- भारत के संविधान मेँ राष्ट्रपति पद का प्रावधान भारतीय राज्य का प्रमुख है।
- संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति मेँ निहित है, पर वह नाम मात्र का कार्यकारी है।
चुनाव Election
- राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनो के सदस्यों और राज्योँ की विधानसभाओं के चुने गए सदस्योँ द्वारा चुना जाता है।
- इस प्रकार के दोनो सदनो के लिए नामित (मनोनीत) सदस्यगण, राज्य विधानसभाओं के लिए नामित सदस्य और विधान परिषदों (द्वि सदनीय विधान मंडल की स्थिति मेँ) के सदस्य राष्ट्रपति चुनाव मेँ हिस्सा नहीँ लेते हैं।
- इसके अतिरिक्त यहाँ राज्य शब्द में राष्ट्रपति राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र पुदुचेरी शामिल हैं।
- संविधान मेँ प्रावधान है कि राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया मेँ विभिन्न राज्योँ के प्रतिनिधित्व के स्तर पर तथा समग्र रुप से राज्योँ और संघ के बीच जहाँ तक व्यावहारिक हो, समानता और एकरुपता होगी।
- राष्ट्रपति का चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत और गुप्त मतदान द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्व की एक प्रणालीके अनुसार किया जाता है।
- राष्ट्रपति पद पर चुने जाने के लिए किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अर्हताएं पूरी करनी चाहिए-
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए
- 35 वर्ष की आयु पूरी होनी चाहिए
- लोकसभा की सदस्यता का पात्र होना चाहिए
- संघ सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण मेँ किसी लाभ के पद पर न हो
- उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित शक्ति संविधान मेँ राष्ट्रपति पद के लिए निर्धारित की गई हैं-
- राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को संसद के किसी सदन और राज्य विधान सभा का सदस्य नहीँ होना चाहिए।
- उसे लाभ के किसी अन्य पद पर नहीँ होना चाहिए।
- राष्ट्रपति की परिलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा।
- राष्ट्रपति की परिलब्धियों और भत्ते उसके कार्यकाल मेँ रोकी नहीँ जा सकेंगीं।
- राष्ट्रपति को भारत का मुख्य यायाधीश शपथ दिलाता है। उसकी अनुपस्थिति मेँ यह कार्य सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम यायाधीश के द्वारा संपन्न किया जाता है।
पदच्युति Removal
- राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- वह किसी भी समय भारत के उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप सकता है।
- उपराष्ट्रपति को संबोधित यह त्यागपत्र लोकसभा अध्यक्ष को भेजा जाता है।
- राष्ट्रपति को संविधान के प्रावधानोँ के उल्लंघन पर महाभियोग मेँ पद से कार्यकाल की समाप्ति से पहले हटाया जा सकता है।
- महाभियोग संसद के किसी भी सदन द्वारा आरोपित किया जा सकता है। यह अभियोग सदन के एक-चौथाई सदस्योँ द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए, (जो बदलाव कर सकते हैँ) तथा राष्ट्रपति को 14 दिन की पूर्व सूचना देनी होती है।
- सदन के कुल सदस्योँ मेँ से दो-तिहाई सदस्योँ द्वारा महाभियोग विधेयक पारित कर दिए जाने के बाद इसे सदन में अभियोगों की जांच के लिए भेजा जाता है।
- ऐसे जांच के समय राष्ट्रपति को उपस्थित रहने या अपना कोई प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है।
- यदि दूसरा सदन भी अभियोग को ठीक मानता है और अपने सदस्योँ की कुल संख्या के दो-तिहाई बहुमत द्वारा महाभियोग कर देता है, तो विधेयक पारित किए जाने की तिथि से ही राष्ट्रपति को पदच्युत माना जाता है।
