प्रदेश में राज्यपाल का पद बेहद महत्वपूर्ण होता है, राज्यपाल को ढेर सारे अधिकार एवं शक्तियाँ प्राप्त हैं, यहाँ ये भी बताना आवश्यक है कि राज्यपाल का पद किस देश से लिया गया है – राज्यपाल का पद कनाडा से लिया गया है. आगे इस पूरी पोस्ट में आप राज्यपाल के निर्वाचन से लेकर शक्तियों और विभिन्न कमेटियों के बारे में भी जानेंगे
राज्य की कार्यपालिका
- भारतीय संविधान में परिसंघीय शासन की व्यवस्था है जिसमें संघ और उसकी इकाइयों के अतिरिक्त राज्यों के प्रशासन के लिए पृथक प्रणालियां है, संविधान में दोनों शासन के लिए उपबंध है |
- संविधान के छ्ठे भाग के अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका के बारे में उल्लेख है |
- राज्य कार्यपालिका में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीपरिषद और राज्य के महाधिवक्ता एडवोकेट जनरल शामिल होते हैं |
- जिस प्रकार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है उसी प्रकार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है |
- संघीय शासन की भारतीय राज्य में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है तो दूसरी और राष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए राज्यपाल की दोहरी भूमिका की व्यवस्था की गई है ताकि वह राज्य के औपचारिक अध्यक्ष के साथ-साथ केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करें |
राज्यपाल
- अनुच्छेद 153 में उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा परंतु एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है |(7 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1958 के अनुसार) |
- अनुच्छेद 154(1) के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में समाहित होगी और वह इसका प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा |
राज्यपाल की योग्यताएं
- अनुच्छेद 157 के अनुसार किसी व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त करने के लिए निम्नलिखित योग्यता निर्धारित की गई है
- वह भारत का नागरिक हो |
- वहां 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो |
राज्यपाल की पदावधि
- सामान्यत:राज्यपाल का कार्यकाल 15 से 5 वर्ष तक की अवधि के लिए होता है |
- अनुच्छेद 153 के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा अर्थात राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष से पहले भी पद से हटाया जा सकता है या वह पद त्याग कर सकता है |
- राज्य का राज्यपाल निर्वाचित नहीं होता है वह राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है |
- राज्यपाल अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद पर बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पदग्रहण नहीं कर लेता |
- राष्ट्रपति राज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकता है जहां वह शेष अवधि तक कार्य करेगा |
- अनुच्छेद 156(2) के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित अनेक द्वारा त्याग पत्र दे सकता है |
- राज्यपाल को किस आधार पर राष्ट्रपति हटा सकते हैं इस विषय पर संविधान मौन है एक से अधिक बार राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बारे में भी कोई प्रतिबंध नहीं है |
शपथ
- राज्यपाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायलय के ज्येठतम न्यायाधीश के समक्ष संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण की शपथ लेता है ऐसे प्रावधान का उल्लेख अनुच्छेद 159 में मिलता है |
वेतन एवं भत्ते
- राज्यपाल ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करें | अनुच्छेद 158(3)
- यदि एक व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो अनुच्छेद 158(3)(A) के तहत राष्ट्रपति आदेश द्वारा वेतन तथा भत्ते उन राज्यों के बीच निश्चित अनुपात में आवंटित करेगा यह व्यवस्था में 7 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा की गई थी |
उन्मुक्तिया अथवा संरक्षण
- राज्यपाल को अनुच्छेद 361 के अंतर्गत निम्नलिखित उन्मुक्तिया तथा संरक्षण प्राप्त हैं-
- राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार के दांडिक कार्यवाही नहीं की जाएगी |
- राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए कोई आदेश नहीं निकाला जाएगा |
- राज्यपाल के विरुद्ध व्यक्तिगत हैसियत से सिविल कार्यवाही की जा सकती है परंतु उसे 2 माह के पूर्व सूचना देना आवश्यक है |
राज्यपाल के पद की शर्तें
- राज्यपाल के पद की शर्तों का उल्लेख अनुच्छेद158 में मिलता है |
