ब्रिटिश भारत में शिक्षा को प्रोत्साहन देने के संबंध में हुए ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ की चर्चा करें एवं बताएँ कि इस विवाद के समाधान के पश्चात् भारतीय शिक्षा के विकास की स्थिति क्या रही? UPSC NOTES

ब्रिटिश भारत में शिक्षा को लेकर ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’

19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में, ब्रिटिश भारत में शिक्षा को लेकर दो विचारधाराओं के बीच तीव्र विवाद हुआ, जिसे ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ के नाम से जाना जाता है। 1813 के चार्टर एक्ट में, भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने और UPSC NOTES आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये प्रदान करने का प्रावधान रखा गया था। किंतु, इस राशि को खर्च करने के प्रश्न पर विवाद हो जाने के कारण यह राशि उपलब्ध नहीं कराई गई।

UPSC NOTES प्राच्यवादी शिक्षा नीति के समर्थक भारतीय भाषाओं, साहित्य, दर्शन और संस्कृति पर आधारित शिक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता देना चाहते थे। उनका मानना था कि यह शिक्षा प्रणाली भारतीयों को उनकी जड़ों से जोड़ेगी और नैतिक मूल्यों को विकसित करेगी।

आंग्लवादी शिक्षा नीति के समर्थक अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इतिहास और दर्शन पर आधारित शिक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता देना चाहते थे। उनका मानना था कि यह शिक्षा प्रणाली भारतीयों को आधुनिक बनाने और ब्रिटिश शासन में बेहतर नौकरी पाने में मदद करेगी।

UPSC NOTES विवाद के प्रमुख बिंदु:

  • शिक्षा का माध्यम: प्राच्यवादी भारतीय भाषाओं, जबकि आंग्लवादी अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे।
  • पाठ्यक्रम: प्राच्यवादी भारतीय विषयों, जबकि आंग्लवादी पश्चिमी विषयों को प्राथमिकता देना चाहते थे।
  • शिक्षा का उद्देश्य: प्राच्यवादी नैतिक मूल्यों और चरित्र निर्माण, जबकि आंग्लवादी भौतिक प्रगति और रोजगार पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे।

UPSC NOTES विवाद का समाधान:

1835 में, लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता वाली एक समिति ने शिक्षा नीति की सिफारिश की, जिसे मैकाले मिनट के नाम से जाना जाता है। इस मिनट ने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने और पश्चिमी विषयों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की।

हालांकि, ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ का कोई निश्चित समाधान नहीं हुआ। दोनों विचारधाराओं के बीच टकराव जारी रहा, जिसका भारतीय शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ा।

UPSC NOTES विवाद के बाद भारतीय शिक्षा का विकास:

  • अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार: ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ के बाद, अंग्रेजी शिक्षा का भारत में तेजी से प्रसार हुआ।
  • विश्वविद्यालयों की स्थापना: 1857 में, भारत में तीन विश्वविद्यालयों (कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे) की स्थापना की गई।
  • नए स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना: सरकार और निजी संस्थाओं द्वारा नए स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की गई।
  • पाठ्यक्रम में बदलाव: पाठ्यक्रम में पश्चिमी विषयों को शामिल किया गया और भारतीय विषयों को कम महत्व दिया गया।

विवाद के प्रभाव:

  • भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधुनिकीकरण: ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ ने भारतीय शिक्षा प्रणाली के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सामाजिक परिवर्तन: अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन लाने में मदद की।
  • राष्ट्रीय चेतना का उदय: अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का उदय करने में भी योगदान दिया।

निष्कर्ष:

‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस विवाद ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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