संघ की विधायिका FOR UPSC IN HINDI

संघ की विधायिका

भारत की केन्द्रीय विधायिका का नाम संसद है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है। अनुच्छेद 79 के अनुसार भारत की विधायिका सहित दो सदन राज्य सभा एवं लोक सभा हैं।

परिचय

  • भारत ने संसदीय लोकतंत्र अपनाया है। वेस्टमिंस्टर (इंग्लैण्ड) के नमूने पर ढाला गया है।
  • भारत शासन अधिनियम 1935 ई. मेँ परिसंघ की स्थापना की और इंग्लैण्ड की संसदीय प्रणाली की नकल की।
  • संसद के निचले सदन को लोकसभा तथा उच्च सदन राज्यसभा कहते हैं।
  • लोकसभा मे जनता का प्रतिनिधित्व होता है, राज्यसभा मेँ भारत के संघ राज्योँ का प्रतिनिधित्व होता है।
  • राज्यसभा मेँ 250 से अधिक सदस्य नहीँ हो सकते, इसमें 238 सदस्य राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्दिष्ट किए जाते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा नामित 12 व्यक्ति वह होते हैं, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र मेँ विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो।
  • राज्यसभा को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त है। यदि राज्यसभा संसद के राष्ट्रहित मेँ जरुरी राज्य सूची मेँ शामिल किसी मामले के संबंध मेँ कानून बनाए और दो-तिहाई बहुमत से राज्यसभा इस आशय का कोई संकल्प पारित कर देती है तो संसद समूचे भारत या उसके किसी भाग के लिए विधियां बना सकती है।
  • इसके अलावा यदि राज्य सभा मेँ उपस्थित और मत देने वाले सदस्योँ मेँ कम से कम दो तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित कर दें कि राष्ट्रीय हित मेँ यह करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद विधि द्वारा संघ और राज्योँ के लिए सम्मिलित एक या अधिक भारतीय सेवाओं के सृजन के लिए उपबंध कर सकती है, (अनुच्छेद-312)।
  • प्रत्येक राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्योँ द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा राज्यसभा के लिए अपने प्रतिनिधियोँ का निर्वाचन किया जाता है।
  • भारत मेँ राज्योँ को राज्यसभा मेँ समान प्रतिनिधित्व नहीँ दिया गया है।
  • संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधियों के द्वारा निर्वाचन की रीति संसद विधि द्वारा निश्चित करती है।
  • लोकसभा मेँ अधिक से अधिक 552 सदस्य हो सकते हैं। इनमेँ से राज्योँ के प्रतिनिधि 530 एवं संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि 20 से अधिक नहीँ हो सकते, दो व्यक्ति राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय मेँ से नाम निर्दिष्ट किए जा सकते हैं।
  • लोक सभा के सदस्योँ का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर राज्य की जनता के द्वारा किया जाता है।
  • लोकसभा मेँ केवल अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण प्रदान किया गया है, अन्य किसी को नहीँ।
  • लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व भी इसका विकटन हो सकता है।
  • लोकसभा के लिए 25 वर्ष और राज्य सभा के लिए उम्मीदवार की उम्र 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
  • लोकसभा नव-निर्वाचन के पश्चात् अपनी पहली बैठक मेँ जिसकी अध्यक्षता लोकसभा का वरिष्ठतम सदस्य करता है, लोकसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।
  • किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित विवाद का अंतिम विनिमय चुनाव आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।
  • यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन के सभी अधिवेशन से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।
