महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर, दोनों भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और विचारक थे। दोनों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अथक संघर्ष किया और भारतीय समाज में व्यापक परिवर्तन लाने के लिए प्रयास किए। हालांकि, शिक्षा और राष्ट्रवाद के प्रति उनके विचारों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर थे।
शिक्षा
- गांधी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के सर्वांगीण विकास करना है। उन्होंने “नई तालीम” की अवधारणा को प्रतिपादित किया, जो व्यावहारिक, बौद्धिक और नैतिक कौशल को बढ़ावा देती है। गांधी ने अभिजात वर्ग-सामान्य जन के बीच के अंतर को समाप्त करने तथा व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल दिया।
- टैगोर का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति की रचनात्मकता और स्वतंत्र विचार को बढ़ावा देना है। उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो एक स्वतंत्र और उदार शिक्षा संस्थान है। टैगोर ने कला, संगीत और साहित्य को शिक्षा का अभिन्न अंग माना।
- गांधी: गांधी ‘नई तालीम’ या ‘बुनियादी शिक्षा’ की अवधारणा में विश्वास करते थे।
- उन्होंने एक समग्र शिक्षा की वकालत की जो व्यावहारिक, बौद्धिक और नैतिक कौशल को बढ़ावा देती है।
- उन्होंने अभिजात वर्ग-सामान्य जन के बीच के अंतर को समाप्त करने तथा व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल दिया।
- टैगोर: टैगोर ने अधिक उदार और विश्वव्यापी शिक्षा का समर्थन किया।
- उन्होंने कला, रचनात्मकता और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये शांतिनिकेतन की स्थापना की।
- उनका दर्शन व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास पर ज़ोर देता है ताकि विश्व की विविध संस्कृतियों को समृद्ध बनाया जा सके।
राष्ट्रवाद
- गांधी का मानना था कि राष्ट्रवाद आत्मनिर्भरता और स्वराज के विचार में गहराई से निहित है। उन्होंने ब्रिटिश शासन को कमज़ोर करने के तरीके के रूप में ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों के बहिष्कार के विचार को बढ़ावा दिया। गांधी का राष्ट्रवाद अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित था।
- टैगोर का मानना था कि राष्ट्रवाद एक सीमित अवधारणा है जो अक्सर हिंसा और विद्वेष को जन्म देती है। उन्होंने एक ऐसे राष्ट्रवाद की कल्पना की जो सांस्कृतिक एकता और सद्भाव पर आधारित हो। टैगोर का मानना था कि भारत की विरासत को पूर्व और पश्चिम के बीच एक पुल के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर दोनों ही भारतीय स्वतंत्रता के लिए महान योगदानकर्ता थे। हालांकि, शिक्षा और राष्ट्रवाद के प्रति उनके विचारों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर थे। गांधी का शिक्षा और राष्ट्रवाद का दृष्टिकोण अधिक व्यावहारिक और राजनीतिक था, जबकि टैगोर का दृष्टिकोण अधिक आदर्शवादी और मानवतावादी था।