परिचय:
इजरायल और फिलिस्तीन दोनों देशों के बीच संघर्ष की कथा आरंभ करने से पहले हमें इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। इसके बाद ही हम इन दोनों देशों के बीच चलने वाले इस लंबे संघर्ष को अधिक बेहतर तरीके से समझ पाने में सक्षम हो सकेंगे।
वास्तव में, इजरायल अपेक्षाकृत एक छोटा भू भाग है। इजरायल के उत्तर में लेबनान नामक देश स्थित है, जबकि इसके दक्षिण में मिस्र देश अवस्थित है। इजराइल के पूर्वी भाग में जॉर्डन और सीरिया नामक देशों की उपस्थिति है, जबकि इजरायल के पश्चिमी भाग में अत्यंत प्रसिद्ध ‘भूमध्य सागर’ स्थित है। अर्थात् इजरायल अपने चारों ओर से जिन देशों से घिरा हुआ है, इन्हें ‘अरब देशों’ के नाम से जाना जाता है। अरब क्षेत्र में इजराइल के चारों ओर उपस्थित इन देशों के अलावा अन्य देश भी शामिल हैं। ये समस्त अरब देश इजरायल के विरुद्ध मिलकर हमला करते हैं, लेकिन इजरायल तकनीकी रूप से, सैन्य रूप से और आर्थिक रूप से इतना सक्षम है कि वह अकेले ही अपने चारों ओर उपस्थित इन देशों से सफलता पूर्वक निपटने में सक्षम है।
यहाँ उपस्थित सभी अरब देश मिलकर फिलिस्तीन का ही साथ देते हैं और वे चाहते हैं कि यहाँ से यहूदियों को पूरी तरह से साफ कर दिया जाए और इस संपूर्ण क्षेत्र को फिलिस्तीन को सौंप दिया जाए। ये सभी अरब देश इजरायल के अस्तित्व को समाप्त करके सिर्फ फिलिस्तीन के अस्तित्व को ही बनाए रखने के लिए उत्सुक हैं। तो आइए, अब हम इजरायल और फिलिस्तीन के मध्य लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को क्रमिक रूप से समझने का प्रयास करते हैं।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को बढ़ाने में प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका
- साइक्स-पिकोट समझौता (1916): यह गुप्त समझौता ब्रिटेन और फ्राँस के मध्य हुआ था। इस समझौते में प्रभावी ढंग से मध्य पूर्व को भविष्य के ब्रिटिश और फ्राँसीसी नियंत्रण अथवा प्रभाव के क्षेत्रों में विभाजित किया गया जिससे इस क्षेत्र के भविष्य का भू-राजनीतिक परिदृश्य प्रभावित हुआ।
- बाल्फोर घोषणा (1917): वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बाल्फोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की थी जिसमें फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिये राष्ट्रीय गृह’ (National home for the Jewish people) की स्थापना के लिये समर्थन व्यक्त किया गया था।
- यहूदी आप्रवासन: फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासन और अवस्थापन के लिये आधार तैयार कर बाल्फोर घोषणा ने संबद्ध क्षेत्र के भविष्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया तथा यहूदी गृह राज्य की मांग को बढ़ावा दिया।
- ओटोमन साम्राज्य: साइक्स-पिकोट समझौते ने ओटोमन साम्राज्य को आगे बढ़ाने में मदद की तथा फिलिस्तीन में ब्रिटिश जनादेश के लिये आधार तैयार किया। अंततः इस जनादेश ने मुद्दे/संघर्ष को और अधिक ध्रुवीकृत करने एवं मुसलमानों के बीच इज़राइल के प्रति विरोध को भड़काने का काम किया।
- राष्ट्र संघ का आदेश: प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ, जिसने सदियों से इस क्षेत्र को नियंत्रित किया था। युद्ध के बाद के समझौते के कारण राष्ट्र संघ ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर शासन करने का अधिकार दे दिया, जिससे क्षेत्र की जनसांख्यिकी व राजनीतिक गतिशीलता और भी प्रभावित हुई।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका
- यहूदियों का नरसंहार: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नरसंहार की भयावहता ने फिलिस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन को बढ़ा दिया, जिन्होंने शरण और मातृभूमि की मांग की। ब्रिटिश सरकार को यहूदी और अरब दोनों के दबाव का सामना करना पड़ा, जिससे तनाव एवं हिंसा बढ़ गई।
- संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना (1947): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन के लिये एक विभाजन योजना का प्रस्ताव रखा, जिसमें यरूशलम के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के साथ-साथ संबद्ध क्षेत्र को अलग-अलग यहूदी व अरब राज्यों में विभाजित करने की सिफारिश की गई।
- अरब-इज़राइल युद्ध: संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार कर लिया किंतु अरब नेताओं ने इसके प्रति असहमति जताई, जिससे वर्ष 1948 का अरब-इज़राइल युद्ध हुआ, जिसने संघर्ष को और अधिक तीव्र बना कर मुद्दे का राजनीतिकरण कर दिया तथा वर्ष 1967 एवं वर्ष 1973 में युद्ध की नींव रखी।
- इज़राइल की उत्पत्ति: युद्ध के बाद वर्ष 1948 में इज़राइल राष्ट्र की स्थापना से इस संघर्ष को नया आयाम मिला।परिणामस्वरूप हज़ारों फिलिस्तीनी अरबों को विस्थापन के लिये विवश होना पड़ा एवं इज़राइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच तनाव बढ़ गया।
वर्तमान परिदृश्य
- वेस्ट बैंक मुद्दा: इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष दशकों से जारी है, जिसमें कई युद्ध, विद्रोह, शांति वार्ता और चल रही हिंसा शामिल है। इसमें मुख्य रूप से भूखंड, शरणार्थी, यरूशलम, सुरक्षा और मान्यता जैसे मुद्दे शामिल हैं। वेस्ट बैंक में इज़रायली बस्तियों के निर्माण से भी संघर्ष बढ़ गया है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना जाता है।
- फिलिस्तीन लिबरेशन आर्गेनाईज़ेशन (PLO) की स्थापना: PLO की स्थापना वर्ष 1964 में फिलिस्तीनियों के हितों को कायम रखने तथा उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान करने के लिये की गई थी, जिसने इज़राइल के खिलाफ कई युद्धों को प्रेरित किया एवं पड़ोसी देशों की भागीदारी ने इस मुद्दे को बहुआयामी बना दिया।
- हमास: वर्ष 1987 में संगठित इस संगठन ने हिंसक माध्यमों और युद्ध रणनीति का उपयोग कर दो-राष्ट्र राज्य के फिलिस्तीनी उद्देश्य एवं गाज़ा पट्टी पर उनकी पूर्ण संप्रभुता की बहाली का समर्थन करने के लिये कार्य किया है।