वायुयान यातायात का तीव्रतम किंतु मंहगा साधन है। भारत जैसे विशाल भौगोलिक भूभाग तथा व्यापक जलवायविक व भू-प्रादेशिक विविधता वाले देशों मेंवायु परिवहन का महत्व काफी बढ़ जाता है। भारत के प्रमुख वाणिज्यिक एवं औद्योगिक केंद्र भी एक-दूसरे से अत्यधिक दूरी पर स्थित हैं। वायु परिवहन आंतरिक सम्पर्क के अतिरिक्त दूसरे देशों के साथ सम्पर्क जोड़ने की दृष्टि से भी परमावश्यक हो जाता है। ऐसे कई कारक हैं, जो भारत को वायु यातायात के विकास हेतु एक अनुकूल अवस्थिति बनाते हैं। भारत के एक ओर पश्चिमी यूरोप व अफ्रीका हैं तो दूसरी ओर दक्षिण-पूर्वी तथा पूर्वी एशिया। भारत का मौसम वर्ष के अधिकांश भाग में साफ रहता है। विस्तृत मैदानी भाग वायुयान उतरने के लिए उपयुक्त समतल भूमि उपलब्ध कराते हैं।
यात्री एवं माल परिवहन के अलावादेश की रक्षा के लिए भी वायु यातायात का विकास अनिवार्य है। आपातकाल में वायु यातायात की सुविधा निर्णायक भूमिका निभाती है। 1990-91 के खाड़ी युद्ध के दौरान जॉर्डन एवं अन्य खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों को वायुमार्ग से ही भारत लाया गया था। हिमालय के सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए वायु यातायात का ही सहारा लिया जाता है, क्योंकि यहां रेल या सड़क मार्गों का अभाव है। वायु परिवहन द्वारा डाक सामग्री भी तीव्रता से गंतव्य तक पहुंचायी जा सकती है।
विकास
भारतीय नागरिक उड्डयन इतिहास: भारत में 18 फरवरी, 1911 को पहली वाणिज्यिक उड़ान भरी गई जो कि इलाहाबाद व नैनी के मध्य 6 मील की थी। इसमें 6500 डाक वायुयान द्वारा भेजी गई जिसे हेनरी पिकेट ने चलाया। यह दुनिया की पहली एअर मेल सेवा और भारत में नागरिक उड्डयन की शुरुआत के रूप में जानी जाती है। दिसम्बर 1912 में भारतीय राज्यवायुसेवा ने यूनाइटेड किंग्डम स्थित इम्पीरियल वायु सेवा के साथ मिलकर लंदन, कराची-दिल्ली विमान सेवा शुरू की, जो भारत से पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान थी। 1915 में टाटा सन्स लिमिटेड ने कराची और मद्रास के मध्य नियमित एयर मेल सेवा की शुरुआत की तथा 24 जनवरी, 1920 को रॉयल एयरफोर्स ने कराची और बॉम्बे के मध्य नियमित एयरमेल सेवा की शुरुआत की। भारत में नागरिक हवाई अड्डों का निर्माण 1924 में शुरू किया गया। हवाई अड्डों का निर्माण कलकत्ता (अब कोलकाता) में दम-दम, इलाहाबाद में बमरौली और बॉम्बे (अब मुंबई) में गिल्बर्ट हिल पर किया गया।
1932 में टाटा संस लिमिटेड का एक प्रभाग टाटा एयरलाइन्स के रूप में अस्तित्व में आया। 15 अक्टूबर को कराची, अहमदाबाद, बॉम्बे, बेल्लारी, मद्रास के बीच विमान सेवा चालू की गई। इसी को डाक ले जाने का कार्य सौंपा गया।
1933 और 1934 के मध्य भारतीय विमान सेवाएं, इण्डियन ट्रांस कॉन्टीनेंटल एयरवेज, मद्रास एयर टैक्सी सेवा, इण्डियन नेशनल एयरवेज, इत्यादि के रूप में शुरू की गयीं। 1945 में डेक्कन एयरवेज स्थापित किया गया, जिस पर टाटा और हैदराबाद के निजाम द्वारा संयुक्त रूप से स्वामित्व था। 