पृथ्वी की सतह पर तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
- सूर्यातप की मात्रा और वितरण: पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप की मात्रा और वितरण तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कारक है। पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण करते समय 23.5° का कोण बनाता है। इस कारण से, उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों को प्राप्त होने वाला सूर्यातप की मात्रा और वितरण समान नहीं होता है। उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों में अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में सर्दियों में अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है।
- पृथ्वी की सतह की प्रकृति: पृथ्वी की सतह की प्रकृति भी तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को प्रभावित करती है। समुद्र, भूमि, वन, रेगिस्तान आदि विभिन्न प्रकार की सतहों पर सूर्यातप की अवशोषण क्षमता अलग-अलग होती है। समुद्र सूर्यातप को अधिक अवशोषित करता है, जबकि भूमि सूर्यातप को कम अवशोषित करती है। वन भी सूर्यातप को कुछ हद तक अवशोषित करते हैं। रेगिस्तान सूर्यातप को अधिक प्रतिबिंबित करता है।
- ऊंचाई: पृथ्वी की सतह से ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ वायु का घनत्व कम होता जाता है और वायु में मौजूद जलवाष्प की मात्रा भी कम होती जाती है।
- जलवाष्प की मात्रा: वायु में मौजूद जलवाष्प की मात्रा भी तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को प्रभावित करती है। वायु में जलवाष्प की मात्रा अधिक होने पर वाष्पीकरण की दर अधिक होती है और वर्षण की संभावना भी अधिक होती है।
- वायुदाब: वायुदाब भी तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को प्रभावित करता है। उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों में वर्षण की संभावना कम होती है, जबकि निम्न वायुदाब वाले क्षेत्रों में वर्षण की संभावना अधिक होती है।
विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में इन कारकों की मात्रा और वितरण अलग-अलग होता है। इसलिए, विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में तापमान, वर्षण एवं वायु का वितरण भी अलग-अलग होता है।
उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सूर्यातप की मात्रा अधिक होती है और वर्षण की संभावना भी अधिक होती है। इसलिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान अधिक होता है और वर्षावन पाए जाते हैं।
शीत ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्यातप की मात्रा कम होती है और वर्षण की संभावना भी कम होती है। इसलिए, शीत ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान कम होता है और बर्फ और हिमपात होता है।
मध्य अक्षांशों में सूर्यातप की मात्रा और वर्षण की संभावना मध्यम होती है। इसलिए, मध्य अक्षांशों में तापमान मध्यम होता है और विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं।
भारत में, तापमान, वर्षण एवं वायु का वितरण विभिन्न भौगोलिक कारकों के कारण भिन्न-भिन्न होता है। भारत का उत्तरी भाग हिमालय पर्वतों से घिरा हुआ है, इसलिए इस भाग में वर्षण की संभावना अधिक होती है। भारत का दक्षिणी भाग अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है, इसलिए इस भाग में वर्षण की संभावना भी अधिक होती है। भारत का मध्य भाग मैदानी क्षेत्र है, इसलिए इस भाग में वर्षण की संभावना कम होती है।
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि पृथ्वी की सतह पर तापमान, वर्षण एवं वायु के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक प्राकृतिक और मानवजनित दोनों होते हैं। इन कारकों की मात्रा और वितरण विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग होती है।