- राष्ट्रपति के निधन, उनके त्यागपत्र अथवा पदच्युति या अन्य स्थितियोँ मेँ स्थान रिक्त होने पर नए राष्ट्रपति चुने जाने तक राष्ट्रपति पद का कार्य उपराष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त बीमारी, अनुपस्थिति या अन्य कारणोँ से कार्य करने की स्थिति मेँ न हो तो राष्ट्रपति द्वारा के कार्य भार सँभालने तक उपराष्ट्रपति को वे सभी शक्तियाँ और निरापदताएं प्राप्त होती हैं जो राष्ट्रपति को प्राप्त होती हैं।
- इस अवधि मेँ उप राष्ट्रपति संसद द्वारा निर्धारित परिलब्धियों और भत्तों तथा विशेषाधिकारोँ का हकदार होता है।
- राष्ट्रपति पदधारी अथवा पदधारण कर चुके व्यक्ति इस पद पर दुबारा चुने जाने के लिए पात्र होते हैँ।
- राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति पर रिक्ति को भरने के लिए चुनाव राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति से पहले पूरा कर लिया जाता है।
- राष्ट्रपति के निधन, त्यागपत्र या पदच्युति या अन्य कारण से हुई रिक्ति को भरने के लिए चुनाव रिक्ति की तिथि से 6 माह के भीतर करा लिया जाना चाहिए।
- राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित सभी संदेहों और विवादों का निराकरण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है, जिसका निर्णय अंतिम होता है।
- राष्ट्रपति के रुप मेँ किसी व्यक्ति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीँ दी जा सकती कि चुनाव के समय सदस्योँ की संख्या (जो चुनाव मेँ मताधिकार का प्रयोग करते है) पूरी नहीँ थी।
- यदि सर्वोच्च न्यायालय किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति चुने जाने को रद्द करार देता है तो सर्वोच्च यायालय द्वारा देने की तिथि से पूर्व (राष्ट्रपति) द्वारा किए गए कार्य को अवैध नहीँ माना जाएगा अर्थात वे कार्य प्रभावी रहेंगें।
शक्तियां और कार्य Powers and Functions
- भारत के राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियाँ और उसके द्वारा निष्पादित कार्योँ की जानकारी निम्नलिखित शीर्षों के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
- कार्यकारी / कार्यपालक शक्तियाँ
- विधायी शक्तियां
- वित्तीय शक्तियाँ
- न्यायिक शक्तियाँ
- कूटनीतिक शक्तियाँ
- सैन्य शक्तियां
- आपातकालीन शक्तियाँ
कार्यकारी शक्तियाँ
- भारत सरकार के सभी कार्य औपचारिक रुप से राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं।
- राष्ट्रपति उस रीति के उल्लेख के साथ नियम बना सकता है जिसे उसके नाम से किए गए सभी आदेश पर बनाए गए प्रपत्र प्रमाणित हों।
- राष्ट्रपति केंद्र सरकार के कामकाज को अधिक सुविधाजनक बनाने तथा उस कार्य को मंत्रालयों के बीच बांटने के लिए नियम बना सकता है।
- प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियोँ की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वे राष्ट्रपति की सहमति से ही पद पर रह सकते हैं।
- भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति और उनके वेतन भत्तों का निर्धारण राष्ट्रपति करता है। महान्यायवादी राष्ट्रपति की सहमति से ही पद पर बना रह सकता है।
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और राज्योँ के राज्यपालोँ, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्योँ की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से संघ के प्रशासनिक कार्योँ से संबंधित सूचना और विधान से संबंधित प्रस्ताव की मांग कर सकता है।
- राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद के विचारार्थ किसी मंत्री द्वारा लिए गए निर्णय से संबंधित ऐसी किसी विषय की मांग प्रधानमंत्री से कर सकता है जिस पर मंत्रिपरिषद ने विचार विमर्श ना किया हो।
- राष्ट्रपति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की हालात की जांच के लिए आयोग का गठन कर सकता है।
- राष्ट्रपति के राज्योँ के मध्य अंतर्राज्यीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राज्यीय परिषद का गठन भी कर सकता है।
- राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से केन्द्रीय शासित क्षेत्रों पर सीधे प्रशासनिक नियंत्रण रखता है। वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है और उसके पास अनुसूचित क्षेत्रोँ और जनजाति क्षेत्रोँ को प्रसारित करने की शक्तियां होती हैं।
विधायी शक्तियाँ
- राष्ट्रपति भारतीय संसद का अभिन्न अंग है। इस संदर्भ मेँ राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां इस प्रकार हैं-
- राष्ट्रपति संसद सत्र का आह्वान और सत्रावसान कर सकता है। वह लोक सभा को भंग भी कर सकता है। वह संसद के दोनो सदनो की संयुक्त बैठकें भी बुला सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष को करनी होती है।
- राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव के बाद संसद के प्रथम सत्र को और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र को संबोधित करता है।
- राष्ट्रपति, संसद मेँ लंबित किसी विधेयक या अन्य के संदर्भ मेँ संसद के दोनों सदनो को संदेश भेज सकता है।
- लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों का पद रिक्त होने की स्थिति मेँ राष्ट्रपति लोकसभा के किसी सदस्य को सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करने के लिए नियुक्त कर सकता है। इस प्रकार वह, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति दोनो का पद रिक्त होने पर राज्यसभा के किसी सदस्य को सदस्य को सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता / सभापतित्व करने के लिए नियुक्त कर सकता है।
- राष्ट्रपति, साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र के 12 प्रतिष्ठित और विद्वान व्यक्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर सकता है।
- राष्ट्रपति आंगल भारतीय समुदाय से 2 व्यक्तियों को लोकसभा सदस्य के रुप मेँ भी मनोनीत कर सकता है।
- राष्ट्रपति चुनाव आयोग के परामर्श से संसद सदस्योँ की अयोग्यता के प्रश्न का भी समाधान करता है। कुछ तरह के विधेयकों को संसद मेँ लाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति जरुरी होती है, जैसे कि, भारत की संचित निधि से व्यय किए जाने के आशय का विधेयक और किसी राज्य की सीमा मे बदलाव अथवा नए राज्य निर्माण संबंधी विधेयक।
- संसद द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास जब भेजा जाता है तब राष्ट्रपति-
- विधेयक पर अपनी सहमति प्रदान करता है, या
- विधेयक से सम्बंधित अपनी सहमति रोकता है, या
- विधेयक को (यदि वह मुद्रा विधेयक संविधान संशोधन विधेयक नहीँ है तो) संसद मेँ पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है।
- तथापि संसद मेँ यदि विधेयक को संशोधन के साथ या इसके बिना दोबारा पारित करती है तो राष्ट्रपति को अपनी सहमति कितनी होती है।
- इस प्रकार राष्ट्रपति को संसद द्वारा पारित विधेयकों के संदर्भ मेँ वीटो शक्ति प्राप्त है। वीटो शक्ति निम्नलिखित चार प्रकार की हो सकती है-
- विधायक से संबंधित अपनी सहमति रोक लेने की वीटो शक्ति जिसे परम वीटो कहते हैं
- सशर्त वीटो को ख़त्म करने (over-ridden) के लिए विधायिका मेँ उच्चतर बहुत आवश्यक है।
- निलम्बनीय वीटो को खत्म करने (over-ridden) के लिए विधायिका मेँ साधारण बहुमत आवश्यक है।
- जेबी वीटो अर्थात विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कार्यवाही न करना
भारत के राष्ट्रपति को प्राप्त वीटो शक्ति परम (absolute), निलम्बनीय (suspensive) और जेबी (pocket) वीटो का मिलाजुला रुप है।
यहाँ तक ध्यातव्य है कि संवैधानिक संशोधन संबंधित विधेयक के मामलोँ मेँ राष्ट्रपति को वीटो शक्ति प्राप्त नहीँ है। 24वें संशोधन (1971) द्वारा राष्ट्रपति के लिए संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति देना बाध्यकारी कर दिया गया।
- जब राज्यपाल राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजता है तो राष्ट्रपति-
