भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण UPSC NOTE

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की वर्तमान स्थिति  अंतर्राष्ट्रीयकरण में सीमित प्रगति  रुपया अभी अंतर्राष्ट्रीयकरण से बहुत दूर है, जहाँ वैश्विक विदेशी...

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की वर्तमान स्थिति 

  • अंतर्राष्ट्रीयकरण में सीमित प्रगति 
    • रुपया अभी अंतर्राष्ट्रीयकरण से बहुत दूर है, जहाँ वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की दैनिक औसत हिस्सेदारी मात्र 1.6% है, जबकि वैश्विक माल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2% है।
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम:
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण (जैसे बाह्य वाणिज्यिक उधारी को रुपए में सक्षम करना) को बढ़ावा देने के लिये भारत ने कुछ कदम उठाए हैं, जहाँ भारतीय बैंकों को रूस, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका और मॉरीशस के बैंकों के लिये रुपया वोस्त्रो खाते खोलने के लिये प्रोत्साहित किया गया है और लगभग 18 देशों के साथ रुपए में व्यापार करने के लिये एक तंत्र स्थापित किया गया है। हालाँकि ऐसे लेन-देन की मात्रा सीमित ही रही हैं और भारत अभी भी रूस से अमेरिकी डॉलर में तेल खरीद रहा है।
  • मुद्रा विनिमय से जुड़ी बाधाएँ:
    • चालू खाते और पूंजी खाते में उल्लेखनीय घाटे के परिदृश्य में भारत पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता अर्थात् स्थानीय वित्तीय निवेश परिसंपत्तियों की विदेशी परिसंपत्तियों में और विदेशी परिसंपत्तियों की स्थानीय वित्तीय निवेश परिसंपत्तियों मुक्त आवाजाही—की अनुमति नहीं देता है, जहाँ पूंजी पलायन  अर्थात् मौद्रिक नीतियों/वृद्धि के अभाव के कारण भारत से पूंजी का बहिर्वाह—और विनिमय दर की अस्थिरता   के अतीत के अनुभवों से प्रेरित होकर अपनी मुद्रा के विनिमय पर उल्लेखनीय बाधाएँ लगा रखी हैं।
  • पड़ोसी देशों की चिंताएँ 
  • पड़ोसियों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को ध्यान में रखे बिना रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण शुरू नहीं किया जा सकता। वर्ष 2016 में भारत द्वारा विमुद्रीकरण  ने भी भारतीय रुपए के प्रति, विशेष रूप से भूटान और नेपाल में, भरोसे को झटका दिया। दोनों देशों में RBI द्वारा अतिरिक्त नीतिगत बदलावों (आगे फिर नोटबंदी सहित) का भय बना हुआ है। वर्ष 2023 में 2,000 रुपए के नोट को वापस लेने के कदम से भी रुपए के प्रति भरोसे पर असर पड़ा है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्या लाभ हैं?

  • विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता कम होना:
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन के लिये अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी। इससे भारत की आर्थिक संप्रभुता बढ़ेगी और मुद्रा में उतार-चढ़ाव का जोखिम कम होगा।
  • वैश्विक व्यापार में वृद्धि:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण संलग्न पक्षकारों को प्रत्यक्ष रूप से रुपए में लेनदेन की अनुमति देकर सहज अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा प्रदान कर सकता है। इससे मुद्रा रूपांतरण की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, लेनदेन लागत कम हो जाएगी और सीमा-पार व्यापार सरल हो जाएगा।
  • संवृद्ध वित्तीय एकीकरण:
    • विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला रुपया वित्तीय एकीकरण को बढ़ा सकता है। यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करेगा और पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देगा, जिससे भारतीय वित्तीय बाज़ारों में निवेश के अधिक अवसर बनेंगे और तरलता आएगी।
  • बेहतर मौद्रिक नीति प्रभावशीलता:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है। व्यापक अंतरराष्ट्रीय पहुँच के साथ, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये विनिमय दर  को एक साधन के रूप में उपयोग कर सकता है। यह मौद्रिक स्थितियों के प्रबंधन और आर्थिक चुनौतियों पर प्रतिक्रिया देने में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा।
  • सुदृढ़ क्षेत्रीय प्रभाव:
    • विश्व स्तर पर स्वीकृत रुपया भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को सुदृढ़ कर सकता है और इसे एशिया में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है। यह क्षेत्र के भीतर व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा, आर्थिक साझेदारी और सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।
  • आरक्षित भंडार या रिज़र्व का विविधीकरण:
    • अंतर्राष्ट्रीयकरण से आरक्षित मुद्रा  के रूप में इसका आकर्षण बढ़ेगा। केंद्रीय बैंक और विदेशी सरकारें अपने पोर्टफोलियो में विविधता एवं स्थिरता प्रदान करते हुए, अपने विदेशी मुद्रा भंडार के एक हिस्से के रूप में रुपए रखने का विकल्प चुन सकती हैं।
  • वित्तीय सेवाओं का विकास:
    • रुपए की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति बढ़ने के साथ रुपए-मूल्य वाले लेनदेन से जुड़ी वित्तीय सेवाओं, जैसे व्यापार वित्तपोषण, करेंसी हेजिंग और निपटान सेवाओं में वृद्धि होगी। यह भारत में एक मज़बूत और प्रतिस्पर्द्धी वित्तीय सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दे सकता है।

संभाव्य जोखिम:

  • भारत एक पूंजी की कमी वाला देश है, और इसलिए इसके विकास को निधि देने के लिए विदेशी पूंजी की आवश्यकता है। यदि इसके व्यापार का एक बड़ा हिस्सा रुपए में है, तो अनिवासी भारत में रुपया शेष रखेंगे, जिसका उपयोग भारतीय संपत्ति हासिल करने के लिए किया जाएगा। ऐसी वित्तीय संपत्तियों की बड़ी होल्डिंग बाहरी झटकों के प्रति भेद्यता को बढ़ा सकती है, जिसके प्रबंधन के लिए अधिक प्रभावी नीति साधनों की आवश्यकता होगी। रुपये की अनिवासी धारिता घरेलू वित्तीय बाजारों में बाहरी प्रोत्साहन के पास-थ्रू को बढ़ा सकती है, जिससे अस्थिरता बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, एक वैश्विक जोखिम-बंद चरण अनिवासियों को अपनी रुपये की होल्डिंग को बदलने और भारत से बाहर जाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा

  • एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा वह है जो गैर-निवासियों के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है, अनिवार्य रूप से सीमा पार लेनदेन को निपटाने के लिए। यह मुद्रा के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी बाहरी विश्वसनीयता की अभिव्यक्ति है। वास्तव में सभी अंतरराष्ट्रीय मुद्राएं बड़ी, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित हैं। अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए उनका उपयोग मेजबान देशों को पर्याप्त आर्थिक विशेषाधिकार प्रदान करता है।

भारतीय रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौता

  • जुलाई में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इच्छुक देशों के साथ भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लेनदेन को रुपये में निपटाने के लिए एक तंत्र स्थापित किया। इसका उद्देश्य भारत से निर्यात पर जोर देने के साथ वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देना और INR में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि का समर्थन करना था। रूस एकमात्र देश है जिसने अभी के लिए नई व्यवस्था में कोई रुचि दिखाई है, और नौ रूसी बैंकों को रुपया आधारित व्यापार की सुविधा के लिए वोस्ट्रो खाते स्थापित करने की अनुमति दी गई है।

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