नहर
इसमें धरातलीय जल का प्रयोग होता है जो कि गुरुत्वाकर्षण के वल के साथ बहता है। नहर सिंचाई के लिए व्यापक मैदानों सुवित्रित बारहमासी नदियों के अपवाह वाले क्षेत्र (उत्तरी मैदान, तटीय मैदान, डेल्टा आदि) तथा प्रायद्वीप की चौड़ी घाटियों वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं।
अनेक नहरें, बिना बांधों का निर्माण किये निकाली जाती हैं, जिन्हें मुख्य धारा में जल की प्रचुरता होने पर ही जल प्राप्त होता है। ऐसी नहरों का उपयोग सीमित होता है। वर्तमान में ऐसी नहरों को बारहमासी प्रणालियों में बदलने के प्रयास जारी हैं। स्वातंत्र्योत्तर काल में बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के एक भाग के रूप में नहरों का निर्माण किया गया। जैसे-भाखड़ा नांगल (पंजाब), दामोदर घाटी (झारखण्ड और पश्चिम बंगाल) तथा नागार्जुन सागर परियोजना (कर्नाटक)।
नहरों के निर्माण की प्रारंभिक लागत उच्च होती है, किन्तु निर्माण के उपरांत कार्यशील लागत काफी कम हो जाती है, जो नहरों को लम्बी अवधि तक सिंचाई का स्रोत बनाए रखती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, तटीय ओडीशा एवं तटीय आंध्र प्रदेश में नहर सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है। केरल एवं उत्तर-पूर्व के पहाड़ी भागों में नहरों का लगभग अभाव है।
उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड की नहरें
नहरों का सर्वाधिक विकास उत्तर प्रदेश में हुआ है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत कम होती है, जबकि वहां कृषि योग्य भूमि की प्रचुरता है, इसलिए वहां कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है। नहरों की समुचित व्यवस्था के कारण ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की सर्वाधिक खेती संभव हो पायी है। उत्तर प्रदेश की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 50 प्रतिशत नहरों की सिंचाई की सुविधा पाता है। यहां की नहरें स्थायी हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्य नहरें इस प्रकार हैं:
ऊपरी गंग नहर: इस नहर का निर्माण गंगा नदी के जल से किया गया है। यह नहर उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार जिले के समीप से निकाली गयी है। इस नहर का निर्माण अंग्रेजी शासनकाल में हुआ। इसकी चार प्रमुख शाखाएं हैं- देवबन्द शाखा, अनूपशहर शाखा, माटशाखा और हाथरस शाखा। इस नहर की कुल लम्बाई 5640 किलोमीटर है (शाखाओं और उप-शाखाओं सहित), जबकि मुख्य नहर की लम्बाई 342 किलोमीटर ही है। इस नहर द्वारा गंगा-यमुना दोआब की भूमि सींची जाती है।
निचली गंग नहर: इस नहर का निर्माण भी गंगा नदी के जल से ही किया गया है। यह नहर नरौरा (बुलन्दशहर के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर का निर्माण भी अंग्रेजी शासनकाल में ही हुआ। इसकी दो प्रमुख शाखाएं हैं- कानपुर शाखा और इटावा शाखा। इस नहर की कुल लम्बाई 4800 किलोमीटर है (शाखाओं और उप-शाखाओं सहित)। इस नहर द्वारा कानपुर और इटावा जिलों की भूमि सिंची जाती है।
शारदा नहर: इउत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी नहर है- शारदा नहर। इस नहर का निर्माण शारदा नदी के जल से किया गया है। यह नहर बनवासा के समीप से निकली गयी है। इस नहर की कुल लम्बाई 14000किलोमीटर है (शाखाओं और उपशाखाओं सहित)। यह एशिया की सर्वाधिक चौड़ी नहर है। इस नहर द्वारा गंगा-घाघरा दोआब की भूमि सींची जाती है। इस नहर पर विद्युत् उत्पन्न करने के लिए खटीमा (उत्तराखंड) में एक विद्युत् निर्माण गृह की स्थापना भी की गयी है।
पूर्वी यमुना नहर: इस नहर का निर्माण यमुना नदी के जल से किया गया है। यह नहर ताजेवाला (अम्बाला जिला) के समीप से निकाली गयी है। इस नहर की कल लम्बाई 1440 किलोमीटर है (शाखाओं और उप-शाखाओं सहित)। इस नहर का निर्माण मध्यकाल में मुगल शासक शाहजहां द्वारा करवाया गया था। इस नहर द्वारा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों की भूमि सींची जाती है।
आगरा नहर: इस नदी का निर्माण भी यमुना नदी के जल से ही किया गया है। यह नहर ओखला (दिल्ली के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर का निर्माण अंग्रेजी शासनकाल में हुआ था। इस नहर की कुल लम्बाई 1600 किलोमीटर (शाखाओं और उप-शाखाओं सहित) है। इस नहर द्वारा आगरा, मथुरा और भरतपुर जिलों की भूमि सीची जाती है।
बेतवा नहर: इस नहर का निर्माण बेतवा नदी के जल से किया गया है। यह परीक्षा (झांसी के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर का निर्माण अंग्रेजी शासनकाल में 1885 ई. में हुआ था। परीक्षा के पास नहर निकालने के लिए बनाया गया बांध ‘S’ की आकृति का है। इस नहर द्वारा झांसी, जालौन और हमीरपुर जिलों (उत्तर प्रदेश के पठारी भाग) की भूमि सींची जाती है।
केन नहर: इस नहर का निर्माण केन नदी के जल से किया गया है। यह नहर पन्ना (मध्य प्रदेश) से निकाली गयी है। इस नहर द्वारा बांदा (उत्तर प्रदेश) और छतरपुर (मध्य प्रदेश) की भूमि सीची जाती है।
बेलन नहर: इस नहर का निर्माण बेलन नदी के जल से किया गया है। यह नहर रीवा (मध्य प्रदेश) के समीप से निकाली गयी है। इस नहर द्वारा रीवा (मध्य प्रदेश) और इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) की भूमि सीची जाती है।
कालागढ़ नहर: इस नहर का निर्माण रामगंगा नदी के जल से किया गया है। यह नहर अभी निर्माणाधीन है। इस नहर का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद बिजनौर, नगीना, धामपुर आदि जिलों की भूमि को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा सकेगी।
इन स्वतंत्र नहरों के अतिरिक्त भी विभिन्न परियोजनाओं के तहत अनेक नहरों का निर्माण किया गया है।
माताटीला बांध की नहरें: झांसी के दक्षिण बेतवानदी से दो नहरें निकाली गयी हैं- गुरुसराय नहर और मंदर नहर।
रामगंगा परियोजना की नहरें: गढ़वाल (उत्तराखण्ड) जिले के समीप रामगंगा नदी से अनेक नहरें निकाली गयी हैं।
रिहन्द परियोजना की नहरें: मिर्जापुर जिले के समीप सोन नदी की सहायक रिहन्द नदी पर निर्मित गोविन्द वल्लभ सागर से नहरें निकालकर उत्तर प्रदेश और बिहार में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना है।
शारदा सहायक परियोजनाकी नहरें: शारदा नदी पर चल रही इस परियोजना से नहरें निकालकर उत्तर प्रदेश की भूमि में सिंचाई की व्यवस्था की गई है।
चन्द्रप्रभा बाँध की नहरें: चन्द्रप्रभा नदी पर चकिया नामक स्थान से नहरें निकाली गई हैं और इन नहरों द्वारा चकिया एवं चन्दोली तहसीलों की लगभग 960 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।
नौगढ़ बांध की नहरें: कर्मनाशा नदी पर निर्मित नौगढ़ बांध के समीप चन्दोली नामक स्थान से नहरें निकालकर चन्दोली, मिर्जापुर और जमनियां की भूमि में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है ।
इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में सपरार बांध की नहरों, अर्जुन बांध की नहरों, रंगावन बांध की नहरों, ललितपुर बांध की नहरों, नगवा बांध की नहरों, वेनगंगा नहर, नायर बांध की नहरों आदि से भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।
