आधुनिक विश्व में संचार तकनीक के विकास के बिना सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में प्रगति हासिल करना असंभव है। संचार तकनीक के त्वरित विकास को क्रांति की संज्ञा दी गयी है। संचार प्रौद्योगिकी के अंतर्गत डाक प्रणाली, दूर संचार एवं सूचना तकनीक जैसे विभिन्न संचार के साघन शामिल हैं।
संचार तंत्र में टेलीग्राफ, डाक, दूरसंचार, रेडियो प्रसारण, टेलिविजन तथा सूचना सेवा से सम्मिलित हैं। संचार तंत्र बाजार के विभिन्न खंडों को जोड़ता है तथा सामाजिक आर्थिक विकास प्रक्रिया में भागीदार लोगों के लिए जरूरी सूचनाओं एवं आंकड़ों की आपूर्ति करता है।
डाक व्यवस्था
वर्ष 1766 में लॉर्ड क्लाइव द्वारा स्थापित इस डाक-व्यवस्था का आगे का विकास वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में एक पोस्ट मास्टर जनरल के अधीन कलकत्ता जी.पी.ओ. की स्थापना करके किया। भारत में डाक प्रणाली का उपयोग 1837 तक सरकारी उद्देश्यों हेतु किया जाता रहा। 1837 में डाक सेवाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने लगीं। 1852 में कराची में पहली डाक टिकट जारी की गयी, जो मात्र सिंध प्रांत में वैध थी। 1854 में भारतीय डाक कार्यालय को एक संस्था के रूप में पुनर्गठित किया गया। उस समय भारत में 700 डाकघर मौजूद थे। भारत में भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 के अनुसार डाक सेवाओं को अधिशासित किया जाता है। यह अधिनियम सरकार को देश में पत्रों के एकत्रण, संचरण एवं वितरण का विशेषाधिकार प्रदान करता है। फिर भी, अब निजी कुरियर सेवाओं को अनुमति दे दी गई है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 23,344 डाकघर थे, जिनमें से 19,184 ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 4,160 शहरी क्षेत्रों में स्थित थे। वर्तमान में,देश भर में 1,54,822 डाकघर हैं जिनमें से 1,39,086 (89.84 प्रतिशत) डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों और 15,736 (10.16 प्रतिशत) शहरी क्षेत्रों में हैं। पोस्टल नेटवर्क में इस सात गुने विकास के परिणामस्वरूप आज भारत में विश्व का सबसे बड़ा पोस्टल नेटवर्क है। एक औसत के अनुसार, एक डाकघर 24.21 वर्ग किमी. क्षेत्र और 7,176 लोगों की जनसंख्या को अपनी सेवाएं उपलब्ध कराता है। ग्रामीण क्षेत्रों में डाकघर की स्थापना डाक विभाग द्वारा तय किये गये जनसंख्या, दूरी एवं आय आधारित मानदंडों के अनुसार की जाती है।
पोस्टल नेटवर्क में तीन श्रेणियों के डाकघर हैं अर्थात प्रधान डाकघर, उप डाकघर और अतिरिक्त विभागीय शाखा डाकघर। सभी श्रेणियों के डाकघर समान पोस्टल सेवाएं प्रदान करते हैं। हालांकि डिलीवरी का काम विशिष्ट डाकघरों के लिए सीमित है। प्रबंधन नियंत्रण के लिए शाखा डाकघरों से कोष की उप-डाकघरों में और अंत में प्रधान डाकघर में लाकर जमा किया जाता है।
डाकघरों के अतिरिक्त, बुनियादी डाक सेवाएं फ्रेंचाइजी और पंचायत संचार सेवा केंद्र के जरिए भी मुहैया कराई जाती है। फ्रेंचाइजी दुकानें शहरी क्षेत्रों में ऐसी जगह खोली गई हैं जहां स्थायी डाकघर खोलना संभव नहीं है। इस योजना में, केवल विशिष्ट काउंटर सेवाएं ही उपलब्ध हैं जबकि लघु बचत सहित डाक प्रेषण और वितरण कार्य इन केंद्रों को नहीं दिया गया है। पंचायत संचार सेवा केंद्र वहां खोले गए हैं जहां पर डाकघर नहीं हैं। यह सेवा ग्राम पंचायत द्वारा एजेंट नियुक्त कर प्रदान की जा रही है।
डाक प्रणाली: प्रथम श्रेणी की डाक (पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र तथा लिफाफों) को उनके गंतव्य स्थल तक विमान द्वारा पहुंचाया जाता है, जबकि द्वितीय श्रेणी की (पार्सल,बुक-पोस्ट, पंजीकृत डाक, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं आदि) घरेलू डाक को भूतल परिवहन साधनों अर्थात् रेल, बस आदि के माध्यम से ले जाया जाता है।
