स्वदेशी आंदोलन के उद्देश्यों एवं तरीकों को बताते हुए भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। UPSC NOTE

परिचय: स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता पर आधारित आंदोलन था जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख भाग था। इसने भारतीय राष्ट्रवाद के...

परिचय:

स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता पर आधारित आंदोलन था जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख भाग था। इसने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में प्रमुख योगदान दिया था। इसकी शुरुआत वर्ष 1905 के बंगाल के विभाजन के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में हुई थी। विभाजन के फैसले को राष्ट्रवादी आंदोलन/स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के क्रम में फूट डालो और राज करो की नीति के रूप में देखा गया था।

स्वदेशी आंदोलन के उद्देश्य

स्वदेशी आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ आर्थिक और राजनीतिक प्रतिरोध था। इस आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे:

  • ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करना और स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना।
  • स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना और एकता को बढ़ावा देना।

स्वदेशी आंदोलन के तरीके

स्वदेशी आंदोलन के मुख्य तरीके निम्नलिखित थे:

  • ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार: इस आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण तरीका ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करना था। लोगों से अपील की गई थी कि वे ब्रिटिश कपड़े, चाय, चीनी, और अन्य वस्तुओं का उपयोग न करें।
  • स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना: लोगों को स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के लिए रैली, प्रदर्शन और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।
  • स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना: स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार से सहायता मांगी गई थी। साथ ही, लोगों को स्वदेशी उद्योगों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था।

स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव:

  • इससे स्वतंत्रता आंदोलन के लिये व्यापक जन आधार तैयार हुआ और इसमें विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों, जातियों और धर्मों के लोग शामिल हुए।
  • इससे ब्रिटिशों के आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व को चुनौती मिली तथा स्व-शासन या स्वराज के अधिकार को प्रोत्साहन मिला।
  • इससे भारतीय उद्योगों, शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के विकास को प्रोत्साहन मिलने के साथ राष्ट्रीय पहचान की भावना को बल मिला।
  • इससे होमरूल आंदोलन एवं असहयोग आंदोलन जैसे अन्य आंदोलनों को प्रेरणा मिली, जिनमें स्वदेशी और बहिष्कार के समान रणनीतियों को अपनाया गया।
  • इस आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नए नेताओं का भी उदय हुआ, जिन्होंने आगे चलकर स्वतंत्रता संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

  • About
    teamupsc4u

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Last Post

Categories

You May Also Like