  • संसद सदस्योँ को दिए गए विशेषाधिकारोँ के अंतर्गत किसी भी संसद सदस्य को अधिवेशन के समय या समिति, जिसका वह सदस्य की बैठक के समय अथवा अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से उमुक्ति प्रदान की गई है।
  • संसद सदस्योँ को दी गई यह गिरफ्तारी से उन्मुक्ति केवल सिविल मामलोँ मेँ है, आपराधिक मामलोँ अथवा निवारक निरोध की विधि के अधीन गिरफ्तारी से छूट नहीँ है।
  • लोकसभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष संसद के जीवन काल तक अपना पद धारण करते हैं। अध्यक्ष दूसरी बार नव-निर्वाचित लोक सभा की प्रथम बैठक के पूर्व तक अपने पद पर बना रहता है।
  • यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीँ रहते हैं, तो वह अपना पद त्याग करेंगे।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को त्यागपत्र देता है।
  • 14 दिन की पूर्व सूचना देकर लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्योँ के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है।
  • अध्यक्ष निर्णायक मत देने का अधिकार है।
  • कोई विधेयकधनविधेयकहैअथवानहीँइसका निश्चय लोकसभा अध्यक्ष करता है तथा उसका निश्चय अंतिम होता है।
  • दोनो सदनो की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
  • राज्य सभा का सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है तथा राज्य सभा अपना एक उपसभापति भी निर्वाचित करती है।
  • साधारण विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन मेँ प्रारंभ किए जा सकते हैं।
  • धन विधेयक केवल लोकसभा मेँ ही प्रारंभ किया जा सकता है तथा धन विधेयक मेँ राज्यसभा कोई संशोधन नहीँ कर सकती।
  • धन विधेयक कि परिभाषा अनुच्छेद 110 में वर्णित है तथा धन विधेयक को राज्यसभा 14 दिन में अपनी सिफारिशोँ के साथ वापस कर देती है।
  • साधारण विधेयक को छह माह तक रोका जा सकता है तथा किसी विधेयक पर (धन विधेयक को छोड़कर) दोनो सदनोँ मेँ मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनो सदनोँ का संयुक्त अधिवेशन आयोजित कर सकता है।
  • संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है, लेकिन यदि वह उपस्थित न हो तो सदन का उपाध्यक्ष, यदि वह भी अनुपस्थित हो जाए तो राज्य सभा का उपसभापति, यदि वह भी अनुपस्थित हो तो ऐसा अन्य व्यक्ति अध्यक्ष होगा जो उस बैठक मेँ उपस्थित सदस्य द्वारा निश्चित किया जाए।
  • लोकसभा मेँ अध्यक्ष की अनुपस्थिति मेँ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति मेँ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए वरिष्ठ सदस्यों के पैनल मेँ कोई व्यक्ति पीठासीन होता है।
  • राज्यसभा मेँ सभापति की अनुपस्थिति मेँ उपसभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति मेँ निर्धारित पैनल का सदस्य अध्यक्ष होता है तथा संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए दोनो सदनों की संयुक्त बैठक नहीँ होती है।
  • साधारण विधेयक पर दोनो सदनोँ मेँ पृथक रुप से तीन वाचन होते हैं, तो वह राष्ट्रपति के अनुमति हस्ताक्षर से अधिनियम बन जाता है।
  • भारत की संचित निधि पर राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राष्ट्र राज्य सभा के सभापति व उप सभापति के वेतन भत्ते आदि तथा उच्चं न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन भारित होती है।
  • संसद राज्य सूची के किसी विषय पर विधि का निर्माण कर सकती है। जब राज्यसभा मेँ उपस्थित और मत देने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्य उस विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करेँ।
  • राज्य सभा, सदन मेँ उपस्थिति एवं मतदान देने वाले सदस्योँ के दो-तिहाई बहुमत से यह संकल्प पारित कि संघ एवं राज्योँ के हित के लिए किसी नई अखिल भारतीय सेवा के सृजन की आवश्यकता है, तो नई अखिल भारतीय सेवा का सृजन किया जा सकता है।

