पाइपलाइनें गैसों एवं तरल पदार्थों के लंबी दूरी तक परिवहन हेतु अत्यधिक सुविधाजनक एवं सक्षम परिवहन प्रणाली है। आजकल, पाइपलाइनों के माध्यम से ठोस खनिजों का भी (द्रव्य चूर्ण के रूप में) परिवहन किया जाता है।
भारत में पाइप लाइनों के माध्यम से ठोस खनिजों का (द्रव्य चूर्ण के रूप में) परिवहन किया जाता है। कुद्रेमुख से मंगलौर बंदरगाह तक पाइपलाइन द्वारा लौह-अयस्क पहुंचाया जाता है। मातोन (Maton) खानों से रॉक फॉस्फेट डेबाड़ी प्रगलन संयंत्र (उदयपुर, राजस्थान) में लाया जाता है। एक पाइप लाइन कांडला बंदरगाह से कोयाली एवं मथुरा तेल शोधक कारखानों तक खनिज तेल पहुंचाती है। हजीरा-विजाइपुर-जगदीशपुर (एचबीजे) पाइप लाइन पश्चिमी तट पर स्थित हजीरा को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में स्थित जगदीशपुर से जोड़ती है। सत्रह सौ तीस किमी. लंबी यह गैस पाइपलाइन सवाई माधोपुर, औरैया, आंवला तथा शाहजहांपुर इत्यादि इस्पात एवं उर्वरक कारखानों से होकर गुजरती है। एक नयी पाइपलाइन सलाया (गुजरात) से विरामगाम होकर मथुरा तक बिछायी गयी है, जो 1220 किमी. लंबी है। बरौनी से कानपुर एवं दिल्ली तक भी लाइपलाइनें बिछी हुई हैं। मथुरा-जालंधर (दिल्ली व अम्बाला होकर) तथा नाहरकटिया-गुवाहाटी-सिलीगुड़ी जैसी पाइप लाइनें भी महत्वपूर्ण हैं।
पाइप लाइन नेटवर्क के निर्माण के फलस्वरूप पेट्रोरसायन उद्योग का विकेंद्रीकरण हुआ है, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए लाभदायक है।
लाभ: पाइप लाइन परिवहन के निम्नलिखित लाभ हैं-
- पाइप लाइनें ऊबड़-खाबड़ भूप्रदेशों के अतिरिक्त पानी के भीतर भी बिछायी जा सकती हैं।
- अन्य साधनों की अपेक्षा इनकी संचालन एवं रख-रखाव की लागत भी कम होती है।
- पाइपलाइनों में ऊर्जा की खपत कम होती है, जिससे पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचती।
- पाइप लाइनों के निर्माण द्वारा औद्योगिक क्षेत्र आपस में अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। सड़क एवं रेल यातायात में पैदा होने वाली बाधाएं पाइप लाइन परिवहन को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
कमियां: पाइपलाइन परिवहन की निम्नलिखित कमियां हैं-
- विकासशील देशों में पाइप लाइन नेटवर्क का निर्माण करना प्रतिबंधात्मक रूप से खर्चीला सिद्ध होता है।
- पाइप लाइनों को एक बार बिछाने के बाद उनकी क्षमता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
- पाइप लाइनों को प्रायः सुरक्षा सम्बंधी खतरों का सामना करना पड़ता है।
- लीकेज की स्थिति में पाइपलाइनों की मरम्मत कर पाना काफी कठिन होता है। लीकेज का पता लगाने में भी काफी मुश्किलें सामने आती हैं।
यातायात प्रकारों की प्रतिस्पर्धा एवं संपूरकता
रेल, सड़क, वायु तथा नौवहन जैसे परिवहन-साधनों में स्पर्द्धा को एक-दूसरे की कीमत पर परस्पर विपणनकारी साधन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो इनमें से किसी एक प्रकार के साधन की अधिकतम उपयोगिता स्तर का लाभ न उठा पाने के कारण पैदा होती है। इसके विपरीत संपूरकता में एक प्रकारका परिवहन साधन, दूसरे प्रकार के परिवहन साधन का समानस्तर परपूरकया सहायक रहता है, ताकि दोनों प्रकार के साधनों का समुचित और बेहतरीन उपयोग हो सके। रेलवे तथा सड़क परिवहन के संदर्भ में स्पद्ध और संपूरकता की दोहरी शर्ते अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावकारी हैं, जबकि वायुपरिवहन तथा नौवहन जैसे साधनों की भूमिका अपेक्षाकृत गौण रहती है। इसकी वजह यह है कि रेलवे तया सड़क परिवहन भारत में परिवहन के दो प्रमुख महत्वपूर्ण साधन हैं।
