अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
- सामान्यतः संपूर्ण अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को लेखांकित करने के लिए तीन क्षेत्रकों में विभाजित किया गया है-
प्राथमिक क्षेत्रक
- इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक क्षेत्रों का लेखांकन किया जाता है इसके अंतर्गत निम्न क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है जैसे –
- कृषि
- वानिकी
- मत्स्यन (मछली पकड़ना)
- खनन (ऊर्ध्वाधर खुदाई) एवं उत्खनन (क्षैतिक खुदाई)
द्वितीयक क्षेत्रक
- इस क्षेत्रक के अंतर्गत मुख्यतः अर्थव्यवस्था की विनिर्मित वस्तुओं के उत्पादन का लेखांकन किया जाता है –
- निर्माण, जहां किसी स्थाई परिसंपत्ति का निर्माण किया जाए: जैसे -भवन- |
- विनिर्माण जहां किसी वस्तु का उत्पादन हो: जैसे -कपड़ा ब्रेड आदि- |
- विद्युत गैस एवं जल आपूर्ति इत्यादि से संबंधित कार्य |
तृत्तीय या सेवा क्षेत्रक
- यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था के प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र को अपनी उपयोगी सेवा प्रदान करता है इसके अंतर्गत
- परिवहन एवं संचार
- बैंकिंग
- बीमा
- भंडारण
- व्यापार
- सामुदायिक सेवा आदि
- इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था को कई अन्य आधारों पर विभाजित किया जाता है इसे निम्न प्रकार से रेखांकित किया जा सकता है –
वस्तु क्षेत्रक
- प्राथमिक क्षेत्रक और द्वितीयक क्षेत्रक को सम्मिलित रूप में वस्तु क्षेत्र कहा जाता है, इसके अंतर्गत भौतिक वस्तुओं के उत्पादन को शामिल किया जाता है |
गैर वस्तु क्षेत्रक
- किसी अर्थव्यवस्था के सेवा क्षेत्रक को गैर वस्तु क्षेत्रक भी कहा जाता है |
संगठित क्षेत्रक
- इसके अंतर्गत वे सभी इकाइयां आ जाती है, जो अपने आर्थिक कार्यकलापों का नियमित लेखांकन करती है, भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 9 प्रतिशत इस क्षेत्र से है |
असंगठित क्षेत्रक
- इसके अंतर्गत सभी इकाइयां आ जाती है जो अपने आर्थिक कार्यकलापों का कोई लेखा जोखा नहीं रखती है; जैसे – रेहड़ी, खोमचे, सब्जी की खुदरा दुकानें, दैनिक मजदूर आदि | भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान लगभग 91 प्रतिशत है |
पंचवर्षीय योजनाएं एवं भारतीय कृषि
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951 से 56)
- इसमें देश में खाद्य संकट को दूर करने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई कुल राजस्व आवंटन का 31% कृषि क्षेत्र को प्रदान किया गया |
- परिणामत: तथा औसत वार्षिक उत्पादन 67 लाख टन रहा जबकि लक्ष्य 62 लाख टन का था |
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61)
- इसमें कुल व्यय का 20% भाग कृषि को आवंटित किया गया परिणामत: उत्पादकता में कमी आई |
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66)
- इसमें पुन: कृषि को विशेष प्राथमिकता दी गई, इस योजना में गहन कृषि कार्यक्रम के तहत कृषि जिला कार्यक्रम एवं अधिक उपज वाली किस्म पर विशेष ध्यान दिया गया किंतु भयंकर सूखे के कारण यह योजना पूर्ण रुप से सफल नहीं रही|
- सूखे तथा युद्ध की स्थिति को देखते हुए 1966 से 1969 तक नवीन योजना आरंभ न हो सकी अतः इसी समय हरित क्रांति का शुभारंभ किया गया |
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74)
- कृषि क्षेत्र में अनुसंधान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विशेष बल देते हुए प्रारंभ की गई इसमें कुल योजना व्यय का 22 प्रतिशत कृषि क्षेत्र को आवंटित किया गया |
पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-79)
- इसमें कुल परिव्यय का 15% कृषि क्षेत्र को आवंटित किया गया कुल मिलाकर पहली पंचवर्षीय योजना से पांचवी पंचवर्षीय योजना तक (तीसरी योजना को छोड़कर) वास्तविक उत्पादन का लक्ष्य से अधिक ही रहा|
- इस योजना में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 1520 लाख टन रखा गया था जबकि उत्पादन लक्ष्य से अधिक (1840 लाख टन) हुआ फलत: इस स्थिति को कुछ विद्वानों ने द्वितीय हरित क्रांति की संज्ञा दी |
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)
- इस योजना से हरित क्रांति का दूसरा चरण शुरू हुआ इसमें कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश एवं प्रबंधन पर बल दिया गया |
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)
- इसमें कपास को छोड़कर सभी फसलों का उत्पादन लक्ष्य से अधिक रहा |
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)
- कृषि क्षेत्र में विकास दर 4.7 प्रतिशत रही |
नौंवी पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
- यह कृषि के संबंध में असफल मानी जाती है, इस दौरान कृषि क्षेत्र में विकास दर मात्र 2.5 प्रतिशत रही |
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07)
- इसमें राष्ट्रीय कृषि नीति-2000 को अपनाया गया इस नीति में मृदा स्वास्थ्य एवं जल जैसे संसाधनों के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया गया इस योजना में कृषि क्षेत्र की वार्षिक विकास दर 2.4 प्रतिशत रही
11वी पंचवर्षीय योजना
कृषि उत्पादकता में वृद्धि रोजगार सृजन भूमि पर जनसंख्या दबाव कम करने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में असमानता को कम करने जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किए गए इस योजना में कृषि में 4% वृद्धि का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किया गया
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17)
इसके दृष्टिकोण पत्र में कृषि क्षेत्र के लिए 4% विकास दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इसमें अनुसंधान पर विशेष बल देते हुए प्रद्योगिकी को कृषि विकास का इंजन बताया गया है इसमें कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पर बल दिया गया है बागवानी कृषि एवं बाजरा तक किसानों की पहुंच पर विशेष ध्यान देने की बात भी दृष्टिकोण पत्र में कही गई है |