विधेयकोंकेप्रकार

सामानयविधेयक

  • धन विधेयक, वित्त और संविधान संशोधन विधेयक से भिन्न अन्य कोई विधेयक।
  • किसी भी सदन मेँ पुरःस्थापित किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद-3 के अंदर लाए गए विधेयक के अलावा, ऐसे विधेयक की पुरःस्थापना के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश की जरुरत नहीँ होती है।
  • दोनो सदनोँ के पास समान शक्तियां हैं।
  • साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जाता है।
  • गतिरोध की स्थिति मेँ दोनो सदनो की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
  • विधेयक पारित होने के बाद जब राष्ट्रपति के पास उसकी अनुमति के लिए भेजा जाता है, तो वह विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए उसे संसद को वापस भेज सकता है।

धनविधेयक

  • एसा विधेयक जिसमें केवल अनुच्छेद 110 मेँ दिए हुए एक या अधिक विषयों से संबंधित उपबंध होता है।
  • किसी कर का अधिरोपण, उत्पादन, परिवर्तन या विनियमन।
  • भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन।
  • भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा (ऐसी किसी निधि मेँ धन जमा करना या उसमेँ से धन निकालना)।
  • भारत की संचित निधि मेँ से धन का विनियोग।
  • किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारत व्यय घोषित करना या ऐसे व्यय की रकम को बढ़ाना।
  • भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखों से धन प्राप्त करना।
  • उपरोक्त किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
  • केवल लोकसभा मेँ पुरःस्थापित किया जा सकता है।
  • इसकी पुरःस्थापना के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश जरुरी है।
  • लोकसभा के पास विशेष शक्ति है। लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद विधेयक राज्यसभा को जाता है। राज्यसभा पारित कर देती है, तो विधेयक पारित हो जाता है।
  • राज्यसभा अस्वीकार कर लेती है, तब विधेयक दोनो सदनो द्वारा पारित मान लिया जाता है।
  • राज्य सभा 14 दिनोँ तक कोई कार्यवाही नहीँ करती तो विधेयक दोनो सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है।
  • राज्यसभा संशोधन सुझाती है- विधेयक लोकसभा मेँ वापस आता है। लोकसभा, संशोधन स्वीकार करे या अस्वीकार, विधेयक पारित हो जाता है।
  • अतः यहाँ गतिरोध पैदा होने की कोई संभावना नहीँ है और इसलिए संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीँ है।
  • साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जाता है। संसद द्वारा पारित होने के बाद जब विधेयक राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिए जाता है, तो वह इसे संसद के पास पुनर्विचार के लिए वापस नहीँ भेज सकता है।

वित्तविधेयक

  • अनुच्छेद 110 मेँ विनिर्दिष्ट मेँ से एक या अधिक विषयों के साथ-साथ अन्य विषयों से संबंधित उपबंध भी होते हैं।
  • केवल लोकसभा मेँ ही पुरःस्थापित किया जा सकता है।
  • विधेयक को पुरःस्थापित करने के लिए राष्ट्रपति की अग्रिम सिफारिश जरुरी है।
  • अन्य बातेँ वही हैं, जो सामान्य विधेयक के लिए हैं।
धन विधेयकवित्त विधेयक
अनुच्छेद 110 से सम्बद्धश्रेणी कश्रेणी ख
केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर पेश किया जा सकता हैधन विधेयक के समान इसे केवल लोक सभा में पेश किया जा सकता है।अन्य बैटन के साथ-साथ भारत की संचित निधि से व्यय का एक या अधिक प्रस्ताव हो लेकिन इसमें अनुच्छेद 110 का विषय भी शामिल न हो
केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है।राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही पेश किया जा सकता है।दोनों सदनों में से किसी सदन में पेश किया जा सकता है।
राज्य सभा को अनुमति रोकने का अधिकार नहीं है।धन विधेयक न होने के कारण राज्यसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है, एवं संशोधन साधारण विधेयक के समान कर सकती है।साधारण विधेयक में राज्य सभा को शक्ति प्राप्त है।
राष्ट्रपति पुनर्विचार नहीं कर सकता है।गतिरोध होने पर संयुक्त बैठकपेश करने के लिए राष्ट्रपति की सिफरिश आवश्यक नहीं है
अगर यह प्रश्न उठता है कि, यह धन विधेयक है या नहीं, इसका फैसला लोक सभा अध्यक्ष के द्वारा किया जाता हैकुछ वित्त विधेयक धन विधेयक हो सकते है, जिसमें अनुच्छेद 110 के साथ अन्य मामला भी हो लेकिन उसको अध्यक्ष प्रमाणित करे।परन्तु इस पर विचार करने के लिए सिफारिश आवश्यक है। लेकिन धन विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व श्रेणी ख को पेश करने के पूर्व सिफारिश आवश्यक होती है।
कोई भी सदन विधेयक को पास नहीं कर सकता जब तक राष्ट्रपति की सिफारिश न प्राप्त हो
गतिरोध पर संयुक्त बैठक