पंजाब एवं हरियाणा की नहरें: भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नहरों का सर्वाधिक विकास पंजाब तथा हरियाणा में ही हुआ है। इन दोनों राज्यों के संबंध में तो यहां तक कहा जाता है कि इनकी खुशहाली का आधार ही नहर-तंत्र है और सचमुच ऐसा ही है। पंजाब और हरियाणा अल्प-वर्षा वाले क्षेत्र हैं, किन्तु नहरों द्वारा सिंचाई की समुचित व्यवस्था के कारण ये भारत के अग्रणी फसलोत्पादक राज्य बन गए हैं। इन राज्यों की प्रमुख नहरें हैं-
पश्चिमी यमुना नहर: इस नहर का निर्माण यमुना नदी के जल से किया गया है। इसका निर्माण सल्तनतकालीन तुगलक शासक फिरोजशाह ने 14वीं शताब्दी में करवाया था। 17वीं शताब्दी में शेरशाह द्वारा और 1886 में अंग्रेजी शासन द्वारा इस नहर का पुनर्निर्माण किया गया। यह नहर ताजेवाला (अम्बाला जिले के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर की तीन शाखाएं हैं- दिल्ली शाखा, हांसी शाखा और सिरसा शाखा। इस नहर की कुल लम्बाई 3040 किलोमीटर है (शाखाओं और उप-शाखाओं सहित)। इस नहर द्वारा करनाल और हिसार (हरियाणा) तथा पटियाला (पंजाब) के साथ दिल्ली और राजस्थान की भूमि सीची जाती है।
सरहिन्द नहर: इस नहर का निर्माण सतलज नदी के जल से किया गया है। यह नहर रोपड़ (अम्बाला) से निकाली गयी है। इस नहर की कुल लम्बाई 6000 किलोमीटर है (शाखाओं सहित)। इस नहर द्वारा हिसार (हरियाणा) तथा पटियाला, लुधियाना और फिरोजपुर (पंजाब) जिलों की भूमि सीची जाती है।
ऊपरी बारी दोआब नहर: इस नहर का निर्माण रावी नदी के जल से किया गया है। यह नहर माधोपुर (पठानकोट के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर की कुल लम्बाई 4900 किलोमीटर है (सभी शाखाओं सहित)। इस नहर द्वारा गुरुदासपुर और अमृतसर जिलों (पंजाब) की भूमि सीची जाती है।
बहुउद्देश्यीय परियोजना की नहरें भाखड़ा- नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी चालू बहुउद्देशीय परियोजना है और इसी के अंतर्गत नंगल नहर का निर्माण किया गया है और इसी के अंतर्गत नंगल नहर का निर्माण किया गया है। इस नहर द्वारा पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की लगभग 20 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है। इस परियोजना के अंतर्गत ही फिरोजपुर नहर का भी निर्माण किया गया है। यह नहर 1953 ई. में बनी। माधोपुर व्यास सम्पर्क नहर खोदकर रावी नदी का अतिरिक्त जल इस नहर के लिए उपलब्ध कराया गया है। सतलज नदी पर सुलेमान तथा इस्लामपुर में भी बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं। यमुना नदी से ओखला (दिल्ली) नामक स्थान से गुड़गांव नहर निकाली गयी है। इस नहर द्वारा गुड़गांव (हरियाणा) और फिरोजपुर जिले (पंजाब) की भूमि के साथ-साथ राजस्थान की भूमि भी सींची जाती है।
भाखड़ा-नांगल परियोजना के अंतर्गत भाखड़ा नहर का भी निर्माण किया गया है, जिससे हिसार, करनाल और रोहतक जिलों (हरियाणा) की भूमि सींची जाती है। व्यास परियोजना के अंतर्गत व्यास-सतलज श्रृंखला और पोंग बांध से निकाली गयी नहरों द्वारा पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की भूमि सींची जाती है।
बिहार की नहरें: बिहार में कृषि योग्य पर्याप्त भूमि होने के बावजूद कृषि का स्तर सामान्य है। पूर्वी भाग में तो वर्षा हो जाती है, किन्तु पश्चिमी भाग में वर्षा का स्तर न्यून ही है। इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए नहरों पर निर्भरता अधिक है।
सोन नहर: इस नहर का निर्माण सोन नदी के जल से किया गया है। इसकी दो शाखाएं हैं- पूर्वी और पश्चिमी। नहर की पूर्वी शाखा वारुन से निकाली गयी है। इस शाखा द्वारा औरंगाबाद, गया और पटना जिलों की सिंचाई होती है।