- विधेयक पर अपनी सहमति देता है, या
- विधेयक पर अपनी सहमति रोक लेता है या,
- राज्यपाल को विधेयक वापस राज्य विधानसभा को पुनर्विचार के लिए भेजने का (यदि विधेयक धन विधेयक नहीँ है तो निर्देश देता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधायक दोबारा पारित कर दिया जाने तथा दोबारा विचारार्थ जाने पर भी राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीँ है। किस प्रकार राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों के संबंध मेँ निरंकुश वीटो शक्ति प्राप्त है।
- राष्ट्रपति, संसद सत्रावसान के समय अध्यादेश जारी कर सकता है। अध्यादेशों पर संसद द्वारा पुनः सत्र शुरु होने की तिथि से 6 सप्ताह के भीतर स्वीकृति प्रदान करनी होती है। राष्ट्रपति अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है।
- राष्ट्रपति, नियंत्रक एवँ महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट, संघ लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट, वित्त आयोग की रिपोर्ट तथा अन्य रिपोर्ट को संसद मेँ प्रस्तुत करता है।
- जब अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दादरा और नागर हवेली, दमन एवँ दीव मेँ शांति, प्रगति और सुशासन के विनियम बना सकता है। पुदुचेरी के संबंध मेँ भी वह विधानसभा निलंबित या निर्धारित होने की स्थिति मेँ विनियमों का निर्माण कर सकता है।
वित्तीय शक्तियाँ
राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ और कार्य इस प्रकार हैं
- राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद मेँ धन विधेयक प्रस्तुत किया जा सकता है।
- वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट) भी राष्ट्रपति की अनुमति से संसद मेँ रखा जाता है।
- राष्ट्रपति की अनुशंसा पर ही अनुदान की मांग की जा सकती है।
- राष्ट्रपति किसी अप्रत्याशित व्यय की पूर्ति के लिए भारत की संचित निधि से अग्रिम राशि का प्रबंध कर सकता है।
- राष्ट्रपति पांच वर्ष बाद वित्त आयोग का गठन केंद्र और राज्योँ के मध्य करों के वितरण की अनुशंसा करने की दृष्टि से करता है।
न्यायिक शक्तियाँ
राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ और कार्य हैं-
- राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के मुख्य यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति कानून अथवा तथ्य से जुड़े किसी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह ले सकता है। सर्वोच्च नयायालय द्वारा दी गई सलाह को राष्ट्रपति मानने के लिए बाध्य नहीँ है।
- वह निम्नलिखित मामलोँ मेँ सजा पाई किसी व्यक्ति को क्षमादान दे सकता है- फांसी की सजा को रोक सकता है, मृत्युदंड स्थगित कर सकता है तथा सजा को समाप्त अथवा दंड के भुगतान से क्षमा व सजा को परिवर्तित कर सकता है-
- दंड या सजा कोर्ट मार्शल द्वारा सुनाई गई हो
- दंड या सजा किसी ऐसे कानून के विरुद्ध अपराध के लिए दी गई हो जो संघ की कार्यकारी शक्तियाँ से परे हो और
- उन तमाम मामलोँ मेँ जिनमेँ सजा मौत की सजा हो।
क्षमादान (Pardon) का आशय है- किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए दी गई सजा से मुक्त करना।
दंड स्थगन (Reprive) करने का आशय है- सजा को कुछ समय के लिए स्थगित करना।
विलंबन (Respite) का आशय कानून द्वारा निर्धारित दंड के बदले अपेक्षाकृत कम सजा दिया जाना।
दंड परिहार (Remission) से आशय है – सजा की प्रकृति को बदले बिना सजा कम करना।
लघुकरण (Commutation) का आशय है – दंड की प्रकृति को कम करना।
कूटनीतिक शक्तियाँ
- अंतरराष्ट्रीय संबंधों और समझौतों को राष्ट्रपति की ओर से अंतिम रुप दिया जाता है।
- तथापि उन पर संसद की स्वीकृति भी जरुरी होती है।
- राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करता है तथा राजदूतों और उच्चायुक्तों जैसे कूटनीतिज्ञोँ की नियुक्ति करता है।
सैन्य शक्तियाँ