निम्नलिखित डाक और सुसाध्य माध्यमों से अवगत कराया जा रहा है।
ई-डाकघर: इंटरनेट के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं को कुछ चुनिंदा सेवाएं उपलब्ध कराती है। वर्तमान में वेबसाइट के जरिए ऐतिहासिक स्टाम्प, पोस्टल जीवन बीमा और ग्रामीण जीवन बीमा के प्रीमियम और विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक पोस्टल ऑर्डर खरीदने की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। वेबसाइट पर किसी सेवा का लाभ उठाने के लिए उपभोक्ता क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिए शुल्क का भुगतान कर सकते हैं।
बिल मेल सेवा: वित्तीय ब्योरों, बिलों, मासिक खाता बिलों और इसी तरह की अन्य चीजें जो सेवा प्रदानकर्ता अपने ग्राहकों को पोस्ट कर सकते हैं, आवधिक संचार के मेल के लिए मूल्योपयोगी हल प्रदान करने के लिए 15 सितंबर, 2003 को बिल मेल सेवा शुरू की गई थी। एक राष्ट्रीय बिल मेल सेवा फरवरी 2005 में शुरू की गई थी जो यह अनुमति प्रदान करती है कि बाहर के गंतव्य स्थानों के लिए जाने वाले बिल मेल सेवा उत्पादों को भी पैकेटों में स्पीड पोस्ट, एक्सप्रेस पार्सल इत्यादि के रूप में गंतव्य शहरों को भेजा जा सकता है, अगर भेजने वाला इसका भुगतान करता है। व्यक्तिगत बिलों का शुल्क सिर्फ स्थानीय बिल मेल सेवा की दरों पर लिया जाता है।
लॉजिस्टिक पोस्ट: लॉजिस्टिक पोस्ट सेवा 2004-05 में शुरू की गई थी। यह सेवा पहले ही कई पोस्टल सर्किलों में शुरू हो चुकी है। लॉजिस्टिक पोस्ट बिना किसी अधिकतम सीमा के माल को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाता है। लॉजिस्टिक पोस्ट में माल उठाने, उनकी डिलीवरी, ट्रैकिंग और ट्रेसिंग जैसी मूल्य संवर्धित सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं।
ई-पोस्ट: 30 जनवरी, 2004 को शुरू की गई इस सेवा के अंतर्गत देश के सभी पोस्ट ऑफिसों में ई-मेल के माध्यम से संदेशों या तस्वीरों को भेजने और प्राप्त करने की सुविधा लोगों को प्रदान की जाती है। वैसे लोग जिनके पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है और ई-मेल आईडी नहीं है वैसे लोग भी ई-मेल के माध्यम से संदेशों को भेजने और प्राप्त करने का लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार डिजीटल डिवाइड की खाई को पाटा जा सकता है। कॉरपोरेट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ई-पोस्ट का कॉरपोरेट वर्जन भी इसमें शामिल कर लिया गया। इसे व्यापार क्षेत्र के लिए भी उपयोगी बनाने के लिए 18 अक्टूबर, 2005 को ई-पोस्ट का एक कॉरपोरेट वर्जन शुरू किया गया था जो 9999 पतों की अधिकतम संख्या को तत्क्षण भेजने की अनुमति देता है।
ई-बिल पोस्ट: ग्राहकों के लिए प्रौद्योगिकी युक्त सेवाओं में से एक के रूप में इस विभाग ने ई-बिल पोस्ट नामक एक नई सेवा शुरू की है। वर्तमान में यह सेवा बंगलुरू और कोलकाता में उपलब्ध है। यह सेवा बिजली, टेलीफोन, मोबाइल, पानी और अन्य बिलों के पोस्ट ऑफिस के काउंटरों पर भुगतान के लिए बहुत उपयोगी है। ग्राहक अपने नजदीकी पोस्ट ऑफस जाकर अपने बिलों का भुगतान कर सकते हैं।
राजधानी चैनल: इस चैनल को 1994 में दिल्ली से अन्य6 राज्यों की राजधानियों में संदेश प्रेषण के लिए प्रस्तावित किया गया था। शेष राज्य राजधानियों को अगस्त 1995 तक सम्मिलित कर लिया गया। इस प्रकार के पत्रों के लिए पीले रंग के लेटर बॉक्स लगाए गए।
