भारत 1960 के दशक में भारत का खाद्य आयातक से निर्यातक बनना: एक विस्तृत विश्लेषण
1960 के दशक में भारत ने खाद्यान्न संकट का सामना किया था। भारत देश को भारी मात्रा में खाद्यान्न आयात करना पड़ता था। लेकिन कुछ दशकों में ही भारत ने इस स्थिति में सुधार किया और एक प्रमुख खाद्य निर्यातक बन गया। यह बदलाव कई कारकों के कारण संभव हुआ:
1. हरित क्रांति:
- उच्च उपज वाली किस्में: हरित क्रांति के तहत उच्च उपज वाली फसलों के बीजों को विकसित किया गया, जिससे उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई।
- सिंचाई: सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया, जिससे किसानों को सूखे के खतरे से मुक्ति मिली और वे साल भर फसल लेने में सक्षम हुए।
- खाद और कीटनाशकों का उपयोग: खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसलों की उत्पादकता बढ़ी और फसल नुकसान कम हुआ।
2. सरकारी नीतियां:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य: सरकार ने किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की नीति अपनाई, जिससे किसानों को फसल उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिला।
- सिंचाई परियोजनाएं: सरकार ने बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाएं शुरू कीं, जिससे कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिला।
- कृषि अनुसंधान: कृषि अनुसंधान पर जोर दिया गया और नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाया गया।
3. किसानों का योगदान:
- नई तकनीकों को अपनाना: किसानों ने नई तकनीकों को अपनाया और अपनी खेती के तरीकों में सुधार किया।
- सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना: किसानों ने सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाया।
4. अन्य कारक:
- जलवायु परिवर्तन: अनुकूल जलवायु ने भी फसल उत्पादन में वृद्धि में योगदान दिया।
- कृषि विविधीकरण: किसानों ने एकल फसल की खेती के बजाय विभिन्न प्रकार की फसलें उगाना शुरू किया।
निष्कर्ष:
1960 के दशक में भारत ने खाद्यान्न संकट का सामना किया था, लेकिन हरित क्रांति, सरकारी नीतियों, किसानों के प्रयासों और अन्य कारकों के कारण भारत एक प्रमुख खाद्य निर्यातक बन गया। यह बदलाव भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी और इसने देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत किया।