भारतीय मुद्रा व्यवस्था
मुद्रा के तौर पर आज हम जिस रुपये का प्रयोग करते हैं उसका चलन भारत में सदियों से है. फर्क सिर्फ इतना है कि तब भारत में मुद्रा के तौर पर चांदी और सोने के सिक्के चलन में थे. यह चलन 18वीं सदी के पूर्वार्ध तक बरकरार था. लेकिन जब यूराेपीय कंपनियां व्यापार के लिए भारत में आयीं तब उन्होंने अपनी सहूलियत के लिए यहां निजी बैंक की स्थापना की. और फिर इसके बाद से ही चांदी और सोने की मुद्रा की जगह कागजी मुद्रा का चलन शुरू हो गया. भारत की सबसे पहली कागजी मुद्रा कलकत्ता के बैंक ऑफ हिंदोस्तान ने 1770 में जारी की थी.
इन ब्रिटिश कंपनियों का व्यापार जब बंगाल से बढ़कर मुंबई, मद्रास तक पहुंच गया, तब इन जगहों पर अलग-अलग बैंकों की स्थापना शुरू हुई. वर्ष 1773 में जहां बैंक अॉफ बंगाल और िबहार की स्थापना हुई, वहीं 1886 में प्रेसिडेंसी बैंक की स्थापना हुई. अब जब देश में बैंक बढ़े, तो कागजी मुद्रा का चलन भी आम हो गया. बैंक ऑफ बंगाल द्वारा तीन सीरीज में नोट छापे गये. पहली सीरीज एक स्वर्ण मुद्रा के रूप में छापी गयी यूनिफेस्ड सीरीज थी. यही सीरीज कलकत्ता में सिक्सटीन सिक्का रुपये के तौर पर छापी गयी. दूसरी सीरीज कॉमर्स सीरीज थी, जिस पर एक तरफ नागरी, बंगाली और उर्दू में बैंक का नाम लिखने के साथ ही एक महिला की तसवीर भी छपी थी और दूसरी तरफ बैंक का नाम लिखा था. तीसरी सीरीज 19वीं सदी के अंत में छापी गयी, जिसे ब्रिटैनिका सीरीज कहा गया, उसके पैटर्न में बदलाव हाेने के साथ ही कई रंगों का प्रयोग किया गया.
अंगरेजी शासन ने बनाया कानून
अब तक ये सारे रुपये राज्यों और ब्रिटिश व्यापारियों के सहयोग से स्थापित बैंकों द्वारा जारी किये जा रहे थे. वर्ष 1861 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी विक्टोरिया पोर्ट्रेट सीरीज के तहत अपना कागजी मुद्रा जारी करना शुरू किया. हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने पेपर करेंसी एक्ट बनाने के बाद ही अपनी कागजी मुद्रा की शुरुआत की. ये कागजी मुद्रा 10, 20, 50, 100 और 1000 रुपये के थे. इन सभी नोटों पर महारानी विक्टोरिया की एक छोटी सी तसवीर भी लगी थी. इस प्रकार ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार कागजी मुद्रा जारी किया गया. कहने की बात नहीं है कि बाद में यही मुद्रा भारत सरकार की आधिकारिक मुद्रा बनी.
इस मुद्रा को जारी करने के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने देश के एक बड़े हिस्से को अलग-अलग मुद्रा क्षेत्र में बांट दिया. इस प्रकार सरकार द्वारा चलायी गयी कागजी मुद्रा इन क्षेत्रों में मान्य थी. ये क्षेत्र थे- कलकत्ता, बाॅम्बे, मद्रास, रंगून, कानपुर, लाहौर और कराची. जैसे-जैसे भारतवर्ष में ब्रिटिश साम्राज्य अपने पैर फैलाता गया, न सिर्फ रुपये के बनावट में बदलाव आया, बल्कि इस पर अलग-अलग कई भाषाओं में रुपये का नाम भी लिखा जाने लगा. वर्ष 1923 में ब्रिटिश सरकार की कागजी मुद्रा पर किंग जॉर्ज पांच का चित्र भी छपा, यह चलन आगे चल कर भी बरकरार रहा.
