साक्षरता और शिक्षा को सामान्यतः सामाजिक विकास के संकेतकों के तौर पर देखा जाता है। साक्षरता का विस्तार औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, बेहतर संचार, वाणिज्य विस्तार और आधुनिकीकरण के साथ भी सम्बद्ध किया जाता है। संशोधित साक्षरता स्तर जागरूकता और सामाजिक कौशल बढ़ाने तथा आर्थिक दशा सुधारने में सहायक होता है। साक्षरता जीवन की गुणवत्ता-आयु प्रत्याशा, बच्चों का पोषण स्तर और निम्न शिशु मृत्यु-दर को सुधारने में योगदान करती है।
1981 की जनगणना तक, साक्षरता दर की गणना के लिए समग्र जनसंख्या को लिया गया। 1991 से पूर्व, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की आवश्यक रूप से अशिक्षित समझा जाता था। 1991 की जनगणना में निश्चय किया गया कि 0-6 आयु वर्ग के बच्चों को परिभाषा द्वारा अशिक्षित समझा जाएगा। केवल 7 वर्ष या उससे अधिक आयु की जनसंख्या को शिक्षित और अशिक्षित में वर्गीकृत किया जाएगा। इसी प्रकार का मापदंड 2001 और 2011 की जनगणनाओं में अपनाया गया। साक्षर व्यक्ति वह है जो किसी भाषा को समझने के साथ पढ़ और लिख सकता है। एक व्यक्ति जो पढ़ सकता है लेकिन लिख नहीं सकता जनगणना के परिप्रेक्ष्य में साक्षर नहीं है। हालांकि, साक्षर मानने के लिए किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा जरूरी नहीं मानी जाती। नेत्रहीन व्यक्ति जो ब्रेल लिपि में पढ़ सकता है, शिक्षितों में शामिल किया जाता है। देश की समग्र जनसंख्या को लेते हुए की गई साक्षरता को अशोधित साक्षरता दर कहा जाता है।
अशोधित साक्षरता दर और प्रभावी साक्षरता दर की गणना करने का सूत्र इस प्रकार है:
अशोधित साक्षरता दर = साक्षर व्यक्तियों की संख्या x 100 / कुल जनसंख्या
प्रभावी साक्षरता दर = 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के साक्षर व्यक्तियों की संख्या x 100 / 7 वर्ष और अधिक आयु की जनसंख्या
साक्षरता और शिक्षा को सामान्यतः सामाजिक विकास के संकेतकों के तौर पर देखा जाता है। साक्षरता का विस्तार औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, बेहतर संचार, वाणिज्य विस्तार और आधुनिकीकरण के साथ भी सम्बद्ध किया जाता है। संशोधित साक्षरता स्तर जागरूकता और सामाजिक कौशल बढ़ाने तथा आर्थिक दशा सुधारने में सहायक होता है। साक्षरता जीवन की गुणवत्ता-आयु प्रत्याशा, बच्चों का पोषण स्तर और निम्न शिशु मृत्यु-दर को सुधारने में योगदान करती है।
1981 की जनगणना तक, साक्षरता दर की गणना के लिए समग्र जनसंख्या को लिया गया। 1991 से पूर्व, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की आवश्यक रूप से अशिक्षित समझा जाता था। 1991 की जनगणना में निश्चय किया गया कि 0-6 आयु वर्ग के बच्चों को परिभाषा द्वारा अशिक्षित समझा जाएगा। केवल 7 वर्ष या उससे अधिक आयु की जनसंख्या को शिक्षित और अशिक्षित में वर्गीकृत किया जाएगा। इसी प्रकार का मापदंड 2001 और 2011 की जनगणनाओं में अपनाया गया। साक्षर व्यक्ति वह है जो किसी भाषा को समझने के साथ पढ़ और लिख सकता है। एक व्यक्ति जो पढ़ सकता है लेकिन लिख नहीं सकता जनगणना के परिप्रेक्ष्य में साक्षर नहीं है। हालांकि, साक्षर मानने के लिए किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा जरूरी नहीं मानी जाती। नेत्रहीन व्यक्ति जो ब्रेल लिपि में पढ़ सकता है, शिक्षितों में शामिल किया जाता है। देश की समग्र जनसंख्या को लेते हुए की गई साक्षरता को अशोधित साक्षरता दर कहा जाता है।
अशोधित साक्षरता दर और प्रभावी साक्षरता दर की गणना करने का सूत्र इस प्रकार है:
अशोधित साक्षरता दर = साक्षर व्यक्तियों की संख्या x 100 / कुल जनसंख्या
प्रभावी साक्षरता दर = 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के साक्षर व्यक्तियों की संख्या x 100 / 7 वर्ष और अधिक आयु की जनसंख्या
पिछले दशक में साक्षरता अनुपात में उल्लेखनीय सुधार दर्शाया गया है। 2001 में सात वर्ष व इससे अधिक आयु की जनसंख्या में जहां 64.84 प्रतिशत लोग साक्षर थे, वहीं 2011 की जनगणना में भारत की प्रभावी साक्षरता दर 73.0 प्रतिशत रही, जिसमें पुरुष और महिला साक्षरता दर क्रमशः 80.9 प्रतिशत और 64.6 प्रतिशत है। इस प्रकार देश में 7 वर्ष और इससे ऊपर की आयु की तीन-चौथाई जनसंख्या साक्षर है। देश में प्रत्येक पांच पुरुष में से चार पुरुष और प्रत्येक तीन महिला में से दो महिला साक्षर है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद अशोधित साक्षरता दर में बहुत बड़ा तुधार (48.22 प्रतिशत अंक) हुआ है। पुरुषों के मामले में यह वृद्धि 46.32 प्रतिशत अंक हुई है और महिलाओं के मध्य यह 49.69 प्रतिशत अंक है। पिछले दशक के दौरान शोधित साक्षरता दर में लगभग 10 प्रतिशत अंक की वृद्धि रही है। जिसमें पुरुष शोधित साक्षरता दर में 8 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई थी जबकि महिलाओं के मामले में 12 प्रतिशत अंक रही। 2001 की जनगणना में पुरुष और महिला के मध्य साक्षरता अंतराल 21.59 प्रतिशत अंक था जो 2011 की जनगणना में घटकर 16.68 प्रतिशत अंक हो गया है।
देश में साक्षरता दर में केरल प्रथम स्थान पर है जिसके पश्चात् लक्षद्वीप और मिजोरम आते हैं। देश में 61.8 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ बिहार न्यूनतम स्थान पर है जिससे पहले अरुणाचल प्रदेश और राजस्थान राज्य आते हैं।
इस प्रकार ताजा अंतिम आंकड़ों के अनुसार 2011 में देश में साक्षरता दर 73 प्रतिशत रही। पुरुषों में साक्षरता 80.9 प्रतिशत और महिलाओं में यह 64.6 प्रतिशत पाई गई। 2001-11 के दशक में साक्षरता दर में सर्वाधिक 18.6 प्रतिशत बिंदु की वृद्धि दादरा एवं नागर हवेली में दर्ज की गई जहां यह 57.6 प्रतिशत से बढ़कर 76.2 प्रतिशत हो गई। इसके पश्चात् बिहार में 14.8 प्रतिशत (47.0 प्रतिशत से बढ़कर 61.8 प्रतिशत) व त्रिपुरा में 14.0 प्रतिशत (73.2 प्रतिशत से बढ़कर 87.2 प्रतिशत) बिंदु की वृद्धि साक्षरता दर में हुई।
अतः 2011 की जनगणना के मुताबिक 5 सर्वोच्च साक्षरता वाले राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश हैं- केरल (94.0 प्रतिशत), लक्षद्वीप (91.8 प्रतिशत), मिजोरम (91.3 प्रतिशत), गोवा (88.7 प्रतिशत), त्रिपुरा (87.2 प्रतिशत)। दूसरी ओर न्यूनतम साक्षरता वाले राज्य/केंद्र-शासित क्षेत्र हैं- बिहार (61.8 प्रतिशत), अरुणाचलप्रदेश (65.4 प्रतिशत), राजस्थान (66.1 प्रतिशत), झारखण्ड (66.4 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (67.0 प्रतिशत)।
लिंग अंतराल