सामान्यतः खाद्यान्नों, धातु अयस्कों, कोयले,उर्वरकों आदि को लंबी दूरी तक पहुंचाने के लिए रेल-परिवहन को ही प्राथमिकता दी जाती है। जबकि अपेक्षाकृत छोटे या कम वजन और आयतन वाले सामान के परिवहन के लिए रोडवेज को अधिक उपयुक्त और सुविधाजनक माना जाता है। 70 के दशक में राष्ट्रीय परमिट योजना शुरू होने के बाद से लंबी दूरी के सड़क यातायात का महत्व बढ़ा है। जहां तक लंबी दूरी के माल-परिवहन का प्रश्न है, रेलवे तथा रोडवेज एक-दूसरे के पूरक हैं। दूर-दराज क्षेत्रों में स्थित उत्पादक स्थलों से रेलवे द्वारा याडौँ तक पहुंचाए थोक और मूल उत्पादों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम रोडवेज के माध्यम से ही होता है।
जहां तक यात्रियों के एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा एक शहर से दूसरे शहर आने-जाने का प्रश्न है, उसमें छोटी दूरी की यात्रा के लिए रेल की अपेक्षा सड़क परिवहन को अधिक वरीयता दी जाती है। वैसे लोग आमतौर पर 250 किलोमीटर तक की दूरी सड़क मार्ग से तय करना ही पसंद करते हैं। लेकिन इस संबंध में नियमित यात्री रेल से सफर करने को अधिक प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि रियायती दरों पर उपलब्ध होने वाला सावधिक पास उन्हें अधिक सस्ता पड़ता है। अतः यह कहा जा सकता है कि 250 किलोमीटर तक के यात्री-परिवहन के लिए रेलवे और रोडवेज में कड़ी स्पर्द्धा है।
माल-परिवहन की तरह ही लंबी दूरी की यात्रा के मामले में भी रेलवे और रोडवेज एक-दूसरे के संपूरक हैं। ऐसी यात्रा के लिए लोग रात में यात्रा करना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि यात्रा के दौरान उन्हें सोने के लिए स्लीपर-बर्थ की सुविधा उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त यात्री सड़क यातायात का उपयोग स्टेशन तक पहुंचने, और स्टेशन से अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए भी करते हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तया चेन्नई महानगरों में वायु-परिवहन कुछ हद तक स्पर्द्धात्मक है, पर बहुत ही सीमित मात्रा में। हालांकि यह महंगा तो जरूर पड़ता है, लेकिन प्रभावी और समय की बचत करने वाला है। परंतु दिल्ली और मुंबई क्षेत्र के बीच इसकी उड़ानों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, अतः इस क्षेत्र में रेलवे के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गया है।
यातायात के विभिन्न साधनों के बीच प्रतिस्पर्द्धा एवं पूरकता को माल एवं सवारी परिवहन की शुल्क दरों को व्यवस्थित करके संतुलित किया जाता है। किंतु व्यस्त मौसम (गर्मी की छुट्टियों या कटाई के मौसम में) के दौरान रेलवे की वहन क्षमता अपर्याप्त सिद्ध होती है और सड़क यातायात में बढ़ोत्तरी हो जाती है। इसके अलावा रेलवे द्वारा यात्री एवं माल भाड़े पर सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिससे उसकी मुनाफा कमाने की क्षमता में कमी आती है।
भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा एवं संपूरकता
प्रतिस्पर्धा एवं संपूरकता के बारे में नीचे उल्लेख किया गया है।
- उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र: जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में रेल नेटवर्क का अभाव होने के कारण यातायात की जरूरतों को सड़कों द्वारा पूरा किया जाता है। इस प्रकार, जम्मू (जम्मू-कश्मीर), शिमला (हिमाचल प्रदेश) तया कोटद्वार, देहरादून एवं काठगोदाम (उत्तराखण्ड) तक रेल नेटवर्क उपलब्ध है और इसके आगे सड़क परिवहन की सुविधा उपलब्ध है।
- ब्रह्मपुत्र घाटी एवं प. बंगाल: यहां सड़कों को माल यातायात (विशेषतः जूट) के क्षेत्र में जलमार्गों के साथ वास्तविक प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है। अधिकांश जूट मिलें हुगली नदी के किनारों पर स्थित हैं।