वर्ष 1935 में ब्रिटिश सरकार ने रुपये जारी करने का अधिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दे दिया. इसके बाद रिजर्व बैंक द्वारा 1938 में पहली बार नोट जारी किया गया. यहां यह जानना भी जरूरी है 1928 में नासिक में भारत का पहला प्रिंटिंग प्रेस लगाये जाने के पहले तक सारी कागजी मुद्राएं बैंक ऑफ इंग्लैंड से छप कर आती थीं.
आजाद भारत और कागजी मुद्रा
आधुनिक भारत के रुपये का इतिहास 1947 में आजादी के बाद से शुरू होता है. आजाद भारत का पहला नोट एक रुपये का था, जिसे1949 में जारी किया गया था. इस नोट पर सारनाथ का अशोक स्तंभ अंकित था. इसके बाद नोट में कई बदलाव हुए और उस पर गेटवे ऑफ इंडिया, बृहदेश्वर मंदिर के चित्र भी छापे गये. वर्ष 1953 में भारत सरकार द्वारा जो नोट छापा गया उस पर हिंदी भाषा में भी लिखा गया. इन नोटों के जारी होने के दशकों बाद 1996 और 2005 में जारी नोट पर महात्मा गांधी की फोटो छपनी शुरू हुई. इसके बाद रुपये की नकल को रोकने के लिए उसमें कई सारे सिक्योरिटी फीचर्स डाले गये. दृष्टिहीनों की सहूलियत के लिए भी आज के नोट में कई फीचर्स डाले गये हैं. आज की अगर बात करें, तो 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 के कागजी नोट चलन में हैं.
रुपये की यात्रा
औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने कागजी मुद्रा कानून, 1861 के साथ मुद्रा उत्पादन का काम अपने हाथ में ले लिया और आज के रुपये की यात्रा शुरू हुई. अब सिर्फ शासन ही मुद्राएं जारी कर सकता था, बैंक नहीं. यह कानून इंडिया काउंसिल के वित्त सदस्य जेम्स विल्सन के विचारों पर आधारित था जो भारत में अंगरेजों के सलाहकार थे.
वर्ष 1928 में नासिक में मुद्रालय खोले जाने से पहले सभी नोट बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा छापे जाते थे. चार सालों के भीतर सभी भारतीय नोट इसी जगह से छापे जाने लगे थे.
वर्ष 1935 में भारतीय धन के प्रबंधन की पूरी जिम्मेवारी नये बने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सुपुर्द कर दी गयी.
वर्ष 1944 में जापानियों रा नकली नोट बनाये जाने के डर से रिजर्व बैंक ने नोटों में पहली बार सुरक्षा धागे और वाटरमार्क का प्रयोग हुआ.
वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत का पहला नोट एक रुपये की मुद्रा के रूप में छापा गया. इसके ऊपर सारनाथ के सिंहों वाले अशोक स्तंभ की तसवीर थी जो बाद में भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी बना.
नहीं पढ़ पानेवाले लोगों की सहूलियत के लिए 1960 के दशक में अलग-अलग रंगों में नोट छापे जाने लगे.
वर्ष 1980 के बाद नोटों पर कला, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान से संबंधित चित्र व्यापक तौर पर छापे जाने लगे. उससे पहले कुछ राष्ट्रीय स्मारकों के चित्र छापे गये थे.
वर्ष 2011 में नोटों पर रुपये के नये चिह्न (“)का प्रयोग प्रारंभ हुआ.
पिछले दिनों जारी 2000 और 500 के नोटों पर ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का चिह्न है. पांच सौ के भूरे नोट पर लाल किला और दो हजार के गुलाबी नोट पर मंगलयान मुद्रित है.
