सफलता की कहानियाँ की कड़ी में आज हम बात कर रहे है. एक ऐसे आईएस अधिकारी जिनकी कहानी आज के युवाओ के लिए प्रेरणास्रोत है. गोविन्द जैसवाल, जी हां दोस्तों, आपने यह नाम तो सुना ही होगा. गोविन्द जैसवाल 2007 बैच के आईएस अधिकारी है. कहते है कि, सरकारी नौकरी पाने के लिए नसीब लगता है लेकिन, कडी मेहनत और दृढनिश्चय से नसीब भी अपनी करवट बदल लेता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तरप्रदेश के रहने वाले गोविन्द जैसवाल ने. इन्होने अपने पहले ही प्रयास में आईएस की परीक्षा में 48 वी रैंक हासिल की और एक नया इतिहास रच दिया.
भारत की कठिनतम और प्रतिष्ठित माने जाने वाली सिविल सर्विस एग्जाम को क्लियर करना चूरमा खाने जैसा तो है नही इसके लिए धेर्य, और कडी मेहनत करनी पड़ती है. ये और भी कठिन और चेलेंजिंग हो जाता है. जब परिवार की आर्थिक स्थति अच्छी न हो. इनके परिवार में आमदनी का एक मात्र स्रोत इनके पिताजी थे. जो एक रिक्सचालक थे. उनके उपर ही पुरे घर का भार था. एसी स्थति में गोविन्द के लिए कडी मेहनत ही एक मात्र उपाय था.
प्रारम्भिक शिक्षा
गोविन्द जैसवाल एक हिंदी मीडियम के छात्र है. इनकी प्रा. शिक्षा गाव के सरकारी स्कूल से की. बचपन से ही ये पढाई में काफी अच्छे थे. इनका परिवार एक छोटे से किराए के मकान में रहता था. इनके परिवार में माता, पिता और स्वयं के अलावा दो बहने भी थी. ये जहा रहते थे बहुत ज्यादा शोरगुल होता था. आस पास में कई फेक्ट्रिया और कारखाने थे. इस कारण वे दिन को अच्छे से नही पढ़ पाते थे. रात कोभी वे मोमबत्ती और लालटेन के निचे पढ़ते थे.
क्योंकि उस इलाके में 14-14 घंटे बिजली कटोती होती थी. इस दौरान इन्हें घोर गरीबी से गुजरना पड़ा था. गोविन्द जैसवाल के बचपन की एक घटना एक बार उन्हें दोस्त के घर पर इस कारण नही आने दिया. क्योंकि वे एक रिक्शावाले के बेटे थे. उस समय तो उन्हें महसूस नही हुआ. लेकिन यह घटना उनके मन में गहरा घाव कर गई. जब वे बड़े हुआ तो उन्हें वो घटना समझ में आई और इस चीज को बदलने की ठान ली.
आईएस की तैयारी के लिए दिल्ली गए
12th साइंस स्ट्रीम से पास करने के बाद कई लोगो ने उन्हें इंजीनियरिंग के फ़ील्ड में जाने की सलाह दी. लेकिन आर्थिक स्थति अच्छी नही होने के कारण नही कर पाए. बाद में उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. उसके बाद उन्होंने आईएस की तैयारी के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया. दिल्ली में किराए का रूम लेकर तैयारी करने लगे. इसी बीच उन्हें कई ताने भी सुनने पड़े कि रिक्शा पकड़ लो. आईएस बनना तुमारे बस का नही. लेकिन कहते है ना कि, राहो में पड़े कांटे ही कदमो की रफ़्तार बढ़ाते है. ठीक उसी प्रकार गोविन्द ने नकारात्मकता को अपने अपने उपर हावी नही होने दिया और तैयारी में लगे रहे.
तैयारी के दौरान ही इनके पिताजी के पैर में चोट लग गई और उन्हें होस्पिटल में भर्ती होना पड़ा. अपने किताबो का खर्चा निकलने के लिए 8 वी तक के छात्रो को टूशन भी पढाया. आगे की पढाई जारी रखने के लिए उन्होंने अपनी छोटी सी जमीन 30000 रुपए में बेचनी पड़ी. इसके बाद भी इन्होने अपने माता-पिता को निराश नही किया. एक साल की मेहनत के बाद अपने पहले ही प्रयास में 48 वी रैंक हासिल की और बन गए एक भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी. साथ ही वे हिंदी माध्यम के टॉपर भी रहे थे.
गोविन्द जैसवाल जी के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है. गोविन्द जैसवाल जी जैसे व्यक्तित्व स हमे यह सीखने को मिलता है कि, गरीबी में जन्म लेना हमारे हाथ में नही लेकिन गरीबी में नही मरना यह हमारे हाथ में है. परिस्थतिया और मुश्किलें हम पर हावी न हो इतना आत्म विश्वास खुद पर होना चाहिए.एक गरीब और कमजोर घर से निकल कर आईएएस अधिकारी बनाने की यह सफलता की कहानी आपको कैसी लगी. कोमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरुर करे. और साथ ही कमेंट करें कि, आप किस व्यक्ति की सफलता के बारे में जानना चाहते हैं.
आईएस गोविन्द जैसवाल ओप्सनल विषय
हालांकि गोविन्द ने अपना स्नातक साइंस से किया था लेकिन. उन्होंने आईएस के मैन्स एग्जाम में ओप्सनल विषय के रूप में इतिहास और दर्शनशास्त्र को चुना. बतौर हिंदी मीडियम सफलता प्राप्त की. कुछ कर गुजरने के सपने को साकार करते हुए एक आईएस अधिकारी बन गए.