कहवा
कहवा भारत की एक महत्वपूर्ण बगनी फसल है। इस फसल की उत्पत्ति अबीसीनिया में माना जाता है। भारत में इसका उत्पादन चिकमंगलूर (कर्नाटक) से शुरू हुआ। मक्का के एक फकीर बाबा बुदान साहिब ने 17वीं शताब्दी में भारतीयों को कहवा से परिचित कराया। कर्नाटक, केर और तमिलनाडु इसके प्रमुख उत्पादक हैं। ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश अन्य कहवा उत्पादक राज्य हैं।
भारत में कहवा की दो प्रजातियां मुख्य रूप से दृष्टिगोचर होती हैं- अरबिका (Coffea arabica) और रोबुस्टा (Coffea canephora)। अरबिका का उत्पादन 900 मीटर से 1200 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा रोबुस्टा का उत्पादन लगभग 150 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होता है।
वृद्धि की शर्तें
कहवा के उत्पादन में जलवायविक एवं पर्यावरणीय कारक- वर्षा, तापमान और उच्चता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 180 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा के साथ उष्ण एवं आर्द्र जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसकी कृषि के लिए तापमान 15° सेंटीग्रेड से 30° सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। इसके अतिरिक्त कहवा की कृषि के लिए मिट्टी में लोहा एवं चूना की पर्याप्त मात्रा का होना आवश्यक होता है।
उत्पादक क्षेत्र
भारत में अरेबिका किस्म का कहवा पैदा किया जाता है जो आरम्भ में यमन से लाया गया था। इस किस्म के कहवे की विश्व भर में अधिक मांग है। इसकी कृषि की शुरुआत बाबा बुदन की पहाड़ियों से हुई और आज भी नीलगिरि पहाड़ी के चारों ओर संकेंद्रित है। कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु कहवा के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। भारत में अरेबिका कहवे की तुलना में रोबेस्टा कहवे का उत्पादन अधिक होता है।