1946 में टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इण्डिया कर दिया गया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड नाम के तहत् अंतरराष्ट्रीय सेवाओं के संचालन के लिए एयर इंडिया और भारत सरकार के मध्य समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 8 जून, 1948 को एयर इंडिया ने मुंबई और लंदन (वाया काहिरा और जिनेवा) के मध्य साप्ताहिक उड़ान के साथ अपनी अंतरराष्ट्रीय सेवाओं का उद्घाटन किया। मार्च 1953 में भारतीय संसद ने एयर निगम अधिनियम पारित कर दिया और वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा सभी विमान कपनियों को दो नव-निर्मित निगमों में शामिल कर दिया गया। एक निगम का नाम इण्डियन एयरलाइंस रखा गया, जिसका काम देश के भीतरी भागों में वायुसेवाएं चलाने का है। इसे पड़ोसी देशों से भी वायु संपर्क स्थापित करने का भार सौंपा गया। दूसरे निगम का नाम एयर इण्डिया इन्टरनेशनल रखा गया, जिसे लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर वायु सेवाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस समय, पूर्ण स्वतंत्र घरेलू एयरलाइन एयरलाइन्स, 8 हैं- डेक्कन ऐरवेज, ऐरवेज इंडिया, भारत ऐरवेज, हिमालयन एविएशन, कलिंगा एयरलाइन्स इण्डियन नेशनल एयरवेज, एयर इंडिया, जिनका भारत की वायुसेवाओं में विलय कर दिया गया।
भारत अंतरराष्ट्रीय विमान संगठन (आईसीएओ) का सदस्य है और शुरू से ही इसकी परिषद् में शामिल रहा है। नागर विमान क्षेत्र की कार्यप्रणाली को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- नियामक, परिचालन संबंध और मूलभूत संरचनात्मक ढांचा।
भारत में नागर विमानन क्षेत्र ने वैश्विक वित्तीय संकट के प्रतिकूल प्रभाव से उबरने के बाद उच्चस्तरीय विकास हासिल किया है। भारत के विमान यातायात में वर्ष 2004 के बाद से प्रति वर्ष लगभग 18 प्रतिशत वृद्धि हुई है। भविष्य में उच्च स्तरीय विकास की संभावनाएं भी काफी अधिक हैं। विकास की ऐसी संभावनाओं के सामने अनेक दिशाओं में चुनौतियां भी उभरेंगी।
इस क्षेत्र में विकास की गति को और प्रणाली से बाहर उपलब्ध उस विशेषता को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु जो इस दिशा में आर्थिक दृष्टि से किफायती होंगे, ध्यान में रखते हुए नागर विमानन आर्थिक सलाहकार परिषद (सीएईएसी) को नागर विमानन सचिव की अध्यक्षता में गठित किया गया है जिसमें उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों और अन्य संबधित क्षेत्रों से विशेषज्ञों को लिया जाएगा। मंत्रालय को इस क्षेत्र में सामने आ रही उन कठिनाइयों को दूर करने हेतु जो प्रमुखतः आर्थिक दृष्टिकोण से हल करना जरूरी है, विश्लेषण के लिए एक ढांचा तैयार करना होगा।
अप्रैल 1997 में एक नयी नीति के अंतर्गत घरेलू हवाई यातायात सेवाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। विमानपत्तन आधार संरचना के संबंध में एक व्यापक नीति का निर्माण दिसंबर 1997 में किया गया।
उड़ानों में गड़बड़ियां होने अर्थात उड़ानें रद्द होने, यात्रियों को यथोचित नोटिस दिए बगैर उड़ानों में विलम्ब होने की स्थिति में विमान यात्रियों को उपयुक्त संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए विमान सेवाओं को निर्देश दिया गया है कि वे इस कारण यात्रियों को होने वाली असुविधा के लिए टिकट का मूल्य लौटाने के साथ-साथ मुआवजा भी अदा करें। इसके अतिरिक्त, विमान सेवाओं के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे 6 अगस्त, 2010 की नागर विमानन आवश्यकताओं के अनुसार विमान टिकट का किराया लौटाने के साथ-साथ यात्रियों की इच्छा के विरुद्ध यदि बोर्डिंग से इंकार करते हैं तो कनफर्म्ड बुकिंग वाले यात्रियों को मुआवजा अदा करेंगे। डीजीसीए में स्थापित टैरिफ मानीटरिंग यूनिट यह सुनिश्चित करने के लिए कि बाजार में अच्छी प्रतिस्पर्धा बनी हुई है, अनुसूचित घरेलू विमान सेवाओं द्वारा अधिसूचित यात्री किराए की अनवरत मानीटरिंग करती है।