मैट्रो चैनल: इस चैनल को भी 1994 में बंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद और मुम्बई के बीच अंर्त-मैट्रो प्रथम श्रेणी संदेश भेजने के लिए प्रस्तावित किया गया। इस प्रकार के पत्रों के लिए विशेष रूप से हल्के नीले रंग के लेटर बॉक्स स्थापित किए गए।
ग्रीन चैनल: इस व्यवस्था द्वारा स्थानीय संदेश के त्वरित प्रदायन के लिए सभी बड़े शहरों में विशेष प्रबंध किए गए। गैर-पंजीकृत प्रथम श्रेणी संदेश को एक शहर से भेजकर उसी शहर में प्रेषण के अगले दिन पहुंचाना सुनिश्चित किया गया। कुछ चुनिंदा डाकघरों और स्थानीय संदेशों के प्रेषण के अन्य सार्वजनिक स्थानों पर हरे रंग के बॉक्स लगाए गए। इस चैनल का मुख्य उद्देश्य स्थानीय संदेश को इसके त्वरित संसाधन और अविलम्ब प्रदायन से पृथक् करना था।
बिजनेस चैनल: इस चैनल में कॉर्पोरेट निकायों जिसमें सरकार और अर्द्ध सरकारी संस्थान शामिल हैं, द्वारा भेजे गए गैर-पंजीकृत प्रथम श्रेणीपत्र आते हैं। इन्हें चिन्हित डाकघरों या मेल ऑफिस से भेजा जाता है। यदि एक बार में भेजे गए संदेशों की मात्रा 2,000 से अधिक हो जाती है, तो यह आवश्यक हो जाता है कि पहले इसका निपटान ग्राहक द्वारा भेजे जाने वाले स्थान के स्थानीय मापदंडों के आधार पर किया जाए।
बल्क मेल चैनल: पंजीकृत डाक की स्थिति में भेजी जाने वाली डाक 250 वस्तुओं से अधिक होती है या अपंजीकृत डाक 2000 होती है, तो इसे बल्क मेल पोस्टिंग कहा जाता है। बल्क मेल को आवश्यक रूप से पहले ही पंजीकृत बंडल (पंजीकृत डाक के लिए) और लेबल बंडल (अपंजीकृत डाक के लिए) में विशेष निपटान विधि के अनुसार पृथक् किया जाता है। इसके लिए नामित डाकघर होते हैं जिन्हें कॉर्पोरेट डाकघर भी कहा जाता है जो बल्क डाक को स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत किए जाते हैं।
पीरियोडिकल चैनल: यह समाचार पत्र और पीरियोडिकल्स के त्वरित प्रेषण को सुनिश्चित करने के लिए एक पृथक् चैनल है, जो समय की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं और भारी मात्रा में भेजे जाते हैं। इस चैनल को मैट्रोपोलिटन शहरों और मुख्य कस्बों में संचालित किया जाता है जहां इस प्रकार के डाक भारी मात्रा में प्राप्त किए जाते हैं।
स्पीड पोस्टः स्पीड पोस्ट सेवा 1 अगस्त, 1986 को शुरू की गई थी। इस सेवा के अंतर्गत पत्रों, दस्तावेजों और पार्सलों की डिलीवरी एक निश्चित अवधि के अंतर्गत की जाती है और अवधि में डिलीवरी न होने पर ग्राहक को डाक शुल्क पूर्ण रूप से वापस कर दिया जाता है। स्पीड पोस्ट नेटवर्क में 315 राष्ट्रीय और 986 राज्य स्पीड पोस्ट केंद्र शामिल हैं। यह सेवा अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी 97 देशों में उपलब्ध है।
इस्टेंट मनी ऑर्डर: इंस्टेंट मनी ऑर्डर त्वरित रकम भुगतान के लिए एक घरेलू ऑनलाइन सेवा है। इस सेवा के माध्यम से ग्राहक किसी भी इंस्टेंट मनी ऑर्डर सेवा देने वाले डाक घर से मिनटों में पैसा प्राप्त कर सकता है। इस सेवा की शुरुआत 20 जनवरी, 2006 को हुई थी। इस सेवा के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति एक सिंगल ट्रांजेक्शन से एक हजार रुपए से लेकर पचास हजार रुपयों तक की राशि भेज सकता है। भेजी गई राशि प्राप्तकर्ता को देश के किसी भी इंस्टेंट मनी ऑर्डर डाक घर से प्राप्त हो जाएगी। देशभर में कुल 14,694 स्थानों पर इंस्टेंट मनी ऑर्डर सेवा उपलब्ध है।
न्यू पेंशन स्कीम: इंडिया पोस्ट के माध्यम से 18 से 55 आयु वर्ग का कोई भी भारतीय नागरिक न्यू पेंशन स्कीम का लाभ उठा सकता है और 60 वर्ष की आयु तक अपना योगदान दे सकता है। पीएफआरडीए द्वारा नियुक्त विभिन्न पेंशन फंड मैनेजर्स की निवेश योजनाओं में लोगों द्वारा न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत किए गए योगदान का निवेश किया जाता है। सब्सक्राइबर के योगदान की उसकी पसंद की योजना में निवेश किया जाता है। इस योजना के तहत् कोई भी सब्सक्राइबर, जो पेंशन खाता खोलना चाहता है, देश के सभी प्रधान डाक घरों में खाता खोल सकता है।