- भारतीय राष्ट्रपति भारतीय सेना का सर्वोच्च कमांडर होता है।
- थल सेना, नौसेना और वायुसेना के प्रमुखों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- वह युद्ध की घोषणा करने के साथ-साथ शांति से जुड़े मामलोँ को संसद की स्वीकृति के लिए भेजता है।
आपातकालीन शक्तियाँ
- ऊपर उल्लिखित सामान्य शक्तियों के अतिरिक्त संविधान के तहत निम्नलिखित 3 तरह की आपातकाल की स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रपति को असाधारण शक्तियाँ दी गई हैँ-
- राष्ट्रीय आपातकाल – अनुच्छेद 352
- राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद – 356 और 365
- वित्तीय आपातकाल अनुच्छेद 360
राष्ट्रीय आपातकाल
- राष्ट्रपति पूरे देश मेँ या किसी देश के किसी भाग मेँ निम्नलिखित आधार पर आपातकाल की घोषणा कर सकता है-
- युद्ध की स्थिति मेँ या,
- वाह्य आक्रमण की स्थिति में या,
- सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में
- संविधान मेँ मूलतः आंतरिक उपद्रव शब्द था, किंतु 44 वेँ संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा इसकी जगह सशस्त्र विद्रोह शब्द को लाया गया है।
- राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा मंत्रिमंडल की लिखित अनुशंसा पर ही कर सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 352 (3) में मंत्रिमंडल शब्द का आशय प्रधानमंत्री सहित कैबिनेट के मंत्रियोँ की परिषद से है।
- आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनो सदनो द्वारा एक माह के भीतर अनुमोदित किया जाना होता है।
- संसद के अनुमोदन पर आपातकाल 6 माह तक जारी रह सकता है। प्रत्येक 6 माह के लिए संसद की स्वीकृति से आपातकाल अनिश्चितकाल काल तक जारी रह सकता है।
अब तक राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा तीन बार वर्ष 1962, 1971 में और 1975 मेँ की गई है।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियां प्राप्त होती हैं-
- वह किसी भी राज्य को अपने कार्यकारी एवँ शक्तियों के उपयोग के ढंग के संबंध मेँ निर्देश दे सकता है।
- वह केंद्र और राज्योँ के मध्य वित्तीय संसाधनो की वितरण की प्रणाली मेँ संशोधन कर सकता है।
- जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) तथा अपराध के लिए दोषसिद्धि के संबंधित सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 20) को छोडकर, वह नागरिकोँ को मौलिक अधिकारोँ से वंचित कर सकता है। इसके अतिरिक्त 6 प्रकार की आजादी के अधिकार (अनुच्छेद 19) तभी निलंबित हो सकते है जब वाह्य आपातकाल की घोषणा हुई हो (अर्थात युद्ध या वाह्य आक्रमण के आधार पर नकि आंतरिक आपातकाल की स्थिति में (अर्थात सशस्त्र उपद्रव की स्थिति के आधार पर)
- यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद 2 शक्तियां अर्जित करती है-
- जहाँ राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है ऐसे कानून आपातकाल के 6 महीने बाद मेँ निष्प्रभावी हो जाते हैँ।
- यह लोकसभा और राज्य विधानसभा के सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) को एक समय पर 1 वर्ष के लिए कितनी भी समयावधि के लिए विस्तार कर सकती हैँ। ये विस्तार आपातकाल के बाद 6 महीनों से अधिक समय तक जारी नहीँ रह सकता है।
राष्ट्रपति शासन
- इसे राज्य आपातकाल या संवैधानिक आपातकाल के रुप मेँ भी जाना जाता है। राष्ट्रपति द्वारा इसकी घोषणा निम्नलिखित आधार पर की जाती है-
- राज्य मेँ संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने पर – अनुच्छेद 356 या
- संघ द्वारा दिए गए निर्देशोँ का अनुपालन न करने के प्रभावी न करवाने की स्थिति मेँ अनुच्छेद – 365
- इस प्रकार राष्ट्रपति शासन राज्य के राज्यपाल से अन्यथा प्राप्त रिपोर्ट के माध्यम से इस तथ्य से राष्ट्रपति के संतुष्ट हो जाने पर ही लगाई जाती है कि राज्य का शासन संविधान के प्रावधानोँ के अनुसार नहीँ किया जा सकता है।