संसदकेदोनोसदनोंकी संयुक्तबैठक

  • संयुक्त बैठक राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित उद्देश्योँ के लिए बुलाई जाती है।
  • प्रत्येक वर्ष संसद के पहले सत्र मेँ सयुंक्त अभिभाषण देने के लिए, सामान्य चुनाव के तुरंत बाद दोनों सदनोँ मेँ संयुक्त अभिभाषण के लिए और अन्य किसी समय, किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के लिए जब राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनो में संयुक्त अभिभाषण देते हैं, तो वास्तव मेँ वो भारत सरकार की नीतियोँ का विवरण प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद दोनों सदन अलग-अलग मिलती हैं और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर एक धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है और लोकसभा मेँ इस पर मत कराया जाता है।
  • इस प्रस्ताव की हार का मतलब सरकार की निंदा करने के बराबर होता है और सरकार को बचाने के लिए लोकसभा मेँ शीघ्र विश्वासमत प्राप्त करना जरुरी होता है।

अध्यादेशकीउद्घोषणा

  • राष्ट्रपति द्वारा उद्घोषित अध्यादेश का वही प्रभाव है, जो संसद द्वारा निर्मित विधि का है।
  • अध्यादेश तभी उद्घोषित किया जा सकता है, जब संसद का या एक या दोनों सदन सत्र में नहीं है।
  • संसद के पुनः समवेत होने से 6 सप्ताह (यह अवधि जो सदन बाद मेँ आहूत होती है, तबसे गिनी जाएगी) के अंदर अध्यादेश को दोनो सदनोँ के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए, अन्यथा यह समाप्त हो जाएगा।

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भारतकीसंचितनिधि

  • यह ऐसी निधि है, जिसमेँ भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व, सभी आय तथा भारत सरकार द्वारा लिए गए सभी उधार जमा किए जाते हैं।
  • भारत की संचित निधि मेँ कोई धन जमा करने के लिए या उसमेँ से कोई धन निकालने के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत होती है।

भारतकालोकलेखा

  • राजस्व उधार और आय के अलावा भारत सरकार द्वारा प्राप्त अन्य सभी धन एक लेखे मेँ जमा किया जाता है, जिसे भारत का लोक लेखा कहा जाता है। उदाहरणार्थ-भविष्य निधि, पेंशन निधि इत्यादि।
  • यह निधि कार्यपालिका की व्ययाधीन है।

भारतकीआकस्मिकता निधि

  • अनुच्छेद 267, आकस्मिक या अनवेक्षित परिस्थितियो से निपटने के लिए. संसद को विधि द्वारा. भारत की आकस्मिकता निधि सृजित करने की शक्ति देता है।
  • संसद ने यह निधि 1951 मेँ गठित की।
  • यह निधि कार्यपालिका के व्ययाधीन है, परंतु इसकी भरपाई संसद के अनुमोदन के बाद ही हो सकती है।
भारत की संचित निधिभारत की आकस्मिता निधि
संविधान द्वारा सृजित (निर्मित)संसद द्वारा विधि द्वारा सृजित
इस निधि की कोई उपरी सीमा नहीं हैइसकी उपरी सीमा है|
इस निधि में धन जमा करने के लिए या धन निकालने के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत पड़ती हैकार्यपालिका के व्ययाधीन है। परन्तु इसकी भरपाई के लिए संसद के अनुमोदन की जरुरत होती है।