अंतरराष्ट्रीय डाक: भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यू.पी.ए.) का 1976 और एशिया पैसिफिक पोस्टल यूनियन का 1964 से सदस्य है। इन संगठनों का उद्देश्य अन्य देशों के साथ डाक संबंध बढ़ाना, इसे सुविधाजनक बनाना और उनमें सुधार लाना है। भारत 217 देशों के साथ हवाई और सड़क मार्ग की डाक का आदान-प्रदान करता है।
चुनिंदा देशों से धन भारत को मनीऑर्डर और पोस्टल ऑर्डरों के जरिए भेजा जा सकता है। भारत की 27 देशों के साथ मनीऑर्डर सेवा उपलब्ध है। भूटान और नेपाल के साथ उसकी दोतरफा मनीऑर्डर सेवा है जिसके जरिए मनीऑर्डर भेजा और प्राप्त किया जा सकता है। 25 देशों से मनोऑर्डर भारत भेजने की सेवा है। इन देशों से किया गया मनीऑर्डर भारत में प्राप्त किया जा सकता है। ब्रिटेन और आयरलैंड के पोस्टल ऑर्डर भारत के सिर्फ कुछ डाकघरों में भुनाए जा सकते हैं।
1986 में 5 देशों के साथ भारत की अंतरराष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक मनीऑर्डर सेवा शुरू की गई थी। अब 97 देशों के लिए यह सेवा उपलब्ध है। आयात-निर्यात सुगम बनाने के उद्देश्य से मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में प्रधान विदेशी मुद्रा विनिमय केंद्र खोले गए हैं। इसके अलावा अहमदाबाद, बंगलुरु, जयपुर, कोच्चि, श्रीनगर और नोएडा में उप-विदेशी डाकघर खोले गए हैं। वाराणसी, कानपूर, सूरत, लुधियाना, मुरादाबाद और गुवाहाटी में निर्यात विस्तार खिड़कियाँ खोली गई हैं, जो इन शहरों में निर्यातकों/पर्यटकों की जरूरतें पूरी करती हैं।
प्रविधि उन्नयन: मेट्रो शहरों में डाक का दक्षता पूर्ण निपटान के लिए डाक-विभाग ने ऑटोमैटिक मेल प्रॉसेसिंग केंद्रों की स्थापना की।
मनी ऑर्डर सेवा 1880 में प्रारंभ की गई थी। आधुनिकीकरण रणनीति के एक हिस्से के तौर पर वर्ष 1994 में, डाक विभाग ने पूरे देश में मनी ऑर्डर के त्वरित प्रेषण के लिए उपग्रह-आधारित मनी ऑर्डर सेवा का सफलतापूर्वक शुभारंभ किया। मुख्य डाकघरों में उच्च गति बेहद लघु अर्पचर टर्मिनल (वीएसएटी) स्थापित किए गए।
वितरण की प्रक्रिया में गति लाने के लिए दिल्ली और कोलकाता में स्वचालित डाक प्रोसेसिंग केंद्रों की स्थापना की गई है। इन केंद्रों में पत्रों और दस्तावेजों की छंटनी स्वचालित छंटाई मशीनों द्वारा की जाती है।
वर्तमान में डाक विभाग अपने पार्सल नेटवर्क का नवीकरण कर रहा है। निकट भविष्य में ग्राहकों को अपने पार्सल की शुरुआत से अंत तक ऑनलाइन ट्रैक करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
राष्ट्रीय पता डाटाबेस प्रबंधन परियोजना के तहत विभाग ने राष्ट्रीय पता डाटाबेस प्रबंधन तंत्र बनाने की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य जनता ग्राहकों के पता का डाटाबेस तैयार करना, इन पतों को ऑनलाइन अपडेट करना और ग्राहकों को सही पता जानने में मदद करना है।
भारत सरकार ने डाक विभाग के सूचना प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है जिसके अंतर्गत सभी डाकघरों, प्रशासनिक कार्यालयों, डाक कार्यालयों, अन्य कार्यालयों और संबंधित सॉफ्टवेयर का विकास किया जाएगा। डाक विभाग नौवीं पंचवर्षीय योजना से ही चरणबद्ध तरीके से डाक व्यवस्था में तकनीक को शामिल कर रहा है। अब तक 25,145 विभागीय डाक घरों को का कंप्यूटराइज्ड किया जा चुका है और 23,552 विभागीय डाक घर इंटरनेट से जुड़ चुके हैं।
