दोस्तो आप अगर कुछ करना चाहते हैं तो उसे सिर्फ आप कर सकते हो और अगर आप ने मन बना लिया ह की आपको करना है तो आप को कोई भी मुसीबत नही रोक सकती ।
दोस्तो यार आज हर जगह तो लड़कियों ने ही परचम लहराया है। अब आप कहोगे की यार आदित्य तू तो लड़का है तूने ये कैसे बोल दिया दोस्तो जो बात ह वो बात है हमारे देश में आज भी यही है कि बस लड़की बड़ी हो शादी कर दो पढ़कर कौन सा क्या करेगी बेलनी तो इसे रोटी हि है
दोस्तो बात बुरी लगी हो माफ करना ।
दोस्तो मेरा नाम है आदित्य कुमार मिश्र में आपको आज एक ऐसी ही पेरणादायक कहानी बताने जा रहा हूं।
मई महीने की 3 तारीख को रोज की तरह वंदना दोपहर में अपने दो मंजिला घर में ही ग्राउंड फ्लोर पर बने अपने डैड के ऑफिस में गई और आदतन सबसे पहले यूपीएससी की वेबसाइट खोली। वंदना को दूर-दूर तक अंजाजा नहीं था कि आज आईएएस का रिजल्ट आने वाला है। लेकिन इस सरबे से ज्यादा बड़ा सरद अभी तक उसका इंतजार कर रहा था। टॉपर्स की लिस्ट देखते हुए अचानक ईवें नंबर पर उसकी नजर पड़ गई। आठवीं रैंक। नाम- वंदना। रोल नंबर -029178। बार-बार नाम और रोल नंबर मिलाती और खुद को यह सुनिश्चित करना की कोशिश करता है कि यह मैं ही हूं। हां, वह वंदना ही थी। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2012 में आठवीं स्थान और हिंदी माध्यम से प्रथम स्थान पाने वाली 24 वर्ष की एक लड़की।
वंदना की आँखों में इंटरव्यू का दिन घूम रहा था। हल्के पर्पल कलर की साड़ी में औसत कद की एक बहुत दुबली-पतली सी लड़की यूपीएससी की अभिनय में इंटरव्यू के लिए पहुंची। शुरू में थोड़ा डर लगा था, लेकिन फिर आधे घंटे तक चले इंटरव्यू में हर सवाल का आत्मविश्वास और साहस से सामना करना पड़ा। बाहर निकलते हुए वंदना खुश थी। लेकिन उस दिन भी घर लौटकर उन्होंने आराम नहीं किया। किताबें उठाईं और अगली आइएएस परीक्षा की तैयारी में जुट गए।
यह रिजल्ट वंदना के लिए तो आश्चर्य ही था। यह पहली कोशिश थी। कोई कोचिंग नहीं, कोई गाइडेंस नहीं। कोई भी समझ, समझ, बताने वाला नहीं। आइएईएस की तैयारी कर रहा है कोई दोस्त नहीं। यहां तक कि वंदना कभी एक किताब खरीदने के बारे में अपने घर से बाहर नहीं गई। किसी तपस्वी साधु की तरह एक साल तक अपने कमरे में बंद होकर सिर्फ और सिर्फ पढ़ती रही। तो उनके घर का रास्ता और मुहल्ले की गलियाँ भी ठीक नहीं हैं। कोई घर का रास्ता सामान्य प्रश्न तो उन्होंने नहीं बताया। अर्जुन की तरह वंदना को सिर्फ चिड़िया की आंख मालूम है। वे कहती हैं, ‘, बस, यही मेरी मंजिल थी। ”
वंदना का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक बेहद पारंपरिक परिवार में हुआ। उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। उनकी पहली पीढ़ी की कोई लड़की स्कूल नहीं गई थी। वंदना की पढ़ाई पढ़ाई भी गांव के सरकारी स्कूल में हुई। वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान कहते हैं, ‘स्कूल गांव में स्कूल अच्छा नहीं था। इसलिए अपने बड़े लड़के को मैंने पढऩे के लिए बाहर भेजा। बस, उस दिन के बाद से वंदना की भी एक ही रट थी। मुझे कब भेजोगे पढऩे। ‘
महिपाल सिंह बताते हैं कि शुरू में तो मुझे भी यही लगता है कि वह लड़की है, इसे बहुत पढ़ाने की क्या जरूरत है। लेकिन मेधावी बिटिया की लगन और अध्ययन के जज्बे ने उन्हें मजबूर कर दिया। वंदना ने एक दिन अपने पिता से कहा, ‘हूं मैं लड़की हूं, इसीलिए मुझे पढ नही रहे नहीं भेज रहा।’ ’महिपाल सिंह कहते हैं,,, बस, यही बात मेरे कलेजे में चुभ गई। मैंने सोच लिया कि मैं बिटिया को पढ़ने से बाहर भेजूंगा। ”