- राज्यपाल संसद के किसी सदस्य राज्य विधानमंडल सदस्य नहीं होगा, यदि सदस्य है तो नियुक्ति की तारीख से संसद या राज्य विधानमंडल से उसका स्थान रिक्त माना जाएगा |
- राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करें |
- राज्यपाल की उपलब्धियों और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे |
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां
- राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के आधार पर राज्यपाल की वास्तविक भूमिका का विवेचन कर सकते हैं | वस्तुतः राज्यपाल ने अब तक दो प्रकार की विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग किया है |
संविधान द्वारा स्पष्ट रुप से प्रदत्त विवेकाधिकार शक्तियां
- अनुच्छेद 371 (A) से 1 तक नागालैंड, असोम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश तथा गोवा के राज्यपाल की प्रदत्त विवेकाधिकार शक्तियां |
- अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल राष्ट्रपति के लिए विधेयक आरक्षित कर सकता है और किसी भी विधेयक को राज्यपाल धन विधेयक को छोड़कर पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है |
- यदि राज्य में शासन संवैधानिक उपबंधों के अनुसार संचालित ना हो तो राज्यपाल राष्ट्रपति के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत शासन की सिफारिश कर सकता है |
परिस्थितियों से उत्पन्न स्वविवेकीय की शक्तियां
- राज्यपाल को स्वविवेकीय शक्तियाँ कुछ विशेष परिस्थितियों में ही प्राप्त होती है यह विशेष परिस्थितियों निम्नलिखित हो सकती है –
- किसी एक दल को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो |
- जिस दल की सरकार है उस के कुछ सदस्य उस दल से निकालकर किसी अन्य दल में मिल जाए और उस सरकार के अस्तित्व को खतरा पैदा हो जाए |
- मिली जुली सरकार का होना और उसमें आपसी फूट का बने रहना |
- राज्य में शांति व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया हो आदि |
राज्यपाल की भूमिका
- भारतीय संविधान निर्माता केंद्र के समान राज्य में संसदीय शासन प्रणाली अपनाना चाहते थे साथ में राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण भी रखना चाहते थे |
- इसलिए संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल की दोहरी भूमिका को अपनाया, इसलिए राज्य में स्वतंत्र संसदीय प्रणाली को केंद्र की भांति अपनाने पर बल दिया गया |
- वहीं दूसरी ओर राज्य की एकता व अखंडता के लिए राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण सुनिश्चित किया गया |
- उपरोक्त कारणों से राज्यपाल की दोहरी भूमिका का भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में प्रावधान संविधान निर्माताओं द्वारा किया गया |
- राज्यपाल जहां एक ओर राज्य का औपचारिक अध्यक्ष होता है तो वहीं दूसरी ओर व केंद्र का भी प्रतिनिधि होता है |
- संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल के पद से यह अपेक्षा की कि वह सामान्य परिस्थिति में राज्य की औपचारिक अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा और मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करेगा |
- राज्यपाल अपनी विवेकाधिकार शक्ति का प्रयोग विशेष परिस्थिति में करेगा |
- राज्यपाल अपनी विवेकाधिकार शक्ति का प्रयोग संविधान के उपबंधों के अनुरूप प्राप्त की एकता अखंडता के लिए करेगा परंतु व्यवहारिक राजनीति में राज्यपाल ने अपनी विवेकाधिकार शक्ति का दुरुपयोग किया |
राज्यपाल निर्वाचित क्यों नहीं होता
भारतीय संविधान द्वारा राज्यपाल को नियुक्त किए जाने का प्रावधान किया गया है, संविधान द्वारा राज्यपाल को नियुक्त करने की पद्धति को अपनाने के लिए प्रमुख कारण थे –
- राज्यपाल का प्रत्यक्ष निर्वाचन साधारण निर्वाचन के समक्ष नेतृत्व की कठिन समस्या उत्पन्न कर देगा |
- राज्यों हेतु स्वीकृत संसदीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत निर्वाचित राज्यपाल की व्यवस्था पूर्णत: असंगत सिद्ध होती क्योंकि निर्वाचित प्रधान होने पर राज्यपाल और मंत्रिमंडल में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी क्योंकि मंत्रिमंडल भी जनता द्वारा निर्वाचित और उसका प्रतिनिधि होता है |
- देश के विभाजन और उसके कारण से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को देखते हुए संविधान निर्माताओं ने देश की स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा हेतु राज्यों की अपेक्षा संघ को शक्तिशाली बनाने पर विचार किया |