ये नोट भी थे चलन में
भारत में करेंसी नोट्स के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. मौजूदा समय में भले ही आपको आधुनिक किस्म के और अनेक खासियतों से सुसज्जित व डिजाइनर नोट्स दिख रहे हैं, लेकिन आज से महज एक सदी पहले हालात कुछ दूसरे तरह के थे. भारत में अनेक प्रकार के धातुओं के सिक्कों का चलन काफी पहले से रहा है, लेकिन कागज के नोटों का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो हाल के वर्षों तक वस्तु-विनिमय प्रणाली व्यापक तौर पर प्रचलित रही है. जानते हैं भारतीय इतिहास में विविध काल में कैसे-कैसे नोट थे प्रचलन में :
पुर्तगालियों ने गोवा में चलाया अपना नोट
पश्चिम भारत में गोवा क्षेत्र को पुर्तगालियों ने वर्ष 1510 में अपने कब्जे में ले लिया था. भारत से होने वाले व्यापार में उस समय पुर्तगालियों का एकाधिकार था और और डच व अंगरेजों के भारत आने से पहले एक शताब्दी से भी ज्यादा समय तक यह कायम रहा. गोवा, दमन और दीव क्षेत्र वर्ष 1961 तक पुर्तगालियों के अधीन था. पेपर करेंसी के तौर पर जारी किये गये पहले इंडो-पुर्तगीज नोट को ‘रुपिया’ कहा गया था, जो वर्ष 1883 के करीब चलन में आया था.
इन नोटों में पुर्तगाल के राजा का पाेर्ट्रेट दर्शाया गया था. इन्हें 5, 10, 20, 50, 100 और 500 के मूल्य में जारी किया गया था. वर्ष 1906 में पुर्तगाल के कब्जेवाले भारतीय इलाकों में पेपर मनी जारी करने की जिम्मेवारी ‘बैंको नेशनल अल्ट्रामरीनो’ की थी. आरंभिक समय में इन नोटों पर जारी करनेवाले बैंक की मोहर होती थी. कुछ नोट्स में भारतीय सभ्यता और संस्कृति से संबंधित प्रतीकों को भी दर्शाया गया था.
फ्रांसीसी करेंसी
केरल का माहे, तमिलनाडु के कराइकल, पुद्दुचेरी, आंध्र प्रदेश का यनम और पश्चिम बंगाल का चंद्र नगर फ्रांस का उपनिवेश थे. इन्हें ‘इस्टेब्लिशमेंट्स फ्रांसिसेज डेंस ल’इंडे’ यानी भारत में फ्रांसीसी इस्टेब्लिशमेंट कहा जाता था. इन फ्रेंच कॉलोनियों में पेपर मनी जारी करने की जिम्मेवारी बैंक ऑफ इंडोशाइन को सौंपी गयी थी.
इसमें एक रुपये के नोट प्रथम विश्व युद्ध के बाद और पांच रुपये के नोट वर्ष 1937 के बाद जारी किये गये थे. इनमें मोजियर डुप्ले (भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य के संस्थापक) के नाम से जारी किये गये 50 रुपये के नोट को खास तरीके से डिजाइन किया गया था.
हैदराबाद ने भी जारी किया था रुपया
हैदराबाद एक मात्र ऐसा राज्य था, जिसके पास वर्ष 1916 से ही पेपर करेंसी थी और वह 1952 तक प्रचलन में थी. ये नोट वर्ष 1939 तक प्रिंट किये गये थे, जिनमें ‘हिजरी’ युग से जुड़े हुए और डेक्कन इलाके में प्रचलित ‘फासली’ वर्षों का इस्तेमाल किया गया था. ये नोट उर्दू और वहां की अन्य स्थानीय भाषाओं (कन्नड़, तेलुगु, मराठी आदि) में प्रिंट किये गये थे.
