कोयला ईंधन का प्रमुख स्रोत है। देश की व्यावसायिक ऊर्जा की खपत में इसका योगदान 67 प्रतिशत है तथा यह कार्बो-रासायनिक उद्योगों में प्रयुक्त किया जाने वाला आवश्यक पदार्थ है। यह ज्वलनशील खनिज जैव-पदार्थों से बना पर्वत होता है। इन जीवांशों में कार्बन (60 से 90 प्रतिशत), हाइड्रोजन (1 से 12 प्रतिशत), ऑक्सीजन, फॉस्फोरस और सल्फर भी पाया जाता है। कोयला अवसादी चट्टानों से सम्बद्ध कार्बनिक तत्वों से निर्मित चट्टानों में और बालू पत्थर में पाया जाता है। इसका निर्माण घनी वनस्पति के युगों तक धरातल के नीचे दब जाने, रूप परिवर्तित होने और कार्बनीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है। लकड़ी से कोयला बनने की प्रक्रिया में इन्हें जिन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है, उनकी अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। कार्बन की सम्पन्नता से कोयले का ऊष्मा परिमाण निर्धारित होता है। कार्बन की सम्पन्नता की दृष्टि से कोयले को चार वर्गों में विभक्त किया जाता है- पीट, लिग्नाइट बिटुमिनस और एंथ्रासाइट।
कोयला, ऊष्मा एवं शक्ति का एक प्राथमिक स्रोत है तथा इसका इस्तेमाल वाटर गैस के उत्पादन में, लौह, जिंक इत्यादि जैसे खनिजों के निष्कर्षण उद्देश्य से धातुकर्म कार्य के लिए, कोयला गैस, टार, कोक इत्यादि के उत्पादन में; तथा विभिन्न प्रकार के वार्निश एवं कीटनाशकों के उत्पादन में किया जाता है
कोयला अवसादी शैल में कार्बनयुक्त शेल, बलुआ पत्थर और यहां तक कि फायरक्ले के साथ पाया जाता है। गोंडवाना कोयला दरारी निक्षेपों में पाया जाता है तथा टर्शियरी कोयला शेल निक्षेपों में पाया जाता है।
वितरण: भारत में, कोयला मुख्य रूप से दो भूगर्भिक कालों के शैल क्रमों में पाया जाता है जिनके नाम हैं- पर्मियन काल का गोंडवाना और इयोसीन से मायोसीन काल तक टर्शियरी कोयला निक्षेप। भारत में कोयला शैल समूह का सबसे बड़ा काल पर्मियन है। महत्वपूर्ण कोयला शैल समूह को दमुदाज के नाम से जाना जाता है जोकि निचले गोंडवाना निकाय से संबंध रखता है। सबसे अधिक (लगभग) 98.1 प्रतिशत तक कोयले की प्राप्ति गोंडवाना युग की चट्टानों से होती है शेष कोयले का अधिकांश भाग टर्शियरी युग की चट्टानों से प्राप्त होता है।
गोंडवाना कोयला: गोंडवाना कोयले की महत्वपूर्ण खाने दामोदर, महानदी, गोदावरी, वर्धा और इनकी सहायक नदियों की घाटियों में स्थित हैं। निम्न गोंडवाना में दो मुख्य संस्तर पाये जाते हैं-(a) निम्न पर्मियन युग की बाराकर श्रेणी (b) ऊपरी पर्मियन युग की रानीगंज श्रेणी।
बाराकर श्रेणी की कोयले की धारियां काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह अच्छी किस्म का और सभी कोलफील्ड में पाया जाता है।
रानीगंज क्षेत्र में यद्यपि कोयला बाराकर और रानीगंज दोनों श्रेणियों में पाया जाता है किन्तु रानीगंज श्रेणी से ही अधिक मात्रा में कोयला मिलता है। यहां पर कोयले की पांच अच्छी पर्तें धिसेरगढ़, धूसिक, सैनटोरिया, पोनीआती और लेकदीह हैं। इसमें भी धिसेरगढ़, पर्त सबसे अच्छी है। सैनटोरिया और धिसेरगढ़ तहों से अर्द्ध-कोक बनाने योग्य कोयला मिलता है।
टशियरी कोयला: इयोसीन युग में टर्शियरी कोयला असम में, कश्मीर की हिमालयी पहाड़ियों में, राजस्थान (बीकानेर में पालना) में मुख्यतः प्राप्त होता है। इसकी तुलना में, लिग्नाइट निक्षेप तमिलनाडु के दक्षिण अरकाट में, गुजरात के कच्छ में और केरल राज्य में भी पाया जाता है। तमिलनाडु का नेवेली लिग्नाइट क्षेत्र (जो मायोसिन युग का है) दक्षिण भारत में सबसे बड़ा निक्षेप है।
कोयला क्षेत्र का वितरण: गोंडवाना कोयला क्षेत्र में पायी जाने वाली खानें निम्न राज्यों में इस प्रकार हैं-
पश्चिम बंगाल में, बड़े कोयला निक्षेप बर्दवान, बंकुरा, पुरुलिया, बीरभूम, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों में स्थित हैं। रानीगंज कोयला क्षेत्र राज्य में महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र है। यहां से प्राप्त कोकिंग कोयला धातुकर्मीय उद्योगों के लिए बहुत उपयोगी है।
झारखंड में, विभिन्न उदीयमान कोल क्षेत्र धनबाद, हजारीबाग, पलामू और संथाल परगना जिलों में अवस्थित है। इनमें से, झरिया, पूर्वी और पश्चिमी बोकारो, गिरीडीह, उत्तरी और दक्षिणी करनपुरा, रामगढ़, औरंगा, हुतार और डाल्टनगंज बहुत महत्वपूर्ण हैं। धनबाद जिले में झरिया कोयला क्षेत्र से कम वाष्पशील कोकिंग दर्जे का कोयला प्राप्त होता है।
