ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी और जौ भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। यद्यपि इन्हें मोटा अनाज कहा जाता है परंतु इनमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है।
मक्का एक खाद्य फसल के साथ-साथ औद्योगिक कच्चा माल भी है। खाद्यान्नों के उत्पादन के क्षेत्र में धान और गेहूं के बाद भारत में मक्का का ही उत्पादन सर्वाधिक होता है। भारत में इसे 17वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया।
इस फसल का उत्पादन आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में होता है। यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो, तो शुष्क जलवायु में इस फसल की खेती की जा सकती है। दीर्घावधिक उष्णतापूर्ण गर्मी, पर्याप्त वर्षा और खरीफ के मौसम में छोटी वर्षा तथा शीततापूर्ण जादा मक्का के लिए उपयुक्ततम जलवायविक स्थिति है।
ग्रीष्म ऋतु में तापमान 20° सेंटीग्रेड से 25° सेंटीग्रेड के बीच घटता-बढ़ता रहता है। खरीफ के मौसम में तापमान 8° सेंटीग्रेड से 15° सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। इस फसल को 75 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके फसल के उत्पादन के लिए 120 से 170 दिनों की आवश्यकता होती है। मक्का की खेती के लिए उर्वर, गहरी और जल सोखने वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेत में अधिक पानी जमा होना मक्का की खेती के लिए हानिकारक होता है। मक्का के उत्पादन के लिए उपयुक्त मृदा का pH मान 7.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
भारत में मक्का की खेती के तीन प्रमुख मौसम हैं- खरीफ मुख्य मौसम है, रबी के मौसम में प्रायद्वीपीय भारत और बिहार में तथा उत्तरी भारत में जायद (वसन्त ऋतु) के मौसम में मक्का की खेती की जाती है। रबी और जायद के मौसम में मक्का की उच्च उत्पादकता रिकॉर्ड की गई है। मक्का की फसल की बुआई या तो छींटकर की जाती है या खेतों में हल चलाकर उसे रोपा जाता है। मक्का के बीज की छिंटाई विशेषकर उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां वर्षा की निश्चितता ही ओर चारे वाले मक्के की खेती की जा रही हो।
उपज: ऊपरी गंगा घाटी, उत्तर-पूर्व पंजाव, दक्षिण-पश्चिमी कश्मीर और दक्षिणी राजस्थान में मक्का का उत्पादन व्यापक पैमाने पर होता है। देश के कुल मक्का-उत्पादन का 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजरथान और विहार से प्राप्त होता है। पंजाब, जम्मू एवं कश्मीर, गुजरात, हिमाचल प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश में भी मक्का का उत्पादन होता है।
अखिल भारतीय समन्वित मक्का विकास योजना के तहत उच्च उपज वाले संकर बीज एवं साधारण बीज की अनेक किस्में विकसित की गई हैं- गंगा 101, रंजित, दक्कन, गंगा 5, गंगा सुरक्षित 2, हिस्टार्च, गंगा 4, हिमालया 123, गंगा 3 और वी.एल. 54।