- केरल के कयाल: तट के साथ सड़कों एवं नहरों की कड़ी प्रतिस्पर्द्धा होती है, जो माल एवं सवारी यातायात, दोनों में मौजूद है। किंतु आंतरिक भागों में पहुंच के लिए सड़कें एकमात्र माध्यम हैं। केरल के समस्त यातायात में सड़कों एवं जलमार्गों द्वारा रेलमार्गों को पूरकता प्रदान की जाती है।
- नीलगिरि: ऊटकमंड तक रेल सम्पर्क कायम होने के बाद सड़क यातायात के साथ एक प्रभावी प्रतिस्पर्द्धा स्थापित हुई है।
बिहार-पश्चिम बंगाल खनिज पेटी: इस क्षेत्र में रेलमार्ग एवं सड़कें एक-दूसरे की पूरक हैं। खनिजों (कोयला, धातु अयस्क आदि) को खनन स्थल से सड़कों द्वारा रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाया जाता है, जहां से वे देश के विभिन्न भागों में पहुंचाये जाते हैं। रेलवे की इस क्षेत्र में प्रभावशाली भूमिका है, क्योंकि उसकी वहन क्षमता व्यापक होती है।
यात्री एवं पण्य प्रवाह
एक परिवहन प्रणाली का विकास द्विस्तरीय प्रभाव डाल सकता है- संसाधनों का विकास तथा लोगों का प्रवाह। उदाहरणार्थ, कर्नाटक में कुद्रेमुख लौह-अयस्क के विकास ने इस क्षेत्र में लोगों को आकर्षित किया है। इसी प्रकार, तमिलनाडु के नेवेली में लिग्नाइट खनन क्षेत्र तया उसके आस-पास स्थापित कारखानों ने मानव बस्तियों के विस्तार को प्रोत्साहन दिया है। दूसरी ओर, प. बंगाल एवं केरल जैसे सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में परिवहन सुविधाओं के विकास ने असम जैसे न्यून जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों की ओर उत्प्रवास को सुसाध्य बनाया। इस प्रकार एक निरंतर अनुक्रम मौजूद रहता है-परिवहन विकास → संसाधन विकास → यात्री प्रवाह → अधिवासन।
इसके अतिरिक्त अस्थायी या अल्पकालिक संचलन भी होता है जो कटाई के मौसम में किसानों या मजदूरों के शहरी क्षेत्रों की ओर जाने से पैदा होता है। मेलों, त्यौहारों, स्कूल की छुट्टियों, शादियों, प्राकृतिक आपदाओं इत्यादि के कारण भी अस्थायी संचलन पैदा हो सकता है।
यात्री प्रवाह के एक चतुर्स्तरीय पदानुक्रम को इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है-
- ग्राम से ग्राम की ओर: यह कटाई मौसम के दौरान या उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति हेतु होता है।
- ग्राम से निकटवर्ती कस्बे की ओर: यह बैंकिंग शिक्षा अथवा स्वास्थ्य सुविधाओं की प्राप्ति हेतु किया जाता है।
- छोटे कस्बे से बड़े शहर की ओर।
- राज्य की राजधानी, महानगर या अन्य दूसरे राज्य की यात्रा।
पण्यप्रवाह हमारी अर्थव्यवस्था के स्थानिक प्रतिरूप को दर्शाता है। वस्तुओं का सुगमप्रवाह हमारी अर्थव्यवस्था के सुगम संचालन हेतु अनिवार्य है। पण्य प्रवाह के चार प्रकार हैं-
- कच्चे माल का परिवहन: उदाहरण के लिए, लौह-अयस्क या गन्ने व कपास का मिलों की ओर संचलन।
- तैयार माल का परिवहन: उदाहरणार्थ, तेलशोधक कारखानों से पेट्रोलियम उत्पादों का या मिलों से कपड़े का उपभोक्ता केंद्रों की ओर संचलन।
- विद्युत का प्रवाह: यह एक महत्वपूर्ण आगत है, जो कोयले की लागत में कमी लाता है।
- पाइप लाइन परिवहन: इसके तहत् तेल, गैस इत्यादि का संचलन शामिल है।
पण्य प्रवाह का अध्ययन कच्चे माल को उतारने के पश्चात् वापस आते समय खाली वैगनों को पहचानने में हमारी सहायता करेगा और हमें कारखानों की अवरिगति को विवेकपूर्ण ढंग से नियोजित करने में सहायता देता है। उदाहरण के लिए, एक लौह-इस्पात कारखाना, लौह-अयस्क खान के निकट स्थापित करने की बजाय यदि किसी कोयला खदान के निकट स्थापित किया जाय तो वह अधिक प्रभावशाली ढंग से चलाया जा सकता है। किंतु एक यथार्थवादी चित्र के प्रस्तुतीकरण हेतु पण्यप्रवाह के अध्ययन में सड़क परिवहन, एक उपयोगी वस्तु के रूप में विद्युत तथा पाइपलाइन द्वारा गैस एवं तेल परिवहन को शामिल किया जाना चाहिए।