीव अभयारण्य
- कोल्लेरू वन्यजीव अभयारण्य
- मंजीरा वन्यजीव अभयारण्य
- पापिकोंडा वन्यजीव अभयारण्य
- पेंच राष्ट्रीय उद्यान
- तडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व
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अति महत्वपूर्ण भौगोलिक शब्दावली
उपसौर और अपसौर
- जिस कक्षा में पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, वह दीर्घवृत्तीय है।
- पृथ्वी की परिक्रमा की दिशा पश्चिम से पूर्व है, अतः 3 जनवरी को सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी न्यूनतम (9.15 करोड़ मील) हो जाती है, जिसे उपसौर कहते हैं
- इसके विपरीत 4 जुलाई को पृथ्वी की सूर्य से अधिकतम दूरी (9.15 करोड़ मील) होती है, जिसे अपसौर कहते हैं।
एपसाइड रेखा
- अपसौरिक एवं उपसौरिक को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा जो सूर्य के केंद्र से होकर गुजरती है, उसे एपसाइड रेखा कहते हैं।
प्रकाश चक्र
- उस काल्पनिक रेखा को जो पृथ्वी को प्रकाशित और अप्रकाशित भागों में बाँटती है, प्रकाश चक्र कहलाती है।
विषुव
- जब सूर्य विषुवत् रेखा पर लम्बवत चमकता है तो दोनों गोलार्धों पर दिन और रात बराबर होता है, जिसे विषुव कहा जाता है।
- 21 मार्च (वसंत ऋतु) और 23 सितम्बर (शरद ऋतु) को दिन और रात बराबर अवधि के होते हैं।
नक्षत्र दिवस
- पृथ्वी के 360 डिग्री घूर्णन में लगा समय, जब एक विशेष तारे के समय में पृथ्वी पुनः अपनी स्थिति में वापस आ जाती है, नक्षत्र दिवस कहलाती है.
सौर दिवस
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- जब सूर्य को गतिशील मानकर पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की जाती हैं, तब सौर दिवस ज्ञात होता है। इसकी अवधि पूर्णतः 24 घंटे होती है।
लीप वर्ष
- प्रत्येक सौर वर्ष कैलंडर वर्ष से लगभग 6 घंटे बढ़ जाता है, इसे हर चौथे वर्ष में लीप वर्ष बनाकर समायोजित किया जाता है।
- लीप वर्ष 366 दिन का होता है, जिसमें फरवरी माह में 28 के स्थान पर 29 दिन होते हैं।
अक्षांश
- विषुवत् रेखा के उत्तर या दक्षिण किसी भी स्थान की विषुवत रेखा से कोणीय दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं तथा सामान अक्षांशों को मिलने वाली काल्पनिक रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं। अक्षांश रेखाएँ विषुवत रेखा के (0° अक्षांश रेखा) के समानांतर होती हैं. 0-90° उत्तर और दक्षिण तक होती है।
- 1° के अन्तराल पर खींचे जाने पर किन्हीं दो क्रमागत अक्षांश रेखाओं के बीच की लम्बाई 111 किलोमीटर होती है ।
- पृथ्वी के गोलाभ आकृति के कारण यह दूरी विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओरअधिक होती जाती है। पृथ्वी के सतह पर किसी भी बिंदु की स्थिति अक्षांश रेखाओं द्वारा निर्धारित की जाती है. उत्तरी अक्षांश को कर्क रेखा और दक्षिण अक्षांश को मकर रेखा कहते हैं।
- उत्तरी अक्षांश को कर्क वृत्त और दक्षिणी अक्षांश को मकर वृत्त कहते हैं।.