बर्मा में चला जापानी रुपया
बर्मा की कठपुतली सरकार ने भारतीय रुपयों का इस्तेमाल शुरू किया, जो जापान की इंपीरियल सरकार द्वारा जारी किये गये थे. म्यांमार (बर्मा) जब ब्रिटिश शासन के अधीन था, उस समय वहां भारतीय रुपया प्रचलन में था और जापान के आक्रमण तक इस देश में यही स्थिति थी. ये अलग-अलग मूल्य के थे और एक, पांच और 10 रुपये के रूप में जारी किये गये थे.
भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड
सेबी (SEBI- Securities and Exchange Board of India) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड कि स्थापना सेबी अधिनियम 1992 के तहत 12 अप्रेल 1998 में हुयी. यह एक तरह कि नियामक संस्था है जो भारत में भारतीय स्टॉक निवेशको के हितो को संरक्षण प्रदान करती है तथा शेयर बाज़ार के लिए नियमों का निर्माण कर उन्हें अधिनियमित करती है और सेबी का मुख्यालय मुम्बई में है जबकि इसके क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई में स्थापित किये गए है ।
यह एक गैर- संवैधानिक संस्था है जिसकी स्थापना केंद्र सरकार द्वारा संसद में एक कानून पास करके 12 अप्रैल, 1998 को की गई तथा 30 जनवरी, 1992 को एक अध्यादेश द्वारा इसे वैधानिक दर्जा दे
रिज़र्व बैंक जनता तक करेंसी को कैसे पहुँचाती है?
वर्तमान में, रिज़र्व बैंक अहमदाबाद, बेंगलूर, बेलापुर, भोपाल, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नै, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जम्मू, कानपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नागपुर,नई दिल्ली, पटना और तिरुवनंतपुरम में स्थित अपने 19 निर्गम कार्यालयों और कोच्ची कार्यालय की एक मुद्रा तिजोरी के साथ ही, मुद्रा तिजोरियों के व्यापक रूप से फैले नेटवर्क के माध्यम से मुद्रा प्रबंधन का कार्य कर रहा है । ये कार्यालय बैंकनोट मुद्रण प्रेसों से नये बैंक नोट प्राप्त करते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्गम कार्यालय वाणिज्यिक बैंकों की निर्दिष्ट शाखाओं को नये बैंकनोटों का प्रेषण भेजते हैं।
हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और नई दिल्ली( मिंट से जुड़े कार्यालय) स्थित रिज़र्व बैंक के कार्यालय सर्वप्रथम, टकसालों से सिक्के प्राप्त करते हैं। उसके बाद, ये कार्यालय रिज़र्व बैंक के अन्य कार्यालयों को सिक्के भेजते हैं, जो उन्हें मुद्रा तिजोरियों और छोटे सिक्का डिपो को भेजते हैं। बैंकनोट और रुपया सिक्के मुद्रा तिजोरियों तथा छोटे सिक्के छोटे सिक्का डिपो में रखे जाते हैं। इसके बाद, जनता में वितरण हेतु, बैंकों की शाखाएं उन बैंकनोटों और सिक्कों को मुद्रा तिजोरियों और छोटे सिक्का डिपो से प्राप्त करती हैं ।
मुद्रा तिजोरी क्या है?
बैंकनोट और रुपया सिक्कों के वितरण में सुगमता लाने के उद्देश्य से, रिज़र्व बैंक द्वारा अनुसूचित बैंकों की चुनिंदा शाखाओं को मुद्रा तिजोरियां खोलने लिए अधिकृत किया गया है। ये मुद्रा तिजोरियां वास्तव में एक प्रकार के गोदाम है जिनमें रिज़र्व बैंक की ओर से बैंकनोटों तथा रुपया सिक्कों का भंडारण किया जाता है । 31 दिसंबर 2013 की स्थिति के अनुसार, 4209 मुद्रा तिजोरियों थी। मुद्रा तिजोरी शाखाओं से अपेक्षित है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में अन्य बैंकों की शाखाओं को बैंकनोटों तथा सिक्कों का वितरण करें।
छोटे सिक्के के डिपो क्या है?