भारतकीसंचितनिधिपर भारित व्यय (अनुच्छेद 112)

  • यह व्यय संसद के मत के अधीन नहीँ है। यहां कुछ उच्च पदों की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। ये हैं-
  • राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय।
  • राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते।
  • भारत सरकार के ऋण और उस पर ब्याज।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की केवल पेंशन भारत की संचित निधि से, वेतन भत्ते राज्य निधि से।
  • भारत के नियंत्रक महा-लेखापरीक्षक के वेतन, भत्ते और पेंशन।
  • किसी न्यायालय या मध्यस्थ अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियां।
  • कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया गया है।
Constitution of Parliament

कार्यपालिका पर संसद का वित्तीय नियंत्रण

  • संसद द्वारा पारित विधि के प्राधिकार के बिना कार्यपालिका द्वारा कोई कर अधिरोपित या संगृहीत नहीँ किया जा सकता है।
  • संसद की मंजूरी के बिना भारत की संचित निधि में न ही कोई धन जमा किया जा सकता है, न ही उसमेँ से कोई धन निकाला जा सकता है।
  • संविधान के तहत प्रत्येक वर्ष वार्षिक विवरण (अर्थात बजट) संसद के समक्ष प्रस्तुत करना राष्ट्रपति (अर्थात कार्यपालिका) का कर्तव्य है। संसद मेँ इस बजट भाषण पर चर्चा एवं मतदान होता है।
  • बजट अगले वित्तीय वर्ष का वार्षिक वित्तीय विवरण है। बजट को दो भागोँ मेँ प्रस्तुत किया जाता है-
  1. राजस्व भाग – इसमेँ कर प्रस्ताव एवं भारत सरकार द्वारा लिए जाने वाले ऋण का ब्यौरा होता है।
  2. व्यय भाग – संसद मेँ बजट प्रस्तुत होने के बाद, राजस्व भाग को एक विधेयक का रुप दिया जाता है, जो वित्त विधेयक कहलाता है और व्यय भाग को अलग विधेयक का रूप दिया जाता है, जो विनियोग विधेयक कहलाता है। ये दोनो विधेयक धन विधेयक हैं और उसी के अनुरुप पारित किए जाते हैं।
  3. वित्त विधेयक, पारित हो जाने के बाद वित्त अधिनियम हो जाता है।
  4. विनियोग विधेयक, पारित हो जाने के बाद विनियोग अधिनियम हो जाता है और यह भारत सरकार को भारत की संचित निधि से उतना धन निकालने के लिए प्राधिकृत करता है।

विनियोगविधेयक

  • विनियोग विधेयक मेँ व्यय की दो मदें होती हैं-
  1. विभिन्न मंत्रालयोँ के अनुदान की मांग
  2. भारत की संचित निधि पर भारित व्यय
  • यदि विनियोग विधेयक नामंजूर हो जाता है तो भी सरकार, भारत की संचित निधि पर भारित व्यय को खर्च कर सकती है।

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संसदमेँविभिन्नप्रकारकेप्रस्ताव