त्रिवेणी नहर: इस नहर का निर्माण गण्डक नदी के जल से किया गया है। यह नहर त्रिवेणी (नेपाल की सीमा के समीप) से निकाली गयी है। इस नहर द्वारा बेतिया जिले की भूमि की सिंचाई की जाती है।
ढाका और तेऊर नहरें: चम्पारण जिले के लालवाकिया और तेऊर नदियों के जल से इस नहर का निर्माण किया गया है। इस नहर द्वारा चम्पारण के उत्तर-पूर्वी भाग की भूमि की सिंचाई की जाती है।
कमला नहर: इस नहर का निर्माण कमला नदी के जल से किया गया है। इस नहर द्वारा बिहार और नेपाल की सीमा पर स्थित मधुबनी जिले की भूमि की सिंचाई की व्यवस्था की गई है।
सकरी नहर: इस नहर का निर्माण गंगा की सहायक सकरी नदी के जल से किया गया है। इस नहर का निर्माण 1850 ई. में ही हो गया था। इस नहर द्वारा मुंगेर, गया, पटना आदि जिलों की भूमि की सिंचाई की व्यवस्था की जाती है।
इन स्वतंत्र नहरों के अतिरिक्त बिहार में बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के अंतर्गत निकाली गई नहरों से भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं की नहरें इस प्रकार हैं-
कोसी परियोजना की नहरें: कोसी परियोजना के अंतर्गत दो नहरों का निर्माण हुआ है- पूर्वी कोसी नहर और पश्चिमी कोसी नहर। पूर्वी कोसी नहर हनुमान नगर की बायीं ओर से पूर्णिया की ओर निकाली गयी है, जबकि पश्चिमी नहर हनुमान नगर की दायीं ओर से मुजफ्फरपुर की ओर निकाली गयी है। इन नहरों से बिहार की भूमि की सिंचाई की व्यवस्था की जाती है। इन नहरों से नेपाल में भी सिंचाई की व्यवस्था की जा रही है। पूर्वी कोसी नहर की एक शाखा रामपुर नहर है।
गण्डक परियोजना की नहरें: गण्डक परियोजना उत्तर-प्रदेश और बिहार की संयुक्त परियोजना है और इससे नहरें निकालकर दोनों राज्यों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। गण्डक नदी पर भैंसालोटन नामक स्थान पर एक लम्बा बांध बनाकर दो नहरें निकाली गयी हैं। इन दोनों नहरों का नाम क्रमशः तिरहुत नहर और सारण नहर है।
तेनूघाट परियोजना की नहर: दामोदर नदी पर एक झील को बांध का रूप देने के लिए निर्माण कार्य चल रहा है। इसका निर्माण कार्य 1965 ई. में शुरू हुआ था और अभी भी निर्माणाधीन है। 1970 ई. से इस बांध से निकाली गयी नहर द्वारा बोकारो इस्पात संयंत्र को जल की आपूर्ति की जा रही है।
आंध्र प्रदेश की नहरें: भारत के जिन राज्यों में सिंचाई के साधन के रूप में तालाबों के जल का उपयोग किया जाता है, उनमें आंध्र प्रदेश का स्थान सर्वप्रमुख है। आंध्र प्रदेश के डेल्टाई क्षेत्र में नहरें भी सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। आध्र प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में मानसूनी वर्षा बहुत ही कम होती है, इसलिए यहाँ सिंचाई की कृत्रिम व्यवस्था महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आन्ध्र प्रदेश में जिन प्रमुख नहरों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की गयी है वे हैं-
गोदावरी डेल्टा की नहरें: गोदावरी डेल्टा निर्माण के क्रम में कई भागों में बंट गयी है और इन विभक्त भागों पर बांध बनाकर उससे 4000 किलोमीटर लम्बी अनेक नहरें निकाली गई हैं।
कृष्णा डेल्टा की नहरें: कृष्णा के डेल्टा प्रदेश में सिंचाई की व्यवस्था के लिए विजयवाड़ा के निकट बांध बनाकर तथा कृष्णा और गोदावरी नदी को जोड़कर अनेक नहरों का निर्माण किया गया है।
इन नहरों के अतिरिक्त विभिन्न बहुद्देशीय परियोजनाओं के अंतर्गत निकली गई नहरों से भी आंध्र प्रदेश में सिंचाई की अच्छी सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। बहुउद्देश्यीय परियोजना की नहरें निम्न हैं-
तुंगभद्रा परियोजना की नहरें: कृष्णा की सहायक तुंगभद्रा नदी पर मालपुरम् में 2,440 मीटर ऊंचा बांध बनाकर अनेक नहरें निकाली गई हैं। इन नहरों द्वारा आंध्र प्रदेश की लगभग भूमि की सिंचाई की जाती है।
नागार्जुन सागर परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण कृष्णा नदी के जल से किया गया है। ये नहरें नागार्जुन सागर बांध से निकाली गयी हैं। इन नहरों द्वारा आंध्र प्रदेश की भूमि की सिंचाई की जाती है।
रामपद सागर तथा गोदावरी घाटी परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण गोदावरी नदी के जल से किया गया है। रामपद सागर परियोजना के अंतर्गत गोदावरी के समीप से एक नहर निकाली गई है।
कृष्णा-पेन्नार परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण कृष्णा नदी और पेन्नार नदी के जल से किया गया है। कृष्णा नदी पर सिद्धेश्वर नामक स्थान पर तथा पेन्नार नदी पर सोमेश्वर नामक स्थान पर बांधों का निर्माण कर 1296 किलोमीटर लम्बे बांध निकाले गए हैं।
कृष्णा बेराज योजना की नहर: कृष्णा बेराज कृष्णा डेल्टा के बांध से 3 किलोमीटर ऊपर है। इस बेराज का निर्माण 1956 ई. में ही किया गया।
पोचम्पाद परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण गोदावरी नदी के जल से किया गया है।
तमिलनाडु की नहरें: तमिलनाडु दक्षिण भारत का एक राज्य है और यहां भी अधिकांश सिंचाई तालाबों द्वारा होती है। जिन प्रमुख नहरों द्वारा इस राज्य में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है, वे हैं-
कावेरी डेल्टा की नहरें: इन नहरों का निर्माण कावेरी नदी की डेल्टाई भागों में बंटी हुई शाखा पर बांध बनाकर किया गया है। कावेरी डेल्टा उर्वरता की दृष्टि से प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट रहा है। इसलिए, यहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना नितांत आवश्यक था। कावेरी नदी पर (कोलेरून शाखा पर) एनीकट नामक बांध बनाकर 6400 किलोमीटर लम्वी एक नहर (शाखाओं सहित) निकाली गयी है।
पेरियार परियोजना की नहरें: पेरियार नदी को पश्चिमी घाट में 47 किलोमीटर लम्बी सुरंग बनाकर
पूर्व की ओर मोड़कर वैगे नदी में मिलाया गया और यहाँ बांध बनाकर नहरें निकली गई हैं।
मैटूर बांध की नहरें: इन नहरों का निर्माण कावेरी नदी के जल से किया गया है। कावेरी नदी पर मैटूर बांध बनाकर वहां से 200 किलोमीटर लम्बा ग्राण्ड एनीकट व बदावर नहरों से जल कावेरी डेल्टा के क्षेत्र में पहुंचाया जाता है।
निम्न प्रवानी परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण कावेरी की सहायक भवानी नदी के जल से किया गया है। भवानी नदी पर बांध बनाकर 200 किलोमीटर लम्बी नहर निकाली गई है।
मणिमूथर योजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण मणिमूथर नदी के जल से किया गया है। मणिमूथर नदी पर मिट्टी का बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं।
अमरावती योजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण कावेरी की सहायक अमरावती नदी के जल से किया गया है।
पराम्बिकुलम-अलियार योजना की नहरें: अन्नामलाई की पहाड़ियों की 5 नदियों के संगम पर बांध बनाकर नहरों का निर्माण किया गया है। बांध का पानी सुरंगों द्वारा कोयम्बटूर (तमिलनाडु) और त्रिचूर (केरल) जिलों की भूमि की सिंचाई हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
केरल की नहरें: केरल भारत का दक्षिणतम राज्य है और यहां वर्षा की अनिश्चितता बनी रहती है। इस राज्य में कृषि योग्य भूमि प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। इस राज्य में नहर-तंत्र के विकास की ओर विशेष ध्यान आकृष्ट किया गया है।