- प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से राज्य की जनता द्वारा निर्वाचित राज्यपाल राज्य के प्रधान के रूप में कार्यकर्ता संघीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नहीं, जबकि संविधान निर्माता यह चाहते थे कि कुछ परिस्थितियों में राज्यपाल संघ के प्रतिनिधि अथवा एजेंट के रूप में कार्य करें, अतः इन समस्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल की राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था की गई |
- राज्यपाल की राज्य की राजनीतिक स्थिति में भूमिका एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष अध्यक्ष तथा निर्णायक की होती है यदि राज्यपाल को जनता अथवा विधान मंडल द्वारा निर्वाचित किए जाने की व्यवस्था की जाती है तो संभवत: राज्यपाल उसी राज्य का निवासी होता और इस बात की बहुत अधिक आशंका थी कि राज्यपाल स्वयं भी दलबंदी और गुटबंदी का शिकार हो जाता | अत: एक निर्वाचित प्रधान की अपेक्षा मनोनीत राज्यपाल की व्यवस्था का अंगीकरण संविधान निर्माताओं द्वारा उठाया गया यह एक सही और महत्वपूर्ण कदम था क्योंकि इससे राज्यपाल एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मध्यस्थ निर्णायक की भूमिका का निर्वहन अधिक कुशलतापूर्वक कर सकता है |
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राज्यपाल की परिस्थिति जन्य विवेकाधिकार शक्तियां
परिस्थिति जन्य विवेकाधिकार शक्तियां निम्न है
मुख्यमंत्री की नियुक्ति
राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है [अनुच्छेद 164(1)] एक संवैधानिक उपबंधनों के अनुसार राज्यपाल बहुमत दल के नेताओं को मुख्यमंत्री नियुक्त करेगा| परंतु जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ हो तो राज्यपाल ने मनमाने तरीके से मुख्यमंत्री की नियुक्ति की है| अनेक बातों राज्यपाल ने बहुमत प्राप्त दल की उपेक्षा करते हुए अनुमति प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त कर विवेकाधिकार शक्ति का दुरुपयोग किया है उदाहरण –
- वर्ष 1967 में राजस्थान के राज्यपाल संपूर्णानंद ने संयुक्त मोर्चा के कांग्रेस से अधिक सीटें प्राप्त होने के बावजूद कांग्रेस को आमंत्रित किया |
- वर्ष 1982 में हरियाणा में बहुमत दल की उपेक्षा करते हुए राज्यपाल ने अल्पमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई |
- वर्ष 2005 में बिहार विधानसभा के चुनावों के बाद बूटा से ने सबसे बड़े दल राजग की उपेक्षा कर राज्य में जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई जो विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए |
मुख्यमंत्री की पदच्युति
- वर्ष 1997 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भण्डारी ने बहुमत प्राप्त मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को हटाकर अल्पमत प्राप्त जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई |
- इसी प्रकार गोवा के राज्यपाल एस सी जमीर ने 2 फरवरी 2005 को मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर भाजपा की सरकार को बर्खास्त कर कांग्रेस के प्रताप सिंह राणे को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई |
विश्वास मत के लिए समय देना
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- झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन को लंबा समय दिया जिसकी आलोचना उच्चतम न्यायालय ने की |
- अनेक बार राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को अचानक 24 घंटे के अंदर बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा, यह भी उचित प्रतीत नहीं होता है |इस प्रकार राज्यपाल ने अपनी इस विवेकाधिकार शक्ति का दुरुपयोग किया है |
विधानसभा को भंग करने का अधिकार
- संविधान के अनुच्छेद 174(2) के अनुसार राज्यपाल समय-समय पर किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा अथवा विधानसभा का विघटन कर सकेगा किंतु इस संबंध में स्वविवेेक के प्रयोग का अवसर प्राप्त होता है|
- जब दल बदल के कारण या अन्य किसी कारण से सरकार अल्पमत में रह गई हो भारतीय राजनीति में ऐसे अनेक अवसर आए हो जब राज्यपाल ने इस परिस्थिति का लाभ लेकर मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना विधानसभा को भंग किया है |
- जैसे वर्ष 1976 में मुख्यमंत्री से परामर्श के राज्यपाल ने तमिलनाडु की विधानसभा को भंग कर दिया था वर्ष 1989 में कर्नाटक के राज्यपाल वैकट सुवैया ने मुख्यमंत्री बोम्मई की सलाह के बिना विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू करने में अपने इस अधिकार का दुरुपयोग किया |
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश
- अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राज्य सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलती है तो राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है जैसे – मई 2005 में बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने राजग (NDA) जोकि सबसे बड़ा दल था, को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया अपितु लालू यादव (RJD) को किया |
राष्ट्रपति के लिए विधायकों को आरक्षित करना
- राज्यपाल को केंद्र राज्य संबंधों को प्रभावित करने वाले विधायकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रख सकता है (अनुच्छेद 200)| परंतु इस विवेकाधिकार का प्रयोग अनेक बार राज्यपाल ने केंद्र सरकार के इशारों पर राज्य सरकार के कार्यों को प्रभावित करने के लिए किया है |
मुख्यमंत्री के विरुद्ध मुकदमा दायर करने की अनुमति देना
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- संविधान के अनुसार राज्यपाल की अनुमति के बिना मुख्यमंत्री के विरुद्ध मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है| वर्ष 1995 में ‘जयललिता प्रकरण’ से यह स्पष्ट हो गया कि जब कोई पक्ष भ्रष्टाचार या किन्हीं आरोपों के आधार पर इस संबंध में निर्णय ले सकता है अर्थात अनुमति दे भी सकता है और नहीं भी दे सकता है |
- वर्तमान समय में जब अनेक मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप है, तब राज्यपाल की यह शक्ति व्यवहारिक राजनीति में बहुत अधिक महत्व प्राप्त कर लेती है| लेकिन राज्यपाल के स्वविवेक के आधार पर लिए गए निर्णय को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है राज्यपाल ने अपनी इस विवेकाधिकार शक्ति का भी अनेकों बार दुरूपयोग किया है |
राज्यपाल की विधायी शक्तियां
राज्यपाल विधानमंडल का सदस्य नहीं होता, परंतु राष्ट्रपति की तरह वह भी विधानमंडल का अंग होता है, राज्यपाल का विधान मंडल की शक्तियों से यह संबंध है और उसे कई प्रकार की वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं जिनमें मुख्य निम्न है –
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- वह राज्य विधानसभा के सत्र को आहूत या सत्रावसान या विघटित कर सकता है, अधिवेशन बुलाने की राज्यपाल की शक्ति पर एक संवैधानिक प्रतिबंध है और वह यह है कि पहले अधिवेशन के अंतिम तिथि तथा अगले अधिवेशन की पहली तिथि के बीच 6 महीने महीनों से अधिक का समय व्यतीत ना हुआ हो |
- वह विधानमंडल के दोनों सदनों में भाषण दे सकता है तथा उनको संदेश भेज सकता है |
- प्रत्येक वर्ष विधानमंडल का अधिवेशन राज्यपाल के भाषण से आरंभ होता है, जिसमें राज्य की नीति का वर्णन होता है |
- राज्य विधानमंडल द्वारा पास हुआ बिल तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक राज्यपाल अपनी स्वीकृति ना दे दे | धन बिलों को राज्यपाल स्वीकृति देने से इनकार नहीं कर सकता, परंतु साधारण बिलों को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है |यदि विधान मंडल साधारण बिल को दोबारा पास कर दे तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है राज्यपाल कुछ बिलों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रख सकता है |
- राज्यपाल राज्य विधानमंडल के उच्च सदन (विधान परिषद) के ⅙ सदस्यों को मनोनीत कर सकता है जो राज्य के कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा तथा सहकारिता से जुड़े हो |
- राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का भी अधिकार प्राप्त है जब विधानमंडल का अधिवेशन न चल रहा हो और कोई असाधारण परिस्थिति उत्पन्न हो गई हो जिसको पूरा करने के लिए कोई कानून ना हो तब राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है |
- अध्यादेश को उसी प्रकार लागू किया जा सकता है जिस प्रकार विधानमंडल के बनाए हुए कानून को परंतु यह अध्यादेश विधान मंडल की बैठक आरंभ होने पर 6 सप्ताह के पश्चात लागू नहीं रह सकता राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने की पूर्ण स्वतंत्रता है और इसकी इस शक्ति का प्रयोग को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है |
- राज्य लोक सेवा आयोग और महालेखा परीक्षक अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल के पास भेजते हैं और राज्यपाल इन रिपोर्टों को विधानमंडल के सामने रखता है |
- राज्यपाल विधान परिषद के सभापति तथा उपसभापति के पद रिक्त होने पर किसी भी सदस्य को विधान परिषद की अध्यक्षता करने को कह सकता है |
- यदि विधान मंडल के किसी सदस्य की अयोग्यता संबंधी कोई विवाद हो तो उसका निर्णय राज्यपाल करता है और उसका निर्णय अंतिम होता है परंतु निर्णय लेने से पूर्व राज्यपाल के लिए चुनाव आयोग का परामर्श लेना आवश्यक है |
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां
- राज्यपाल को राष्ट्रपति के अनुरूप कार्यकारी, विधायी, विधि और न्याय शक्तियां प्राप्त होती हैं |
- परंतु राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान कूटनीतिक सैन्य या आपातकालीन शक्तियां प्राप्त नहीं है |
- राज्यपाल की शक्तियों और उसके कार्यों को कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायायिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है |
कार्यकारी शक्तियां
संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार राष्ट्र राज्य की कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित की गई हैं जिनका प्रयोग वह स्वयं या तो प्रत्यक्ष रुप से करता है या अपने अधीन कर्मचारियों द्वारा कराता है| राज्यपाल को निम्नलिखित कार्यकारी शक्तियां प्राप्त हैं –
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- राज्य का समस्त शासन राज्यपाल के नाम पर चलाया जाता है वह उन सब विषयों पर शासन चलाता है जिनके संबंध में राज्य के विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार है |
- राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा उसके परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्तियां करता है मंत्री और महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद ग्रहण करते हैं वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को नियुक्त करता है किंतु वह अन्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को नहीं हटा सकता आयोग के सदस्य उच्चतम न्यायालय के प्रतिवेदन पर कुछ और ने कुछ निर्हताओं के होने पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकते हैं | (अनुच्छेद 217)
- मंत्री अपने पद पर राज्यपाल के प्रसादपर्यंत रहते हैं राज्यपाल किसी मंत्री को मुख्यमंत्री के परामर्श से हटा सकता है |
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- वह शासन कार्य को सुविधा पूर्वक चलाने के लिए तथा उस कार्य को मंत्रियों में बांटने के लिए नियम बनाता है |
- वह राज्य के महाधिवक्ता और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को नियुक्त करता है |
- राज्य के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा ही की जाती है |
- राज्यपाल मंत्री के किसी निर्णय को मंत्रिपरिषद के पास विचार करने के लिए वापस भेज सकता है |
- वह प्रशासन के बारे में मुख्यमंत्री से कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकता है
- राज्यपाल राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के एक सदस्य को नियुक्त कर सकता है | (अनुच्छेद 333)
- असोम के राज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह अनुसूचित कबीलों का विशेष ध्यान रखें |
- राज्यपाल को राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति नहीं है किंतु इस विषय पर राष्ट्रपति उसने परामर्श करता है | [अनुच्छेद 217(1)]
- राज्यपाल जब यह अनुभव करें कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो चुकी है कि राज्य का प्रशासन लोकतंत्रात्मक परंपराओं के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है तथा राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजता है पर राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संकट की घोषणा पर वह राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार राज्य का शासन चलाता है | (अनुच्छेद 356)
- राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है तथा उपकुलपतियों को भी नियुक्त करता है किंतु राज्यपाल को बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न परिस्थितियों का सामना करने वाली ऐसी कोई बाह्य शक्ति प्राप्त नहीं है जैसी राष्ट्रपति को प्राप्त है | [अनुच्छेद 352 (1)]
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां और वित्तीय शक्तियां
वित्तीय शक्तियां
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां एवं कार्य निम्नलिखित हैं
- राज्यपाल की सिफारिश के बिना कोई भी धन विधेयक विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता अर्थात विधानसभा से धन की मांग राज्यपाल की सिफारिश पर ही हो सकती है|
- वार्षिक बजट राज्यपाल वित्त मंत्री द्वारा विधानसभा में पेश करवाता है कोई भी बजत अनुदान मांग बिना राज्यपाल की अनुमति के प्रस्तुत नहीं हो सकता|
- राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का ही नियंत्रण है यदि संकट के समय आवश्यकता पड़े तो राज्यपाल इसमें आवश्यकतानुसार व्यय कर लेता है तथा उसके पश्चात राज्य विधानमंडल से उसकी स्वीकृति ले लेता है|