अविश्वासप्रस्ताव

  • लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों मेँ इसका प्रावधान है और इसे केवल लोकसभा मेँ ही पुरः स्थापित किया जा सकता है।
  • इसकी पुरःस्थापना के लिए इसे लोकसभा मेँ कम से कम 50 सदस्योँ का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
  • एक बार गृहित हो जाने पर इसको लोकसभा की सभी मौजूदा कार्रवाई के ऊपर वरीयता दी जाती है।
  • इसे विरोधी दल द्वारा सरकार मेँ अविश्वास व्यक्त करने के लिए लाया जाता है।
  • अविश्वास प्रस्ताव के तहत सरकार की किसी भी नीति, किसी भी भूल या कार्य पर चर्चा हो सकती है।
  • लोक सभा द्वारा इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना जरुरी होता है।
  • विश्वासप्रस्ताव इसका प्रावधान न ही संविधान मेँ है और न ही लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमों में है। इसकी उत्पत्ति भारत की संसदीय प्रथा में स्वतः हुई है।
  • यह अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही है, सिर्फ यह छोडकर कि, प्रस्ताव सरकार द्वारा लोकसभा का विश्वास प्राप्त करने के लिए पेश किया जाता है।
  • निंदाप्रस्ताव – इसका प्रावधान लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियमो मेँ है।
  • सरकार को किसी विशिष्ट नीति या कार्य के निरानुमोदन के लिए विपक्ष द्वारा इसे लोक सभा मेँ पुरः स्थापित किया जा सकता है। इस प्रस्ताव मेँ केवल उस विशिष्ट नीति या कार्य पर ही चर्चा होती है।
  • लोकसभा द्वारा पारित हो जाने का मतलब सरकार की निंदा करना होता है और सरकार को तुरंत एक विश्वास प्रस्ताव लाकर सदन का विश्वास मत प्राप्त करना जरुरी होता है।
  • संरचनात्मकअविश्वासप्रस्ताव यह दो प्रस्तावों से मिलकर बना होता है, एक जो सरकार मेँ अविश्वास व्यक्त करता है और दूसरा जो विपक्ष मेँ विश्वास व्यक्त करता है। दोनो प्रस्ताव एक ही साथ स्वीकृत या अस्वीकृत होते हैं। यह प्रथा जर्मनी मेँ प्रचलित है।
  • स्थगनप्रस्ताव  यह किसी अविलंबनीय लोक महत्व के मामले पर सदन मेँ चर्चा करने के लिए, सदन की कार्यवाही को स्थापित करने का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव लोकसभा एवं राज्यसभा दोनो मेँ पेश किया जा सकता है। सदन का कोई सदस्य इस प्रस्ताव को पेश कर सकता है।
  • ध्यानाकर्षणप्रस्ताव – इस प्रस्ताव द्वारा, सदन का कोई सदस्य, सदन के पीठासीन अधिकारी की अग्रिम अनुमति से, किसी मंत्री का ध्यान,  अविलंबनीय लोक महत्व के किसी मामले पर आकृष्ट कर सकता है। मंत्री उस मामले पर एक संक्षिप्त व्यक्तव्य दे सकता है या बाद की किसी तिथि भी को वक्तव्य देने के लिए समय मांग सकता है।
  • विशेषाधिकारप्रस्ताव  यह किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब सदस्य यह महसूस करता है कि सही तथ्यों को प्रकट नहीँ कर या गलत सूचना देकर किसी मंत्री ने सदन या सदन के एक या अधिक सदस्य के विशेषाधिकारोँ का उल्लंघन किया है।