छठी कक्षा के बाद वंदना मुरादाबाद के पास लड़कियों के एक गुरुकुल में पढ केे चले गए। वहाँ के नियम बड़े कठोर थे। कमोडिल में बने रहना पड़ता है। खुद ही अपने कपड़े धोना, कमरे की सफाई करना और यहां तक कि महीने में दो बार खाना बनाने में भी मदद करनी पड़ती थी। हरियाणा के एक पिछड़े गांव से बेटी को बाहर पढ भेजनेे प्रेषक का फैसला महिपाल सिंह के लिए भी आसान नहीं था। वंदना के दादा, ताया, चाचा और परिवार के तमाम पुरुष इस फैसले के खिलाफ थे। वे कहते हैं, का सब मैंने सबका गुस्सा झेला, सबकी नजरों में बुरा बना, लेकिन अपना फैसला नहीं छोड़ा। ”
दसवीं के बाद ही वंदना की मंजिल तय हो गई थी। उस उम्र से ही वे कॉम्प्टीटिव मैग्जीन में टॉपर्स के इंटरव्यू पढ़तीं और उसकी कटिंग अपने पास रखती हैं। किताबों की लिस्ट मेँ। कभी भाई से कहकर तो कभी ऑफ़लाइन किताबें मंगवाती हैं। बारहवीं तक गुरुकुल में पढ़ने के बाद वंदना ने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की। कभी कॉलेज नहीं गया। परीक्षा देने के लिए भी पिताजी के बारे में जाते थे।
गुरुकुल में सीखा हुआ अनुशासन एक साल की तैयारी के दौरान काम आया। दैनिक तकरीबन 12-14 घंटे पढ़ाई करता है। नींद आने लगती है तो चलते-चलते पढ़ती थी। वंदना की मां मिथिलेश कहती हैं, ‘ियां पूरी गर्मियां वंदना ने अपने कमरे में रसोई में आवेदन नहीं किया। कहती थी, ठंडक और आराम में नींद आती है। ” वंदना गर्मी और पसीने में ही पढ़ती रहती है इसलिए नींद नहीं आती। एक साल तक घर के लोगों को भी उसके होने का आभास नहीं था। मानो वह घर में मौजूद ही न हो। किसी को उसे डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं थी। बड़े भाई की तीन साल की बेटी को भी नहीं। वंदना के साथ-साथ घर के सभी लोग सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उनकी वही दुनिया थी।
आईएएस नहीं तो क्या? ‘‘ कुछ नहीं। किसी दूसरे विकल्प के बारे में कभी सोचा ही नहीं। ” वंदना की वही दुनिया थी। वही स्वप्न और वही तल। वह बाहर की दुनिया में कभी देखा ही नहीं। कभी हरियाणा के बाहर कदम नहीं रखा। कभी सिनेमा हॉल में कोई फिल्म नहीं देखी। कभी किसी पार्क और रेस्तरां में खाना नहीं खाया। कभी दोस्तों के साथ पार्टी नहीं की। कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा। कभी मनपसंद जींस-मंडलल की खरीदारी नहीं की। अब जब मंजिल मिल गई है तो वंदना अपनी सारी इच्छाएं पूरी करना चाहती है। पटवारी करना चाहता है और निशानेबाजी सीखना चाहता है। खूब घूमने की इच्छा है।
आज गांव के वही सभी लोग, जो कभी लड़की को पढ़ता देख मुंह बिचके करते थे, वंदना की सफलता पर गर्व से भरे हुए हैं। कह रहे हैं, रहे को लड़कियों को जरूर पढ़ाना चाहिए। बिटिया पढ़ेगी तो नाम रौशन रखेगी। ” यह कहते हुए महिपाल सिंह की आंखें भर आती हैं। वे कहते हैं, कहते जा लड़की जात की बहुत बेकद्री हुई है। उन्हें हमेशा दबाकर रखा गया। पढ पे को नहीं दिया गया। अब इन लोगों को मौका मिलना चाहिए। ” मौका मिलने पर लड़की क्या कर सकती है, वंदना ने करके दिखाया ही दिया है।
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Good struggle get good job