- पंचायतों और नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति की हर 5 वर्ष बाद समीक्षा के लिए वह वित्त आयोग का गठन करता है|
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां
राज्यपाल को निम्नलिखित न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं
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- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदोन्नति राज्यपाल करता है|
- राज्यपाल यदि समझे की किसी न्यायालय के पास काम अधिक है तो वह आवश्यकतानुसार अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है|
- राज्यपाल उस अपराधी के दंड को क्षमा कर सकता है, घटा सकता है तथा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है, जिससे राज्य के कानून के विरुद्ध अपराध करने पर दंड मिला हो| वह इस अधिकार का प्रयोग उन विषयों में नहीं कर सकता जो संघ सरकार की कार्यपालिका के अधीन हो| राज्यपाल अपनी इस शक्ति का प्रयोग भी मुकदमे की सुनवाई के आरंभ से पूर्व, उसके बीच अथवा उसके पश्चात कर सकता है|
राज्यपाल की नियुक्ति एवं भूमिका को लेकर बने प्रमुख आयोग एवं उनकी सिफारिशें
प्रशासनिक सुधार आयोग (1966)
- उस व्यक्ति को राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए जिसे सार्वजनिक जीवन एवं प्रशासन का अनुभव हो और जो अपने आप को दलीय पूर्वाग्रहों से मुक्त रखता हो |
- राज्यपाल द्वारा अपने स्वविवेक के अधीन प्रयोग की जाने वाली शक्तियों का पर्याप्त स्पष्टीकरण किया जाना चाहिए |
- राज्य की नियुक्ति के संबंध में संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श किया जाना चाहिए |
- यदि राज्यपाल को यह समाधान हो जाए कि मंत्रिमंडल को विधानसभा का समर्थन प्राप्त नहीं रहा तो उसे विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए मुख्यमंत्री को कहना चाहिए यदि मुख्यमंत्री को इस संबंध में आनाकानी करता है तो विधानसभा को सख्त बनाने की सिफारिश नहीं करता तब राज्यपाल को स्वयं विधानसभा का सत्र बुलाकर स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए |
भगवान सहाय समिति (1970)
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- 1970 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल श्री भगवान सहाय की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई जिसकी प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार है –
- ऐसा व्यक्ति जो विधानसभा का सदस्य नहीं है या जिसे विधानसभा के लिए मनोनीत किया गया हो, वह मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करना चाहिए ना कि राष्ट्रपति के अभिकर्ता के रूप में |
- यदि विधानसभा के मंत्री मंडल के पक्ष में समर्थन संदेहास्पद और मुख्यमंत्री विधानसभा का सत्र बुलाने में आनाकानी करे तो राज्यपाल को तुरंत मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर देना चाहिए |
- मुख्यमंत्री के त्यागपत्र या बर्खास्तगी के बाद राज्य में वैकल्पिक सरकार बनाने की समस्त संभावनाएं क्षीण हो गई हो, तो ही राज्यपाल को विधानसभा भंग करने और राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करनी चाहिए |
राजमन्नार समिति (1969)
- राज्यपाल की नियुक्ति सदैब संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के परामर्श करके ही की जानी चाहिए |
- राज्यपाल को साबित कदाचार या अक्षमता के आधार पर केवल उच्चतम न्यायालय की जांच के बाद ही हटाया जाना चाहिए |
- इस संवैधानिक प्रावधान को तत्काल निरस्त कर देना चाहिए की कि, “मंत्रिपरिषद, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगी |
- राज्यपाल के पद पर सेवा प्रदान कर चुके व्यक्ति को केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधीन पुनः सेवा में नहीं लेना चाहिए |
- विधानसभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो राज्यपाल को विधानसभा को अधिवेशन बुलाना चाहिए और अधिवेशन में बहुमत से चुने गए व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाहिए |
सरकारिया आयोग (1983)
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- राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति जीवन के किसी क्षेत्र में प्रसिद्ध होना चाहिए |
- राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व का संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री का परामर्श अवश्य लेना चाहिए |
- ऐसा व्यक्ति किसी दूसरे राज्य से संबंध होना चाहिए |
- व्यक्ति ने राजनीति, विशेषकर उस राज्य की राजनीति में अधिक भाग न लिया हो |
- जिस राज्य में विपक्षी दल की सरकार हो वहांकेंद्र में शासक दल के किसी व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए |