सूखी रोटी खाकर कटती थीं रातें
नारायण बताते हैं,मेरी 3 बेटियां (निर्मला, ममता, गीता) और एक बेटा है। अलईपुरा में हम किराए के मकान में रहते थे। मेरे पास 35 रिक्शे थे, जिन्हें किराए पर चलवाता था। सब ठीक चल रहा था। इसी बीच पत्नी इंदु को ब्रेन हेमरेज हो गया, जिसके इलाज में काफी पैसे खर्च हो गए। 20 से ज्यादा रिक्शे बेचने पड़े, लेकिन वो नहीं बची। तब गोविंद 7th में था। गरीबी का आलम ऐसा था कि मेरे परिवार को दोनों टाइम सूखी रोटी खाकर रातें काटना पड़ती थी। मैं खुद गोविंद को रिक्शे पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाता था। हमें देखकर स्कूल के बच्चे मेरे बेटे को ताने देते थे- आ गया रिक्शेवाले का बेटा। मैं जब लोगों को बताता कि मैं अपने बेटे को IAS बनाऊंगा तो सब हमारा मजाक बनाते थे।
बेटियों की शादी करने के लिए बचे हुए रिक्शे भी बिक गए। सिर्फ एक बचा, जिसे चलाकर मैं घर को चला रहा था। पैसे नहीं होते थे, तो गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था।

IAS GOVIND JAISWAL
गोविंद जायसवाल का जन्म बनारस में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई सरकारी स्कूल से की थी। उसके बाद उन्होंने बनारस की हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से गणित में ग्रेजुएशन किया था। गोविंद के पिता रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन- पोषण करते थे। बचपन में ही उनकी मां का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हो गया था। उनकी मां का ईलाज कराने के लिए उनके पिता ने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी। उनके पिता ने गोविंद और उनकी बहनों को बड़े ही मुश्किलों से पालन- पोषण किया।
बचपन में एक बार गोविंद अपने दोस्त के यहां खेलने गए थे। वहां जब उनके दोस्त के पिता को पता चला कि गोविंद के पिता रिक्शा चलाते हैं, तो उन्होंने गोविंद का बहुत अपमान किया। उन्होंने अपने बेटे को गोविंद साथ खेलने और दोस्ती रखने से भी मना कर दिया था। इसके बाद उन्होंने अपने टीचर से जाकर स्कूल में पूछा कि वे ऐसा क्या करें, कि समाज में लोग उनका सम्मान करें। उनके टीचर ने उन्हें कहा कि बड़े होकर एक बहुत बड़े बिजनेसमैन बन जाओ या फिर आईएएस अधिकारी। तभी से गोविंद ने ठान लिया था कि वे बड़े होकर आईएएस अधिकारी बनेंगे।
गरीबी और तानों के बीच हासिल किया मुकाम
इस लड़के का नाम था गोविंद जायसवाल। शनिवार को जब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने परीक्षाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक हाई लेवल कमेटी का ऐलान किया तो उसमें सदस्य सचिव के तौर पर आईएएस अधिकारी गोविंद जायसवाल का नाम रखा गया। गरीबी के हालात और समाज के तानों से लड़ते हुए गोविंद ने आईएएस अधिकारी तक का सफर तय किया। हालांकि, उनकी ये मंजिल आसान बिल्कुल नहीं थी। सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उनके घर के आर्थिक हालात थे, जिन्होंने कदम-कदम पर उनका रास्ता रोका।
यूपीएससी की तैयारी करने के लिए गोविंद दिल्ली आ गए थे। उनके पिता उन्हें हर महीने खर्च के लिए कुछ रुपये भेजते थे, उस समय उनके पिता के पैरों में सेप्टिक होने के बावजूद वे रिक्शा चलाते थे। गोविंद को पता था कि उनके पिता बहुत मेहनत कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने अपनी तैयारी के साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया।
कहते हैं ना ‘जहां चाह, वहां राह’ इसी कहानी को गोविंद जायसवाल ने सच कर दिखाया है। उन्होंने 2007 में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली थी। उनकी ऑल इंडिया रैंक 48 आई थी। आपको बता दें कि गोविंद जायसवाल के जीवन के ऊपर एक फिल्म भी बनी है, जिसका नाम ‘अब दिल्ली और दूर नहीं’ है। यह फिल्म 2023 में रिलीज हुई थी। गोविंद जायसवाल की कहानी सभी के लिए प्रेरणा है, जो हालातों को अपनी जीत की राह के बीच की रुकावट नहीं बनने देते हैं।