मानव विकास के आवश्यक तत्व के तौर पर, लोगों का स्वास्थ्य एक देश के आर्थिक संवृद्धि और स्थिरता के लिए अपरिहार्य है। अच्छे स्वास्थ्य के लिएरोग नियंत्रण और पोषण, तथा एक दक्ष स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की आवश्यकता होती है। प्रसंगवश, जबकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है, जनसंख्या स्थिरीकरण को समवर्ती सूची में रखा गया है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बल देकर वर्ष 2000 तक सभी के लिए स्वास्थ्य (एचएफए) 1978 की अल्मा अटा घोषणा का मुख्य नारा था जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षर कर्ता देश था। इसके अनुरूप, 1983 में संसद द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को अपनाया गया। एचएफए के अंतर्गत,समुदाय आधारित व्यवस्था द्वारा सतर्कतापूर्वक और निरंतर रूप से वंचित वर्गों के स्वास्थ्य को प्रोत्साहित किया गया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2002
नीति में विशेष आवश्यकता वाले क्षेत्रों और अनेक मुद्दों को जोड़ा गया है। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में भागीदार तमाम समूहों की अपेक्षित भूमिका भी शामिल है, जिसमें-सरकार (केंद्र व राज्य दोनों), निजी क्षेत्र, स्वैच्छिक संगठन और अन्य नागरिक सोसायटी के सदस्य, बीमारी की देख-रेख, स्वास्थ्य अधिकारी, उनके सिद्धांत और शिक्षा, नर्सिंग अधिकारी, चिकित्सा अनुसन्धान और नैतिकता, शहरी स्वास्थ्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा की आवश्यकता, सूचना, शिक्षा और संचार की भूमिका, महिला स्वास्थ्य, स्वास्थ्य क्षेत्र पर वैश्वीकरण का प्रभाव, आदि सम्मिलित हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अंतर्गत कुछ लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समयसीमा निर्धारित कर दी गई। इनमें कुछ इस प्रकार हैं-
- 2003 चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सालयों की स्थापना के लिए मानदंडों का निर्धारण और उसके नियमन के लिए विधेयक लाना।
- 2005 पोलियो उन्मूलन/कुष्ठ रोग उन्मूलन स्वास्थ्य के लिए बजट में 5.5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत की वृद्धि।
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में संपूर्ण बजट का एक प्रतिशत शोध कार्य के लिए खर्च करना, जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों का विकेंद्रीकरण करना।
- 2007 एच.आई.वी./एड्स की वृद्धि को शून्य स्तर पर लाना।
- 2010 कालाजार रोग का उन्मूलन।
टी.बी., मलेरिया जैसे संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु की दर में 50 प्रतिशत की कमी लाना।
अंधापन की वर्तमान स्थिति में 0.5 प्रतिशत की कमी लाना। जन-स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में 75 प्रतिशत तक की वृद्धि करना। अभी यह 20 प्रतिशत से भी कम है। बजट में स्वास्थ्य पर जी.डी.पी. का कुल दो प्रतिशत खर्च।
- 2015 लिम्फैटिक फाइलेरिया का उन्मूलन।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन 12 अप्रैल, 2005 को सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनतम परिवारों तक पहुंचने वाली, वहनीय और उत्तरदायित्वपूर्ण उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए चलाया गया था।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002, ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (2005-12) में बालस्वास्थ्य संबंधी लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। मिशन के अंतर्गत किए जा रहे कार्य प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र की स्थापना।
- पूर्वोत्तर के लिए क्षेत्रीय संसाधन केंद्र की स्थापना।
- राज्यों में राज्य संसाधन केंद्रों की स्थापना का कार्य जारी।
- पूरे देश में 730 लाख आशाकर्मियों का चयन किया गया है, इनमें से 6.78 लाख आशा कार्यकर्ताओं ने प्रशिक्षण के पहले मॉड्यूल का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
- अब तक 407 जिलों में 321 मूल गैर-सरकारी संगठनों की नियुक्ति। ये आशाकर्मियों के प्रशिक्षण के साथ अन्य गतिविधियों में पूरी तरह शामिल हैं।
- देश में 4,276 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 2,949 केंद्रों को आईपीएचसी के रूप में उच्चीकृत के लिए चुना गया है और 2,869 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधा सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया है।