- किसी राज्य मेँ राष्ट्रपति शासन की घोषणा दो माह भीतर संसद के दोनो सदनो द्वारा इसे स्वीकृति देनी होती है।
- स्वीकृति मिल जाने पर राष्ट्रपति शासन 6 माह तक जारी रह सकता है।
- प्रत्येक 6 माह पर संसद की स्वीकृति से राष्ट्रपति शासन की अवधि अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
- राष्ट्रपति शासन की अवधि 1 वर्ष के बाद एक समय मेँ 6 मास की अवधि के लिए ही बढ़ाई जा सकती है, बशर्ते कि निम्नलिखित शर्तेँ पूरी की जाएं-
- पूरे देश मेँ या पूरे राज्य अथवा संबंद्ध राज्य के किसी भाग मेँ राष्ट्रीय आपातकाल घोषित हो और
- चुनाव आयोग यह प्रमाणित करे कि संबद्ध राज्य मेँ आम चुनाव के आयोजन कठिनाइयों के कारण नहीँ कराए जा सकते हैं।
राज्य मेँ राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं-
- वह राज्य सरकार को सौंपी गई सभी या कुछ कार्य तथा राज्य में किसी निकाय या प्राधिकरण तथा राज्यपाल को प्रदत्त सभी या कुछ शक्तियाँ अपने अधीन कर सकता है।
- राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधानसभा की शक्तियोँ का उपयोग संसद द्वारा संसद के अधीन किसी प्राधिकरण द्वारा ही किया जाएगा।
- राष्ट्रपति लोक सभा के सत्रावसान के समय, राज्य की संचित निधि से व्यय प्राधिकृत कर सकता है जिस पर संसद की स्वीकृति बाद मेँ ली जाती है।
- राष्ट्रपति संसद के सत्रावसान के समय, राज्य मेँ प्रशासन के लिए अध्यादेश जारी कर सकता है।
- अतः जब राज्य मेँ जब राष्ट्रपति शासन लागू हो, राष्ट्रपति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली राज्य मंत्रिपरिषद को भंग कर सकता है।
- राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की ओर से राज्य के मुख्य सचिव अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त सलाहकार की सहायता से राज्य का प्रशासन अपने हाथोँ मेँ ले सकता है। इसका कारण यह है कि अनुच्छेद 356 की घोषणा को राष्ट्रपति शासन के क्रियांवयन के रुप मेँ अधिक जाना जाता है।
- राष्ट्रपति राज्य विधानसभा को स्थगित अथवा भंग कर सकता है । राज्य विधानसभा विधेयक एवं राज्य बजट संसद द्वारा पारित किए जाते हैँ।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान सम्बद्ध राज्य के उच्च न्यायालय की संवैधानिक स्थिति, शक्तियाँ और कार्य अर्थात इन पर राष्ट्रपति शासन का कोई प्रभाव नहीँ पडता है। राष्ट्रपति सम्बद्ध उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से छेड़छाड़ नहीँ कर सकता है।
वित्तीय आपातकाल
- राष्ट्रपति उस स्थिति मेँ वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है जब वह इस तथ्य से संतुष्ट हो कि भारत अथवा इसके किसी भाग मेँ वित्तीय स्थिरता की स्थिति खतरे मेँ है।
- वित्तीय आपातकाल की घोषणा पर संसद को 2 माह के भीतर अपनी स्वीकृति देनी होती है।
देश मेँ वित्तीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं-
- वह राज्यों को वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों पर नजर रखने का निर्देश दे सकता है।
- वह राज्य के अधीन सेवारत सभी अथवा कुछ श्रेणी के व्यक्तियों के वेतन और भत्तोँ मेँ कटौती संबंधी निर्देश दे सकता है।
- राष्ट्रपति राज्य विधान सभा द्वारा पारित सभी धन विधेयक और अन्य वित्त विधेयक अपने विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।
- राष्ट्रपति, संघ के कार्योँ की देखरेख के लिए सेवारत सभी अथवा किसी वर्ग के व्यक्ति के वेतन और भत्तोँ मेँ कटौती के निर्देश जारी कर सकता है, जिसमेँ उच्चतम यायालय और उच्च नयायालय के न्यायाधीश भी शामिल हैं।
इस प्रकार के आपातकाल की घोषणा अभी तक नहीँ हुई है।
संवैधानिक स्थिति
- भारत के संविधान मेँ संसदीय प्रणाली की सरकार का प्रावधान है। फलस्वरुप राष्ट्रपति को नाम मात्र का कार्यकारी तथा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रीपरिषद को वास्तविक कार्यकारी माना गया है।
- राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों का उपयोग और कार्य प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह से करने होते हैं। संविधान मेँ इस संदर्भ मेँ निम्नलिखित तीन प्रावधान किए गए हैं।
- राष्ट्रपति को संघ की कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग उसके द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर अथवा संविधान के प्रावधान के अनुसार उसके अधीनस्थ अधिकारियोँ के माध्यम से करना होगा (अनुछेद 56)।
- राष्ट्रपति की सहायता तथा उसे परामर्श देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता मेँ मंत्रिपरिषद होगी तथा राष्ट्रपति अपने कार्योँ का निष्पादन ऐसे परामर्श के अनुसार करेगा (अनुच्छेद 74)।
- मंत्रिपरिष्द सामूहिक रुप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी (अनुच्छेद 75)। यह प्रावधान सरकार की संसदीय व्यवस्था का आधार है।
42 वेँ संविधान संशोधन अधिनियम 1976, के अनुसार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य है। 44 वेँ संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के माध्यम से राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह मंत्रिपरिषद से अच्छी सलाह पर सामान्यतः या अन्यथा पुनर्विचार के लिए कहें। तथापि, राष्ट्रपति पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार कार्य करने को बाध्य होगा।
राष्ट्रपति को संवैधानिक तौर पर कोई विवेकाधीन शक्ति प्राप्त नहीँ है, किंतु कुछ परिस्थितिजन्य विवेकाधीन शक्ति प्राप्त है अर्थात वह मंत्रियोँ की सलाह के बिना निम्नलिखित परिस्थितियो में अपने विवेक से कार्य कर सकता है।
- लोकसभा मेँ किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में अथवा कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु होने अथवा उसका कोई उत्तराधिकारी न होने की स्थिति मेँ प्रधानमंत्री की नियुक्त करना।
- लोकसभा मेँ विश्वास मत सिद्ध न कर पाने पर मंत्रिपरिषद को बर्खास्त करना।
- यदि मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो दें तो लोक सभा को भंग करना।
राष्ट्रपति पद से सम्बद्ध अनुच्छेदों पर एक दृष्टि | |
अनुच्छेद संख्या | विषय |
52 | भारत का राष्ट्रपति |
53 | संघ की कार्यकारी शक्तियां |
54 | राष्ट्रपति का चुनाव |
55 | राष्ट्रपति चुनाव की पद्धति |
56 | राष्ट्रपति का कार्यकाल |
57 | राष्ट्रपति पद पर दुबारा चुने जाने के लिए पात्रता |
58 | राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के लिए योग्यता |
59 | राष्ट्रपति पद की शर्तें |
60 | राष्ट्रपति पड़ की शपथ |
61 | राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया |
62 | राष्ट्रपति पद की रिक्ति को भरने के लिए चुनाव करने का समय |
65 | राष्ट्रपति का कार्य करने के लिए उपराष्ट्रपति या उसके कार्यों का निष्पादन |
71 | राष्ट्रपति चुनाव से सम्बंधित विषय |
72 | क्षमादान और कुछ मामलों में सजा को कम करने सम्बन्धी राष्ट्रपति की शक्तियां |
74 | राष्ट्रपति की सहायतार्थ और उसे परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद |
75 | मंत्रियों की नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन भत्तों आदि का प्रावधान |
76 | भारत के महान्यायवादी |
77 | भारत सरकार की व्यापारिक नीति |
78 | राष्ट्रपति को सूचना आदि देने सम्बन्धी प्रधानमंत्री का कर्तव्य |
85 | संसद का सत्र, आह्वान और भंग किया जाना |
111 | संसद द्वारा पारित विधेयकों के प्रति सहमति |
112 | केन्द्रीय बजट (वार्षिक वित्तीय विवरण) |
123 | अध्यादेश लेन सम्बन्धी राष्ट्रपति की शक्तियां |
143 | उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने सम्बन्धी राष्ट्रपति की शक्तियां |