कर्क संक्रांति
- सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन की सीमा को संक्रांति कहा जाता है। 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत होता है, इसे कर्क संक्रांति कहते हैं। इसी दिन उत्तर गोलार्ध पर सबसे बड़ा दिन होता है।
देशांतर
- ग्लोब पर किसी भी स्थान की प्रधान यामोत्तर (0°देशांतर या ग्रीनवीच के पूर्व या पश्चिम) से कोणीय दूरी को उस स्थान को देशांतर कहा जाता है।
- सामान देशांतर को मिलने वाली काल्पनिक रेखा जो कि ध्रुवों से होकर गुजरती हैं, देशांतर रेखा कहलाती है।
- यह पूर्व से पश्चिम दिशा में 180° तक होती है. इस प्रकार देशांतर रेखाओं की कुल संख्या 360 है।
- विषुवतीय रेखा पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी 111.32 कि.मी. होती है, जो ध्रुवोंकी ओर घटकर शून्य हो जाती है। समय का निर्धारण देशांतर रेखाओं से ही होता है।
ग्रीनविच मीन टाइम (GMT)
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- इंगलैंड के निकट शून्य देशांतर पर स्थित ग्रीनविच नामक स्थान से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा प्राइम मेरिडीयन या शून्य देशांतर के समय को सभी देश मानक समय मानते हैं।
- यह ग्रेट ब्रिटेन का मानक समय है, इसी को ग्रीनविच मीन टाइम कहते हैं।
प्रमाणिक समय और स्थानीय समय
- पृथ्वी पर किसी स्थान विशेष का सूर्य की स्थिति से निकाला गया समय स्थानीय समय कहलाता है।
- दूसरी ओर किसी देश के मध्य से गुजरने वाली देशांतर रेखा के अनुसार लिया गया समय उस देश का प्रमाणिक समय कहलाता है।
संघनन
- जल के गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया संघनन कही जाती है । यदि हवा का तापमान ओसांक बिंदु से नीचे पहुँच जाए तो संघनन की प्रक्रिया में वायु के आयतन, तापमान, वायुदाब और आद्रता का प्रभाव पड़ता है।
- यदि संघनन हिमांक से नीचे होता है तो तुषार, हिम और पक्षाभ मेघ का निर्माण होता है।
- यदि संघनन हिमांक के ऊपर होता है तो ओस, कुहरा, कुहासा और बादलों का निर्माण होता है।
- संघनन की क्रिया अधिक ऊँचाई पर होने पर बादलों का निर्माण होता है।
ओस
- हवा का जलवाष्प जब संघनित होकर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में धरातल पर पड़ी वस्तुओं (घास, पत्तियों आदि) पर जमा हो जाता है, तो उसे ओस कहते हैं।
तुषार या पाला
- जब संघनन की क्रिया हिमांक से नीचे होती है, तो जलवाष्प जलकणों के बदले हिम कणों में परिवर्तित हो जाता है, इसे ही तुषार या पाला कहते हैं।
कुहरा
- कुहरा एक प्रकार का बादल है, जब जलवाष्प का संघनन धरातल के बिल्कुल करीब होता है तो कुहरे का निर्माण होता है. कुहरे में कुहासे की तुलना में जल के कण अधिक छोटी और संघन होती है।.
कुहासा
- कुहासा भी एक प्रकार का कुहरा होता है, जिसमें कुहरे की अपेक्षा दृश्यता दूर तक रहती है. इसमें दृश्यता 1 कि.मी. से अधिक पर 2 कि.मी. से कम होती है।
धुंध
- बड़े शहरों में फैक्टरियों के निकट जब कुहरे में धुएँ के कण मिल जाते हैं तो उसे धुंध कहते हैं. धुंध कुहरे की तुलना में और सघन होता है. इसमें दृश्यता और भी कम होती है।
निरपेक्ष आद्रता
- हवा में प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आद्रता कहते हैं. इसमें ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है।
विशिष्ट आद्रता
- हवा के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आद्रता कहते हैं. इसे ग्राम प्रति किलोग्राम में व्यक्ति किया जाता है।
सापेक्षिक आर्द्रता
- किसी निश्चित तापमान पर वायु में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा और उस वायु के जलवाष्प धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्षिक आद्रता कहते हैं. इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
आर्द्रता क्षमता
- किसी निश्चित तापमान पर हवा के एक निश्चित आयतन में अधिकतम नमी या आर्द्रता धारण करने की क्षमता को उसकी आर्द्रता क्षमता कहते हैं।
संतृप्त वायु
- जब हवा किसी भी तापमान पर अपनी आर्द्रता सामर्थ्य के बारबार आर्द्रता ग्रहण कर लेती है तो उसे संतृप्त वायु कहते हैं।
गुप्त उष्मा
- जल को वाष्प या गैस में परिवर्तित करने के लिए उष्मा के रूप में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- एक ग्राम बर्फ को जल में परिवर्तित करने के लिए 79 कैलोरी तथा एक ग्राम जल को वाष्पीकरण द्वारा वाष्प में परिवर्तित करने के लिए 607 कैलोरी की आवश्यकता होती है।
- वाष्प में उष्मा की यह छिपी हुई मात्रा गुप्त उष्मा कहलाती है।