छोटे अर्थात एक रुपये से कम मूल्य के सिक्कों का भंडार रखने हेतु कुछ बैंक शाखाओं को छोटा सिक्का डिपो खोलने के लिए अधिकृत किया गया है । छोटा सिक्का डिपो भी अपने कार्यक्षेत्र में आनेवाली अन्य बैंक शाखाओं को छोटे सिक्के उपलब्ध कराते हैं। 31 दिसंबर 2013 को 3966 छोटा सिक्का डिपो थे।
बैंकनोटों और सिक्कों के संचलन से वापसी पर क्या होता है?
बैंकनोटों के संचलन से वापसी पर उन्हें रिज़र्व बैंक के निर्गम कार्यालयों में जमा किया जाता है । इसके बाद रिज़र्व बैंक, इन बैंकनोटों का प्रसंस्करण करता है, बैंकनोटों की वास्तविकता जाँची जाती है, बैंक नोटों को पुन: जारी करने योग्य और जारी न करने योग्य नोटों को निरस्त करने के लिए, अलग किया जाता है । पुन: जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं और जो पुन:जारी करने योग्य नहीं पाए जाते हैं, उन्हें परीक्षण प्रक्रिया पूरी हो जाने पर श्रेडिंग के जरिए नष्ट किया जाता है। संचलन से हटाये गये सिक्कों को छोडकर, अन्य सिक्के संचलन से वपिस नहीं आते हैं।
आम जनता बैंकनोट और सिक्के कहाँ से प्राप्त कर सकती है ?
वर्तमान में, आम जनता भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यालयों और बैंकों की सभी शाखाओं से बैंकनोट और सिक्के विनिमय में प्राप्त कर सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यह कार्य वाणिज्यिक बैंकों को सौंपा जा रहा है।
स्वतंत्रता के बाद के बैंकनोट
i अशोक स्तंभ वाले बैंकनोट –
स्वंतत्र भारत द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1949 में `.1 का नोट जारी किया गया। पुराने डिज़ाइन को बरकरार रखते हुए, वाटर मार्क विंडो के भीतर किंग जार्ज की चित्र की जगह सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के सिंहाकृति प्रतीक के साथ नये बैंकनोट जारी किये गये।
वर्ष 1951 से नये बैंकनोटों पर नोट जारीकर्ता का नाम, मूल्यवर्ग और वचन खण्ड हिन्दी में मुद्रित किये गये। वर्ष 1954 में `.1000, `.5000 और `.10,000 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये गये । वर्ष 1967 और 1992 के दौरान `.10 मूल्यवर्ग, 1972 और 1975 में `.20 मूल्यवर्ग, 1975 और 1981 में `.50 मूल्यवर्ग, 1967 से लेकर 1979 के बीच `.100 मूल्यवर्ग में अशोक स्तंभ वाटर मार्क श्रृंखला में बैंकनोट जारी किये गये। उपर्युक्त अवधि में जारी ये बैंकनोट विज्ञान और टेक्नालॉजी, प्रगति, भारतीय कला के उत्कर्ष को प्रस्तुत करनेवाले प्रतीकों से युक्त थे। वर्ष 1980 में “सत्यमेव जयते” अर्थात “ सत्य की जीत होती है”, इस अर्थ के वाक्य को राष्ट्रीय चिन्ह के अंतर्गत प्रथम बार समाविष्ट किया गया। अक्तूबर 1987 में महात्मा गांधी के चित्र और अशोक स्तंभ वाटर मार्क सहित `.500 मूल्यवर्ग का बैंकनोट जारी किया गया।
ii महात्मा गांधी (एमजी) श्रृंखला 1996