मालमपूजा योजनाओं की नहरें: मालमपूजा नदी पर नहर का निर्माण कर वर्तमान में 16 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है।
वलयार नहर: वलयार नदी (पेरियार की सहायक नदी) पर 15 किलोमीटर लम्बी चार नहरों का निर्माण किया गया है।
मंगलम योजना की नहरें: पालघाट स्थित मंगलम नदी पर बांध का निर्माण कर दी नहरें निकाली गयी हैं, जिनकी लम्बाई क्रमशः 25 कि.मी. तथा 13 कि.मी. है।
पेयरियार घाटी योजना की नहरें: इस नहर का निर्माण पेरियार नदी पर किया गया है। इस नदी पर 1210 मीटर लम्बे बांध का निर्माण कर 26 कि.मी. लम्बी नहरें निकाली गयी हैं।
पश्चिम बंगाल की नहरें: पश्चिम बंगाल भारत के पूर्वी क्षेत्र में पड़ता है और यहां दक्षिण-पश्चिम मानसून से तथा लौटते हुए मानसून से अच्छी वर्षा हो जाती है। इसके अधिकांश क्षेत्र निश्चित वर्षा वाले हैं, इसलिए नहरों की आवश्यकता कम है परन्तु यहाँ नहर-तंत्र का विकास बहुत अच्छी तरह से हुआ है। जिन प्रमुख नहरों द्वार पश्चिम बंगाल की भूमियों की सिंचाई की जाती है वे हैं-
मिदनापुर नहर: कोसी नदी पर मिदनापुर के पास से यह नहर निकाली गयी है, जिसकी लम्बाई 518 किलोमीटर है।
दामोदर नहर: यह नहर बंगाल का शोक नाम से प्रसिद्ध दामोदर नदी से निकाली गई है। यह 414 किलोमीटर की दूरी में फैली हुई है।
एडेन नहर: यह नहर भी दामोदर नदी से निकाली गयी है। इसकी लम्बाई 72 किलोमीटर है। एडेन नहर से बर्द्धवान जिले में सिंचाई कार्य सम्पन्न किया जाता है।
कुलाईखाल नहर: कुलाईखाल के पास से निकाली गई इस नहर की कुल लम्बाई 3 किलोमीटर है। इन स्वतंत्र नहरों के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल में बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के अंतर्गत निकाली गयी नहरों से भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। बहुउद्देश्यीय परियोजनाएं की नहरें इस प्रकार हैं-
मयूराक्षी योजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण मैसनजोर नामक स्थान पर बांध बनाने के पश्चात् हुआ है। इस योजना के अंतर्गत 1,368 कि.मी. लम्बी नहरें निकाली गयी हैं। इन नहरों के द्वारा बंगाल और बंगाल और बिहार राज्य को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो रही है।
दामोदर घाटी योजना की नहरें: इस बहुउद्देशीय योजना की नहरों का निर्माण दामोदर नदी पर बांध बनाने के फलस्वरूप हुआ। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से बनायीं गयी ये नहरें बर्द्धवान, हुगली तत्थ आसनसोल जिलों की भूमि को सिंचित करने का क्षमता रखती है।
कांगसाबती योजना की नहरें: ये नहरें कुमारी तथा कांगसाबती योजना पर बांध बनाकर निकाली गयी हैं। इन नहरों से पूर्णिया, बांकुरा, मिदनापुर एवं हुगली जिलों की भूमि सिंचित की जा रही है।
फ़रक्का परियोजना की नहरें: इस परियोजना के अंतर्गत जंगीपुर में भगीरथी नदी पर बांध बनाकर 39 कि.मी. लम्बी फीडर नहरें बनायी गयी हैं। इन नहरों के द्वारा सिंचाई की समुचित सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की नहरें: मध्य प्रदेश भारत का मध्यवर्ती राज्य है और यहां कृषि योग्य भूमि की प्रचुरता है। इस राज्य में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में प्रथम योजनाकाल से ही कदम उठाए गए हैं। जिन प्रमुख नहरों द्वारा इस राज्य में भूमि की सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है, वे हैं-
