UPSC NOTES:जनसांख्यिकीय संक्रमण को परिभाषित करते हुए जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधारणा को समझाइये। संभावित आर्थिक विकास तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संदर्भ में भारत के जनसांख्यिकीय संक्रमण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

महासागरीय

UPSC NOTES:जनसांख्यिकीय संक्रमण और जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधारणा

जनसांख्यिकीय संक्रमण (Demographic Transition) वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक समाज की जनसंख्या संरचना समय के साथ बदलती है, विशेष रूप से जन्म दर और मृत्यु दर में परिवर्तन के परिणामस्वरूप। यह संक्रमण सामान्यतः चार चरणों में घटित होता है:

  1. प्रारंभिक चरण: इस चरण में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों उच्च होती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर रहती है।
  2. द्वितीय चरण: इस चरण में मृत्यु दर में तेजी से कमी आती है, लेकिन जन्म दर में अभी भी उच्चता बनी रहती है, जिससे जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है।
  3. तृतीय चरण: यहाँ जन्म दर में भी गिरावट आती है, और मृत्यु दर कम होने के कारण जनसंख्या वृद्धि दर धीमी हो जाती है।
  4. चतुर्थ चरण: इस चरण में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों कम हो जाती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर हो जाती है।

जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) वह स्थिति है जब एक देश की कार्यशील जनसंख्या (15-64 वर्ष के आयु वर्ग) बढ़ जाती है और निर्भर जनसंख्या (बच्चे और वृद्ध) में कमी आती है। इस स्थिति में, बढ़ती कार्यशील जनसंख्या के कारण उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि अधिक लोग रोजगार में शामिल होते हैं और अर्थव्यवस्था को सक्रिय रूप से योगदान करते हैं। यदि इस अवसर का सही तरीके से उपयोग किया जाता है, तो यह आर्थिक विकास को तेजी से गति दे सकता है।

भारत के जनसांख्यिकीय संक्रमण का महत्त्व

भारत, जो विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देशों में से एक है, वर्तमान में जनसांख्यिकीय संक्रमण के तीसरे चरण में प्रवेश कर चुका है। यहां जन्म दर में कमी आई है, जबकि मृत्यु दर भी घटी है। इस स्थिति में, यदि भारत अपनी बढ़ती कार्यशील जनसंख्या का सही तरीके से लाभ उठाता है, तो यह जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त कर सकता है।

संभावित आर्थिक विकास:

  • कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि: भारत में 15-64 वर्ष के आयु वर्ग की संख्या बढ़ रही है, जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाती है। इसका मतलब है कि अधिक लोग श्रम शक्ति में सम्मिलित हो रहे हैं, जिससे उत्पादन और सेवा क्षेत्र में वृद्धि हो सकती है।
  • शिक्षा और कौशल विकास: बढ़ती कार्यशील जनसंख्या को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और कौशल प्रदान करने से भारत में मानव संसाधन की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे उत्पादन में वृद्धि होगी और आर्थिक विकास को गति मिलेगी।
  • निवेश आकर्षण: युवा और सशक्त कार्यबल के कारण भारत विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक बाजार बन सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत कर सकता है।
  • आंतरिक मांग में वृद्धि: एक युवा और कार्यशील जनसंख्या के परिणामस्वरूप, उपभोग के स्तर में वृद्धि हो सकती है, जो उत्पादन और सेवा क्षेत्रों को और बढ़ावा देता है।

वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता:

  • नौकरियों की उपलब्धता: भारत में बढ़ती कार्यशील जनसंख्या की वजह से उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में वृद्धि हो सकती है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाएगी।
  • कम उत्पादन लागत: भारत में काम करने की लागत अन्य विकसित देशों की तुलना में कम है, जो इसे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में लाभकारी बनाता है। सस्ते श्रम का उपयोग भारत को अधिक प्रतिस्पर्द्धात्मक बना सकता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: बढ़ती कार्यबल की मदद से, भारत प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में भी प्रगति कर सकता है, जो वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है।

चुनौतियाँ और संभावित खतरें:
हालांकि जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए भारतीय समाज में अवसर मौजूद हैं, लेकिन इसका वास्तविक लाभ तभी संभव है जब सही नीति बनाई जाए। निम्नलिखित चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं:

  • शिक्षा और कौशल में निवेश की कमी: यदि भारत अपनी कार्यशील जनसंख्या को पर्याप्त शिक्षा और कौशल प्रदान नहीं करता है, तो जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता।
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: यदि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त होता है, तो कार्यशील जनसंख्या की उत्पादकता में गिरावट आ सकती है।
  • सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ: यदि जनसंख्या का एक हिस्सा अवसरों से वंचित रहता है, तो आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में असमानता बढ़ सकती है, जो सामाजिक असंतुलन का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष:
भारत के लिए जनसांख्यिकीय संक्रमण एक बड़ा अवसर है। यदि इस बढ़ती कार्यशील जनसंख्या का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह भारत को आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में एक अग्रणी स्थिति में ला सकता है। इसके लिए शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल, और सामाजिक सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता है। जनसांख्यिकीय लाभांश से लाभ उठाने के लिए भारत को रणनीतिक रूप से तैयारी करनी होगी ताकि वह अपनी आर्थिक क्षमता का पूरा उपयोग कर सके।

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