- विभिन्न स्तरों के स्वास्थ्य केंद्रों में 28,877 रोगी कल्याण समितियों का पंजीकरण कराया गया है।
- देश के हरेक, जले में एक मोबाइल चिकित्सा इकाई के लिए धनराशि जारी की गई। 354 जिलों में सचल चिकित्सा इकाइयां चालू की गई।
- पोलियो उन्मूलन में प्रगति की सघन निगरानी आशाकर्मियों द्वारा की जा रही है।
- देश के 15 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से नवजात शिशुओं में टिटनेस की बीमारी उन्मूलन की घोषणा।
- पूर्वोत्तर राज्यों के लिए त्वरित टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत।
- देश में सभी जिलों में जननी सुरक्षा योजना लागू की गयी। 2008-09 में 83.84 लाख और 2009-10 में 19.26 लाख महिलाओं ने इसका फायदा उठाया।
- देश के 269 जिलों में नवजात शिशु और बाल रोगों के समन्वित प्रबंधन की योजना लागू।
- राज्यों में 427 ग्राम स्वास्थ्य और 955 स्वच्छता समितियों का गठन किया गया है।
- 20 से अधिक राज्यों में स्कूल स्वास्थ्य प्रारंभ।
- 10 राज्यों में आपात चिकित्सा प्रणाली काम कर रही है।
- सप्ताह में सातों दिन और रोजाना 24 घंटे चालू रहने वाले 3,606 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, 1,664 सब-डिवीजनल अस्पतालों/तालुका अस्पतालों, 7,613प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों ने कार्य शुरू किया।
- राज्यों में आयुष को मुख्य धारा में लाने का कार्य प्रारंभ किया गया।
- 9 राज्यों के 284 जिलों में वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण का कार्य शुरू किया गया है।
- 2009-10 के वित्तीय वर्ष में 13,930 करोड़ रुपये में से 6,6 करोड़ रुपये राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को दिए गए।
ग्यारहवीं योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन नामक एक योजना बनायी है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एन.यू.एच.एम.)को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत् उप-मिशन के रूप में लागू करने के प्रस्ताव को 1 मई, 2013 को मंजूरी प्रदान की है। राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के तहत् शहरी जनसंख्या, विशेषतः शहरी गरीवोंको स्वास्थ्यसेवाएँ प्राथमिक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के जरिए गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी।
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत् पारित प्रस्ताव हैं-
- 50 हजार से 60 हजार की जनसंख्या पर एक शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (यू-पीएचसी),
- बड़े शहरों में पांच या छह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए एक शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (यू-सीएचसी),
- दस हजार की जनसंख्या पर सहायक नसिंग मिडवाइफ (एएनएम),
- 200 से 500 परिवारों के लिए मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएसएचए-आशा) की नियुक्ति।
इस मिशन के तहत् खर्च होने वाली राशि में केंद्र व राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 75 व 25 प्रतिशत होगी। पूर्वोत्तर राज्यों तथा विशेष श्रेणी के राज्यों (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड) के मामले में यह हिस्सेदारी क्रमशः 90 प्रतिशत व 10 प्रतिशत होगी। यह योजना शहरी गरीबों की आवश्यकताओं के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर आधारित होगी। इस मिशन की 50 हजार से अधिक जनसंख्या वाले 779 शहरों व कस्बों में लागू किया जाएगा तथा 7.75 करोड़ से अधिक जनसंख्या इससे लाभान्वित होगी। इस मिशन के संचालित होने से शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी।
मौजूदा संस्थागत तंत्र एवं प्रबंधन व्यवस्था का पुनरुत्थान और एनआरएचएम के अंतर्गत कार्यशील तंत्र का एनयूएचएम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुदृढ़ीकरण किया जाएगा। आधाररेखा सर्वेक्षण और महसूस की जाने वाली जरूरतों पर आधारित शहर-दर-शहर क्रियान्वयन योजना बनाई जाएगी। शहरी स्थानीय निकाय योजना के क्रियान्वयन में पूरी तरह से संलग्न होंगे। (नोट-मानव विकास संबंधी अद्यनूतन आंकड़ों की तालिका परिशिष्ट में दी गई है)