संविधानमेँसंशोधन

  • संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इसमेँ संशोधन की तीन विधियों को अपनाया गया है-
  1. साधारण विधि द्वारा
  2. संसद के विशेष बहुमत द्वारा
  3. संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन
  • साधारणविधि द्वारा – संसद की साधारण विधि द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है।
  • इसके अंतर्गत राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति मिलने पर निम्न संशोधन किए जा सकते हैं-
  1. नए राज्योँ का निर्माण
  2. राज्यक्षेत्र, सीमा और नाम मेँ परिवर्तन
  3. संविधान की नागरिकता संबंधी अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियो की प्रशासन संबंधी केंद्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रोँ की प्रशासन संबंधी व्यवस्थाएं
Constitution of Parliament
  • विशेष बहुमत द्वारा संशोधन – यदि संसद के प्रत्येक सदन द्वारा कुल सदस्योँ का बहुमत तथा और उपस्थित और मतदान मेँ भाग लेने वाले सदस्योँ के 2/3 मतों से विधेयक पारित हो जाए तो राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही वह संशोधन संविधान का अंग बन जाता है।
  • न्यायपालिका तथा राज्योँ के अधिकारों तथा शक्तियों जैसी कुछ विशिष्ट बातोँ को छोडकर संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाओं मेँ इसी प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है।
  • संसदकेविशेषबहुमत एवंराज्यविधानमंडलोंकीस्वीकृतिसेसंशोधन –संविधान के कुछ अनुच्छेदों मेँ संशोधन के लिए विधेयक को संसद के दोनों सदनोँ के विश्वास बहुमत तथा राज्योँ के कुल विधानमंडलों  से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है।
  • इसके द्वारा किए जाने वाले संशोधन के प्रमुख विषय हैं-
  1. राष्ट्रपति का निर्वाचन, अनुच्छेद-54
  2. राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति अनुच्छेद-55
  3. संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
  4. राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
  5. केंद्र शासित क्षेत्रोँ के लिए उच्च न्यायालय
  6. संघीय न्यायपालिका
  7. राज्योँ के उच्च न्यायालय
  8. संघ एवं राज्योँ मेँ विधायी संबंध
  9. सातवीँ अनुसूची का कोई विषय
  10. संसद मेँ राज्योँ का प्रतिनिधित्व
  11. संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबंध 
संसदीय समितियां और उनके कार्य
समितिकुल सदस्यलोक सभा सदस्यराज्य सभा सदस्यकार्य
लोक लेखा समिति22157सरकार के विनियोग तथा वित्त लेखा और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जाँच करती है
प्राक्कलन समिति3030वित्तीय नीतियों के सम्बन्ध में सुझाव देना
सार्वजानिक उपक्रम समिति15105भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों तथा सरकारी प्रतिष्ठानों के लेखा एवं प्रतिवेदनों की समीक्षा करना
विशेषाधिकार समिति15105संसद के किसी सदन या अध्यक्ष द्वारा विशेषाधिकार उल्लंघन से सम्बंधित प्रेषित मामलों की जाँच करना
प्रवर समिति453015प्रमुख कार्य विधेयकों की समीक्षा करना है
सरकारी आश्वासन समिति251510मंत्रियों द्वारा दिए जाने वाले आश्वासनों का पालन किया जा रहा है या नहीं इस बात के सम्बन्ध में जाँच करना
कार्य मंत्रणा समिति1515विधेयकों विषयों के लिए सदन की कार्यवाहियों में सहायता निर्धारण करना
नियम समिति311516संसदीय कार्यवाही की प्रक्रिया पर विचार करना
याचिका समिति251510सभी याचिकाओं का परिक्षण करना
सदन समिति12सांसदों के निवास स्थान सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराना
सामान्य उद्देश्य समिति20सदन की कार्य प्रणाली के संगठन समिति तथा सुधार से सम्बद्ध परामर्श देना

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संसद में सीटों का आवंटन
राज्य/संघ राज्य क्षेत्रराज्य सभा में सीटलोक सभा में सीटविधानसभा में सीटलोकसभा में अरक्षित सीट (अनु. जाति)लोकसभा में आरक्षित सीट (अ. ज. जाति)
आन्ध्र प्रदेश184229462
अरुणाचल प्रदेश1260
असम71412612
बिहार16402437
छत्तीसगढ़5119024
गोवा1240
गुजरात112618224
हरियाणा510902
हिमाचल प्रदेश34681
जम्मू-कश्मीर4676
झारखण्ड6148115
कर्नाटक12282244
केरल9201402
मध्य प्रदेश112923045
महाराष्ट्र194828834
मणिपुर12601
मेघालय1260
मिजोरम11401
नागालैंड1160
उड़ीसा102114735
पंजाब7131173
राजस्थान102520043
सिक्किम1132
तमिलनाडु18392347
त्रिपुरा12601
उत्तराखंड35701
उत्तर प्रदेश318040317
पश्चिम बंगाल164229482
नामांकित122 (प्रत्येक)
संघ राज्य क्षेत्र
अंडमान निकोबार द्वीप समूह01
चंडीगढ़011
दादरा और नागर हवेली01
दमन और दीव01
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली37701
लक्षद्वीप011
पुदुचेरी1130
कुल24554541177941

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