महात्मा गांधी श्रृंखला – 1996 में बैंक नोट `.5(नवंबर 2001 में जारी), `.10 (जून 1996), `.20 (अगस्त 2001), `.50 (मार्च 1997), `.100 (जून 1996), `.500 (अक्तूबर 1997) और `.1000 (नवंबर 2000) मूल्यवर्ग में जारी किये गये। इस श्रृंखला के सभी बैंकनोटों के अग्र भाग पर अशोक स्तंभ की सिंहाकृति प्रतीक, जिसे बरकरार रखते हुए वॉटर मार्क विंडो के पास बायीं ओर स्थानांतरित किया गया है, की जगह महात्मा गांधी का चित्र अंकित किया गया। इसका अर्थ यह है कि इन बैंकनोटों में महात्मा गांधी के चित्र के साथ महात्मा गांधी वाटर मार्क भी मौजुद है।
iii एमजी श्रृंखला – 2005 बैंकनोट
`.10, `.20, `.50, `.100, `.500 और `.1000 के मूल्यवर्ग में एमजी श्रृंखला 2005 के बैंकनोट जारी किये गये हैं और इनमें एमजी श्रृंखला 1996 की तुलना में कुछ अतिरिक्त/नयी सुरक्षा विशेषताएं हैं। `.50 और `.100 के बैंकनोट अगस्त 2005 में, उसके बाद `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के अक्तूबर 2005 में तथा `.10 और `.20 के क्रमशः अप्रैल 2006 एवं अगस्त 2006 में जारी किये गये।
एमजी श्रृंखला 2005 बैंकनोटों की सुरक्षा विशेषताएं निम्नानुसार हैं –
i. सुरक्षा धागा: `.10, `.20 और `.50 मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में चमकीले रंग का मशीन द्वारा पठनीय सुरक्षा धागा नोट के अग्र भाग पर विंडो के भीतर और पृष्ठ भाग पर पूरी तरह से गुंथा हुआ है। यह धागा पराबैंगनी(अल्ट्रावायलेट) रोशनी में दोनों तरफ से पीले रंग का चमकीला दिखायी देता है। रोशनी के सामने पकडने पर यह धागा पीछे से एक सतत रेखा के रूप में दिखायी देता है। `.100, `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में विंडो के भीतर विभिन्न कोणों से देखने पर हरे रंग से नीले रंग में परिवर्तित होनेवाला मशीन द्वारा पठनीय सुरक्षा धागा है। पराबैंगनी रोशनी में यह धागा पृष्ठ भाग पर पीले रंग का और अग्र भाग पर अक्षर चमकीला दिखायी देता है। इसके अलावा, `.1000 के बैंकनोटों पर सुरक्षा धागे में बारी-बारी से देवनागरी लिपि में “भारत” और “RBI” शब्द दिखायी देते हैं। `.1000 के बैंकनोट के सुरक्षा धागे में देवनागरी लिपि में “भारत”, “1000” और “RBI” मौजुद हैं।
ii. उभारदार मुद्रण(इंटेग्लियो प्रिटिंग): – महात्मा गांधी का चित्र, रिज़र्व बैंक की मुहर और गारंटी तथा वचन खण्ड, अशोक स्तंम्भ का प्रतीक चिन्ह, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर और कमजोर दृष्टिवाले व्यक्तियों के लिए पहचान चिन्ह सुधारित उभारदार मुद्रण (इंटैग्लियों प्रिटिंग में अर्थात जिसे छूकर महसूस किया जा सकता है) में मुद्रित किये गये हैँ।
