महिला हेल्पलाइन के सार्वभौमिकरण की योजना हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे तत्काल और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए है। 01 अप्रैल 2015 को लॉन्च किया गया
महिलाओं और युवतियों पर कहीं एसिड अटैक हो रहे हैं, तो कहीं लगातार हत्याएँ-बलात्कार हो रहे हैं। इन घटनाओं से निपटने के लिए भारतीय नेतृत्व में इच्छा-शक्ति तो बढ़ी है लेकिन विडम्बना यह है कि आम नागरिक महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर स्वाभाव से ही पुरुष वर्चस्व के पक्षधर और सामंती मनःस्थिति के कायल हैं। हमारे देश-समाज में स्त्रियों का यौन उत्पीड़न लगातार जारी है लेकिन यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि सरकार, प्रशासन, न्यायालय, समाज और सामाजिक संस्थाओं के साथ मीडिया भी इस कुकृत्य में कमी लाने में सफल नहीं हो पायी है।
देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, दहेज के लिये जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और स्त्रियों की ख़रीद-फरोख्त के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। साथ ही, छोटे से बड़े तक हर स्तर पर असमानता और भेदभाव के चलते इसमें गिरावट के निशान कभी नहीं देखे गए। देश में, लोगों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी ही नहीं है और अगर जानकारी है भी तो इसका पालन पूरी गंभीरता और इच्छा शक्ति से नहीं किया जाता है। महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों के बाद भी महिलाएँ अपने असल अधिकार से कोसों दूर हैं।
उद्देश्य:
समर्थन और सूचना मांगने वाली हिंसा से प्रभावित महिलाओं को टोल-फ्री 24 घंटे की दूरसंचार सेवा प्रदान करना।
पुलिस / अस्पतालों / एम्बुलेंस सेवाओं / जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) / संरक्षण अधिकारी (PO) जैसी उपयुक्त एजेंसियों के लिए रेफरल के माध्यम से संकट और गैर-संकट हस्तक्षेप में मदद करने के लिए।
हिंसा से प्रभावित महिला को उपलब्ध उचित सहायता सेवाओं, सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए
निम्नलिखित में से किसी भी महिला हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें । महिला हेल्पलाइन पर कॉल करें: 181 टोल फ्री
कॉल 1091- पुलिस हेल्पलाइन, 102 (अस्पताल / एम्बुलेंस) और 108 (आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाएं) वन स्टॉप सेंटर (OSC) से संपर्क करें
महिला अत्याचार के खिलाफ कड़े कानून
- घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
- कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, दहेज़ मृत्यु, बलात्कार, अपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ़्तारी और न्यायिक दंड व्यवस्था का जिक्र इसमें किया गया है। इसके अलावा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के भी अनेक प्रयास किये गए हैं ताकि वे अपने विरुद्ध होने वाले अत्याचार का मुकाबला कर सकें। जैसे- पुरुष व स्त्री को समान काम के लिए समान वेतन का प्रावधान, कार्य-स्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव से सुरक्षा और महिला कर्मचारियों के लिए अलग शौचालयों और स्नानगृहों की व्यवस्था की अनिवार्यता इत्यादि।
नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई करने और उन्हें यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के मकसद से लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act: POCSO ACT 2012) पारित किया गया है। 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के साथ किया गया किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के तहत आता है। पॉक्सो एक्ट लड़के और लड़कियों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं इस कानून के तहत रजिस्टर मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।
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