चम्बल की नहरें: इन नहरों का निर्माण चम्बल नदी के जल से किया गया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार ने संयुक्त रूप से चम्बल नदी पर बांध बनाकर अनेक नहरें निकाली हैं।
मोलाबांध की नहरें: इन नहरों का निर्माण मोला नदी के जल से किया गया है। मोला नदी पर दमदमा में बांध बनाकर अनेक नहरें निकाली गई हैं।
वेनगंगा नहर: इस नहर का निर्माण वेनगंगा नदी के जल से किया गया है।
तवा परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण नर्मदा की सहायक तवा नदी के जल से किया गया है। तवा नदी पर बांध बनाकर दो नहरें निकली गई हैं।
तांदुला नहर: इस नहर का निर्माण सूखा और तांदुला नदियों के जल से किया गया है। सूखा और तांदुला नदियों के संगम पर बांध बनाकर नहर का निर्माण किया गया है। इस नहर द्वारा रायपुर और दुर्ग जिलों (छत्तीसगढ़) की भूमि की सिंचाई की जा रही है।
महानदी की नहरें: इन नहरों का निर्माण महानदी नदी के जल से किया गया है। महानदी नदी पर रुद्रपुर (छत्तीसगढ़) में बांध बनाकर कुल 1520 किलोमीटर लम्बी नहर निकाली गयी है (शाखाओं सहित)।
बरना की नहरें: इन नहरों का निर्माण नर्मदा की सहायक बारना नदी के जल से किया गया है। बारना नदी पर बांध बनाकर दायीं और बायीं ओर से दो नहरें निकाली गयी हैं।
हलाली नहर: इस नहर का निर्माण बेतवा नदी के जल से किया गया है। बेतवा घाटी विकास परियोजना के अंतर्गत विदिशा जिले (मध्य प्रदेश) में हलाली सिंचाई परियोजना के अंतर्गत 761 किलोमीटर लम्बी नहर निकाली गई है।
गुजरात की नहरें: गुजरात भारत का पश्चिमवर्ती राज्य है। इसके कुछ क्षेत्र समुद्र तट पर भी हैं। इस राज्य से होकर अनेक नदियां गुजरती हैं और इन नदियों पर बांध बनाकर और उनसे नहरें निकालकर सिंचाई की व्यवस्था की गई है। जिन प्रमुख नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है, वे हैं-
ताप्ती नहर: इस नहर का निर्माण ताप्ती नदी के जल से किया गया है। ताप्ती नदी पर 621 मीटर लम्बा बांध बनाकर 882 किलोमीटर लम्बी दो नहरें निकाली गयी हैं।
माही परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण माही नदी के जल से किया गया है। माही नदी पर कादाना तथा वानाकबारी गांव के समीप दो बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं।
उकाई परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण ताप्ती नदी के जल से किया गया है। ताप्ती नदी पर उकाई (सूरत) के समीप बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं।
रुद्रमाता नहर: इस नहर का निर्माण रुद्रमाता (कच्छ) में किया गया है। इसका निर्माण कार्य 1961 में ही पूर्ण हो चुका था।
औजट नहर: इस नहर का निर्माण कार्य 1960-61 ई. में पूर्ण हो गया था। इसके अतिरिक्त बनास नहर का निर्माण कार्य चल रहा है।
महाराष्ट्र की नहरें: महाराष्ट्र भारत का दक्षिणी-पश्चिमी राज्य है और इसके भी कुछ क्षेत्र समुद्र के तट पर स्थित हैं। इस राज्य में कृषि योग्य भूमि की अधिकता है और नदियों से निकाली गई नहरों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की गयी है। महाराष्ट्र में जिन प्रमुख नहरों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की जा रही है, वे हैं-
जायकवाड़ी परियोजना की नहर: इन नहरों का निर्माण गोदावरी नदी के जल से किया गया है। गोदावरी नदी पर 37 मीटर ऊंचा बांध बनाकर 185 किलोमीटर लम्बी नहर निकाली गयी है।
नासिक नहर: इस नहर का निर्माण गोदावरी नदी के जल से किया गया है। गोदावरी नदी पर नासिक में बांध बनाकर दो नहरें निकाली गई हैं- दाहिनी नहर 8 किलोमीटर लम्बी है जबकि बायीं नहर 38 किलोमीटर लम्बी है।