तड़ित झंझा
- तड़ित झंझा तीव्र स्थानीय तूफ़ान या झंझावत है जो विशाल और सघन कपासी मेघों से उत्पन्न होता है।इसमें नीचे से ऊपर की ओर पवनें चलती हैं।
- मेघों का गरजना और बरसना इसकी प्रमुख विशेषता है।ये संवहन का एक विशिष्ट रूप होते हैं।
अधिकेंद्र/एपिसेंटर
- पृथ्वी की सतह पर वह स्थल-बिंदु जो भूकम्प के उद्गम केंद्र से सब से कम दूरी पर स्थित होता है और इसी स्थल-बिंदु पर भूकंपी तरंगों की ऊर्जा का विमोचन होता है। अधिकेंद्र/एपिसेंटर कहलता है।
अवरोही पवन
- पर्वतीय ढाल से नीचे की ओर बहने वाली पवन अवरोही पवन कहलाती है ।
आवास
- परिस्थितिकी के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द जिससे किसी पौधे या प्राणि के रहने के स्थान/क्षेत्र का बोध होता है, आवास कहलता है।
एल निनो
- एल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस समुद्री घटना का नाम है जो दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित इक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है।
- यह समुद्र में होने वाली उथलपुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है।
- पिछले कुछ समय से संसार के विभिन्न भागों के पूर्वानुमान के लिए इस परिघटना का प्रयोग किया जा रहा है। यह सामान्यतः क्रिसमस के आसपास घटित होता है। तथा कुछ सप्ताहों से कुछ महीनों तक बना रहता है।
ओज़ोन
- ओज़ोन (O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में बेहद कम मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी की सतह से 30-32 किमी. की ऊँचाई पर इसकी सांद्रता अधिक होती है। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस है।संताप मंडल में पाई जाती है जहाँ पर यह सूर्य की परा-बैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। समताप मंडलीय ओजोन नैसर्गिक रूप से पैदा होती है तथा पृथ्वी पर सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के दुष्प्रभाव से जीवन की रक्षा करती है।
ओजोन छिद्र
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- ओजोन परत में छेद की बात होती है तो उसका मतलब अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद से होता है।यहां ओजोन की मात्रा प्रदूषण के कारण बहुत ही कम हो गई है जिससे अल्ट्रावॉयलेट किरणों को धरती की सतह पर आने का मौका मिल जाता है. इसकी जानकारी 1970 में मिली थी उस के बाद यह वायुमंडल में जटिल रासायनिक प्रतिक्रिया जिसमें (CFC) क्लोरोफ्लोरोकार्बन भी सम्मिलित हैं, के फलस्वरूप बार-बार प्रकट होता है।
उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
- उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र(ITCZ) पृथ्वी पर, भूमध्यरेखा के पास वह वृत्ताकार क्षेत्र हैं, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों की व्यापारिक हवाएँ, यानि पूर्वोत्तर व्यापारिक हवाएँ तथा दक्षिण-पूर्व व्यापारिक हवाएँ एक जगह मिलती हैं।
केल्सीभवन
- जिससे धरातल की मृदा परतों में चूना एकत्रित हो जाना केल्सीभवन कहलता है। यह एक शुष्क पर्यावरणीय मृदा निर्माणकारी प्रक्रिया हैं।
क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी एफ सी)
- एक कार्बनिक यौगिक है जो केवल कार्बन, क्लोरीन, हाइड्रोजन और फ्लोरीन परमाणुओं से बनता है। सीएफसी का इस्तेमाल रेफ्रिजरेंट, प्रणोदक (एयरोसोल अनुप्रयोगों में) और विलायक के तौर पर व्यापक रूप से होता है।
- ओजोन निःशेषण में इसका योगदान देखते हुए, सीएफसी जैसे यौगिकों का निर्माण मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया गया है। सिएफसी को प्रिऑन गैस भी कहते हैैं । सीएफसी के द्वारा ओजोन गैस को नुकसान होता हैंं, इसलिए वर्तमान में इसकी जगह एचएफसी (हाड्रोक्लोरोफ्लोरो) का उपयोग करते हैं यह बहुत ही प्रबल ग्रीन हाउस गैस है ।
कॉरिऑलिस बल
- पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न एक आभासी बल जो उत्तरी गोलार्द्ध में गतिमान चीजों को अपनी दाहिने ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे अपने बाईं ओर विक्षेपित कर देता है। इसे कॉरिऑलिस बल कहते हैं।
- विषुवत् वृत्त पर यह बल शून्य होता है। इस बल से मध्यअंक्षाशीय चक्रवातों, हरीकेन तथा प्रतिचक्रवातों जैसे मौसमी परिघटनाओं के प्रवाह की दिशा निर्धारित होती हैै।
- इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है,इन्होने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन 1835 में किया था
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