UPSC NOTES:बौद्ध धर्म में महायान के उदय की परिस्थितियां
UPSC NOTES:बौद्ध धर्म में महायान शाखा का उदय बौद्ध इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण है। यह लगभग प्रथम शताब्दी ईसवी के आसपास मुख्य रूप से भारत में विकसित हुआ। महायान का शाब्दिक अर्थ है “महान मार्ग”। इसके उदय की परिस्थितियों को सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है।
- सामाजिक परिस्थितियां:
गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित मूल थेरवाद परंपरा (हीनयान) में कठोर अनुशासन और व्यक्तिगत मुक्ति पर बल दिया गया था। लेकिन समय के साथ समाज में यह धारणा बनने लगी कि यह साधारण जन के लिए कठिन है। महायान का उदय एक ऐसी धारा के रूप में हुआ, जिसने न केवल भिक्षुओं के लिए, बल्कि सामान्य लोगों के लिए भी बौद्ध धर्म के आदर्शों को अपनाने की राह खोली। - धार्मिक परिस्थितियां:
थेरवाद परंपरा में आरहद (जो निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं) को सर्वोच्च माना गया था। लेकिन महायान ने बोधिसत्व को आदर्श बनाया, जो अपनी मुक्ति को रोककर दूसरों की सहायता के लिए कार्य करते हैं। यह करुणा और सेवा की भावना को बढ़ावा देता है। - दार्शनिक दृष्टिकोण:
महायान बौद्ध धर्म ने “शून्यवाद” और “योगाचार” जैसी दार्शनिक अवधारणाओं को प्रस्तुत किया। नागार्जुन जैसे विद्वानों ने शून्यवाद को विकसित किया, जिसमें यह बताया गया कि सभी वस्तुएं स्वभावतः शून्य हैं। - सांस्कृतिक प्रभाव:
महायान का उदय उस समय हुआ जब बौद्ध धर्म पर हिंदू धर्म और अन्य परंपराओं का प्रभाव पड़ रहा था। इसने बौद्ध धर्म को अधिक लचीला और समावेशी बनाया, जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं और प्रतीकों को समाहित किया गया। - सामाजिक परिवर्तन और संरक्षण की आवश्यकता:
इस काल में बौद्ध संघों और मठों के लिए संरक्षण की आवश्यकता थी। महायान ने शाही संरक्षण को प्राप्त करने के लिए अधिक लोकप्रिय और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया।
UPSC NOTES:महायान का उदय बौद्ध धर्म को एक नई दिशा और व्यापक स्वीकृति प्रदान करने का माध्यम बना। यह न केवल भारत में, बल्कि चीन, जापान, कोरिया और तिब्बत जैसे देशों में भी व्यापक रूप से फैल गया।