बोकारो कोयला क्षेत्र झरिया के पश्चिम में 3 किमी. दूर है और दो भागों में बंटा हुआ है- पूर्वी बोकारो और पश्चिमी बोकारो। बोकारो कोयला क्षेत्र की कारगली पर्त भारत में गोंडवाना काल की सबसे मोटी पतों में से एक है। यहां से अच्छे किस्म का बिटुमिनस कोयला प्राप्त होता है।
गिरीडीह या करहरबाड़ी कोयला क्षेत्र गिरीडीह के दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है। यहां घटती-बढ़ती मोटाई वाली तीन मुख्य पर्ते हैं-निम्न करहरबाड़ी, अपर करहरबाड़ी और बधुआ पतें। निम्न करहरबाड़ी सबसे अच्छे किस्म का कोकिंग कोयला है।
करनपुरा कोयला क्षेत्र उत्तरी और दक्षिणी करनपुरा में विभाजित है। कोयला पर्तें बाराकर और रानीगंज दोनों संस्तर में पायी जाती हैं, यह पतें लगभग 22 मीटर मोटी होती हैं।
रामगढ़ कोयला क्षेत्र बोकारो क्षेत्र से लगभग 9 किमी. दूर अवस्थित है। इसमें राख व वाष्प का अंश अधिक होता है। औरंगा, हूटर और डाल्टनगंज कोयला क्षेत्र पलामू जिले के कम महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। डाल्टनगंज क्षेत्र में तलचर पर्तें अंतर्विष्ट हैं। यहां पर कोयला घटिया किस्म का है, जो या तो सेमी एन्थ्रासाइट या नॉन-कोकिंग है। इनमें राख का अंश अधिक होता है।
ओडीशा में, तालचर और सम्भलपुर प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं। तालचर ब्राह्मणी नदी की घाटी में स्थित है। सम्भलपुर कोयला क्षेत्र इब नदी की घाटी में स्थित है। सम्भलपुर कोयला क्षेत्र से प्राप्त कोयले का उपयोग राउरकेला इस्पात संयंत्र में होता है।
मध्य-प्रदेश में सोहागपुर, उमरिया, तत्तापानी, झीलमिली, रामकोला, बनरस, चिरमिरी, हसदी-रामपुर और कोरबा प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं। सोहागपुर भारत का सर्वाधिक विस्तृत कोयला क्षेत्र है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित सिंगरौली में जनवरी, 1976 में कोयले की 165 मीटर मोटी तह मिली, जो विश्व में अब तक मिली कोयले की सर्वाधिक मोटी पट्टी है। कोरबा कोयला क्षेत्र का विकास भिलाई लौह-इस्पात कारखाने की मांग की आपूर्ति के लिए हुआ है। यह क्षेत्र महानदी घाटी में स्थित है।
आंध्र प्रदेश में सिंगरेनी और एस्ती प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं, जो गोदावरी घाटी में स्थित हैं। तन्दूर और गोदावरी नदियों के बीच तन्दूर कोयला क्षेत्र है।
महाराष्ट्र में बल्लारपुर, बाँदा, चंदा, यवतमाल और वरौरा प्रमुख क्षेत्र हैं। वर्धा घाटी में स्थित ये कोयला क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि दक्षिण-पश्चिम भारत में कोयले की आपूर्ति इस क्षेत्र से होती है। नागपुर के निकट 30 करोड़ टन का कोयला क्षेत्र मिला है।
गोंडवाना चट्टानों के अन्य कोयला क्षेत्र पूर्वी हिमालय में, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में, सिक्किम की रणजीत घाटी में तथा उत्तरी असम के पहाड़ी भागों में मिलते हैं।
टर्शियरी कोयला क्षेत्र: भारत में 1.5 से 2 प्रतिशत कोयला टर्शियरी युग की चट्टानों से प्राप्त होता है। तमिलनाडु में दक्षिण अर्काट प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है। भारत में लिग्नाइट का सर्वप्रमुख उत्पादक क्षेत्र यही है। कुलादोर से वृद्धाचलम् के बीच 36 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 200 करोड़ टन कोयला संरक्षित है।
असम व मेघालय में गारो, खासी और जयन्तिया की पहाड़ियों में आदि नूतन युग का कोयला और माकूक में लिग्नाइट कोयला मिलता है। मिकिर पहाड़ियों में लांगलोई, दिस्सोमा और नांबोर नदी घाटियों में भी कोयला मिलता है, पर यह निम्न कोटि का कोयला है।
जम्मू एवं कश्मीर में चेनाब नदी के पश्चिम में कालाकोट, मेटा और डांडली में, चेनाब के पूर्व में लड्डा में तथा धनसाल-सवालकोट में कोयला मिलता है। यहां उच्च कोटि का बिटुमिनस तथा एन्ध्रासाइट कोयला मिलता है।
राजस्थान में पलान क्षेत्र में, जयपुर क्षेत्र में तथा जोधपुर क्षेत्र में कोयले का भण्डार है। उत्तर प्रदेश में नेपाल सीमा पर और गुजरात में भी टर्शियरी कोयले का भण्डार मिला है।