राष्ट्रीय स्तर पर, 2001 की जनगणना के लिए पुरुष-स्त्री अंतराल 21.59 था जबकि जनगणना 2011 के लिए यह 16.68 था। पुरुष एवं महिलाओं के लिए साक्षरता दरों में दशकीय अंतर क्रमशः 6.88 और 11.79 प्रतिशत बिंदु था, जो महिलाओं के संदर्भ में भारी सुधार की ओर एक संकेत है। उत्तर-पूर्वी राज्यों के तहत् मेघालय और मिजोरम तथा दक्षिण भारत से केरल में जनगणना-2011 और जनगणना-2001 में न्यूनतम पुरुष-महिला लिंग अंतराल दर्ज किया गया। 1991 के जनगणना के दौरान भी मेघालय में न्यूनतम लिंग अंतराल दर्ज किया गया था जिसके बाद केरल और मेघालय का स्थान था। ये राज्य लंबे समय से लगातार अग्रणी रहे हैं। 2011-12 के लिए योजना आयोग द्वारा निर्धारित पुरुष-महिला अनुपात लक्ष्य को पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, लक्षद्वीप, केरल तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह राज्यों और संघ प्रदेशों द्वारा प्राप्त किया गया।
2001-2011 दशक के दौरान 31,196,847 तक अशिक्षितों की संख्या में कमी आई है। इस कमी में अधिकतम योगदान उत्तर प्रदेश का रहा है, जिसके बाद बिहार का स्थान आता है। इन दो राज्यों का अशिक्षितों की संख्या में आई कुल कमी का 37.43 प्रतिशत योगदान है। अशिक्षितों की संख्या में वृद्धि वाले राज्य राजस्थान (3.18 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (0.81 प्रतिशत) और मध्यप्रदेश (0.80 प्रतिशत) हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, और दमन एवं दीव को छोड़कर, सभी राज्यों और संघ प्रदेशों में पुरुष साक्षरता कम हुई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, चंडीगढ़ और मिजोरम में महिला अशिक्षितों की संख्या बढ़ी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक ओडिशा और आन्ध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं जिन्होंने महिला अशिक्षितों की संख्या में उल्लेखनीय कमी का योगदान किया है।
2011 की जनगणना में किसी भी राज्य और संघ प्रदेश में साक्षरता दर 60 प्रतिशत से कम दर्ज नहीं की गई। 2011 की जनगणना में 80 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर रखने वाले राज्यों और संघ प्रदेशों की संख्या 14 तक हो गई।
ग्रामीण-नगर अंतराल: 2001 के आंकड़ों के तहत् ग्रामीण क्षेत्र में 131.1 मिलियन शिक्षितों की वृद्धि हुई जबकि शहरी क्षेत्र में यह 86.6 मिलियन थी। इससे प्रकट होता है कि ग्रामीण क्षेत्र में यह वृद्धि 10.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 5.1 प्रतिशत हुई।
साक्षरता दर में ग्रामीण क्षेत्र में शहरी क्षेत्र की अपेक्षा 2 गुना सुधार हुआ। 2001 में ग्रामीण-नगर साक्षरता अंतराल 21.2 प्रतिशत था, जो 2011 में गिरकर 16.1 प्रतिशत पर आ गया।
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुष साक्षरता की अपेक्षा महिता साक्षरता में अधिक सुधार हुआ। साक्षरता में लिंग अंतराल 2001 में 24.6 से गिरकर 2011 में 17.3 हो गया और शहरी क्षेत्र में यह 2001 में 18.4 से गिरकर 2011 में 9.7 हो गया।
- साक्षरता दर अवधारणात्मक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च थी। यह 2001 के 46.13 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 67.8 प्रतिशत हो गई।
- साक्षरता दर में लिंग अंतराल उल्लेखनीय रूप से लगातार विभिन्न जनगणनाओं में कम होता गया लेकिन यह ऊंचा बना रहा (17.3)।
- शहरी क्षेत्रों में पुरुष और महिला दोनों साक्षरता दर में निरंतर वृद्धि हुई। महिला साक्षरता दर में धीमी वृद्धि ने महत्वपूर्ण रूप से लिंग अंतराल में कमी की।