परिचय:
73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा भारत में पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की अवधारणा प्रस्तुत की गई, जिसका उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना और जमीनी स्तर पर शासन को मज़बूत करना था।
पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये PRIs के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के साथ इनके समक्ष आने वाली चुनौतियों की पहचान करना आवश्यक है।
भारत में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इस संशोधन के बाद, पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में पहचाना जाने लगा। हालांकि, पंचायती राज संस्थाओं के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं।
पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वित्तीय संसाधनों की कमी: पंचायती राज संस्थाओं को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। हालांकि, अधिकांश पंचायती राज संस्थाओं को पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं मिल पाते हैं। इससे उन्हें अपने कार्यों को सुचारू रूप से करने में कठिनाई होती है।
- प्रशासनिक क्षमता की कमी: पंचायती राज संस्थाओं को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक क्षमता की आवश्यकता होती है। हालांकि, अधिकांश पंचायती राज संस्थाओं के पास पर्याप्त प्रशासनिक क्षमता नहीं होती है। इससे उन्हें अपने कार्यों को सुचारू रूप से करने में कठिनाई होती है।
- सामाजिक और आर्थिक असमानता: भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता एक बड़ी समस्या है। इससे पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने में कठिनाई होती है।
- राजनीतिक दखल: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों में राजनीतिक दखल एक बड़ी समस्या है। इससे पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने हेतु आवश्यक उपाय
पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
- वित्तीय संसाधनों का पर्याप्त आवंटन: पंचायती राज संस्थाओं को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं को पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का आवंटन करना चाहिए।
- प्रशासनिक क्षमता का विकास: पंचायती राज संस्थाओं को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक क्षमता की आवश्यकता होती है। इसके लिए पंचायती राज संस्थाओं के कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
- सामाजिक और आर्थिक असमानता को कम करना: भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। इससे पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
- राजनीतिक दखल को कम करना: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों में राजनीतिक दखल को कम करने के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। इससे पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली में सुधार होगा।
इन उपायों को लागू करने से पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिलेगी। इससे स्थानीय स्तर पर विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष:
73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद से पंचायती राज संस्थाओं ने जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। हालाँकि वित्तीय निर्भरता, क्षमता निर्माण की कमी, प्रशासनिक हस्तक्षेप और सामाजिक पूर्वाग्रह जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। पर्याप्त संसाधन, क्षमता निर्माण, स्वायत्तता, सामाजिक समावेश सुनिश्चित करने के साथ प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत में पंचायती राज प्रणाली को मज़बूत करने के साथ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है और जमीनी स्तर पर भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जा सकता है।