iii. आरपार मिलान मुद्रण(See through Register) – वॉटर मार्क विंडों के आगे बैंकनोट की बायीं ओर प्रत्येक मूल्यवर्ग के (10, 20, 50, 100, 500 और 1000) अंक का आधा हिस्सा आगे की ओर तथा आधा हिस्सा पीछे की ओर मुद्रित हैं। दोनों मुद्रित हिस्से आगे – पीछे इतने सटीक छपे हैं कि रोशनी के सामने देखने पर ऐसा लगता है कि ये एक ही हैं।
iv. वाटर मार्क और इलेक्ट्रोटाइप वाटर मार्क(Water Mark/ Electotype Watermark): बैंकनोट में वाटरमार्क विंडो में धूप छाँव के प्रभाव दर्शानेवाली बहुदिशात्मक रेखाओं के साथ महात्मा गांधी का चित्र है । प्रत्येक मूल्यवर्ग के बैंकनोट में क्रमशः 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 मूल्यवर्गीय अंक को दर्शानेवाला इलेक्ट्रोटाइप मार्क भी वाटर मार्क विंडों में दिखाई देता है और बैंकनोट को रोशनी के सामने देखने पर उसे बेहतर रूप में देखा जा सकता है ।
v. प्रकाशीय रंग परिवर्तक स्याही(Optically Variable Ink) – `.500 और `.1000 के बैंकनोटों में उनके मूल्यवर्गीय अंक 500 और 1000 ऑप्टीकली वेरियेबल इंक अर्थात् प्रकाशीय रंग परिवर्तक स्याही से मुद्रित हैं । जब इन नोटों को समतल पकड़ा जाता है तो इन अंकों का रंग हरा दिखाई देता है लेकिन जब इन्हें तिरछा कर दिया जाता है तो यह रंग बदलकर नीला हो जाता है।
vi. फ्लुऍरेसिन्स (Fluorescence)(चमकीलापन) – बैंकनोटों के संख्या पटल चमकीली स्याही से मुद्रित हैं। इनमें दोहरे रंगवाले प्रकाशीय धागे भी हैं। दोनों को अल्ट्रा वायलेट लैम्प की रोशनी में देखा जा सकता है ।
vii. लेटॅन्ट इमेज(Latent Image) `.20 और उससे ऊपर के मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में, महात्मा गांधी के चित्र के पास में (दायीं ओर) एक खडी पट्टी हैं जिसमें मूल्यवर्ग के अनुसार 20, 50, 100, 500 या 1000 के मूल्यवर्गीय अंक को दर्शाता है । नोट को हथेली पर रखने और उस पर 45 डिग्री से रोशनी पडने पर इस मूल्य को देखा जा सकता है । अन्यथा ये विशेषता केवल एक खड़ी पट्टी जैसी दिखाई देगी।
viii. मायक्रो लेटरिंग (Micro Lettering)- महात्मा गांधी के चित्र और खड़ी पट्टी के बीच ये विशेषता दिखाई देती है। `.10 के नोट में इसमें ‘RBI’ शब्द समाविष्ट है तथा `.20 और उससे ऊपर के मूल्यवर्ग के नोटो में मूल्यवर्गीय अंक भी समाविष्ट हैं। इस विशेषता को मैग्निफाईंग ग्लास की मदद से बेहतर रूप से देखा जा सकता है।
एमजी श्रृंखला – 2005 के बैंकनोटों में कोई व्यक्ति किस प्रकार से अंतर कर सकता है?
ऊपर बतायी गयी सुरक्षा विशेषताओं के अलावा, एमजी श्रृंखला – 2005 बैंकनोटों में बैंकनोट के पृष्ठभाग पर मुद्रण वर्ष दिखाई देता है जो 2005 से पूर्व की श्रृंखला में नहीं है।
बैंकनोटों की विभिन्न श्रृंखलाएं मुद्रित करने की क्या आवश्यकता है?
पूरे विश्व में केंद्रीय बैंक अपने बैंक नोटों के डिजाईन में कतिपय परिवर्तन करते हैं और इसका प्रमुख कारण नोट के जालीकरण को कठिन बनाना तथा जालसाज़ी करनेवालों से आगे रहना है। भारत भी इस नीति का अनुसरण करता है।