बड़े विमान पत्तनों की पुनर्संरचना और आधुनिकीकरण के एक भाग के रूप में दिल्ली और मुम्बई हवाई अड्डों का पुनर्निर्माण और आधुनिकीकरण सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिए किया गया है।
अवसंरचना समिति (सीओआई) ने 8 जून, 2006 को आयोजित हुई अपनी बारहवीं बैठक में 35 गैर-मेट्रो हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण को अनुमोदित किया था। इन 35 विमान पत्तनों में से 30 के विकास कार्यों की लागत ₹ 150 करोड़ से कम है। ऐसी 11 परियोजनाओं का विकास कार्य पहले ही पूरा हो चुका है और 19 विमान पत्तनों पर कार्य आयोजन की अवस्था में अथवा प्रगति पर है।
सरकार ने भूतपूर्व मत्रिमंडल सचिव श्री नरेश चन्द्र की अध्यक्षता में भारत में नागर विमानन क्षेत्र के लिए दिशा-निर्देशों का सुझाव देने के लिए एक समितिका गठन किया था। समिति ने सिफारिशें की थीं कि अनेक प्रचालनात्मक क्षेत्रों में अपेक्षित कार्यकुशलता और अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के वर्तमान अधिकार क्षेत्र को कम करके उसे आधा किया जाना चाहिए और अलग से एक कॉरपोरेट इकाई का गठन किया जाना चाहिए। एटीसी सेवाओं के निगमीकरण की प्रक्रिया पहले ही कार्यान्वयन हेतु निर्धारित की जा चुकी है। देश में विमान क्षेत्र के लिए अवसंरचना के क्षेत्र में हुए प्रमुख घटनाक्रमों में से यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
27 अगस्त, 2007 को एयर इंडिया और इण्डियन एयरलाइन्स के सम्मिलन से आधिकारिक तौर पर नेशनल एविएशन कंपनी ऑफ इण्डिया लिमिटेड अस्तित्व में आया। इस सम्मिलन के बाद जहां नया नाम एयर इंडिया ही रहा वहीं इसका नया लोगो महाराजा स्वीकृत किया गया। नई कंपनी के नियंत्रण में इसकी 7 सहायक कंपनियां हैं- होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एयर इंडिया चार्ट्स लिमिटेड (एयर इंडिया एक्सप्रेस), एयर इन्डिया ट्रांसपोर्ट्स सर्विसेस लिमिटेड, एयर इंडिया इंजिनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड, वायु दूत लिमिटेड, एयरलाइंस एलायड सर्विसेज लिमिटेड (एलायंस एयर), आई.ए.एल. एयरपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड।
बंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय हवाई हवाई अड्डा- ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा परियोजना बंगलुरु के नजदीक देवनहल्ली में स्वयं ऑपरेटिंग निर्माण और स्थानंतरण के लिए स्थापित है।
24 अप्रैल, 2008 को सरकार ने ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के लिए योजनाएं घोषित की। सरकार एयरपोर्ट की बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने हेतु योजनाओं को आरंभ करने को उन्मुख हैं। यह पारदर्शिता और भविष्यसूचक में ही सहायक सिद्ध होगी। इस नीति का उद्देश्य सरकार/केन्द्रीय मत्रिमंडल की नीतियों में सेंध लगना नहीं है। नीतियों के आधार पर ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की