नीरा नहर: इस नहर का निर्माण कृष्णा की सहायक नीरा नदी के जल से किया गया है। नीरा नदी पर बांध बनाकर 172 किलोमीटर लम्बी नहर निकाली गई है। इस नहर द्वारा पूना और शोलापुर की भूमि की सिंचाई की जाती है।
भीमा नहर: इस नहर का निर्माण भीमा नदी के जल से किया गया है। भीमा नदी पर पुणे और शोलापुर में बांध बनाकर लम्बी नहरें निकाली गई हैं।
खड़गवासला की नहरें: इस नहर का निर्माण भीमा की सहायक मूण नदी के जल से किया गया है। मूण नदी पर 1897 में बांध का निर्माण किया गया था। यहां से दो नहरें निकाली गई हैं- दाहिनी नहर 112 किलोमीटर लम्बी है, जबकि बायीं नहर 29 किलोमीटर लम्बी है।
मूला परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण मूला नदी के जल से किया गया है। मूला नदी पर अहमदनगर में 2820 मीटर लम्बा तथा 47 मीटर ऊंचा बांध बनाकर दो नहरें निकाली गई हैं- एक 58 किलोमीटर लम्बी है, जबकि दूसरी 18 किलोमीटर लम्बी।
भाटागर बांध की नहरें: इन नहरों का निर्माण कृष्णा की सहायक नीरा नदी के जल से हुआ है। नीरा नदी पर भाटागर के समीप लायड बांध बनाकर दायीं और बायीं ओर से दो नहरें निकाली गई हैं।
नालगंगापरियोजना की नहर: इस नहर का निर्माण नालगंगा नदी के जल से किया गया है। नालगंगा नदी पर संगलाद गांव के समीप बांध का निर्माण कर नहर निकाली गयी है।
प्रवरापरियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण गोदावरी की सहायक प्रवरा नदी के जल से किया गया है। प्रवरा नदी पर बांध बनाकर 136 किलोमीटर लम्बी नहरें निकाली गई हैं।
पूर्णानहर: इस नहर का निर्माण पूर्णा नदी के जल से किया गया है। पूर्णा नदी पर दो बांधों का निर्माण कर नहरें निकाली गई हैं।
गिरना नहर: यह नहर 198 किलोमीटर लम्बी है।
कर्नाटक की नहरें: कर्नाटक दक्षिण भारत का एक प्रमुख राज्य है और इस राज्य में अनेक नदियां प्रवाहित होती हैं। जिन प्रमुख नहरों द्वारा कर्नाटक में भूमि की सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवायी जा रही है, वे हैं-
तुंगा बांध की नहरें: इन नहरों का निर्माण तुंगभद्रा की सहायक तुंगा नदी के जल से हुआ है। तुंगा नदी पर बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं।
मालप्रभा योजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण मालप्रभा नदी के जल से किया गया है। मालप्रभा नदी पर 164 मीटर लम्बा बांध बनाकर नहरें निकाली गई हैं।
भद्रा नहर: इस नहर का निर्माण भद्रा नदी के जल से किया गया है। भद्रा नदी पर बांध बनाकर नहर निकाली गई है।
कृष्णराजसागर की नहरें: इन नहरों का निर्माण कृष्णराजसागर के जल से किया गया है।
कृष्णा परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण कृष्णा नदी के जल से किया गया है और इन नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।
घाटप्रभायोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण घाटप्रभा नदी के जल से किया गया है और इन नहरों द्वारा बेलगांव तथा बीजापुर में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।
उड़ीसा की नहरें: उड़ीसा भारत का दक्षिण-पूर्वी राज्य है। जिन प्रमुख नहरों द्वारा उड़ीसा में भूमि की सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है, वे हैं-
हीराकुंड परियोजना की नहरें: इन नहरों का निर्माण महानदी के जल से किया गया है। महानदी पर हीराकुड बांध बनाकर लम्बी नहरें निकाली गई हैं।
महानदी डेल्टा की नहरें: इन नहरों का निर्माण महानदी के जल से किया गया है। हीराकुंड बांध की पृष्ठभूमि में निर्मित कृत्रिम जलाशय से जल प्राप्त कर इन नहरों द्वारा सिंचाई की जा रही है।