आधुनिकीकरण कार्यक्रम के भाग के तौर पर, पंजीकरण कार्य का कम्प्यूटरीकरण मुख्य डाक कार्यालयों में किया गया। एक अन्य क्षेत्र जिसके कम्प्यूटरीकरण करने की पहचान की गई वे ट्रासिट मेल ऑफिस (टीएमओ) थे। टीएमओ ने बंद डाक बैगों के सरल प्रेषण में आवश्यक भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय सूचना केंद्र सभी मुख्य डाक घरों, प्रशासनिक कार्यालयों, बड़े स्पीड पोस्ट केंद्र और लेखा कार्यालयों को जोड़ने के लिए वाइड एरिया नेटवर्क (डब्ल्यूएएन) को अपना रहा है।
दूरसंचार
आज के विश्व में दूरसंचार का महत्व बढ़ रहा है, और भारत को यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगितात्मक स्थान प्राप्त करना है तो इसे इस क्षेत्र में तीव्र विकास करना होगा। भारत विश्व के सर्वाधिक बड़े दूरसंचार तंत्रों में से एक का संचालन करता है। इसमें टेलिफोन, मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से होने वाला संचार सम्मिलित है। विश्वस्तरीय दूरसंचार आघार संरचना के अस्तित्व प्रावधान देश के त्वरित आर्थिक और सामाजिक विकास की कुंजी है।
भारत में, टेलीग्राफ और टेलिफोन आविष्कार के तुरंत बाद दूरसंचार सेवाएं आरंभ हो गयी। पहली टेलीग्राफ लाइन कोलकाता और डायमण्ड हारबर पत्तन के बीच 1851 में संचार हेतु खोली गयी। मार्च 1884 तक, टेलिग्राफ संदेश आगरा से कोलकाता को भेजे जा सकते थे। 1990 तक, भारतीय रेलवे को सेवा टेलीग्राफ और टेलिफोन सेवाएं प्राप्त हुई। टेलिफोन के आविष्कार के मात्र 6 वर्ष उपरांत ही कोलकाता में टेलिफोन सेवाएं आरंभ (1881-82) हुई। 700 लाइनों की क्षमता वाला प्रथम स्वचालित दूरभाष केंद्र 1913-13 में शिमला में स्थापित किया गया।
स्वतंत्रता से लेकर अब तक दूरसंचार सेवाओं में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। एक स्वतंत्रता नियामक संस्स्था की स्थापना की गई, दूरसंचार विभाग की सेवाएं उपलब्ध कराने संबंधी कार्य को अलग करने तथा सरकारी सेवा प्रदाता सहित सभी प्रदाताओं को समान अवसर उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।
दूरसंचार क्षेत्र में नियामक ढांचा: 1997 के प्रारंभ में दूरसंचार विनियामक अधिनियम, 1997 के अंतर्गत भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य दूरसंचार सेवाओं और उससे संबद्ध अथवा उससे उत्पन्न मुद्दों का विनियमन करना था, दूरसंचार के क्षेत्र में उदारीकरण तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी और सभी ऑपरेटरों को एक समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए विनियामक की स्थापना आवश्यक समझी गई।
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण अधिनियम में संशोधनों के माध्यम से नियामक ढांचे तथा विवाद निपटाने की प्रणाली को सुदृढ़ किया गया। नियामक (टीआरएआई) की भूमिका तया कार्यों में स्पष्टता लाने के साथ ही इसे कुछ अतिरिक्त कार्य भी सौंपे गए। विवादों के शीघ्रता से निपटान के लिए दूरसंचार विवाद निवारण तथा अपील न्यायाधिकरण का भी गठन किया गया। नई दूरसंचार नीति (1999) के तहत् भारत में दूरसंचार संचालनों को नियंत्रित किया गया। इस नीति के पश्चात् भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने देश के नागरिकों को कम कीमत पर और प्रभावी संचार सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में एक लंबा सफर तय किया। राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की घोषणा 31 मई, 2012 को की गई जिसका प्राथमिक उद्देश्य देश भर में कम कीमतों पर, भरोसेमंद और सुरक्षित दूरसंचार और ब्राडबैंड सुविधाएं उपलब्ध कराना है।
