सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2009 में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक राज्य में कोई समुदाय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति सूचीबद्ध होने से दूसरे राज्य एवं संघ में आरक्षण पाने का हकदार नहीं होगा। पीठ ने कहा कि केंद्र एवं राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 के अंतर्गत आरक्षण नीति बना सकती है लेकिन ऐसी नीति एवं निर्णय से संविधान के अन्य प्रावधानों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना संवैधानिक: सर्वोच्च न्यायालय
21 जनवरी, 2009 को अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की, जिसके अंतर्गत प्रत्येक सांसद को अपने क्षेत्र के विकास हेतु 2 करोड़ रुपए की राशि दी जाती है, संवैधानिक माना। यह निर्णय उन याचिकाओं के संदर्भ में दिया गया जिसमें इस योजना की संवैधानिकता पर प्रश्न उठाया गया था। पांच जजों, मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन, न्यायाधीश आर.वी. रवीन्द्रन, डी.के. जैन, पी. सथासिवम एवं जे.एम. पांचल, की संविधान पीठ ने वरिष्ठ सलाहकार के.के. वेणुगोपाल एवं प्रशांत भूषण को याचिकाकर्ताओं की ओर से एवं अतिरिक्त सॉलिस्टिर जनरल को केंद्र सरकार की तरफ से सुनने के बाद यह निर्णय दिया।
याचिकाकर्ता के सलाहकार के जवाब में सॉलिस्टिर जनरल में कहा कि यह योजना भारतीय संघवाद एवं केंद्र-राज्य शक्तियों की अवधारणा में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के अनुसार जहां तक इसकी संवैधानिकता का प्रश्न है, संविधान का अनुच्छेद 282 प्रावधान करता है कि संघ या राज्य किसी लोक प्रयोजन के लिए कोई अनुदान इस बात के होते हुए भी दे सकेगा कि वह प्रयोजन ऐसा नहीं है जिसके संबंध में, यथास्थिति, संसद या उस राज्य का विधानमंडल विधि बना सकता है। केंद्र ने यह भी संकेत किया कि सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के अतिरिक्त समन्वित बाल विकास योजना, लक्षित सार्वजनिक वितरण योजना एवं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना, अनुच्छेद 282 को सशक्त करने की दिशा में कार्यान्वित की गई हैं।