परंपरागत व्यवस्थाओं के नियमों और विधिक अधिकारों के बीच विवाद: भारत में महिलाओं के अधिकारों का उदाहरण

परंपरागत व्यवस्थाओं के नियमों और विधिक अधिकारों के बीच विवाद: भारत में महिलाओं के अधिकारों का उदाहरण परंपरागत व्यवस्थाओं के...

परंपरागत व्यवस्थाओं के नियमों और विधिक अधिकारों के बीच विवाद: भारत में महिलाओं के अधिकारों का उदाहरण

परंपरागत व्यवस्थाओं के नियम और विधिक अधिकारों के बीच विवाद सदैव से ही मौजूद रहा है। यह विवाद भारत जैसे देश में, जहाँ परंपराओं और रीति-रिवाजों का गहरा प्रभाव है, और भी जटिल हो जाता है। महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे इस विवाद का एक प्रमुख उदाहरण हैं।

भारत में महिलाओं को संविधान द्वारा समानता और न्याय का अधिकार प्राप्त है। हालांकि, कई मामलों में, ये अधिकार परंपरागत रीति-रिवाजों और सामाजिक मानदंडों द्वारा बाधित होते हैं।

उदाहरण के लिए:

  • विरासत का अधिकार: परंपरागत रूप से, कई समुदायों में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है। हालांकि, कानून महिलाओं को समान विरासत का अधिकार प्रदान करता है।
  • विवाह: कई समुदायों में बाल विवाह और दहेज जैसी प्रथाएं प्रचलित हैं, जो महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। इन प्रथाओं को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन वे अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से मौजूद हैं।
  • पैरिवारिक निर्णय लेने: परंपरागत रूप से, पुरुषों को परिवार के मामलों में निर्णय लेने का अधिकार होता है। हालांकि, कानून महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है।

इन विवादों को हल करना आसान नहीं है। कई महिलाओं को अपनी परंपराओं का सम्मान करते हुए भी अपने अधिकारों का दावा करना मुश्किल लगता है।

इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चला रही है। सामाजिक संगठन भी महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं।

यह एक जटिल मुद्दा है जिसमें सामाजिक, धार्मिक, और कानूनी पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता होती है। समाधान खोजने के लिए सभी हितधारकों के बीच खुली और ईमानदार बातचीत आवश्यक है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह एक जटिल मुद्दा है और इसमें कई अलग-अलग दृष्टिकोण शामिल हैं। यह प्रतिक्रिया केवल कुछ सामान्य जानकारी प्रदान करती है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

यदि आप महिलाओं के अधिकारों से संबंधित किसी विशिष्ट मुद्दे के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो कृपया किसी कानूनी पेशेवर या महिला अधिकार संगठन से संपर्क करें।

  • भारत की संसद में पिछले 21 सालों से ‘संसद तथा विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण’ से जुड़ा बिल अटका पड़ा है। वर्तमान में 16वीं लोकसभा में भी महिलाओं की भागीदारी महज 11% ही है। पुरुषों की अधिसंख्या वाली संसद यह बिल क्यों पास नहीं कर पा रही; उसे समझना मुश्किल नहीं है।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 पैतृक संपत्ति में लड़की के बराबर हक की बात करती है, परंतु आज भी समाज में लड़की को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जा रहा है।
  • मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिये सर्वोच्च न्यायालय मई, 2017 से एक पाँच सदस्यीय न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा ‘तीन-तलाक’ मुद्दे का विश्लेषण कर अपना फैसला देगा। तीन-तलाक प्रथा मुस्लिम समाज में महिलाओं के अधिकारों का दमन करने के लिये पुरुषों के पास सबसे बड़ा साधन बन गया है तथा परम्परागत मुस्लिम समाज इस अतार्किक प्रथा का समर्थन करता है।

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में समाज को चाहिये कि वह अतार्किक, गैर-जरूरी और विभेदकारी व्यवस्थाओं को तिलाँजलि दे तथा महिलाओं सहित सभी वर्गों को प्राप्त विधिक अधिकारों का सम्मान करें क्योंकि इन वर्गों के लिये आवश्यक ‘विधिक अधिकार’ भी समाज द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही बनाते हैं।

  • About
    teamupsc4u

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Last Post

Categories

You May Also Like