बेसिक सेवा: दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 25 जनवरी, 2001 को लाइसेंस जारी करने, निबधि प्रवेश आदि के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए।
लंबी दूरी की राष्ट्रीय सेवा (एनएलडी) 13 अगस्त, 2000 से निजी क्षेत्र के लिए खोली गई। लंबी दूरी की अंतरराष्ट्रीय सेवा (आईएलडी) वस्तुतः वाहक सेवाओं का नेटवर्क, जिससे विदेशी वाहकों द्वारा संचालित नेटवर्क को अंतरराष्ट्रीय संपर्क उपलब्ध कराया जाता है। नई दूरसंचार नीति-1999 के अनुसार सरकार ने लंबी दूरी की अंतरराष्ट्रीय सेवा को 1 अप्रैल, 2002 से निजी ऑपरेटरों के लिए खोल दिया है। इसमें ऑपरेटरों की संख्या की कोई पाबंदी नहीं है। जून 2013 के अंत तक 903.10 मिलियन टेलीफोन कनेक्शन के साथ भारतीय दूरसंचार नेटवर्क चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। साथ ही टेलीफोन घनत्व (प्रति 100 लोगों पर) 73.50 प्रतिशत था।
इंटरनेट सेवाएं: इंटरनेट सेवाओं को नवम्बर 1998 में निजी सहभागिता के लिए खोला गया। 1 अप्रैल, 2002 से दूरसंचार प्राधिकरण की अनुमति के साथ इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को सीमित इंटरनेट टेलीफोनी सेवा प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई। 31 मई, 2013तक इंटरनेट सेवाओं के लिए कुल 391 लाइसेंस जारी किए गए।
सूचना प्रौद्योगिकी
सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने आशातीत सफलता अर्जित की है। इसकी गति तीव्र करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी परराष्ट्रीय नीति को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 14 सितंबर, 2012 को मंजूरी प्रदान की जिसके अंतर्गत भारत को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक हब बनाया जा सके।
सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2000 को इस उद्देश्य से लाया गया था जिससे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और ई-ट्रांजेक्शन को कानूनी मान्यता दी जा सके और कम्प्यूटर आधारित अपराधों को रोका जा सके। इस कानून को वर्ष 2008 में संशोधित किया गया जिससे इसे अधिक प्रभावी बनाने में मदद मिली। राष्ट्रीय ई-गवर्नेस प्लान को मई, 2006 में मंजूरी दी गई जिसके द्वारा देश भर में लोगों को सभी सरकारी सेवाएं पारदर्शी और प्रभावी ढंग से स्थानीय तौर पर उपलब्ध कराई जा सकें। ई-जिला योजना की शुरुआत भी राष्ट्रीय ई-गवर्नेस योजना के अंतर्गत राज्य मिशन योजना के रूप में की गई थी। मार्च 2010 में राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की स्थापना को मंजूरी दी गई जिसे नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर द्वारा आगामी 10 वर्षों में चलाया जाएगा। इसका उद्देश्य देश के सभी ज्ञान संस्थानों को तीव्र स्पीड वाले डेटा कम्युनिकेशन नेटवर्क से जोड़ना है। नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर सरकार और आम आदमी की ई-गवर्नेस आधारित सेवाएं उपलब्ध कराते हैं।
सी-डैक देश का एक प्रमुख शोध और विकास संगठन है जो सूचना, संचार तकनीकों और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम करता है।
जनसंचार
हमारे हैसे देशों में, जनसंचार स्वास्थ्यवर्धक मनोरंजन के अतिरिक्त सुचना एवं शिक्षा प्रदान करके लोगों में राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्र-निर्माण के कार्य में लोगों की सक्रिय सहभागिता में मदद करता है। देश में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सूचना, प्रसारण और फिल्म क्षेत्र के विकास और विनियमन के लिए जिम्मेदार हैं। सरकारी प्रसारण क्षेत्र में 1997 के एक अधिनियम द्वारा प्रसार भारती का गठन किया गया जिसमें दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो शामिल है। इसके अतिरिक्त, प्रसारण क्षेत्र में पूरे देश में 100 से अधिक निजी चैनल और केबल नेटवर्क है। सूचना क्षेत्र में प्रिंट मीडिया भी शामिल है जिसका विनियमन भारतीय प्रेस परिषद् (प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया) द्वारा किया जाता है।
रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे के द्वारा प्रथम रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण जून 1923 में किया गया। इसके पश्चात् प्रसारण सेवा की स्थापना भारत सरकार एवं एक निजी कपनी इंडिया ब्रॉडकास्टिंग कपनी लिमिटेड के समझौते के अंतर्गत हुई। जिससे 23 जुलाई, 1927 को बॉम्बे (अब मुंबई) एवं कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक साथ प्रायोगिक आघार पर प्रसारण की शुरुआत हुई। जब यह कंपनी 1930 में विघटित हुई तो प्रसारण नियंत्रक के विभाग के अंतर्गत इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का गठन किया गया और ऑल इंडिया रेडियो 1957 से आकाशवाणी के नाम से जाना जाने लगा। विभाजन के समय भारत में 6 रेडियो स्टेशन थे। अब रेडियो स्टेशनों की संख्या 252 हो गई है और ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश की 95 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक है।
सार्वजनिक प्रसारणकर्ता दूरदर्शन विश्व में सबसे बड़े क्षेत्र को कवर करने वाला संस्थान है। वर्तमान में दूरदर्शन 35 सेटेलाइट चैनल और 1415 ट्रांसमीटरों का संचालन करता है। श्रोतागण में इसकी विस्तृत पहुंच है।
पहला प्रसारण आकाशवाणी भवन, नई दिल्ली में मेकशिफ्ट स्टूडियो से 15 सितम्बर, 1959 की प्रसारित किया गया। 500 वॉट शक्ति का एक ट्रांसमीटर दिल्ली से 25 किमी. की परिधि के भीतर संकेतों को पकड़ता है। एक नए बुलेटिन की नियमित सेवा 1965 में प्रारंभ की गई। टेलीविजन प्रसारण मात्र 1972 में एक दूसरे शहर मुम्बई में पहुंच गया, और 1975 तक, कोलकाता, चेन्नई, श्रीनगर, अमृतसर और लखनऊ में भी टेलीविजन स्टेशन स्थापित हो गए। 1992 के पश्चात्, टेलीविजन सेवाएं बेहद तेजी से फैलनी शुरू हो गई और कुछ समय के दौरान देश को प्रतिदिन एक अतिरिक्त ट्रांसमीटर प्राप्त हुआ।
डायरेक्ट-टू-होम (डीटीएच) टेलिविजन सेवा एक छोटे डिश और एक डिकोडर सेटटॉप बॉक्स द्वारा उच्च फ्रीक्वेंसी क्यू बैंड प्राप्तकर्ता के घर तक उपग्रह द्वारा टेलीविजन कार्यक्रमों चैनलों का प्रत्यक्ष वितरण करना है। यह एक बेहद उन्नत प्रविधि है, जो कार्यक्रम प्रदाता और उपभोक्ता को टेलीविजन कार्यक्रमों के वितरण और प्राप्ति हेतु विकल्प प्रस्तुत करती है। डीटीएच सेवा ने देश में भी प्रवेश कर लिया है।
प्रेस तथा प्रिंट मीडिया
भारत के समाचार-पत्रों के पंजीयक (आरएनआई) का कार्यालय 1953 में प्रथम प्रेस आयोग की सिफारिशों और प्रेस तथा पुस्तक पंजीयन अधिनियम 1867 में संशोधन से अस्तित्व में आया। सामान्यतः प्रेस रजिस्ट्रार के रूप में प्रसिद्ध आरएनआई, को भारत में समाचार-पत्रों की स्थिति पर प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर तक एक वार्षिक रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करनी होती है। हिन्दी भाषा में सर्वाधिक संख्या में समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं, इसके बाद अंग्रेजी और उर्दू का स्थान आता है। दैनिक समाचार-पत्र कश्मीरी भाषा को छोड़कर सभी मुख्य भाषाओं में प्रकाशित किये गये। समाचार-पत्रों का सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से प्रकाशन किया गया।
पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी), सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों, प्रयासों और उपलब्धियों की जानकारी पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों को संप्रेषित करने वाली नोडल एजेंसी है। प्रचार माध्यमों और सरकार के बीच माध्यम की भूमिका निभाने के अलावा पीआईबी पत्र-पत्रिकाओं में व्यक्त जनता की राय से सरकार की अवगत भी कराता है।
भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) भारतीय समाचार-पत्रों की बिना लाभ वाली सहकारी संस्था है, जिसका दायित्व अपने ग्राहकों को कुशल एवं निष्पक्ष समाचार उपलब्ध कराना है। इसकी स्थापना 27 अगस्त, 1947 को हुई और इसने 1 फरवरी, 1949 से अपनी सेवाएं शुरू कर दी। भाषा एजेंसी की हिन्दी समाचार सेवा है।
यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया की स्थापना 1956 के कपनी कानून के तहतू 19 दिसंबर, 1959 को हुई। इसने 21 मार्च, 1961 से कुशलतापूर्वक कार्यकरना शुरू कर दिया। अब यूएनआई एशिया में सबसे बड़ी समाचार एजेंसी में से एक है। मई 1982 में पूर्ण रूप से हिन्दी तार सेवा यूनीवार्ता का शुभारंभ किया और भारत की पहली हिन्दी समाचार एजेंसी बन गई। यूएनआई प्रथम भारतीय न्यूज एजेंसी है जिसने अपनी समस्त समाचार सेवाओं को हिन्दी एवं अंग्रेजी में प्रदान किया और साथ ही इंटरनेट द्वारा फोटो सेवा प्रदान कर रही है।
भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता की रक्षा करने और भारत में समाचार-पत्रों और समाचार एजेंसियों के स्तर को बनाए रखने और उसमें सुधार लाने के उद्देश्य से संसद के अधिनियम के तहत् की गई है। यह शासन तंत्र तथा प्रेस जगत पर नियंत्रण रखने वाला समान अर्द्ध-न्यायिक नियंत्रक स्वायत्तशासी संगठन है। परंपरा के अनुसार परिषद के अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय के सेवाकालीन या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं।
एक स्वायत्त अर्द्ध-न्यायिक निकाय के तौर पर, प्रेस कॉसिल का उद्देश्य आचारों का प्रशासन और प्रेस के बीच स्व-नियंत्रण के सिद्धांतों को बढ़ावा देना है। यह किसी ऐसे मामले की समीक्षा भी करता है जिससे प्रेस की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप होने की संभावना हो।
श्रव्य-दृश्य मीडिया
फीचर फिल्मों का निर्माण भारत में 1912-13 से किया गया। 1912 में आर.जी. तोरनी ने एन. जी.चित्रे के साथ मिलकर पुंडलिक बनाई, जबकि धुंधीराज गोविंद फाल्के (1870-1944) ने 1913 में राजा हरीशचंद्र का निर्माण किया। मूक फिल्मों का दौर 1931 में बोलने वाली फिल्मों के आने से समाप्त हुआ, जब आर्देशिर ईरानी (1886-1969) ने आलम आरा बनाई, हालांकि मूक फिल्मों का निर्माण 1934 तक होता रहा। इस समय भारत विश्व में वार्षिक फीचर फिल्म निर्माण में अग्रणी है।
सिनेमाटोग्राफ अधिनियम 1952 के तहत् स्थापित केन्द्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड, भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों का प्रमाणन करता है। बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम-से-कम 12 व अधिकतम 25 गैर-सरकारी अधिकारी होते हैं, ये सभी सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है और इसके नी क्षेत्रीय कार्यालय बंगलुरु, मुंबई, नई दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, तिरुवनंतपुरम, कटक तथा गुवाहाटी में हैं।
सोशल मीडिया
इंटरनेट आधारित सॉफ्टवेयर एवं इंटरफेस जो लोगों को एक-दूसरे से बातचीत करने की अनुमति प्रदान करता है तथा अपने जीवन के तथ्यों जैसे जैविक एवं आत्म तथ्य, पेशेवर जानकारी, व्यक्तिगत फोटो एवं पल-पल के विचार बांटना संभव बनाता है।