स्टीयरिंग कमेटी निगरानी करेगी और प्रत्येक प्रस्ताव के अनुमोदनार्थ कार्य करेगी। अब तक केंद्र सरकार ने इन प्रिंसिपल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की स्वीकृति मोपा (गोवा), नवी मुंबई, सिंधुदुर्ग (महाराष्ट्र) बीजापुर, गुलबर्ग, होसाना, सिमोगा (कर्नाटक), कन्नूर (केरल), पाकयॉग (सिक्किम), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), डाबर (मध्य प्रदेश), पलादी (राजस्थान) तथा ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) दी है।
पवन हंस हेलीकाप्टर्स लिमिटेड अनेक राज्य सरकारों जैसे अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम, नागालैंड, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हैलीकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध कराता है। कंपनी गुवाहाटी में गृह मंत्रालय तया गेल को हैलीकॉप्टर सेवाएं प्रदान करती रही है। हैलीपैड निर्माण के बाद पवन हंस हैलीकॉप्टर लिमिटेड मई-जून एवं सितंबर-अक्टूबर माह के दौरान फाटा से केदारनाथ धाम के लिए हैलीकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध कराती है।
गौरतलब है कि नवम्बर, 2010 से नेशनल एविएशन कम्पनी आफ इंडिया लि.का नाम बदलकर एयर इंडिया लि. किया गया है। इसकी नाजुक वितीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया गया कि एयर इंडिया, व्यवसायिक वित्तीय/प्रबंधन परामर्शकों से विचार विमर्श के बाद प्रचालनात्मक उपायों के साथ-साथ कम्पनी की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए अपेक्षित वितीय पुनर्संरचनात्मक उपायों को निर्दिष्ट करते हुए इसके वितीय पुनर्गठन सहित संशोधित व्यापारिक योजना के साथ एयर इंडिया को लाने का निर्णय लिया है। एयर इंडिया ने सूचित किया है कि लागतों में कटौती करने और समुन्नत राजस्व अर्जन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। इससे कम्पनी की वितीय पुनर्सरचना में अनुकूल सुधार आएगा।
संगठन
नागर विमानन के विकास और नियमन के लिए राष्ट्रीय नीतियां तथा कार्यक्रम तैयार करने, नागरिक हवाई यातायात के क्रमिक विकास एवं विस्तार के लिए योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी नागर विमानन मंत्रालय की है। इसके कार्यों में हवाई अड्डा सुविधाओं, हवाई यातायात सेवाओं के अलावा उड्डयन सुरक्षा, विमानों से यात्रियों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने आदि कार्यों की देख-रेख भी शामिल हैं। मंत्रालय रेलवे सुरक्षा आयोग के लिए भी प्रशासनिक रूप से जिम्मेदार है, जो रेलवे अधिनियम के अंतर्गत गठित एक वैधानिक संगठन है।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय विमानपतन प्राधिकरण तथा राष्ट्रीय विमानपतन प्राधिकरण के विलय के परिणामस्वरूप 1 अप्रैल, 1995 को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण अस्तित्व में आया,जो भारतीय वायु सीमा क्षेत्र में वायु यातायात के प्रभावी नियंत्रण हेतु वैमानिक संचार सेवाएं तथा सुरक्षित व कार्यक्षम वायु यातायात सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी है।
अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन श्रीनगर, अमृतसर, दिल्ली, जयपुर, गुवाहाटी, गोवा, चेन्नई, बंगलुरु, कालीकट, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम में हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन प्रभाग द्वारा अमृतसर, जयपुर, अहमदाबाद, गुवाहाटी, कोलकाता (दम-दम), चेन्नई (मीनाम्बकम), कालीकट तथा तिरुवनंतपुरम स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों का प्रबंधन, संचालन तथा विकास किया जाता है।
कुछ ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे इस प्रकार हैं।
अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, देवनहल्ली, बंगलुरू: बंग्लुरू के पास देवहल्ली में एक ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टिसिपेशन के जरिए 30 साल के लिए बूट (बिल्ड ऑन ऑपरेट एंड ट्रांसफर) के आघार पर कार्यान्वित किया जा रहा है। इस पर आने वाली पुनर्समीक्षिरत कीमत की 26 प्रतिशत इक्विटी कर्नाटक सरकार और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के संयुक्त हिस्से में हैं। शेष 74 प्रतिशत ज्वाइंट वेंचर के स्ट्रैटजिक पार्टनर के पास है। सीमेंस, जर्मनी के नेतृत्व में ज्यूरिच स्विट्जरलैंड और लार्सन एंड टुब्रो प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों का एक समूह है जो इस प्रोजेक्ट के स्ट्रैटजिक ज्वाइंटवेंचर पार्टनर के अन्य सदस्य के तौर चुने गये हैं। 24 मई, 2008 को इस हवाई अड्डा को कमीशन (आधिकारिक) किया गया है।
राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, शम्शाबाद, हैदराबाद: ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का विकास हैदराबाद क निकट शम्शाबाद में विकसित किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश सरकार के साथ मिल कर सार्वजनिक-निजी भागीदारी से इस एयरपोर्ट का निर्माण किया गया है। ये संस्थाएं मिलकर हवाईअड़े का संचालन करेंगी। इस परियोजना की लागत लगभग 2920 करोड़ रुपये आई है। एएआई और आंध्र प्रदेश सरकार दोनों ही 26 प्रतिशत शेयरधारक हैं। एएआई का शेयर 500 मिलियन का है। बाकी 74 प्रतिशत की नीतिगत भागीदारी जीएमआरयुप तथा मलेशिया होल्डिंग्स बेरहाद (एमएएचबी) के बीच है। एयरपोर्ट 23 मार्च, 2008 से कार्यरत है।
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वायु यातायात की समस्याएं
यद्यपि 1947 के बाद से देश में हवाई यातायात के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की गयी है फिर भी स्थिति को पूर्णतः संतोषप्रद नहीं माना जा सकता (विशेषतः विकसित देशों के साथ तुलना करने पर)। कई बड़े शहरों तक अभी भी वायु सेवाएं नहीं पहुंच सकी हैं। विमान यात्रा करने वालों में बड़े उद्योगपतियों तथा नौकरशाहों का मात्र छोटा-सा समूह शामिल है। इसके बावजूद वायु सेवाओं पर निरंतर दबाव की स्थिति बनी रहती है तथा कुछ व्यस्त मागों पर ये सेवाएं परिवहन की जरूरतों को पूरा कर पाने की दृष्टि से अपर्याप्त सिद्ध होती हैं। भारत की विस्तार योजनाओं में सबसे बड़ी बाधा है- उच्च ईधन तथा विमानों के मूल्य के सम्बंध में विदेशी स्रोतों पर निर्भर होना। एयर इंडिया को कई विदेशी कंपनियों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है। विमानपत्तन आधार संरचना के लिए भारी निवेश, व्यापक सेवा खर्च, पुनर्स्थापन तथा पुनर्नवीकरण की आवश्यकता है। सुरक्षा से जुड़े मामले तया उड़ानों में होने वाली देरी भारत में वायु यातायात से जुड़े कुछ अन्य विचारणीय मुद्दे हैं।